बाइबल महत्वपूर्ण स्थान बताती है जो हमारे उद्धार से नजदीक संबंधित होता है। वही अदन वाटिका है। अदन वाटिका का इतिहास हमें मानवजाति का आदि और मृत्यु के बारे में इतिहास बताता है। लेकिन हम अदन वाटिका के इतिहास से जीवन का रहस्य भी खोज सकेंगे। तब हम कैसे मृत्यु से उद्धार पा सकेंगे?
दूसरी बार आने वाला मसीह आन सांग होंग ने इस विषय के बारे में बताया कि केवल जो जीवन के वृक्ष का फल खाता है वही उद्धार पाएगा। सहज तरीके से बताएं तो आत्मा जिसने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर पाप किया है, उसके लिए जीवित होने का एक ढंग जीवन के वृक्ष का फल खाना है। परन्तु जीवन के वृक्ष के फल का मार्ग बन्द कर दिया कि उस के पास कोई पापी भी नहीं जा सके। अतत: 325 ई. पू शैतान द्वारा जीवन के वृक्ष के फल का मार्ग बन्द हुआ।
अगर बाइबल को ध्यानपूर्वक पढ़ लें तो भविष्यवाणी लिखी है कि दूसरी बार आने वाला यीशु जीवन के वृक्ष का फल दुबारा ले आकर मरणाधीन मनुष्य को अनन्त जीवन देगा। जो जीवन के वृक्ष का फल ले आया वह महोदय आन सांग होंग परमेश्वर है। इसलिए चर्च ऑफ गॉड आन सांग होंग को दूसरी बार आने वाला यीशु रूप में मानता है।
तब जीवन के वृक्ष का फल क्या है?
जो जीवन के वृक्ष का फल ले आया है क्या वह आन सांग होंग होगा?
सृष्टि से गुप्त रहा जीवन के वृक्ष का फल
मत 13:34 यीशु ने ये सब बातें भीड़ से दृष्टान्त में कहीं, और वह दृष्टान्त के बिना उनसे कुछ नहीं कहता था। जिस से कि नबी द्वारा जो वचन कहा गया था वह पूरा हो: "मैं दृष्टान्त में बोलने को अपना मुंह खोलूंगा। मैं उन बातों को कहूंगा जो जगत की सृष्टि से गुप्त थीं।"
यीशु ने दृष्टान्त द्वारा सृष्टि से गुप्त चीजों को प्रकट किया। तब 66 बाइबल की किताब में से कौन सी बाइबल की किताब में जगत की सृष्टि का इतिहास है? वह उत्पत्ति की किताब में ईश्वरीय प्रयोजन के बारे में बहुत से दृष्टान्त हैं। उन में से आइए हम जीवन के वृक्ष के दृष्टान्त के बारे में पढ़ें।
उत 2:16 फिर यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह कहकर आज्ञ दी: "तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बेखटके खा सकता है, परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है – उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।"
परमेश्वर ने अदन वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाया। और उसने आदम और हव्वा को निर्देश दिया कि उस में से कभी न खाना।
लेकिन आदम और हव्वा ने शैतान के बककावे में आकर उस छिपे फल को खाने से परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ा। इसी वजह से मानव जाति को मरना नियुक्त किया गया था और इसी समय से पाप के कारण मृत्यु ने संसार में प्रवेश किया।
उसके बाद यहोवा परमेश्वर ने हमें मृत्यु से उद्धार पाने का कोई रास्ता नहीं दिया? क्या मृत्यु होने का मौका नहीं रहा?
उत 3:22 तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, "देखो, यह मनुष्य भले और बुरे के ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। अब ऐसा न हो कि वह अपना हाथ बढ़ाकर जीवन क वृक्ष का फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे।
जैसे ऊपर कहा गया अनन्त जीवन पाने का रास्ता केवल एक है। वही जीवन के वृक्ष का फल खाना है।
जीवन के वृक्ष के फल की असलियत यीशु
तब जीवन के वृक्ष का फल कैसे खा सकेंगे?
अदन वाटिका के इतिहास को दुबारा विचार करें तो परमेश्वर था जिसने अदन वाटिका के जीवन के वृक्ष का फल पापी देह से खाने की अनुमति नहीं दी। इसलिए मानवजाति के लिए जीवन के वृक्ष का फल खोए मरने वाला था, जीवन के वृक्ष का फल पूर्व स्थिति में लाने यीशु जो परमेश्वर है, उद्धारकर्ता रूप में आया।
यूह 10:10 चाहे केवल चोरी करने, मार डालने, और नाश करने को आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएं।
यीशु जीवन देने आया तो इसका अर्थ है कि खोए जीवन के वृक्ष का फल ले आया है। तब जीवन के वृक्ष के फल की असलियत क्या है जो यीशु ले आया?
यूह 6:53 यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है, और मैं अन्तिम दिन में जिला उठाऊँगा।
उत्पत्ति की किताब में अनन्त जीवन पाने क्या खाना चाहिए था? जीवन के वृक्ष का फल है। तब यीशु ने अनन्त जीवन पाने के लिए किसे खाने को कहा? वही यीशु का मांस और लहू का अर्थ क्या है? जीवन के वृक्ष का फल है।
सही बात है। यीशु का माँस और लहू अदन वाटिका में जीवन के वृक्ष का फल दर्शाता है। उसका मांस और लहू खाना और पीना ही अदन वाटिका में जीवन के वृक्ष का फल खाने का तरीका है जो आदम और हव्वा से खोया। इसी कारण से हमें अनन्त जीवन पाने के लिए यीशु का मांस और लहू खाना और पीना चाहिए।
जीवन के वृक्ष का फल फसह की रोटी और दाखमधु
अब हमें यही जानना है कि अदन वाटिका में जीवन के वृक्ष के फल की असलियत यीशु का मांस और लहू किस तरह से खा और पी सकेंगे। यीशु ही को खाना असम्भव है। तब यूहन्ना 6:53 में यीशु के कथन का अर्थ क्या है? यह वचन मत्ती 26:17 से संबंधित है। हम इससे यीशु का मांस और लहू खाने का तरीका जान सकेंगे।
मत 26:17-26 फिर चेले अखमीरी रोटी के पर्व के पहिले दिन, यीशु के पास आकर पूछने लगे, "तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिए फसह खाने की तैयारी करें?" उसने कहा, "नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उस से कहो, ‘गुरु कहता है, "मेरा समय निकट है। मुझे अपने चेलों के साथ तेरे यहां फसह का पर्व मनाना है"’।" तब यीशु की आज्ञा के अनुसार चेलों ने फसह की तैयारी की।... जब भोजन कर रहे थे, यीशु ने रोटी ली और आशिष मांगकर तोड़ी और चेलों को देकर कहा, "लो, खाओ; यह मेरी देह है।" फिर उसने प्याला लेकर धन्यवाद दिया और उन्हें देते हुए कहा, "तुम सब इसमें से पियो, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है जो बहुत लोगों के निमित्त पापों की क्षमा के लिए बहाया जाने को है।
फसह में खाने की रोटी और दाखमधु यीशु का मांस और लहू अर्थात् यीशु ही है। इसलिए फसह की रोटी और दाखमधु खाना ही अदन वाटिका में जीवन के वृक्ष का फल खाने के बराबर है। यहां पर हम जान गए कि जीवन के वृक्ष का फल दृष्टान्त है जो यीशु को संकेत करता है, और जीवन के वृक्ष का फल, यीशु का मांस और लहू का तरीका फसह सत्य से पूरा होता है।
फलत: जीवन के वृक्ष का फल फसह द्वारा मानवजाति को दिया गया, और यीशु जो जीवन के वृक्ष का फल ले आया वही परमेश्वर है।
जीवन के वृक्ष का फल से दिया, महोदय आन सांग होंग
अदन में जीवन के वृक्ष का फल खोए मरणाधीन मानवजाति के लिए परमेश्वर ने स्वयं शरीर में आकर जीवन के वृक्ष का फल, फसह की रोटी और दाखमधु दिया, कि हम अनन्त जीवन पा सके।
परन्तु शैतान ने निकेया परिषद् के मध्यम से(325 ई.) जीवन के वृक्ष का फल, फसह, महिमामय सत्य तोड़ दिया। यह मतलब रखता है कि जीवन के वृक्ष छिप गया इसके पश्चात् कोई भी अनन्त जीवन न पाएगा।
जीवन के वृक्ष का सत्य, फसह के बिना कैसे हम उद्धार की राह देखेंगे? इस मानवजाति को जीवन के वृक्ष का फल, फसह सत्य जिससे फिर से दिया है वह प्रथम आगमन के समान केवल परमेश्वर के अलवे कोई नहीं है।
इब्र 9:28 वैसे ही मसीह भी, बहुतों के पापों को उठाने के लिए एक बार बलिदान होकर, दूसरी बार प्रकट होगा। पाप उठाने के लिए नहीं, परन्तु उनके उद्धार के लिए जो उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा करते हैं।
मसीह के फिर से आने का उद्देश्य उद्धार देने के लिए है। उद्धार देने के लिए अवश्य ही फसह जरूरी है। जिसने इस फसह के सत्य को फिर से ले आया वह महोदय आन सांग होंग है।