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प्रेरित पौलुस का प्रचार
हमारे विश्वास के जीवन में, कभी–कभी हम प्रतिकूल परिस्थितियों के वश में होकर परेशानियों का सामना करते हैं। जब हम तकलीफ आने पर उसी समय उस पर विजय नहीं पाते और उससे समझौता करते हैं, तो परिस्थिति और भी ज्यादा बिगड़ जाती है और हमारा विश्वास संकट में पड़ जाता है।
किसी भी परिस्थिति में, हमें परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को न खोते हुए, उन तकलीफों पर विजय पानी चाहिए और परमेश्वर में मजबूत विश्वास के साथ सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए।
सच्चे विश्वास पर परिस्थितियों का प्रभाव नहीं होता
अब, मैं एक बहन का उदाहरण दूंगा। एक दिन, उसने अपने बच्चे को चर्च के किसी सदस्य के पास देखभाल करने के लिए छोड़ा और कुछ महत्वपूर्ण काम–काज के लिए बाहर चली गई। जब वह चर्च में वापस आई, तो उसने देखा कि बच्चे की देखभाल करने वाली व्यक्ति उसके बच्चे को सस्ते और स्वादरहित बिस्कुट खिला रही थी, लेकिन वह अपने खुद के बच्चे को ज्यादा महंगा वाला बिस्कुट खिला रही थी। उस क्षण, उसने सोचा कि उसके बच्चे के साथ अनुचित ढंग से व्यवहार किया जा रहा है, और वह अप्रसन्न हो गई।
वास्तव में, ऐसा हुआ था कि चर्च की उस सदस्य ने, जो उस बहन के बच्चे की देखभाल कर रही थी, खुशी के साथ उसके लिए कुछ बिस्कुट खरीदे थे और उनमें से कुछ उसे दिया, लेकिन उसे वह पसंद नहीं आया। इसी कारण से उसने वह अपने बच्चे को दे दिया और उस बहन के बच्चे को दूसरे बिस्कुट दिए। उसी समय, वह बहन वापस आ गई और उसने यह देखा; उसने अपने आप पर काबू खो दिया, और परिणाम स्वरूप वह बहनों के बीच के प्रेम को बरकरार रखने में असफल रही जिसे उसने अब तक निभाया था।
ऐसी बात सिर्फ उस बहन के साथ ही नहीं, लेकिन हमारे साथ भी हो सकती है। जब हम सुसमाचार के मार्ग पर चलते हैं, तो कभी–कभी हम अपने आसपास की चीजों और परिस्थितियों से प्रभावित हो जाते हैं और खुद पर काबू रखने में असमर्थ हो जाते हैं।
यदि हमारा विश्वास किसी भी परिस्थिति से विचलित हो जाए, तो हमारी आत्मा ख़तरे में पड़ जाएगी; हम शैतान के जाल में फंस जाएंगे। हालांकि, यदि हमारे पास एक अटल विश्वास हो, तो हम किसी भी हालात या परिस्थिति से प्रभावित नहीं होंगे।
यदि हम केवल अनुकूल परिस्थितियों में विश्वास रखें और प्रतिकूल हालात में आशाहीन हो जाएं, तो हम प्रेरित पौलुस के जैसे प्रचारक नहीं बन सकते। पौलुस ने किसी भी परिस्थिति में सब कुछ सुसमाचार के कार्य के लिए अनुकूल ही माना था। पौलुस के जीवन के द्वारा, आइए हम उसके उदाहरणों को सीखें और उनका पालन करें।
1कुर 9:19–27 क्योंकि सब से स्वतंत्र होने पर भी मैं ने अपने आप को सब का दास बना दिया है कि अधिक लोगों को खींच लाऊं। मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊं... व्यवस्थाहीनों के लिये मैं –जो परमेश्वर की व्यवस्था से हीन नहीं परन्तु मसीह की व्यवस्था के आधीन हूं– व्यवस्थाहीन सा बना कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊं... मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं। मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूं कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊं...
पौलुस लोगों के लिए सब कुछ बना ताकि वह बहुतों को बचा सके। ऐसे मानसिक नजरिए को अपने मनों में रखते हुए, आइए हम चाहे हमें किसी भी परिस्थिति में रखा जाए, सुसमाचार के लिए सब कुछ करें।
जो बाहरी परिस्थितियों से विचलित होते हैं और जो नहीं होते
निर्गमन की यात्रा के दौरान, इस्राएली अपने विश्वास में स्थिर नहीं रहे थे। जब उन्हें जंगल में रखा गया, तो उन्होंने विश्वास का वही जोश कायम नहीं रखा जो कि मिस्र से बाहर निकलते समय शुरुआत में उन्होंने रखा था। चाहे वहां बहुत से लोग थे(पुरुषों की संख्या छह लाख थी), परमेश्वर के वचन के अनुसार केवल दो जन ही कनान देश में प्रवेश कर सके, जो बाहरी परिस्थितियों से विचलित नहीं हुए थे और अपना विश्वास कायम रखा था। बाकी सब लोगों ने प्रवेश नहीं किया लेकिन वे जंगल में गिर गए।
दूसरे सभी लोगों ने परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाते हुए, पानी न होने के कारण शिकायत की थी। मुश्किल परिस्थितियों में उन्होंने अपना विश्वास कायम न रखा। परमेश्वर के पास, जिन्होंने सब वस्तुओं को सृजा है, इतनी सामर्थ्य थी कि वह उनके लिए जंगल में बादल को बारिश लाने के लिए आज्ञा दे सकते थे और आकाश से रोटी बरसा सकते थे। हालांकि, उन्होंने अंत तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा, और अंत में वे सब नष्ट हो गए।(1कुर 10:5–11)
हालांकि, उसी परिस्थिति में यहोशू और कालिब ने अंत तक अपना विश्वास रखा था। “परमेश्वर हमारे साथ हैं। वह हमें उस देश तक ले जाएंगे। इसलिए उन लोगों से मत डरो।”(गिन 14:8–9) इस तरह से, उन्होंने केवल परमेश्वर पर भरोसा रखा था, और उन्होंने बहुतायत से आशीर्वाद पाया।
प्रेरित पतरस ने भी वैसा ही किया था। उसने उन सब बातों को मन से समझा था, और वह बाहरी हालात से प्रभावित नहीं हुआ था। यीशु ने उसे “शैतान” कहते हुए, दूसरे चेलों से ज्यादा जोर से डांटा था, चाहे उसने इतनी बड़ी डांट खाने के योग्य काम नहीं किया था।
मत 16:21–23 उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, “अवश्य है कि मैं यरूशलेम को जाऊं, और पुरनियों, और प्रधान याजकों, और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दु:ख उठाऊं; और मार डाला जाऊं; और तीसरे दिन जी उठूं।” इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर झिड़कने लगा, “हे प्रभु, परमेश्वर न करे! तेरे साथ ऐसा कभी न होगा।” उसने मुड़कर पतरस से कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”
एक दिन यीशु ने उससे कहा कि वह अन्यजातियों के द्वारा पकडे. जाएंगे और क्रूस पर मारे जाएंगे। तब, पतरस ने, जो यीशु के प्रति वफादार था, कहा कि, “नहीं प्रभु, मैं तेरे साथ ऐसा नहीं होने दूंगा। किसके पास इतनी हिम्मत होगी? मैं ऐसा नहीं होने दूंगा...” ऐसा कहते हुए, उसने अपनी तलवार बाहर निकाल दी। हालांकि, पतरस की प्रशंसा करने के बजाय, यीशु ने उसे बुरी तरह से डांटा, “हे शैतान, मुझ से दूर हट।” पतरस को कितना बड़ा आघात लगा होगा! फिर भी, पतरस ने जो यीशु ने कहा था उसके विषय में ज्यादा नहीं सोचा; क्योंकि वह दृढ़ विश्वास करता था कि यीशु उससे बहुत ज्यादा प्रेम करते थे और जो यीशु ने कहा वह उसे कुछ सिखाने के लिए था। ऐसा सोचते हुए, पतरस ने अंत तक यीशु का पालन किया।
जब यीशु रात के चौथे पहर झील पर चल रहे थे, चेलों ने उन्हें देखा और वे घबरा कर कहने लगे, “वह भूत है।” तब पतरस हिम्मत के साथ आगे बढ़ा और कहा, “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।” तब यीशु ने उससे कहा, “आ,” और वह यीशु के पास चला गया। हालांकि, जब पतरस ने हवा और लहरों को देखा, तो जल्दी ही वह घबरा गया और डूबने लगा। तब यीशु ने उससे कहा कि, “हे अल्पविश्वासी, तू ने क्यों सन्देह किया?”(मत 14:22–33) इस तरह से, यीशु ने ऐसा कहकर पतरस को डांटा और उसकी प्रशंसा नहीं की कि “बारहों में से तू सबसे अच्छा चेला है।”
मान लीजिए कि हमने यीशु से ऐसे कठोर शब्द सुने। चाहे हम ऐसे शब्द एक पादरी से भी सुनें, तो भी हम निराश हो जाएंगे। पतरस ने ऐसी कठोर फटकार सीधे यीशु से पाई। हालांकि, वह ऐसी बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित नहीं हुआ था। इसके परिणाम स्वरूप, उसे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दी गईं और वह चर्च का पत्थर बन गया।
मत 16:18–19 “और मैं भी तुझ से कहता हूं कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बांधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।”
अब, हमारे पास ऐसा महान विश्वास होना चाहिए जो पहाड़ों को हिला सकता है, ताकि हम उसे ग्रहण कर सकें जिसका हम पर अनुकूल प्रभाव होता है और उसको अस्वीकार कर सकें जो हमारी आत्मा के लिए लाभकारी नहीं है। प्रेरित पौलुस ने अपनी देह को मारा कूटा और उसे मसीह का आज्ञाकारी बनाया, ताकि वह अहंकारी होने से बच सके। उसके उदाहरण का पालन करते हुए, हमें भी अपना हृदय और अपना विश्वास परमेश्वर पर रखना चाहिए।
अपने विश्वास के जीवन की शुरुआत में, हम अपने मनों को सुसमाचार का प्रचार करने के लिए सकारात्मक रखते हैं। जरा यहूदा इस्करियोती और इस्राएल के पहले राजा शाऊल के बारे में सोचिए। उन्होंने शुरुआत में अपना विश्वास परमेश्वर पर रखा था। हालांकि, जैसे जैसे समय बीतता गया, वे बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हो गए, और वे अपने विश्वास को कायम न रख सके।
किसी भी परिस्थिति में, हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हमें मसीह के संगी कर्मी के रूप में, अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को ढूंढ़ने का कार्य दिया गया है। चाहे हमारी परिस्थितियां बदलें, लेकिन हमें अपना मन और अपना विश्वास परमेश्वर पर रखना चाहिए। यदि हम शुरुआती समय के जैसा विश्वास और जोश कायम रखें, तो हम बिना किसी चूक के स्वर्ग जा सकेंगे।
जो विश्वास के द्वारा परिस्थितियों और मौकों को पैदा करता है
किसी भी परिस्थिति में होने पर भी, पौलुस ने उसे सुसमाचार का कार्य करने के लिए अनुकूल बनाया था। हमें भी, किसी भी परिस्थिति में अपने आसपास के संसार के लोगों को सुसमाचार की घोषणा करनी चाहिए।
एक बहन का एक अच्छा उदाहरण है। उन्होंने एक राष्ट्रीय छुट्टी के दिन को ‘प्रचार करने का एक अच्छा मौका’ बनाया। छुट्टी के दिन वह अपने ससुराल में गई थी, और वह कुछ खाना पका रही थी। तब उसने उसमें से कुछ लिया और अपनी देवरानी को दिया और कहा, “इसे चख कर देखो।” उस दिन, वह उसकी आत्मा को परमेश्वर के पास ले आ सकी। उस परिस्थिति में, बाइबल के द्वारा परमेश्वर के वचनों को सिखाना मुश्किल होता है। इसलिए उन्होंने उसे इस तरह से प्रचार किया। इस तरह, यदि हम सही ढंग से सुसमाचार का प्रचार करें, तो हम अच्छा फल पा सकते हैं। चाहे हमें बुरी परिस्थिति में रखा जाएं, यदि हम हमेशा प्रचार करने के लिए तैयार हैं, तो हम उसे सुसमाचार का प्रचार करने के एक अच्छे मौके के रूप में देख सकते हैं।
एक कम्पनी के मालिक ने ऐसा कहा था कि कार की खिड़की से बाहर देखने पर, सड़क पर सब कुछ पैसे जैसा लगता है। उसने कहा, “इस पृथ्वी पर की हर एक चीज़ फायदेमंद है। मुझे आश्चर्य होता है कि लोग उसका प्रयोग क्यों नहीं करते।” “मैं कैसे इसे और ज्यादा फायदेमंद बना सकूंगा? यदि मैं ऐसा करूं तो...” इस तरह से सोचते हुए, उसने पैसे बनाने का रास्ता सोचा होगा। इसलिए आज वह एक बड़ी कम्पनी का मालिक बन गया है।
मैं आशा करता हूं कि हमारे परिवार के सभी सदस्य भी सुसमाचार के लिए ऐसी ही दृष्टि रखें, ताकि वे सड़क पर चलते समय भी सभी लोगों को ‘प्रचार किए जाने के लायक’ समझ सकें। बाइबल हमें सभी जातियों को सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कहती है। क्या सभी लोग प्रचार किए जाने के लायक नहीं हैं? हमें अपनी परिस्थिति के बारे में शिकायत करने के बजाय उसे मौका बनाना चाहिए।
अब हमारे भाई, जो सेना में काम करते हैं, प्रचार करने के लिए उत्सुक हैं। अपनी छुट्टी के समय में, वे बहुत सी आत्माओं की परमेश्वर की ओर अगुआई करते हैं। जब कोई वरिष्ठ सहकर्मी उन्हें प्रचार करने के बारे में डांटता है, तो वे उस परिस्थिति को उसे सुसमाचार का प्रचार करने के मौके में बदल देते हैं। ऐसा करते हुए, वे बहुतों को सत्य की ओर ले आते हैं।
“हम नहीं कर सकते।” ऐसे ही विचार ने सुसमाचार के कार्य को रोके रखा है। अब, हमें किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होना चाहिए, लेकिन जैसे प्रेरित पौलुस ने किया था, वैसे ही किसी भी परिस्थिति में सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए। “उस जगह में लोग सुसमाचार को स्वीकार नहीं करते।” यह सिर्फ एक नियत विचार है। यदि हम अपना मन बदल दें, तो सब कुछ मुमकिन है। अब सुसमाचार बौद्ध और मुसलमान धर्म वाले देशों में, यहां तक कि साम्यवादी देशों में प्रचार किया जा रहा है।
चाहे एक व्यक्ति फिलहाल कन्फ्यूशीवाद या बौद्ध धर्म पर विश्वास करता है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर उसे बदल सकते हैं। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए। यदि हम उसे अपनी सामर्थ्य से बदलने की कोशिश करें; यदि हम उसे अपनी सामर्थ्य से प्रचार करने की कोशिश करें, तो हम अपनी परिस्थिति से घबरा जाएंगे और “ मैं नहीं कर सकता,” सोचकर रुक जाएंगे।
प्रेरित पौलुस का प्रचार करने का रवैया
आइए, अब हम देखें कि जब पौलुस सुसमाचार का प्रचार करता था, तब उसका मानसिक रवैया कैसा था।
प्रे 20:20–24 ... अब देखो, मैं आत्मा में बन्धा हुआ यरूशलेम को जाता हूं, और नहीं जानता कि वहां मुझ पर क्या–क्या बीतेगा; केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे देकर मुझ से कहता है कि बन्धन और क्लेश तेरे लिये तैयार हैं। परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानूं, वरन् यह कि मैं अपनी दौड़ को और उस सेवा को पूरी करूं, जो मैं ने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है।
जैसा कि ऊपर लिखा है, प्रेरित पौलुस के पास सुसमाचार के लिए एक सकारात्मक रवैया था, और परमेश्वर उससे प्रसन्न थे और बहुत से फल पैदा करने दिए और बहुत सी जगहों में बहुत से चर्च स्थापित करने दिए। जहां कहीं भी वह गया, वहां उसने प्रचार किया। उसे बांधा गया और कारावास में भेजा गया, लेकिन उसने इसे उसके काम का ही एक हिस्सा समझा। जब वह कारावास में था, तो उसने वहां कैदियों को प्रचार किया, और उनकी मन फिराने में सहायता की।
कारावास में उसने निडरता से कैदियों को प्रचार किया और राजमहल में राजा और शाही परिवार के सामने प्रचार किया। हर समय, हर जगह, पौलुस ने निडरता से लोगों को मसीह के बारे में बताया। चाहे शैतान ने उसे उसके प्रचार के कार्य में हर तरह से परेशान किया, फिर भी वह अपने विश्वास में अटल रहा। उसे कारावास में भेजा गया, लेकिन शैतान उसे प्रचार करने से नहीं रोक सका। कारावास में होते हुए भी, वह मुक्त रह सका; उसकी आत्मा और विश्वास ने यह मुमकिन किया। पौलुस ने सोचा था कि इस संसार की हर जगह प्रचार करने के लिए है, और सभी मनुष्यजाति प्रचार करने के लिए है। उसने सभी परिस्थितियों को प्रचार करने के मौके में बदल दिया।
प्रेरित पौलुस हर प्रकार की परिस्थितियों में प्रचार कर सकता था। जब वह यहूदियों से मिला, तो उसने उनकी जगह पर उनके विचार को समझने के लिए कोशिश की, ताकि वह उन्हें भी सुसमाचार का प्रचार कर सके और उन्हें भी मसीही बना सके। जब वह अन्यजाति के लोगों से मिला, तो उसने उनके विशेष लक्षण और परिस्थिति के बारे में सोचा, ताकि वह उन्हें भी प्रचार कर सके और मसीही बना सके। उसने कभी भी ऐसा नहीं सोचा कि, “यहूदी तो नियमशास्त्र को मानते हैं, इसलिए वे शायद स्वीकार नहीं करेंगे...” या “अन्यजाति के लोग मूर्तिपूजक और काफिर हैं, इसलिए वे शायद स्वीकार नहीं करेंगे...” उसके पास ऐसे नकारात्मक विचार ही नहीं थे।
अब, हमें समझना चाहिए कि प्रेरित पौलुस के समान प्रचार करने का अर्थ क्या है। हमारे चर्च के सदस्यों में से एक ने प्रेरित पौलुस के प्रचार को गलत तरीके से समझ लिया था, और उसने कहा कि वह अपना प्रचारक का वर्तमान कार्य छोड़ देगा और किसी आनंदप्रमोद की जगह पर जाकर वहां के लोगों के साथ रहेगा, ताकि वह उन्हें प्रचार कर सके। वास्तव में यह बात प्रेरित पौलुस के प्रचार से बहुत अलग है। यदि हमारे सदस्यों में से किसी को, जिसे सामान्य समय में प्रचार करने का मौका नहीं मिलता, ऐसी किसी जगह पर अपने परिवार या दोस्तों के साथ जाने का मौका मिले, तो वह उस परिस्थिति में वहां प्रचार कर सकता है। यह प्रेरित पौलुस के समान प्रचार का एक उदाहरण कहा जा सकता है।
प्रेरित पौलुस के पास उस समय में एक नौकरी थी। जब वह अपने काम के समय में बहुत से लोगों से मिलता था, तो वह उन्हें प्रचार करता था। हम अपने वर्तमान कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाते हुए, हर परिस्थिति में प्रचार कर सकते हैं। चाहे हम काम करने की जगह में नौकरी में बंधे हैं, हम उस परिस्थिति में भी प्रचार कर सकते हैं। किसी भी परिस्थिति में हमेशा प्रचार करना, यही प्रेरित पौलुस के प्रचार का सिद्धांत था।
जब पौलुस यहूदियों से मिला, तो अपने आपको उनकी जगह पर रखकर वह स्वयं यहूदी बन गया, ताकि वह उन्हें बचा सके। और जब वह अन्यजाति के लोगों से मिला, तो वह उनके समान बन गया, ताकि वह उन्हें बचा सके। हालांकि, उसने कभी भी मूर्तिपूजकों के बलिदानों में हिस्सा नहीं लिया। यह प्रचार करने के उद्देश्य से था कि प्रेरित पौलुस अन्यजाति के लोगों और यहूदियों से मिला। बहुत से लोगों ने उसे रोका, यहां तक कि बहुतों ने उसे मार डालना चाहा। हालांकि, इतनी भयानक परिस्थिति में होते हुए भी, वह उसके बारे में चिन्तित नहीं था और उसने और भी ज्यादा बहादुरी के साथ सुसमाचार का प्रचार किया, क्योंकि उसका मन और हृदय हमेशा परमेश्वर की ओर था।
प्रे 21:11–13 उसने हमारे पास आकर पौलुस का कटिबन्ध लिया, और अपने हाथ पांव बांधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है कि जिस मनुष्य का यह कटिबन्ध है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बांधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।” जब हम ने ये बातें सुनीं, तो हम और वहां के लोगों ने उससे विनती की कि यरूशलेम को न जाए। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो कि रो–रोकर मेरा दिल तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बांधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूं।”
अब यह हमारे लिए पौलुस के समान प्रचार करने का समय है। अब तक हम ने एक समान रूप से प्रचार किया है। हालांकि, आज संसार की बहुत सी जगहों से बहुत से लोग सिय्योन की ओर आ रहे हैं। इसलिए हमें उनकी संस्कृति और रिवाजों को समझना चाहिए, ताकि हम उन्हें सुसमाचार का प्रचार कर सकें। इसी वजह से, ‘प्रेरित पौलुस के प्रचार करने की पद्धति’ हमें चाहिए।
परमेश्वर ने हमें पहले से बताया है कि हमारा परिणाम क्या आएगा। उन्होंने सब कुछ पूरा किया है, इसलिए अब हमें इन अंतिम दिनों में पूरी हो रही भविष्यवाणियों की गवाही देनी चाहिए। हम सब परमेश्वर की योजना के अनुसार परमेश्वर की आशीष बहुतायत से पाना चाहते हैं। इसलिए, हमें इस बात को सोचते हुए कि क्या हम परमेश्वर को प्रसन्न करने योग्य कार्य कर रहे हैं या नहीं, अपने नजरिए को और अपनी भावनाओं को और विचारों को बदलना चाहिए।
प्रेरित पौलुस के समान प्रचार और धार्मिकता का मुकुट
एक ‘प्रचारक का कार्य’ परमेश्वर के द्वारा दिया गया सबसे महान कर्तव्य है। हम यह कार्य तब भी कर सकते हैं यदि हम हर रोज चर्च में न जाएं। हर कोई अपनी खुद की परिस्थिति के अनुसार प्रचार कर सकता है; स्कूल में या काम पर या किसी दूसरी जगह में। हमें समय या असमय प्रचार करना चाहिए। यह सबसे महान कर्तव्य है जो हमें इस पृथ्वी पर करना चाहिए।
2तीम 4:1–8 परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह... पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर। क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन् उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।
आइए हम प्रेरित पौलुस के समान, धार्मिकता के मुकुट और स्वर्ग की महिमा की प्रतीक्षा करें। हमें अपनी परिस्थितियों और हालात के कारण प्रभावित नहीं होना चाहिए। एक मरी हुई मछली धारा के साथ साथ बहती है, लेकिन एक जिन्दा मछली धारा के विपरीत दिशा में तैरती है। हमें संसार की लहरों के कारण बह जाना नहीं चाहिए। बल्कि, हमें धार्मिकता को पकड़े रहना चाहिए और अपना विश्वास बनाए रखना चाहिए।
धर्मी नूह और लूत के बारे में सोचिए। जब दूसरे लोग अपने आसपास के माहौल से प्रभावित हो गए थे, ये दो लोग विचलित नहीं हुए थे। उन्होंने अंत तक परमेश्वर का भय माना, और वे बाइबल में स्तुति के योग्य विश्वास के पूर्वज बन गए। चाहे सदोम और अमोरा के लोग परमेश्वर को भूलकर विलासित जीवन में लिप्त थे, लूत ने परमेश्वर को कभी नहीं छोड़ा। किसी भी परिस्थिति या हालात में, उसने कभी भी परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया। पौलुस और पतरस ने भी वैसा ही किया था।
उनके उदाहरणों का पालन करते हुए, हमें परमेश्वर की विश्वासयोग्य सन्तान के रूप में, किसी भी मुश्किल परिस्थिति से ऊपर उठना चाहिए। यदि हम परमेश्वर की नजर में सही होंगे, तो हम ऊंचे किए जाएंगे, जिस प्रकार गुलाम होने के बावजूद दानिय्येल का आदर किया गया और ऊंचे पद पर बिठाया गया था। हालांकि, यदि हमारे हृदय परमेश्वर पर केन्द्रित नहीं हैं, तो हम भी उस यहूदा इस्करियोती के समान प्रतिकूल परिस्थितियों में आसानी से विचलित हो जाएंगे, जिसने अपने आसपास की परिस्थिति से समझौता कर लिया और स्वर्ग की महिमा में प्रवेश करने में असफल रहा। 1,44,000 लोगों को किसी भी परिस्थिति में कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। जिस प्रकार सूर्यमुखी हमेशा अपना मुंह सूर्य की ओर फेरता है, हमें भी जहां–जहां परमेश्वर जाते हैं वहां उनका पालन करते हुए, अपने हृदय परमेश्वर पर केन्द्रित करने चाहिए।
अपने आसपास देखिए! इस पृथ्वी पर लगभग छह अरब लोग रहते हैं। वे सब प्रचार किए जाने के लायक हैं। यह पूरा संसार प्रचार करने के लिए एक बड़े खेत के समान है। आइए हम प्रेरित पौलुस के समान, जहां कहीं भी हम जाएं, वहां सब लोगों को प्रचार करें। हमें दिए गए गुणों के द्वारा, आइए हम पूरे संसार में अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को ढूंढ़ने का प्रयत्न करें।