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परमेश्वर जिसने उद्धार दिया
समय हमारा इन्तजार नहीं करता, पर अनन्तकाल की ओर तेजी से चल रहा है। जब हम फिर कर पिछले समय को देखते हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर के, जिसने उद्धार दिया, प्रेम व अनुग्रह के लिए धन्यवाद और स्तुति दें।
सन्तान अपने पालन-पोषण करने वाले मां-बाप के प्रयत्न को नहीं जानती। नासमझ सन्तान यह महसूस नहीं कर पाती कि मां-बाप ने उसके बचपन में कितना प्रयास और बलिदान किया, और वह प्रौढ़ होने के बाद भी, मानो वह अपने आप बढ़ गया हो, मां-बाप के प्रेम और बलिदान को भूल जाती है।
उसी तरह से जो हमें अनन्त जीवन देते हैं और स्वर्ग में अगुवाई करते हैं, स्वर्गीय पिता और माता के प्रेम की चौड़ाई व गहराई को हम नाप नहीं सकते।
आशा है कि आप हमारी आत्मा का उद्धार करने वाले परमेश्वर के असीमित अनुग्रह का एहसास करते हुए हमेशा खुश रहें और धन्यवाद दें।
उद्धार का अनुग्रह, और उसकी चौड़ाई व गहराई
मान लीजिए, जब आप बाढ़ से दूर बहा लिए जा रहे थे, किसी आदमी ने अपनी पूरी कोशिश करके आपको बचाया। जबकि अन्य किसी ने भी आप पर कोई ध्यान नहीं दिया था, और लोग सिर्फ आपको मरते हुए देख रहे थे, परन्तु उसने ख़तरनाक स्थिति में अपना थोड़ा भी ख्याल न करके तेज रफ्तार से बहते हुए पानी से आप को बचाया। ऐसे हालत में आपको उसका अनुग्रह कैसा लगेगा?
आइए हम एक और नमूना लें, एक घर जल रहा था, और उसके अन्दर बच्चे आग के धुएं से घुटकर मर रहे थे। यदि कोई बच्चों को बचाने अन्दर जाता, तो उसकी जान भी जोखिम में पड़ता। इसलिए किसी ने भी अन्दर जाना नहीं चाहा। लेकिन एक आदमी ने आग में कूद कर पूरी कोशिश करके बच्चों को बचा लिया। बच्चे तो सुरक्षित थे, पर वह घायल हो गया, क्योंकि बच्चों को बचाने के बाद वह नीचे कूद गया था। उसे कई महिने अस्पताल में भर्ती करके चंगा किया जाना पड़ा। फिर भी उसने बच्चों से हरजाना नहीं मांगा। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हुए उसके अनुग्रह को भूल गए, अंतत: वे उस उपकारी से विश्वासघात करने लगे। यदि आप न्यायाधीश होते, तो आप कैसे इसका न्याय करते? क्या उन्हें गम्भीर सजा और दोष मिलना उचित नहीं, जो अपने उपकारी से ऐसा बुरा बर्ताव करते हैं?
परमेश्वर ने हमें इससे भी बड़े उद्धार का अनुग्रह दिया। जैसा वचन कहा गया है, “पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है।”(रो 6:23) जब हम स्वर्ग में पाप करके इस धरती पर गिरा दिए गए थे, हमें मृत्यु की सजा मिल चुकी थी। न तो किसी ने हम पापी पर कोई ध्यान दिया और न ही हम पर नजर डाली। केवल परमेश्वर ने अकेले ही हमारी सुरक्षा के लिए चिंता की और हमें बचाने इस धरती पर आया।
हम मनुष्य उस इंसान के कृतज्ञ रहते हैं, जिसने हमारा शरीर का जीवन बचाया, जो केवल थोड़े समय के लिए है, और हम जीवन भर उसका अनुग्रह नहीं भूलते। हम कैसे परमेश्वर से, जिसने हम सदा मरने वालों को अनन्त जीवन दिया, विश्वासघात कर सकेंगे?
परमेश्वर हमें बचाने वाला उपकारी है। वह थोड़े समय के लिए जीवन नहीं, पर अनन्त जीवन देने वाला है। हम नरक में न बुझने वाली आग से मरने वाले थे। परमेश्वर हमें बचाने के दृढ़ निश्चय से इस पापमय संसार में आया तथा उसने अपना मांस चीर कर और अपना लहू बहाकर हमें बचा लिया।
परन्तु बहुत लोग परमेश्वर का अनुग्रह भूल कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं, यहां तक कि वे परमेश्वर को नहीं ढूंढ़ते। हम ने भी, जो परमेश्वर की सन्तान हैं, परमेश्वर के बलिदान और प्रेम को पूरी तरह से नहीं जाना, जैसा कि लिखा है, ‘प्रत्येक ने अपना अपना मार्ग लिया’ और ‘हम ने उसका मूल्य न जाना।’(यश 53:3-6)
नई वाचा के फसह का सच्चा अर्थ
हमें परमेश्वर का प्रेम नहीं भूलना चाहिए। हम में से कोई भी ऐसा मूर्ख नहीं होना चाहिए जो बचाने वाले से विश्वासघात करता है और उसके प्रेम से दूर चला जाता है। फिर से परमेश्वर के प्रेम को मन से लगाते हुए, आइए हम बाइबल में परमेश्वर से मिलें जिसने हमारी आत्मा को अनन्त मृत्यु से छुड़ाया।
यूह 6:53-57 “यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है, और मैं अन्तिम दिन में उसे जिला उठाऊँगा। मेरा मांस तो सच्चा भोजन है और मेरा लहू सच्ची पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में बना रहता है और मैं उसमें। जिस प्रकार जीवित पिता ने मुझे भेजा, और मैं पिता के कारण जीवित हूं, इसी प्रकार वह भी जो मुझे खाता है मेरे कारण जीवित रहेगा।”
क्या संसार में कोई ऐसा प्रेम करता है कि अपने मांस और लहू की बलि देकर पापी को बचाता है? कोई नहीं है। लेकिन हम, सन्तानों को बचाने के लिए परमेश्वर खुद हमारे बदले बलिदान किया गया। उसने अपना मांस चीरा और लहू बहाया, और उसे हमें देकर अनन्त मृत्यु से हमें छुड़ा लिया। इतने महान प्रायश्चित्त के अनुग्रह के द्वारा हम ने पाप से छुटकारा पाया और हम मृत्यु के घोर अन्धकार की तराई से स्वतंत्र किए गए।
मत 26:17-19, 26-28 “फिर चेले अखमीरी रोटी के पर्व के पहिले दिन, यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिए फसह खाने की तैयारी करें?” उसने कहा, “नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उस से कहो, ‘गुरु कहता है, “मेरा समय निकट है। मुझे अपने चेलों के साथ तेरे यहां फसह का पर्व मनाना है”’।” तब यीशु की आज्ञा के अनुसार चेलों ने फसह की तैयारी की ... जब वे भोजन कर रहे थे, यीशु ने रोटी ली और आशिष मांगकर तोड़ी और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने प्याला(दाखमधु रखा हुआ) लेकर धन्यवाद दिया और उन्हें देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है जो बहुत लोगों के निमित्त पापों की क्षमा के लिए बहाया जाने को है।”
फसह के पर्व में परमेश्वर ने रोटी देकर कहा, ‘यह मेरी देह है।’ और दाखमधु देकर कहा, ‘यह मेरा लहू है।’ और उसने आज्ञा दी कि फसह मनाकर परमेश्वर के पवित्र बलिदान को मत भूलो, पर इसका स्मरण करो।(लूक 22:19-20, 1कुर 11:23-26 संदर्भ)
फसह की रोटी खाकर और दाखमधु पीकर अनन्त जीवन पाने से हमें सिर्फ खुश नहीं रहना है, लेकिन हमें फसह में बहुमूल्य मांस और लहू के स्वामी, स्वर्गीय पिता और माता, को देखना चाहिए जो अंतहीन व दयालु आंखों से हम पर पहरा देते हैं। हमारे बजाय परमेश्वर फसह के मेमने के जैसा बलिदान किया गया। परमेश्वर के अपने मांस और लहू देने के परिणाम से हम, जो उसकी सन्तान हैं, बचाए गए हैं। हमें उसके आदरणीय प्रेम को नहीं भूलना चाहिए।
प्रेरितों का बोधन
प्रेरित पौलुस ने इस मसीह के प्रेम को पहले से महसूस किया। उसने यीशु को एक बार भी नहीं देखा, पर दमिश्क के मार्ग पर यीशु की आवाज़ सुनने के बाद उसे एहसास हुआ कि मसीह ने उसे बचाने के लिए क्रूस पर दुखों को भी झेला था। पौलुस ने दृढ़ विचार किया कि वह मसीह का प्रेम और अनुग्रह कभी नहीं छोड़ेगा।
रो 8:35-39 “कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या सताव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? ... इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मुझे पूर्ण निश्चय है कि न मृत्यु न जीवन, न स्वर्गदूत न प्रधानताएं, न वर्तमान न भविष्य, न शक्तियां, न ऊंचाई न गहराई, और न कोई सृजी हुई वस्तु हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु यीशु मसीह में है, अलग कर सकेगी।”
पौलुस ने परमेश्वर का अति पवित्र व अति शुद्ध प्रेम समझ लिया, इसलिए उसने परमेश्वर के प्रेम से कभी विश्वासघात नहीं किया। उसे महसूस हुआ कि वह कुछ भी नहीं है, और उसने संसार में अपनी महिमा, धन-सम्पत्ति, प्रतिष्ठा और ज्ञान, सब को तुच्छ समझा। उसने यीशु के दुखों के दाग़ों को अपने शरीर में लिए भाइयों के लिए परिश्रम किया, और वह सुसमाचार का, जिसे मसीह ने सौंपा, प्रचार करने में कभी आलसी न था।
गल 6:14-17 “परन्तु ऐसा कभी न हो कि मैं किसी अन्य बात पर गर्व करूं, सिवाय प्रभु यीशु मसीह के क्रूस के, जिसके द्वारा संसार मेरी दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है, और मैं संसार की दृष्टि में। ... अब से मुझे कोई दुख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दाग़ों को अपने शरीर में लिए फिरता हूं।”
जब पौलुस को एहसास हुआ कि मसीह मुझे बचाने किस प्रकार बलिदान हुआ, वह पड़ोसियों और संसार को उद्धार दिलाने के लिए अपने प्राण को किसी प्रकार भी प्रिय नहीं समझा। पौलुस ने पांच बार उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए, तीन बार बेंतों से पीटा गया, एक बार उसका पथराव हुआ, तीन बार जहाज़ी दुर्घटनाओं में फंसा, एक रात-दिन समुद्र में काटा। ऐसे हर प्रकार के जोखिम में पड़ने पर भी, पौलुस मसीह की इच्छा का पालन करते हुए सुसमाचार का प्रचार करने में हिचकता नहीं था।(2कुर 11:23-28)
जब पतरस को भी गइराई से महसूस हुआ कि मसीह उपकारी है जिसने मेरा जीवन बचाया, तब उसने यीशु की उत्कृष्ट इच्छा का पालन करने का निर्णय किया। जब 5 हज़ार लोग, जिन्होंने आश्चर्यकर्म को देखकर यीशु का पीछा किया, चले गए, तब यीशु ने बाकी चेलों से पूछा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस ने उसे ऐसा उत्तर दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे पास हैं।”(यूह 6:66-68)
हमें भी परमेश्वर के प्रेम को महसूस करना चाहिए। पतरस और पौलुस जैसे प्रेरित, जिन्होंने इसे महसूस किया, अपनी सभी चीजों को त्यागते हुए पूरे जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार करते थे। यदि आपको ऐसा महसूस नहीं होता है, तो आप को सच्चा विश्वास नहीं है, और सिर्फ दिखावटी विश्वास, यानी बाहरी विश्वास है। जब हम मसीह के अनुग्रह को गहराई से महसूस करते हैं, तब ही हम परमेश्वर को देख सकते हैं।
सन्तानों को बचाने के लिए दूसरी बार आया मसीह
हमारे अनन्त जीवन का उपकारी, स्वर्गीय पिता और माता सन्तानों को बचाने देह धारण करके इस धरती पर दूसरी बार आए।
इब्र 9:27-28 “जैसे मनुष्यों के लिए एक ही बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त किया गया है, वैसे ही मसीह भी, बहुतों के पापों को उठाने के लिए एक बार बलिदान होकर, दूसरी बार प्रकट होगा। पाप उठाने के लिए नहीं, परन्तु उनके उद्धार के लिए जो उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा करते हैं।”
यदि हम अकेले छोड़ दिए गए होते, तो हम मर गए होते। लेकिन हम मरने वालों को बचाने के लिए मसीह ने वादा किया कि दूसरी बार प्रकट होगा। यशायाह नबी ने वर्णन किया कि परमेश्वर दूसरी बार इस धरती पर आकर कैसे सन्तानों को बचाएगा।
यश 25:6-9 “सेनाओं का यहोवा इस पर्वत पर समस्त जातियों के लिए एक विशाल भोज का प्रबन्ध करेगा; इस भोज में पुरानी मदिरा, उत्तम से उत्तम चिकना भोजन तथा निथरी हुई पुरानी मदिरा होगी। और वह इसी पर्वत पर सब जातियों के लोगों पर पडे. पर्दे को, हां, सब देशों पर डाले गए घूंघट को हटा देगा। वह मृत्यु को सदा के लिए निगल लेगा, ... उस दिन उसके लोग इस प्रकार कहा जाएगा, “देखो, यह हमारा परमेश्वर है जिसकी बाट हम जोहते आए हैं कि वह हमारा उद्धार करे। यही यहोवा है जिसकी हम बाट जोहते आए हैं: आओ, हम उसके लिए हुए उद्धार के कारण आनन्द मनाएं और मग्न हों।”
पुरानी मदिरा, जो मृत्यु को सदा के लिए निगल लेती है, फसह के पर्व में दाखमधु को दर्शाती है जिसमें यीशु ने वादा किया था। नई वाचा के फसह के द्वारा, जो हमारे सब पापों और मृत्यु के अंधेरे से हमें निकाल कर अनन्त जीवन की राह पर लेकर जाता है, वह हमारा परमेश्वर है।
जीवन का फसह वह दिन है जिस दिन परमेश्वर ने हमें अपना मांस और लहू दिया। उस दिन हमें अनन्त जीवन पाने की खुशी होती है, लेकिन हमारे स्वर्गीय पिता और माता के लिए वह दिन सब से अत्यंत दुख का दिन था। स्वर्गीय पिता और माता के दुख व बलिदान के द्वारा हम ने शान्ति पाई और हम चंगे हुए।
इसलिए जब हम फसह का प्रचार करते हैं, हमें सिर्फ फसह की रोटी खाने और दाखमधु पीने की विधि नहीं, पर इसके साथ स्वर्गीय पिता और माता का प्रेम सुनाना चाहिए जिन्होंने फसह के द्वारा हमारी जान बचाने के लिए खुद को बलिदान किया। यही सुसमाचार का सच्चा प्रचार है।
प्रक 22:17 “आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुनने वाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो, वह आए। जो चाहता है, वह जीवन का जल बिना मूल्य ले।”
आत्मा और दुल्हिन लोगों को, जो मृत्यु के अन्धेरे में हैं, जीवन देने के लिए पवित्र आत्मा के अन्तिम युग में प्रकट हुए। वास्तव में बिना दुख व बलिदान के जीवन देना असम्भव है। इसलिए परमेश्वर ने एक आत्मा बचाने की तुलना प्रसव पीड़ा से की। माँ पूरे शरीर की हड्डी टूट जाने के दुख जैसी प्रसव पीड़ा सहने के बाद ही बच्चा उत्पन्न कर सकती है, जिससे परमेश्वर हमें यह महसूस दिलाता है कि आत्मिक जीवन उत्पन्न करने का कार्य भी बिना बलिदान के सिद्ध नहीं हो सकता।
परमेश्वर को धन्यवाद, महिमा और आदर दे
हमें आत्मा और दुल्हिन के, जिन्होंने हमें उद्धार दिया, शोभान्वित सद्गुण को पूरे विश्व में लोगों को सुनाना चाहिए। निश्चय ही, हमें उन्हें धन्यवाद देने की जगह न उनका अनुग्रह भूलना चाहिए और न उनसे शिकायत करना चाहिए। आइए हमारी ओर परमेश्वर की इच्छा बाइबल से खोजें।
1थिस 5:16-22 “सर्वदा आनन्दित रहो, निरन्तर प्रार्थना करो, प्रत्येक परिस्थिति मंक धन्यवाद दो, क्योंकि मसीह यीशु में तुम्हारे लिए परमेश्वर की यही इच्छा है। आत्मा को न बुझाओ, भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानो। सब बातों को सावधानी से परखो; जो अच्छी है उसे दृढ़तापूर्वक थामे रहो। सब प्रकार की बुराई से बचे रहो।”
ये परमेश्वर की इच्छाएं हैं कि हम हमारा जीवन बचाने वाले उपकारी, परमेश्वर को न भूल कर प्रत्येक परिस्थिति में धन्यवाद दें, और सर्वदा आनन्दित रहते हुए निरन्तर प्रार्थना करें। हमारा उपकारी, परमेश्वर संसार में आया था, फिर भी संसार ने उसे न तो स्वीकार किया और न ही धन्यवाद दिया, बल्कि उसका विरोध किया और उससे विश्वासघात किया। ऐसी हालत में भी परमेश्वर ने हमारी आत्मा को बचाने के लिए चुपचाप प्रसव पीड़ा सह ली। तो भी, उसने अपनी भलाई के लिए हम से एक बार भी कुछ नहीं मांगा। सिर्फ उसे हमारी ओर से यह इच्छा थी कि हम बाइबल की शिक्षा के अनुसार जीवन जीएं और नम्रतापूर्वक अपनी अपेक्षा दूसरों को उत्तम समझकर समुद्र जैसे बड़े मन से भाई-बहनों की गलती को ढंक लें।
वह अपने दुख से ज़्यादा हमारा ख्याल करता था और हम से प्यार करता था। हम गम्भीर अपराधियों के बजाय, उसने क्रूस पर मरने का दुख भी सह लिया। कृपया, स्वर्गीय पिता और माता का प्रेम न भूलिए। जो पिता और माता के प्रेम को मन में रखता है, वही स्वर्ग जा सकता है। इसलिए स्वर्ग के राज्य में असंख्य स्वर्गदूत और सभी प्राणी सच्चे दिल से परमेश्वर को धन्यवाद और महिमा देते हैं।
प्रक 4:9-11 “जब जब ये प्राणी उसकी जो सिंहासन पर विराजमान और युगानुयुग जीवित है, महिमा, आदर और धन्यवाद करते, तब तब ये चौबीसों प्राचीन, उसके सामने जो सिंहासन पर बैठा है, गिर पड़ते और उसकी जो युगानुयुग जीवित है, वन्दना करते और यह कहते हुए अपने अपने मुकुट सिंहासन के सामने डाल दिया करते हैं: ‘हे हमारे प्रभु और परमेश्वर, तू ही महिमा, आदर और सामर्थ्य के योग्य है, क्योंकि तू ने ही सब वस्तुओं को सृजा, और उनका अस्तित्व और उनकी सृष्टि तेरी ही इच्छा से हुई।”
इस धरती पर की भाषाओं के अक्षर से, परमेश्वर के पवित्र बलिदान का वर्णन करना असम्भव है। तो भी हम ‘बलिदान’ शब्द का प्रयोग करके वर्णन करते हैं। लेकिन जब स्वर्ग में हम परमेश्वर के बलिदान को देखेंगे, तो हमें लगेगा कि परमेश्वर का बलिदान हमारी कल्पना के बाहर है, केवल परमेश्वर ही असीमित प्रेम से भरकर आत्मा का उद्धार करने का महान कार्य कर सकता है। इसलिए ब्रहमाण्ड में सभी स्वर्गदूत परमेश्वर को स्तुति, महिमा, आदर और धन्यवाद देते हैं।
आइए हम फिर से सोचें, किस कारण से प्रेरित पौलुस सुसमाचार की सेवा करने में वफादार रहा? और किस कारण से पतरस अन्त तक मसीह का पीछा करने के लिए क्रूस पर उल्टा लटकाया जाकर मारा गया? आपसे यह निवेदन है कि आप पवित्र आत्मा व दुल्हिन के हमें उद्धार देने का अनुग्रह महसूस करें, और उनकी इच्छा का अनुसरण करते हुए भले कामों से संसार की ज्योति और नमक बनें।
आशा है कि आप ऐसा खूबसूरत सुसमाचार को यत्नपूर्वक फैला कर अनेक आत्माओं को बचाएं और सिय्योन के सब भाई और बहनें अनन्त स्वर्ग में परमेश्वर से आशीष पाएं।