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आधारभूत सत्य

चर्च ऑफ गॉड जिसने आन सांग होंग जी को दूसरी बार आने वाले मसीह के रूप में ग्रहण किया बाइबल में कथित सातवां दिन सब्त हफ्ते में शनिवार को सही तरह से मना रहा है। परन्तु पूरे संसार में अनगिनत संख्या के ईसाई गलत जानते हैं कि जिस दिन परमेश्वर ने संसार की सृष्टि के बाद आराम किया वो सातवां दिन सब्त हफ्ते में रविवार है। लेकिन वास्तव में बाइबल प्रमाणित करती है कि वो दिन शनिवार है। लोग यह जानते हुए भी कि शनिवार सब्त है, परम्परा से उलझाए हुए नहीं मना रहे हैं। लेकिन बाइबल कड़ी शिक्षा देती है कि बाइबल के वचनों में कुछ कोई भी न घटा और न बढ़ा सकता है।

प्रक 22:18-19 मैं प्रत्येक को जो इस पुस्तक की नबूवत के वचनों को सुनता है गवाही देता हूं: यदि कोई इनमें कुछ बढ़ाएगा तो परमेश्वर इस पुस्तक में लिखी विपत्तियों को उस पर बढ़ाएगा। यदि कोई इस नबूवत की पुस्तक के वचनों को घटाएगा तो परमेश्वर इस पुस्तक में लिखित जीवन के वृक्ष और पवित्र नगर से उसका भाग छीन लेगा।


सृष्टिकर्ता परमेश्वर का स्मरण करने का दिन

सब्त का अर्थ सिर्फ ‘विश्राम दिन’ नहीं है पर इसके अलावा यह अर्थ भी होता है, ‘सृष्टिकर्ता परमेश्वर का स्मरण करने का दिन’। परमेश्वर ने छ: दिन में सृष्टि कार्य समाप्त करके सातवें दिन आराम किया और उस दिन को आशीषित किया।(उत 2:1-3) जैसा लिखा है, "परमेश्वर ने अपना कार्य जिसे वह करता था, सातवें दिन पूरा किया। और उसने सातवें दिन अपने उस सम्पूर्ण कार्य से जिसे वह करता था, विश्राम किया। तब परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीषित किया और उसे पवित्र ठहराया, क्योंकि उस दिन सृष्टि के समस्त कार्य से जो उसने रचा और बनाया परमेश्वर ने विश्राम किया।"

इसलिए मूसा के समय परमेश्वर ने यह दस आज्ञाओं में चौथी आज्ञा के रूप में दिया, "विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना।... क्योंकि "यहोवा ने छ: दिन में आकाश और पृथ्वी, समुद्र और जो कुछ उनमें है, सब को बनाया और सातवें दिन विश्राम किया, इसलिए यहोवा ने विश्रामदिन को आशिष दी और उसे पवित्र ठहराया।"(निर्ग 20:11) इस वचन के जैसा सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने सब्त को एक चिन्ह करके निश्चित किया कि जो सब्त मनाता है वह परमेश्वर की प्रजा है।(यहेज 20:11-17, यश 56:1-7)

इस तरह, सब्त सिर्फ आराम करने का दिन नहीं पर सृष्टिकर्ता परमेश्वर की उपासना और आराधना करने का दिन है। परमेश्वर ने सब्त मनाने वालों को आशीष दी परन्तु सब्त न मनाने वालों ने कड़ी सजा और विपत्ति का सामना किया।

यिर्म 17:24-27 यदि तुम ध्यान से मेरी सुनो...विश्राम दिन को पवित्र मानने के लिए कोई कार्य न करो... यह नगर सदा-सर्वदा बसा रहेगा। ... उसके फाटकों में आग सुलगाऊंगा, और वह यरूशलेम के महलों को भस्म कर देगी और आग फिर न बुझेगी"


सब्त शनिवार है

फिलहाल हम एक हफ्ते में हर 7 दिनों को पहला दिन, दूसरा दिन, ... इत्यादि नहीं कहते पर रविवार, सोमवार ... इत्यादि कहते हैं। यह रोम में निश्चित हुआ, उस समय लोगों ने वादा किया कि पहले दिन को रविवार, दूसरे दिन को सोमवार, तीसरे दिन को मंगलवार ... सातवें दिन को शनिवार कहें।

1) जब कैलेंडर को देखते हैं, एक हफ्ते में 7 दिन होते हैं। कैलेंडर में पहला दिन वह रविवार है और सातवां दिन शनिवार है। सप्ताहांत(सप्ताह का अंत) शनिवार कहलाता है न?

2) शब्दकोश में भी रविवार के लिए ‘सात दिनों का पहला दिन’ लिखा है। और शनिवार के लिए ‘रविवार से लेकर सातवां दिन, सप्ताहांत’ लिखा है। वास्तव में हमारे आसपास साधारण जानकारी से भी हम जान सकते हैं कि रविवार एक हफ्ते का पहला दिन है, और सातवां दिन शनिवार है।

3) बाइबल में यीशु के पुनरुत्थान के विवरण में भी प्रमाणित किया गया कि सातवां दिन शनिवार है।

मर 16:9 जी उठने के पश्चात् सप्ताह के पहिले दिन बहुत सवेरे ही, वह सब से पहिले मरियम मगदलीनी को जिसमें से उसने सात दुष्टात्माएं निकाली थीं दिखाई दिया। जिस दिन यीशु कब्र से जी उठा वह ‘सप्ताह का पहिला दिन’ था (सातवां दिन सब्त मनाने के बाद पहला दिन) और ‘सप्ताह का पहिला दिन’ हफ्ते में रविवार है।

इसी वजह से विश्व में सारे ईसाई पुनरुत्थान का दिन रविवार को मनाते हैं, न? इस के संबंधित अंग्रेजी बाइबल, टूडे इंगलिश अनुवाद में ऐसा लिखा गया, "पौ फटते ही रविवार सुबह...", यदि यीशु के पुनरुत्थान का दिन रविवार था तो सब्त जो पुनरुत्थान से एक दिन पहला है कौन सा दिन होगा? यीशु सब्त(शनिवार) के अगले दिन रविवार को जी उठा। इस तरह बाइबल में लिखित यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा भी हम जान सकते हैं कि सातवां दिन सब्त शनिवार है।


यीशु और प्रेरित जिन्होंने सब्त मनाया

पुराना नियम नए नियम की छाया और नमूना है। पुरानी व्यवस्था नए नियम के समय पूरी होने का नमूना थी।(इब्र 10:1) इसलिए सब्त को पुराने नियम की बाइबल में ‘यहोवा का सब्त’ कहा गया था।(निर्ग 31:13, यहेज 20:12) नए नियम के समय यीशु ‘सब्त का प्रभु’ था।(मत 12:8, लूक 6:5) दूसरे शब्द में पुराने नियम का सब्त जो व्यवस्था के अनुसार मनाया गया नई वाचा के सब्त का नमूना था जो नए नियम के समय प्रेरितों ने यीशु के नमूने के जैसा आत्मा और सच्चाई से मनाया। यीशु ने अपनी रीति के अनुसार सब्त मनाया था।

लूक 4:16 फिर वह नासरत आया जहां उसका पालन-पोषण हुआ था और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिए खड़ा हुआ।

नए नियम के युग में आकर सब्त मनाने की रीति परिवर्तित हुई।(पुराने नियम की रीति: बलिदान चढ़ाना, आग सुलगाया भी नहीं, कोई काम न करना। नए नियम की रीति: परमेश्वर की बड़ाई करते हुए प्रार्थना और आत्मा तथा सच्चाई से आराधना करना।) सब्त मनाने का तारीख बदल गया ही नहीं, क्योंकि जिस दिन सारी सृष्टि के बाद परमेश्वर ने आराम किया वह सातवां दिन था। इसलिए प्रेरित भी जब सब्त का दिन आता, रीति के अनुसार सब्त मनाते हुए वचन का प्रचार किया करते थे।

प्रे 17:2 पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया और तीन सब्त तक पवित्रशास्त्र से उनके साथ वाद-विवाद करता रहा...

प्रे 20:6-7 अख़मीरी रोटी के पर्व के पश्चात् हम फिलिप्पी से जहाज़ द्वारा निकले और पांच दिन में उनके पास त्रोआस पहुंचे... सप्ताह के पहिले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिए एकत्रित हुए...

बाइबल द्वारा यह प्रमाणित होते हुए भी कि यीशु का दिन, सब्त(सातवां दिन, शनिवार) प्रेरित के युग तक मनाया गया, आजकल बहुत से ईसाई सब्त के दिन आराधना क्यों नहीं करते पर रविवार को आराधना कर रहे हैं?

ऐतिहासिक प्रमाण से कहा जाता है कि रविवार की आराधना गैर-ईसाइयों की सूरज-पूजा से शुरू हुई। यीशु के जन्म होने से भी पहिले रोम देश में लोग पहले दिन(रविवार)को सूरज का दिन करके पूजा करते रहते थे।


सब्त का दिन रविवार में बदल जाना

प्रेरित के संसार छोड़ने के बाद जब ईसाई धर्म रोम समेत पश्चिमी प्रदेशों की ओर प्रसारित किया गया चर्च को सूरज के पूजयितों से मिलाया गया। अत: 4 शताब्दी के शूरू में पूजयितों का प्रधान रोम सम्राट ने ईसाई धर्म में अपने धर्म का परिवर्तन किया, बहुत से सूरज के पूरयिते चर्च के अन्दर प्रवेश करते थे। समय के बीत जाने पर ईसाई धर्म की मानसिकता बिगड़ गई। और वे सूरज के पूजयिते की रीतियों को स्वीकार करने लगे। इस प्रक्रिया में पहले दिन को(रविवार) आराधना करने की व्यवस्था घुस कर आई।

रोम में कॉनस्टॅन्टीन सम्राट ने सन् 321 में इस प्रकार व्यवस्था की घोषणा की, "सारे न्यायाधीशी और नागरिक और शिल्पकार को आदरणीय सूरज के दिन छुट्टी रखनी चाहिए।" सब्त का अन्त करना देखने में लगता है कि उस से बहुतों का धर्म परिवर्तित किया, परन्तु भीतर की ओर यह शैतान जो परमेश्वर का विरोध करता है उसकी चतुर युक्ति-योजना थी। शैतान विभिन्न तरीकों द्वारा परमेश्वर की प्रजाओं को परेशान देता आया। अत्यन्त अत्याचार देते हुए ईसाई और परमेश्वर की कलीसिया को नाश करने की कोशिश तो की थी पर जितना वे परेशान देते थे उतना ज्यादा परमेश्वर की प्रजाएं परमेश्वर पर भरोसा करती थी। लेकिन जब शैतान ने अपनी योजना बदल कर चर्च को उंचा करते हुए ऐसा बहकाया कि हम साथ मिलकर परमेश्वर को विश्वास करें, तब उन्होंने जल्दी से उसके सामने घूटने टेके। जब उनकी लूट जो अत्याचार करने ईसाइयों से ले ली गई, वापस दिया, और पुरोहितों का फौजी-कर्तव्य मुक्त किया, और दास की स्वतन्त्रता का अधिकार भी दिया गया तब उन्होंने परमेश्वर से अपनी पीठ फेरी। वे नहीं जानते थे, मधूर मिठी बातों से उनकी आत्मा भटकायी गई।

परमेश्वर ने स्पष्टतया कहा, ‘जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है, वही प्रवेश करेगा।’(मत 7:21-23) रविवार जो अधिक लोग रखते हैं और सब्त(शनिवार) में से कौन से दिन में आराधना करना परमेश्वर को प्रसन्न करेगा? सहाज ही से शनिवार की आराधना है।


चर्च ऑफ गॉड जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया

चर्च ऑफ गॉड जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया मनुष्य द्वारा बनाई हुई व्यवस्था नहीं पर केवल परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करता है। क्योंकि उद्धार केवल उसी से दिया जा सकता है जिसने सारी वस्तुओं की सृष्टि की। और यीशु ने पहले से कहा कि जो मनुष्य की आज्ञा का पालन करता है वह उद्धार पर न पहुंचेगा।

मर 7:6-9 उसने(यीशु) उनसे कहा, "यशायाह ने तुम पाखंडियों के लिए ठीक ही भविष्यवाणी की थी, जैसा कि लिखा है, ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, और मनुष्यों की शिक्षाओं को धार्मिक सिद्धान्त के रूप में सिखाते हैं।’ परमेश्वर की आज्ञा को टाल कर तुम मनुष्यों की परम्परा का पालन करते हो।" उसने उनसे यह भी कहा, "तुम अपनी परम्परा का पालन करने के लिए परमेश्वर की आज्ञा को कैसी अच्छी तरह टाल देते हो!"

प्रथम से चर्च ऑफ गॉड एक है जो यीशु की शिक्षा के अधीन होकर प्रेरितों की नींव पर स्थापित है। हल में चर्च जो हम सत्य रूप में मान सकते हैं उसे यीशु की आज्ञा का पालन करना है जिसका प्रेरितों ने भी पालन किया। यद्यपि अधिक संख्या में चर्च होते हैं, अन्य सिद्धान्त लेता जिसे यीशु ने कभी नहीं सिखाया तो वह यीशु से नहीं आया है। इस युग में सृष्टिकर्ता का यादगार दिन, सब्त का पालन करना पुरानी व्यवस्था से नहीं पर नई वाचा की व्यवस्था से है जिसका यीशु और प्रेरित ने पालन किया।

अन्तिम दिन में जब परमेश्वर न्याय करेगा, उद्धार पाने वाले संत केवल यीशु के पदाचिन्ह का पालन करने वाले लोग हैं। यीशु के पदचिन्हों में से एक सब्त सचमुच बहुमूल्य परमेश्वर का नियम और आज्ञा है।