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आधारभूत सत्य

मत 22:1-14 स्वर्ग के राज्य की तुलना एक राजा से की जा सकती है जिसने अपने पुत्र के विवाह का भोज दिया... पर जब भोज में सम्मिलित अतिथियों को देखने के लिए राजा आया, तो उसने वहां एक मनुष्य को देखा जो विवाह का वस्त्र पहिने हुए न था, और उसने उस ने कहा, ‘मित्र, तू यहां विवाह का वस्त्र पहिने बिना कैसे आ गया?’ और वह कुछ न कह सका। तब राजा ने अपने नौकरों से कहा, ‘उसके हाथ और पैर बांधकर उसे बाहर अन्धकार में डाल दो। वहां रोना और दांत पीसना होगा।’

परमेश्वर के ऐसा कहने का कारण है कि विवाह के भोज में हम ने परमेश्वर से विवाह का वस्त्र पहिनने की प्रतिज्ञा की है।

उसी तरह से परमेश्वर की आधारना भी प्रतिज्ञा के अनुसार जो परमेश्वर से की गई, विधि के रूप में की जाती है। इसलिए आराधना करते समय जिस प्रकार परमेश्वर ने कहा उसी प्रकार वस्त्र पहिनने हुए आराधना करना ही परमेश्वर का आदर करने वालों का सही व्यवहार होगा। यहां वस्त्र खासकर कुछ पहिनने का नहीं वरन् मूल रूप से पवित्र मन रखना है और स्त्री संतों को सिर ढंकने की ओढ़नी तैयार करनी है।

दूसरी बार आने वाले मसीह आन सांग होंग की शिक्षा के अनुसार पवित्र मन से आराधना करने के लिए चर्च ऑफ गॉड में स्त्री संत सिर ढंके आराधना करती हैं और पुरुष संत कुछ भी न सिर पर रखे आराधना करता है।

स्त्री संत का सिर ओढ़नी से ढंकना चिह्न रूप में दिया गया कि परमेश्वर का अधिकार प्रदर्शित होता है। इसलिए कहीं ऐसा न होना है कि यह छोटी सी आज्ञा मान कर तुच्छ करें। परमेश्वर की आज्ञाओं में से कोई भी बिना अर्थ के दी हुई नहीं है। सब हमारे उद्धार और स्वर्ग जाने के लिए आवश्यक है।

होशे 8:12 यद्यपि मैंने उनके लिए अपनी व्यवस्था के हज़ारों नियम लिखे हैं, वे विचित्र बातों समझी जाती हैं।

चाहे छोटी सी आज्ञा हो, अगर आज्ञा जो परमेश्वर ने हमारी भलाई के लिए दी उसे छोटी समझता तो परमेश्वर भी उस आदमी को छोटा समझेगा।


सिर की ओढ़नी मसीह की आज्ञा

यह मसीह की आज्ञा है इसलिए पुरुष को सिर न ढंकना है और स्त्री को सिर ढंकना है।

1कुर 11:1-6 जैसा मैं मसीह का अनुकरण करता हूं, वैसा ही तुम भी मेरा अनुकरण करो।

प्रेरित पौलुस ने संतों को इस पर जोर दिया कि उसका शिक्षा बताना व्यक्तिगत विचार या मत से नहीं है वरन् वह मसीह की शिक्षा बता रहा है। ‘जो पुरुष सिर ढांके हुए प्रार्थना या नबूवत करता है, अपने सिर का अपमान करता है। परन्तु जो स्त्री सिर उघाड़े प्रार्थना या नबूवत करती है, अपने सिर का अपमान करती है; क्योंकि वह ऐसी स्त्री के समान है जिसका सिर मूंडा़ गया हो।’(1कुर 11:4)

मसीह की शिक्षा में पुरुष को आराधना के समय सिर न ढांकना है और स्त्री को सिर ढांकना है। और लिखा हैः "परन्तु जो स्त्री सिर उघाड़े प्रार्थना या नबूवत करती है, अपने सिर का अपमान करती है; क्योंकि वह ऐसी स्त्री के समान है जिसका सिर मूंडा़ गया हो।" पुरानी व्यवस्था से स्त्री का सिर पुरुष को दर्शाता था, इसलिए स्त्री का पुरुष के समान ओढ़नी उतारना या बाल खुलवा देना लज्जा की बात था। उस समय जब स्त्री को जो बंधुआ से पकड़वाई गई ब्याह होता तब लज्जा के कारण उसका बाल कटवा लिया करती थी क्योंकि उसने परमेश्वर को अपनी जिन्दगी में नहीं जाना।

दूसरे शब्द में, "परन्तु जो स्त्री सिर उघाड़े प्रार्थना या नबूवत करती है, ... वह ऐसी स्त्री के समान है जिसका सिर मूंडा़ गया हो।" यह बात लज्जित होने को दर्शाती है।


सिर की ओढ़नी सृष्टि से ईश्वरीय इच्छा

जब हम सृष्टि से ईश्वरीय इच्छा को देखते तो पुरुष को सिर न ढांकना है और स्त्री को सिर ढांकना है।

1कुर 11:7-9 पुरुष .. परमेश्वर का प्रतिरूप और महिमा है, परन्तु स्त्री तो पुरुष की महिमा है। परमेश्वर ने पुरुष की सहायता करने वाली सहायिका स्त्री सृजी। इसलिए नई वाचा का प्रचार करते समय भी पुरुष सिर बनता है और स्त्री उसकी सहायिका रूप में होती है। लेकिन पुरुष को ऊंच्चा होते स्त्री को अनादर करना नहीं। जैसा कि लिखा हैः

1कुर 11:11-12 फिर भी, प्रभु में, न तो स्त्री बिना पुरुष के, और न पुरुष बिना स्त्री के है। जिस प्रकार स्त्री तो पुरुष से हुई, उसी प्रकार पुरुष का जन्म भी स्त्री द्वारा होता है, और सब कुछ परमेश्वर से है।

क्या स्त्री के बिना पुरुष प्रचार का कार्य कर सकेगा? और पुरुष के बिना स्त्री प्रचार का कार्य कर सकेगी? एक दूसरे की मदद करते हुए प्रचार पूरा करना चाहिए। इसलिए पुरुष और स्त्री को परमेश्वर के दिए हुए अपने पद में ईमानदारी से मेहनत करनी चाहिए।


सिर की ओढ़नी मनुष्य का स्वभाव जो परमेश्वर ने दिया

मनुष्य के स्वभाव द्वारा जो परमेश्वर ने दिया, बताता है कि पुरुष को सिर न ढांकना है और स्त्री को सिर ढांकना है।

1कुर 11:13-15 तुम स्वयं निर्णय करोः क्या स्त्री का खुले सिर प्रार्थना करना उचित है?

इसका मतलब है कि स्त्री का खुले सिर प्रार्थना करना उचित नहीं है, इस तथ्य का स्वयं निर्णय कर सकता है।

"यदि पुरुष के पास लम्बे बाल होते तो उसे शर्म आती है। यह मनुष्य का स्वाभाव तुम्हें सिखाता नहीं?", पुरुष के बाल लम्बे हो तो वह लज्जित और बदसूरत दिखता है, यह स्वाभाविक है, क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को यह स्वाभाव दिया है। इसलिए इस वचन में बताया गया कि परमेश्वर ने पुरुष को यह स्वाभाव दिया की अपना सिर न ढांके।

यह परमेश्वर से दिया गया स्वाभाव है, जब स्त्री सिर को(लम्बे बाल से) ढांकती तब वह सुन्दर होती है। दूसरे शब्द में स्वाभाव ही हमें बताता है कि पुरुष को सिर न ढांकना है और स्त्री को सिर ढांकना है। 15 वीं आयत में लिखा हैः "उसको बाल ओढ़नी के लिए दिए गए हैं।" इसका अर्थ है कि स्त्री के लम्बे बाल सुन्दर लगते हैं, यह स्वाभाव हमें बताता है कि स्त्री को ओढ़नी पहिननी चाहिए।

यह हिस्सा 1991 में प्रकाशित हुई ‘नवीन भाषा बाइबल(कोरियाई)’ में इस प्रकार अनुवादित हुआ।

प्रेरित युग में आकर सुसमाचार यहूदा इलाके समेत भूमध्यसागर के कई अन्य इलाकों तक प्रसारित होने लगा। शुरू में स्त्री संत, दूसरी आज्ञाओं के जैसा, ओढ़नी के विषय में भी किसी विचित्र भाव के बिना पालन करती आती थी पर क्रम-क्रम से समतावादी के निकलने पर जो स्त्री और पुरुष की बराबरी पर दावा करती थी, यह हठ किया गया कि क्यों केवल स्त्री को सिर ढांकना ही है? कुरिन्थुस इलाके से प्रतिरोध शुरू हुआ। इतने में पौलुस ने उनके गलत विचार को सही करने नाना प्रकार के कारणों को बताते हुए जोर दिया कि अवश्य ही स्त्री को सिर ढांकना है।

छोटी सी आज्ञा हो, परमेश्वर की आज्ञा कदापि छोटी नहीं है। परमेश्वर की आज्ञा जो चर्च को दी गई सब के सब हमारे उद्धार और स्वर्ग की आशीष के लिए है। परमेश्वर के समक्ष जब स्त्री संत आराधना या प्रार्थना करती हैं तो अवश्य ही सिर को ढांके परमेश्वर को महिमा दीजिए जैसा कि लिखा हैः
"अनाज्ञाकारिता मूर्तिपूजा के समान अधर्म है।"


पुरुष को सिर न ढांकना है

किसी धर्म संस्थान में मुख्य पुरुष पुजारी लोग सिर को ढांकते हैं। यह बाइबल पर आधारित नहीं वरन् बाइबल की शिक्षा से कि पुरुष को सिर न ढांकना है विपरित है। पुराने समय जब मूसा सीनै पर्वत पर से दस आज्ञाएं लिए नीचे उतरा, उसके चेहरे में चमकता प्रकाश अति तेज होने के कारण प्रजाएं उस चेहरे को नहीं देख पाईं, क्योंकि मूसा ने परमेश्वर की महिमा को देख लिया था। इस्राएली बहुत भयभीत हुए। इस पर मूसा लोगों के सामने चेहरा परदे से ढांक कर गया, लेकिन जब वह परमेश्वर के सामने गया तब उसे उतारकर गया।(निर्ग 34:29-35) उसके पश्चात् इस्राएली पुराने नियम को पढ़ते समय परदे से चेहरे ढांकते थे। जैसा मूसा परमेश्वर के सामने जाते समय परदा हटा कर गया वैसा ही परमेश्वर के मसीह रूप में आने के कारण अब सब को खुले चेहरे से परमेश्वर(मसीह) को देखना है। यह परदा स्त्री की ओढ़नी नहीं परन्तु पुराने नियम को पढ़ते समय चेहरे को ढांकने का परदा है। 1कुरिन्थियों 11 में यह विषय कहा गया कि पुरुष को सिर न ढांकना है और स्त्री को सिर ढांकना है। बल्कि 2 कुरिन्थियों 3 में यही विषय कहा गया कि परदा जिससे पुराने नियम को पढ़ते समय चेहरे ढंके वह(पुरुष का भी और स्त्री का भी) हटाया जाना चाहिए।