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मैं अंधा था लेकिन अब मैं देख सकता हूं
अंधे लोग, जो हमेशा दृश्य विकार के साथ रहे, वे देखने के मूल्य को किसी और से बेहतर जानते हैं, लेकिन जो जन्म से ही सबकुछ देखने में सक्षम होते हैं, वे उसे पूरी तरह से नहीं समझ सकते। क्या होगा यदि एक मनुष्य जो पूरे अंधकार में रहा, एक दिन दृष्टि पाए, जिससे वह दुनिया को साफ-साफ देख सकता है? उस क्षण, वह इतना आनंदित होगा कि वह उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता।
हमारे साथ भी ऐसा ही है। जब हम परमेश्वर से मिले और हमारी आत्मिक आंखें सत्य को देखने के लिए खुलीं, तब हमारी आत्माएं खुशी से कूदी होंगी और धन्यवाद से भरी होंगी। हालांकि, चूंकि हम हमेशा सत्य के वचनों को देखते हैं, तो समय के बीतने पर सबकुछ सामान्य हो जाता है।
विश्वास के मार्ग पर चलते हुए, कभी-कभी हम परमेश्वर को हमें दी गई आशीषों के लिए धन्यवाद देना भूल जाते हैं। पहले परमेश्वर के वचनों ने हमें गहराई से छुआ था, लेकिन समय बीतने पर, हमें लग सकता है कि यह बस सामान्य है। हमें यह मूर्खता नहीं करनी चाहिए। सिय्योन के लोगों के रूप में, हमें सत्य देखने की अनुमति देने के लिए, हम सभी को हर दिन एलोहीम परमेश्वर को धन्यवाद और महिमा देनी चाहिए।
परमेश्वर ने हमें उन्हें देखने और उन पर विश्वास करने की अनुमति दी है
यूहन्ना रचित सुसमाचार में एक घटना दर्ज है जहां जन्म से एक अंधा मनुष्य यीशु से मिला और उसे दृष्टि मिली। यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आंखों पर लगाई और उसे शिलोह के कुंड में जाकर धोने को कहा। अंधे मनुष्य ने यीशु के वचनों का पालन किया और उसकी आंखें खुल गईं और सबकुछ स्पष्ट रूप से देख सका।
यह तथ्य कि मसीह ने अंधे मनुष्य की आंखों को खोला, अभूतपूर्व, चमत्कारी और आनंदमय बात था, और उस भविष्यवाणी की पूर्णता भी थी कि यीशु क्या करेंगे(यश 42:1–7)। लेकिन, फरीसियों ने यीशु को एक पापी ठहराया क्योंकि उन्होंने सब्त के दिन पर काम किया। मनुष्य जिसकी दृष्टि लौट आई और पहली बार दुनिया को देखा, उसने इस प्रकार फरीसियों के सवाल का जवाब दिया:
यूह 9:25, 31-33 उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं; मैं एक बात जानता हूं कि मैं अंधा था और अब देखता हूं ।”... “हम जानते हैं कि परमेश्वदर पापियों की नहीं सुनता, परन्तु यदि कोई परमेश्विर का भक्त हो और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे की आंखें खोली हों। यदि यह व्यक्तिभ परमेश्वरर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।”
मनुष्य जो जन्म से अंधा था, ने कहा कि वह नहीं जानता कि यीशु कौन है, लेकिन जैसे यीशु ने उससे कहा वैसे करने के बाद वह अब देख सकता है। उसने जोर दिया, “मैं एक बात जानता हूं कि मैं अंधा था और अब देखता हूं।”
पहली बार दुनिया को देखने पर उसका हृदय अवर्णनीय खुशी और अभिभूत भावना से भरा हुआ होगा। उसकी आंखों को खोलकर उसे दुनिया देखने देने के लिए, उसका हृदय यीशु के प्रति धन्यवाद से उमड़ता हुआ होगा। उसे यकीन था कि जिसने उसकी दृष्टि लौटाई वह परमेश्वर की ओर से था।
चूंकि उसने यीशु पर के अपने विश्वास को व्यक्त किया, तो यीशु का विरोध करनेवाले लोगों ने उसे बाहर निकाल दिया। यह सुनकर, यीशु उससे मिले और उसे जानने दिया कि वह कौन हैं।
यूह 9:35-38 यीशु ने सुना कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है, और जब उससे भेंट हुई तो कहा, “क्या तू परमेश्व।र के पुत्र पर विश्वाास करता है?” उसने उत्तर दिया, “हे प्रभु, वह कौन है, कि मैं उस पर विश्वा,स करूं?” यीशु ने उससे कहा, “तू ने उसे देखा भी है, और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वह वही है।” उसने कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वा स करता हूं।” और उसे दण्डवत् किया।
जब वह अंधा था, तब यीशु से मिलने पर भी उसने यीशु को नहीं पहचाना। लेकिन, जब उसकी आंखें खुल गईं और वह देख सका, तब स्थिति उस स्थिति से पूरी तरह से अलग थी जब उसकी आंखें बन्द थी। वह रंगों की पहचान कर सका और अपने सामने के व्यक्ति को देख सका, और साथ ही वह महसूस कर सका कि यीशु परमेश्वर हैं। जब उसने जाना कि यीशु उद्धारकर्ता हैं जिन्होंने उसकी आंखों को चंगा किया, तब वह मसीह पर विश्वास कर सका और उन्हें ग्रहण किया।
हम भी सत्य जानने से पहले आत्मिक रूप से अंधे थे। भले ही हमारी आंखें खुली थीं, लेकिन हम आत्मिक चीजों को पहचान नहीं पाते थे। भले ही हम ठीक से परमेश्वर की आराधना करना चाहते थे, लेकिन हम यह भी नहीं जानते थे कि परमेश्वर ने आराधना करने के लिए कौन सा दिन नियुक्त किया। चूंकि हम अंधे लोगों की तरह अंधकार में जी रहे थे, तो स्वर्गीय पिता और माता ने आकर हमारी आत्मिक आंखों को खोला। उन्होंने हमें सब्त, फसह और एलोहीम परमेश्वर को जानने दिया जो जीवन का वृक्ष लाए। इसलिए अब हम देखते और मसीह, यानी आत्मा और दुल्हिन पर सच्चा विश्वास करते हैं।
देखोगे पर न सूझेगा, और सुनोगे पर न समझेगा
नए नियम में, हम बहुत से लोगों को देख सकते हैं जो 2,000 वर्ष पहले यीशु से मिले। उनमें से कुछ ने मसीह को पहचाना और ग्रहण किया, जबकि कुछ ने हर चीज के लिए उनकी निंदा की और उनका विरोध किया। यीशु ने उन्हें आत्मिक अंधे कहा जो ठीक अपने सामने प्रकट हुए मसीह को नहीं पहचान पाए।
यूह 9:39-41 तब यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूं, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएं।” जो फरीसी उसके साथ थे उन्होंने ये बातें सुनकर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?” यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरते; परन्तु अब कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिये तुम्हारा पाप बना रहता है।”
मत 13:14-16 उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है : ‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आंखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा। क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आंखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्हें चंगा करूं।’ पर धन्य हैं तुम्हारी आंखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान कि वे सुनते हैं।
मर 4:11-13 उसने उनसे कहा, “तुम को तो परमेश्वसर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालों के लिये सब बातें दृष्टाेन्तों में होती हैं। इसलिये कि “वे देखते हुए देखें और उन्हें सुझाई न पड़े और सुनते हुए सुनें भी और न समझें; ऐसा न हो कि वे फिरें, और क्षमा किए जाएं।”…
वे सभी अंधे थे क्योंकि उन्होंने यीशु को देखते हुए भी यीशु को नहीं पहचाना, है न? ऐसा लगता है कि यीशु के कार्य को देखकर उन्हें पहचानना और ग्रहण करना उनके लिए आसान हुआ होगा। लेकिन, यहूदी उस समय यीशु को पहचानने में नाकाम हुए। इसलिए यीशु ने उन्हें ‘अंधे’ कहा और फरीसी, व्यवस्थापक और प्रधान याजकों जैसे धार्मिक नेताओं के बारे में कहा, “अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे।”(मत 15:14)
खुली आंखें और बंद आंखें
परमेश्वर इस पृथ्वी पर शरीर में आए। राजाओं के राजा ने थोड़े समय के लिए अपने महिमामय वस्त्र उतारे और साधारण वस्त्र पहने। लेकिन, बहुत से लोगों ने जिन्होंने परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा किया, इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में आए परमेश्वर को नहीं पहचाना। उन्होंने जिनकी आत्मिक आंखें बंद थीं, उन पर पथराव करने की भी कोशिश की।
यूह 10:30-33 “मैं और पिता एक हैं।” यहूदियों ने उस पर पथराव करने को फिर पत्थर उठाए। इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं ने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं; उन में से किस काम के लिये तुम मुझ पर पथराव करते हो?” यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझ पर पथराव नहीं करते परन्तु परमेश्व र की निन्दा करने के कारण; और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वओर बनाता है।”
मर 2:5-12 यीशु ने उनका विश्वा स देखकर उस लकवे के रोगी से कहा, “हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” तब कई शास्त्री जो वहां बैठे थे, अपने-अपने मन में विचार करने लगे, “यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वनर की निन्दा करता है! परमेश्वटर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?” यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया कि वे अपने-अपने मन से ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, “तुम अपने-अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? सहज क्या है? क्या लकवे के रोगी से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना कि उठ अपनी खाट उठा कर चल फिर? परन्तु जिस से तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूं, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” वह उठा और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया…
यीशु ने कहा, “मैं और पिता एक हैं,” और उन्होंने पापों की क्षमा के अधिकार से पाप क्षमा किए, जो सिर्फ परमेश्वर के पास है। यह दिखाता है कि यीशु वास्तव में कौन हैं। यीशु ने बहुत बार लोगों को सिखाया कि वह परमेश्वर हैं, लेकिन लोगों ने उन पर पथराव करने को पत्थर उठाएं। यह इसलिए क्योंकि उनकी आत्मिक आंखें पूरी तरह बंद थीं।
पवित्र आत्मा के युग में, आत्मा और दुल्हिन इस पृथ्वी पर शरीर में आए हैं। जिनकी आत्मिक आंखें बंद हैं, वे देखते हुए नहीं देखते, और सुनते हुए नहीं समझते। कुछ लोग हैं जो हमारे साथ रहे आत्मा और दुल्हिन के द्वारा दिए गए हर एक वचन का आदर करते और पालन करते हैं, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो उनके वचनों की उपेक्षा करते हैं। जो परमेश्वर के वचनों की उपेक्षा करते हैं वे ऐसी स्थिति में हैं जहां वे देखते हुए भी न देख सकते और सुनते हुए भी न समझ सकते।
हमें अपनी आत्मिक आंखों को खोलना चाहिए, ताकि हम सही तरह से परमेश्वर को पहचान सकें और ग्रहण कर सकें। जिनके पास देखने के लिए आत्मिक आंखें होती हैं और सुनने के लिए आत्मिक कान होते हैं, उनके परमेश्वर का सम्मान करने का रवैया और परमेश्वर के प्रति आचरण का तरीका दूसरों से अलग होते हैं। इसके द्वारा उन दोनों के बीच फर्क किया जाता है जिनकी आंखें और कान खुले हैं और जिनकी आंखें और कान बंद हैं।
उनकी खुशी और आशीषें जिनकी आत्मिक आंखें खुली हैं
हम पहले अंधे थे, लेकिन अब हमारे पास देखने के लिए आंखें हैं। इसलिए, आइए हम अपने आप को जांच करें कि क्या हम खुशी और धन्यवाद के साथ परमेश्वर का सम्मान करते हैं या परमेश्वर को सिर्फ ज्ञान के रूप में जानते हैं। चाहे हमारी आत्मिक आंखें पहले से खुली हैं लेकिन यदि वे हमारे दैनिक दिनचर्या में मंद हो जाती हैं तो हम पूरी तरह से परमेश्वर के मार्गदर्शन का पालन नहीं कर सकते। हमें उत्सुकता और भावना के साथ एलोहीम परमेश्वर को ऐसे ही ग्रहण करना चाहिए जैसे हम कल तक अंधे थे और आज हमारी दृष्टि लौट आई है, और हमें उस मार्ग पर चलना चाहिए जिस पर वे हमारी अगुवाई करते हैं।
यीशु के समय में, जक्कई के पास ऐसी मानसिकता थी। वह चुंगी लेनेवालों का सरदार था। एक दिन उसने सुना कि यीशु उसके नगर से गुजरने वाले हैं। वह यीशु को देखना चाहता था, परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता था, क्योंकि वह नाटा था। तो वह यीशु को देखने के लिए गूलर के पेड़ पर चढ़ गया। जब यीशु उस मार्ग से गुजर रहे थे, तब उसे देखा और उसे नाम लेकर बुलाया। तब यीशु ने उससे कहा, “आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है।” उस दिन, जक्कई का हृदय बहुत अधिक आनंद से भर गया। यीशु को ग्रहण करने के बाद, उसने संकल्प किया कि वह अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों को देगा और यदि उसने किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देगा(लूक 19:1–10)।
प्रेरित पौलुस ने जैसे ही अपनी आत्मिक आंखें खुल गईं, गवाही दी कि यीशु स्वभाव ही में परमेश्वर हैं और धन्यवाद से भरे हृदय से सुसमाचार का प्रचार किया चाहे उसे किसी भी कठिनाई का सामना क्यों न करना पड़ा हो। प्रेरित पतरस ने तुरंत शरीर में आए मसीह को पहचाना और उन पर अपने विश्वास का अंगीकार किया।
मत 16:15-19 उसने उनसे कहा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीवते परमेश्वछर का पुत्र मसीह है।” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि मांस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। और मैं भी तुझ से कहता हूं कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा : और जो कुछ तू पृथ्वी पर बांधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।”
परमेश्वर ने ऐसी महान आशीषें उन्हें दीं जिनकी आत्मिक आंखें खुली थीं। परमेश्वर को “हमारे स्वर्गीय पिता” और “हमारी स्वर्गीय माता” बुलाने के लिए हम बहुत धन्य हैं। तब क्या हम, ठीक जैसे पतरस ने किया वैसे अपनी आत्मिक आंखों को खोलकर परमेश्वर की ओर देखते हैं? आइए हम इस पर विचार करें। यदि हम परमेश्वर के वचनों के आगे अपने खुदके विचारों और भावनाओं को रखें, तो हमारी आंखें अब तक पूरी तरह से खुली नहीं हैं। हमें बंद आंखों से नहीं लेकिन खुली आंखों से परमेश्वर की ओर देखना चाहिए। जब अरामी सेना ने नबी एलीशा को पकड़ने के लिए दोतान नगर को घेर लिया, तब एलीशा का सेवक अरामी सेनिकों और रथों को देखकर डर गया। एलीशा की प्रार्थना पर, परमेश्वर ने उसके सेवक की आत्मिक आंखों को खोला, और सेवक ने देखा कि उनके चारों ओर दुश्मन की संख्या की तुलना में बहुत अधिक स्वर्गीय सेना थी(2रा 6:8–17)। उसने सोचा कि उनकी ओर से लड़ने के लिए कोई सैनिक नहीं थे, लेकिन वह महसूस कर सका कि स्वर्गीय सेना उनकी रक्षा कर रही है। तब उसका डर गायब हो गया और उसे बड़ा साहस आया।
जब हम अपनी आंखें बंद करें, तब हमें ऐसा लगता है कि हमारे चारों ओर कोई नहीं है। लेकिन, हम इस मार्ग पर अकेले नहीं चल रहे। हमारे पास सिय्योन के भाई और बहनें हैं, जो हमारे साथ सुसमाचार के मार्ग पर चल रहे हैं। स्वर्गीय पिता और माता हमारे साथ हैं, और जब कभी हम सुसमाचार का प्रचार करते हैं तब असंख्य स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं।
अब, आइए हम हमारी आत्मिक आंखों को व्यापक रूप से खोलें और आत्मिक दुनिया की ओर देखें जहां परमेश्वर कार्य करते हैं। बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार सबकुछ पूरा हो रहा है। भविष्यवाणियों पर ध्यान देते हुए, आइए हम पूरी तरह से आत्मा और दुल्हिन को महसूस करें, जो भविष्यवाणियों के अनुसार सभी मार्ग में हमारी अगुवाई करते हैं, और आइए हम जहां कहीं वे जाएं वहां उनके पीछे मजबूत विश्वास के साथ स्वर्ग की ओर दौड़ें।
हमारे चारों ओर बहुत से लोग हैं जिनकी आत्मिक आंखें अब भी बंद हैं। आइए हम उनकी आत्मिक आंखों को भी खोलें। परमेश्वर ने हमें उनकी आंखों को खोलने का अधिकार दिया है। इसलिए, अब दुनिया भर में सिय्योन के सदस्य सामरिया और पृथ्वी की छोर तक जाकर इस पृथ्वी पर आए स्वर्गीय पिता और माता का प्रचार कर रहे हैं।
स्वर्ग का राज्य हर दिन नजदीक आ रहा है। सिय्योन के भाइयो और बहनो! मैं आग्रहपूर्वक आप सभी से कहता हूं कि आनंद और धन्यवाद के साथ परमेश्वर के वचन को मानें और खुली आंखों से परमेश्वर की ओर देखते हुए और हमें दी गईं परमेश्वर की अनगिनत आशीषों को देखते हुए सुसमाचार का मिशन पूरा करें।