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हे परमेश्वर के जन
हम सब पापी हैं जो पापों के कारण स्वर्ग से निकाल दिए गए थे और पृथ्वी पर गिरा दिए गए थे। मसीह के निष्कलंक और निर्दोष लहू के द्वारा, परमेश्वर ने हमें छुटकारा, यानी पापों की क्षमा दी है, ताकि हम फिर से जन्म ले सकें और परमेश्वर की संतान बन सकें और अपने स्वर्गीय देश वापस जा सकें।
हम, परमेश्वर के मनुष्यों को परमेश्वर से पहले क्या मांगना चाहिए? हम, परमेश्वर की संतानों के लिए परमेश्वर की क्या इच्छा है? वह जीवन है, अनन्त जीवन। परमेश्वर सबसे ज्यादा यह चाहते हैं कि उनकी संतान अनन्त जीवन प्राप्त करें और स्वर्ग के राज्य में खुशी से रहें।
विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़कर, अनन्त जीवन को धर लो
1तीम 6:11–12 पर हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग, और धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज और नम्रता का पीछा कर। विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिसके लिये तू बुलाया गया और बहुत से गवाहों के सामने अच्छा अंगीकार किया था।
परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन धरने के लिए कहा। अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए हमें एक प्रक्रिया से गुजरना चाहिए। वह धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज और नम्रता का पीछा करते हुए विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ना है।
हमारे सांसारिक जीवन में, हर एक के पास अपना दर्द है जिससे दूसरे लोग अनजान हैं। वह हमारे शरीर(बगल) में एक कांटा बन जाता है।
परमेश्वर नबियों को, जो उनका काम करते हैं, अनुकूल परिस्थितियां प्रदान कर सकते हैं। हालांकि, वह उन्हें परेशानियां और दर्द भी देते हैं। क्यों? परमेश्वर चाहते हैं कि उनकी प्यारी संतान पृथ्वी के जीवन से संतुष्ट न हों, पर स्वर्ग के राज्य की अत्यन्त अभिलाषा करें और अनन्त जीवन की आशा रखें; परमेश्वर चाहते हैं कि उनकी संतान अपने वर्तमान समय के दर्द भरे जीवन में सिर्फ उन पर निर्भर रहें और सर्वशक्तिमान की शक्ति को प्रदर्शित करें। यह परमेश्वर की रीति है।
2कुर 12:6–10 क्योंकि यदि मैं घमण्ड करना चाहूं भी तो मूर्ख न हूंगा, क्योंकि सच बोलूंगा... इसलिये कि मैं प्रकाशनों की बहुतायत से फूल न जाऊं, मेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया, अर्थात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूंसे मारे... “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है।”... अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं में, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।
प्रथम चर्च में, प्रेरित पौलुस के शरीर में एक कांटा चुभाया गया था; बहुत बार उसने उसे निकालने के लिए परमेश्वर से अनुरोध किया। हालांकि, परमेश्वर ने उससे कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिए बहुत है।” परमेश्वर ने उसे अपना क्रूस उठाने और मसीह के पीछे चलने दिया। पौलुस को महसूस हुआ कि क्यों परमेश्वर ने उसके शरीर में एक कांटा चुभाया। तब वह खुश हुआ और उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि वह परेशानियों में, अत्याचारों में, कठिनाइयों और अपमानों में अपने परमेश्वर के प्रति प्रेम को और ज्यादा दृढ़तापूर्वक प्रकट कर सकता है।(2कुर 11:23–30)
जब परमेश्वर सुसमाचार के प्रचार के कार्य की योजना बनाते हैं और हमें उसे पूरा करने की अनुमति देते हैं, वह हमें परेशानियां और क्लेश भी देते हैं। परमेश्वर चाहते हैं कि हम, उनकी संतान इन परेशानियों और दर्दों के द्वारा स्वर्ग की आशा करें और स्वर्ग की ओर उड़ने के लिए अपने पंखों को फैलाना सीखें। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमें मजबूत और दृढ़ विश्वास रखने के लिए सिखाते हैं ताकि हम स्वर्ग के राज–पदधारी याजकों के रूप में सेवा करने के योग्य बन सकें।
विश्वास के पूर्वजों के कांटे
विश्वास के हर पूर्वज के पास एक कांटा दिया गया था। परमेश्वर ने कांटे देकर विश्वास के सभी पूर्वजों को निर्मल किया ताकि वे परमेश्वर की संपूर्ण इच्छा को पूरा कर सकें। परमेश्वर ने उन्हें दर्द से भरी परिस्थितियां दीं, ताकि वे परमेश्वर के बारे में सोचने का, परमेश्वर को ढूंढ़ने का और परमेश्वर पर पूरी तरह निर्भर रहने का समय लें।
एक माता उकाब अपने बच्चे को बहुत कठिन तरीके से सिखाती है। क्योंकि अगर वे अपने गर्म घोसले में आलस्य में लिप्त रहें, तो वे शिकार के शाही पक्षी नहीं बन सकते। इसी तरह, परमेश्वर ने विश्वास के पूर्वजों को कांटे दिए ताकि ऐसा न हो कि वे सांसारिक बातों में लिप्त हों।
आदम के पास कांटा था, उसका पुत्र कैन जो मानव इतिहास में पहला खूनी था।(उत 4:1–8) एली याजक को एक कांटा दिया गया था, उसके चरित्रहीन और अधर्मी पुत्र जिनके कारण उसका पूरा घर नष्ट हो गया था।(1शम 2:12–25) राजा दाऊद के पास कांटे के रूप में अबशालोम एक विद्रोही पुत्र था जिसके कारण उसका पीछा किया गया।(2शम 15:1–23) एलिय्याह, अहाब और ईज़ेबेल के कारण व्यथित था; जब उसने अपनी मृत्यु मांगी, एक स्वर्गदूत उसका जीवन बचाने के लिए उसके पास रोटी और पानी ले आया, ताकि वह अपना सेवा कार्य जारी रख सके।(1रा 19:1–18) एलीशा के पास जो एलिय्याह नबी का चेला और उत्तराधिकारी था, एक कांटा था, उसका लालची दास गेहजी।
2रा 5:20–27 परमेश्वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा, “मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसे ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया था उसको उसने न लिया, परन्तु यहोवा के जीवन की शपथ मैं उसके पीछे दौड़कर उससे कुछ न कुछ ले लूंगा।” तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा... तब उसने उन वस्तुओं को उनसे लेकर घर में रख दिया, और उन मनुष्यों को विदा किया, और वे चले गए। तब वह भीतर जाकर, अपने स्वामी के सामने खड़ा हुआ... उस(एलीशा) ने कहा, “जब वह पुरुष इधर मुंह फेरकर तुझ से मिलने को अपने रथ पर से उतरा, तब से वह पूरा हाल मुझे मालूम था... इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा।” तब वह हिम–सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके सामने से चला गया।
एलीशा परमेश्वर का नबी था जिसने बहुत सारे चमत्कार दिखाए थे। उसे अपने दास के लालची कार्य के बारे में पता था। उसके इन शब्दों के द्वारा, “तब से वह पूरा हाल मुझे मालूम था,” हम देख सकते हैं कि उसका धोखेबाज दास गेहजी उसके लिए एक कांटा था।
यीशु के पास एक कांटा था, उन्हें धोखे से पकड़वानेवाला यहूदा इस्करियोती। वह जानते थे कि उन्हें कौन पकड़वाएगा, परंतु उन्होंने उसकी परवाह नहीं की। लगभग तीन साल तक वह उसके साथ चलते थे।
मत 26:19–24 ... जब वे खा रहे थे तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूं कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”... “जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा। मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता, तो उसके लिये भला होता।”
भले ही यीशु ने अपने पकड़वानेवाले यहूदा इस्करियोती के साथ तीन साल बिताए, उन्होंने पूरे हृदय से सुसमाचार के वचनों का प्रचार करते हुए आत्माओं को बचाने के लिए अपने आपको समर्पित किया। अगर वह यहूदा इस्करियोती के बारे में जो दर्द का एक कांटा था, चिन्ता करते हुए समय गंवाते, तो उद्धार के शुभ संदेश का प्रचार कैसे होता? यीशु इसलिए नहीं आए कि वह सिर्फ कांटे के दर्द की पीड़ा को सहन करें। उन्होंने कहा कि वह स्वर्ग से खोए हुओं को ढूंढ़ने आए हैं।
अगर हम अपना “अनन्त जीवन को धर लेने” का उद्देश्य छोड़ देंगे और सिर्फ कांटे के उस दर्द के बारे में सोचते रहेंगे जो सुसमाचार में रुकावट बनता है, तो हम कैसे सभी लोगों और जातियों को अनन्त जीवन का मार्ग जानने दे सकेंगे? यीशु के उदाहरण का पालन करते हुए, हमें केवल आत्माओं को बचाने के कार्य पर ध्यान देना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि परमेश्वर का अनुग्रह शरीर के कांटे को संभालने के लिए बहुत है।
पीड़ा यह परिणाम लाती है कि हम परमेश्वर की बाट पूरी तरह से जोहते हैं
श्रीमती कौफमेन ने अपनी किताब “स्प्रिंग आफ डेसर्ट” में अपनी यात्रा के अनुभव का स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। यह किताब वर्णन करती है कि तितली अपने कवच से बाहर निकलने के बाद कैसे विकासित होती है।
एक दिन, उसने एक तितली को अपने कवच से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करते देखा। उसे उस तितली के कष्ट पर तरस आया, और उसने कैंची से कवच को कांट दिया ताकि वह तितली आसानी से बाहर आ सके। हालांकि, वह तितली कवच से बाहर निकलने के बाद हवा में उड़ नहीं सकी, जबकि बाकी सारी तितलियां हवा में उड़ रही थीं। तब उसे महसूस हुआ कि तितलियों को उड़ने के काबिल बनने के लिए कवच से कठिन संघर्ष करके बाहर निकलना जरूरी है, क्योंकि वह लंबा प्रयास आवश्यक तरल पदार्थ को उनके पंखों में पंप करता है और उड़ान के लिए उन्हें मजबूत बनाता है।
हमारी आत्मिक उड़ान भी इसी प्रकार है। पीड़ा के द्वारा हम अपने आत्मिक पंख फैलाकर स्वर्ग की ओर उड़ान भरने के लिए काफी मजबूत बनाए जाते हैं। पीड़ा के बिना हम इस संसार में अपने वर्तमान जीवन से संतुष्ट होकर अदूरदर्शी हो जाते हैं, जिसके कारण हम अनन्त जीवन को नहीं धर सकते और अपने अनन्त घर, स्वर्ग में पहुंचने में नाकाम हो सकते हैं।
इस वर्तमान दुनिया की हमारी पीड़ा हमें अनन्त राज्य के लिए तरसने देती है, जहां कोई पीड़ा और मृत्यु नहीं है।
समुद्र के किनारे देवदार की जड़ें बहुत गहरी होती हैं ताकि वे तेज हवाओं का सामना कर सकें। कोरिया के सियोल में नामसान पहाड़ी पर देवदार, जो वायु प्रदूषण के गंभीर खतरे से जीवित बच रहते हैं, साधारण वृक्षों की तुलना में अधिक फल उत्पन्न करते हैं। यह इसलिए है क्योंकि देवदार ऐसी गंभीर स्थिति के प्रति खुद को अनुकूलित करते हैं; वे फलदार बन जाते हैं और अपनी प्रजातियों को जीवित रखते हैं।
दर्द, पीड़ा, गरीबी और अकेलापन जीवन के विकास में बाधा हो सकते हैं। हालांकि, इतनी बुरी हालत हमें सुधारने का एक अवसर बनता है, ताकि हम उत्सुकता से परमेश्वर की मदद मांगते हुए और पूरी तरह उन पर निर्भर रहते हुए पूर्ण विश्वास रख सकें। परमेश्वर ने हमसे कहा है कि भले ही हम झाड़ियों और कांटों के बीच हों, हमें परमेश्वर के वचनों को साहसपूर्वक कहना चाहिए।
यहेज 2:6–7 हे मनुष्य के सन्तान, तू उन से न डरना; चाहे तुझे कांटों, ऊंटकटारों और बिच्छुओं के बीच भी रहना पड़े, तौभी उनके वचनों से न डरना; यद्यपि वे विद्रोही घराने के हैं, तौभी न तो उनके वचनों से डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो। इसलिये चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े विद्रोही हैं।
जो हमारे विरुद्ध झाड़ियां और कांटे लगाकर सत्य के मार्ग में बाधा डालते हैं, उन्हें नरक में सजा दी जाएगी। परमेश्वर हमसे कहते हैं कि भले ही वे बहुत विद्रोही हैं, हमें उनसे नहीं डरना चाहिए। भले ही अभी हमारे पास कांटे हैं, हमारी पीड़ा अंत में फल उत्पन्न करेगी। फलों का उल्लेख करके, परमेश्वर हमें सांत्वना देते हैं:
इब्र 6:7–9 क्योंकि जो भूमि वर्षा के पानी को, जो उस पर बार–बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगों के लिये वह जोती–बोई जाती है उनके काम का साग–पात उपजाती है, वह परमेश्वर से आशीष पाती है। पर यदि वह झाड़ी और ऊंटकटारे उगाती है, तो निकम्मी और स्रापित होने पर है, और उसका अन्त जलाया जाना है। पर हे प्रियो, यद्यपि हम ये बातें कहते हैं तौभी तुम्हारे विषय में हम इससे अच्छी और उद्धारवाली बातों का भरोसा करते हैं।
मत 13:3–8 और उसने उनसे दृष्टान्तों में बहुत सी बातें कहीं: “एक बोनेवाला बीज बोने निकला। बोते समय... कुछ बीज झाड़ियों में गिरे और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। पर कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।
हमें झाड़ियों और कांटों के समान नहीं होना चाहिए जो जलाए जाएंगे। परमेश्वर की संतानों के रूप में, हमें पवित्र आत्मा से भरकर उनके अनुग्रहपूर्ण वचनों का प्रचार करना चाहिए और अच्छे फल पैदा करने चाहिए। हमें सभी मुश्किल परिस्थितियों पर काबू पाते हुए सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए, ताकि हम दृढ़ता से परमेश्वर का बहुमूल्य उपहार, यानी अनन्त जीवन धर सकें।
उस भोजन के लिए परिश्रम करें जो अनन्त जीवन तक ठहरता है
यूह 6:27 नाशवान् भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप लगाई है।
हम कितने मूर्ख होंगे अगर हम कांटे और झाड़ी के दुख के कारण नाशवान् भोजन के लिए अनन्त जीवन को त्याग देंगे! हमारा जीवन मूल्यहीन होगा, है न? आइए हम उस भोजन के लिए परिश्रम करें जो अनन्त जीवन तक ठहरता है और अनन्त जीवन को धरें जो परमेश्वर का सबसे बहुमूल्य और कीमती उपहार है, जैसे कि परमेश्वर ने कहा।
अगर परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचने के बाद, उसमें जीवन का श्वास न फूंका होता, तो वह सुंदर न होता, है न? क्योंकि मिट्टी सुंदर नहीं होती। उसमें जीवन के श्वास ने आदम को सुंदर बना दिया।
हमें अनन्त जीवन देने के लिए, हमें फिर से सुंदर जीव बनाने के लिए, परमेश्वर स्वयं इस पापमय संसार में आए। जो यीशु का मांस नहीं खाते और उनका लहू नहीं पीते, उनमें जीवन नहीं है। हालांकि, हमारे पास जो उनका मांस खाते और उनका लहू पीते हैं, जीवन है, इसलिए हम सुंदर हो सकते हैं। हमारे भाई और बहनें हमेशा बहतु ही उज्ज्वल आरै सदुंर हैं, और वे संसार से प्रशंसा पाने के योग्य हैं। यह इसलिए है क्योंकि उनके पास जीवन देने वाला परमेश्वर का श्वास है।
स्वर्ग की विरासत हमें देने के लिए, परमेश्वर हमें उत्पीड़न, दुख और परीक्षणों के द्वारा सुधारते और सिखाते हैं।
रो 8:16–18 आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं। क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं है।
परमेश्वर ने हम पर दया की जिन्होंने सांसारिक चीजों को मूल्यवान समझा और स्वर्ग की ओर उड़ने के लिए अपने पंख नहीं फैलाए, और परमेश्वर हम में से हर एक को कहते हैं, “हे परमेश्वर के जन, अनन्त जीवन को धर लो!” यह कहकर परमेश्वर आग्रहपूर्वक विनती करते हैं: ‘हे परमेश्वर के जन, सांसारिक चीजों को हासिल करने के बजाय, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हर संभव प्रयास करना जहां अनन्त खुशी और महिमा है! वहां तुम्हें जो भी चाहिए वह सब मिल सकता है। इसलिए अनन्त जीवन को धर लो। अनन्त जीवन से वंचित न हो।’ परमेश्वर चाहते हैं कि हम, उनकी संतान अनन्त जीवन को प्राप्त करें जो सबसे बहुमूल्य उपहार है।
परमेश्वर के जन के रूप में स्वर्ग की अनन्त महिमा प्राप्त करने के लिए, हम में से हर एक को देखी और अनदेखी चीजों के बारे में परमेश्वर के हर एक वचन को समझना चाहिए और उस पर विश्वास करना चाहिए और अपने जीवन में उसे लागू करना चाहिए। परमेश्वर ने हमें चुना है और हमें अनन्त जीवन के गहरे रहस्य को जानने दिया है। हमारे पास परमेश्वर को “पिता” और “माता” कहने का अधिकार है। हम कितने ज्यादा आशीषित हैं!
परमेश्वर ने हमारे लिए स्वर्ग का राज्य तैयार किया है जहां हम हमेशा के लिए जीएंगे, और वापस घर आने के लिए परमेश्वर हमारा उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। परमेश्वर के जन के रूप में हमें परमेश्वर की इच्छा समझनी चाहिए। आइए हम परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास करें और परमेश्वर को महिमा दें, और फिर हम बहुतायत से पवित्र आत्मा के बहुमूल्य फल उत्पन्न कर सकेंगे। जब तक सारे 1,44,000, परमेश्वर की संतान, अनन्त जीवन प्राप्त नहीं करती, आइए हम ईमानदारी से सुसमाचार का प्रचार करें और परमेश्वर को प्रसन्न करें।