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परमेश्वर प्रेम हैं
परमेश्वर हम से बहुत ज्यादा प्रेम करते हैं। इसी वजह से वह इस पृथ्वी पर आए और खुशी से कठोर दु:खों को उठाया। जब उन्होंने गुलगुता पर अपना अंतिम श्वास लिया, उन्होंने हमारे लिए मृत्यु की तीव्र वेदना को सह लिया। उन्होंने हमारे लिए चिन्ता की और हमारे लिए प्रार्थना की।
बाइबल की सभी 66 पुस्तकें हमें बताती हैं कि परमेश्वर प्रेम हैं। हमें, जिन्हें चुना गया है और जो सत्य जानते हैं, उनके प्रेम को समझना चाहिए और व्यावहारिक रूप से उसे अभ्यास में लाना चाहिए।
परमेश्वर ने हमें सुसमाचार के कार्य में सहभागी होने दिया है, ताकि हम पूरे संसार में उनके प्रेम का प्रचार कर सकें। यदि हम परमेश्वर के प्रेम को समझते हैं, तो हम उसको बांट सकते हैं, है न?
जब तक हम संसार की ओर प्रेम की घोषणा न करें, वे नहीं समझेंगे कि परमेश्वर का प्रेम क्या है और वह कैसा लगता है। हमें लोगों को परमेश्वर का सच्चा प्रेम बताना चाहिए, ताकि वे भी उद्धार पा सकें।
तेरी भी जीत मेरी भी जीत विचार वाले लोग
कुछ मानवविज्ञानी कहते हैं कि दुनिया में तीन प्रकार के लोग होते हैं: मेरी हार तो तेरी भी हार विचार वाले लोग, तेरी हार पर मेरी जीत विचार वाले लोग, और तेरी भी जीत मेरी भी जीत विचार वाले लोग। पहले प्रकार के लोग सिर्फ स्वयं को ही नहीं, परन्तु दूसरों को भी हारनेवाले बनाते हैं। दूसरे प्रकार के लोग दूसरों के बारे में विचार नहीं करते, लेकिन सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं; दुनिया के ज्यादातर लोग इस वर्गीकरण में आते हैं। तीसरे प्रकार के लोग दूसरों के साथ अपनी भी भलाई खोजते हैं; वे संख्या में थोडे. ही हैं, लेकिन उन ही से संसार को बदलने की शक्ति आती है।
तेरी भी जीत मेरी भी जीत विचार वाले लोग ही परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं। वे स्वयं तो ऐसे कार्य करते ही हैं जिनसे परमेश्वर की आशीष मिले, और दूसरों को भी आशीष की ओर ले आते हैं।
हम ने सिय्योन में सत्य के द्वारा नया जीवन पाया है। यदि अभी तक हमारे पास मेरी हार तो तेरी भी हार या तेरी हार पर मेरी जीत जैसी विचारशैली है, तो उसे तेरी भी जीत मेरी भी जीत विचारशैली में बदलना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर के सच्चे कार्यकर्ता के रूप में परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास कर सकें, जो बहुतायत से आशीर्वाद पाने के योग्य हैं।
1यूह 4:5–8 ... हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है। जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।
यदि कोई प्रेम नहीं करता, तो उसने अभी तक परमेश्वर को नहीं जाना। वह परमेश्वर के पवित्र स्वभाव को नहीं समझता। परमेश्वर को समझे बिना, कोई भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकता और उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकता।
अच्छे भाइयों का उदाहरण
मैं आपको ‘अच्छे भाइयों’ की एक कहानी बताता हूं। एक गांव में दो भाई रहते थे। वे अपने माता–पिता से मिले खेतों में मेहनत से काम करते थे। जब कटनी का समय आया, तो उन्होंने सभी अनाजों को इकट्ठा किया और एक समान रूप से बांट लिया।
घर वापस लौटने के बाद, छोटे भाई को एक विचार आया: ‘मैं तो कुंवारा हूं, लेकिन मेरे भाई के पास एक पत्नी और बच्चे भी हैं। मैंने उसके साथ अनाजों को बराबर बांटकर गलती की है।’ उस रात उसने चावल के कुछ गट्ठे लेकर अपने भाई के भंडार में चुपके से रख दिए।
तभी, बड़े भाई को भी वैसा ही विचार आया: ‘मैंने तो अपना संसार बसा लिया है, लेकिन मेरा भाई अभी भी कुंवारा है। उसे अपना एक घर बनाने के लिए मुझसे भी ज्यादा पैसों की आवश्यकता होगी। मैंने अनाजों को उसके साथ दो बराबर हिस्सों में बांट कर गलती की है।’ उस रात उसने भी अपने चावल के कुछ गट्ठों को अपने भाई के भंडार में चुपके से रख दिया।
अगली सुबह, दोनों भाइयों ने पाया कि उनके चावल के गट्ठे पहले के समान ही हैं, और उन्हें आश्चर्य हुआ। उस रात को भी, उन दोनों ने अपने भाई के भंडार में चावल के गट्ठे रख दिए। अगली सुबह, उनके चावल के गट्ठे पिछले दिन के समान उतने ही थे। उस रात को और अगली रात को भी उन्होंने फिर से वैसा ही किया। अंत में, एक बार चावल के गट्ठों को ले जाते हुए उन्होंने एक दूसरे को देख लिया। एक दूसरे का प्रेम देखकर, वे एक दूसरे के गले लगकर रोने लगे।
ऐसी भाईचारे की प्रीति तेरी भी जीत और मेरी भी जीत वाली विचारधारा से पैदा होती है। यदि इन भाइयों के पास तेरी हार पर मेरी जीत जैसी विचारधारा होती, तो यह कहानी कुछ और ही होती; बड़े भाई ने जिसके पास एक बड़ा परिवार है, खुद के बराबर हिस्सा लेने के लिए छोटे भाई को डांटा होता, और छोटे भाई ने अपने भाई के प्रति जो उसकी परिस्थिति को नहीं समझता और उसे डांटा होता, एक विद्रोही रवैया अपनाया होता; उनके बीच का भाईचारा खत्म हो गया होता, और वे एक दूसरे के साथ शान्ति के साथ न रह सके होते।
भजन 133:1–3 देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें! यह तो उस उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर बहकर, उसके वस्त्र की छोर तक पहुंच गया। वह हेर्मोन की उस ओस के समान है, जो सिय्योन के पहाड़ों पर गिरती है! यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।
परमेश्वर की नजर में सबसे ज्यादा प्रसन्न करने वाली बात सिय्योन में हमारी एकता है। जब सिय्योन के आत्मिक परिवारजन दूसरों की परिस्थितियों को समझें और स्वयं के लाभ का नहीं, परन्तु अपने भाइयों के लाभ का ख्याल करें, तो हमारे परमेश्वर कितने ज्यादा प्रसन्न होंगे! यदि हम जब भाई खुश हैं तो साथ में आनन्द मनाते हुए, और जब वे दु:ख में हैं तो दु:ख महसूस करते हुए, सब कुछ आपस में बांटें और एक दूसरे की देखभाल करें तो यह कितना ही अद्भुत होगा! हालांकि, यदि हम भाइयों की परिस्थितियों को समझे बिना अपनी ही भावनाओं में बहते जाएं, और उन्हें दु:ख पहुंचाएं, तो परमेश्वर अप्रसन्न होंगे। यदि हम अपने भाइयों का भला न चाहें, तो हम अपने आपको भाइयों और बहनों से ऊंचा चढ़ा लेंगे और बाद में न तो उन से प्रेम कर सकेंगे और न ही परमेश्वर को प्रसन्न कर सकेंगे।
इस पुरानी कहानी के दो भाइयों के समान, हमें एक दूसरे से गहराई से प्रेम करना चाहिए। अपने आपको भाई के स्थान पर रखकर हमें उनकी परिस्थितियों को समझना चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए। यही वह परमेश्वर के स्वभाव से आनेवाला प्रेम है जो शैतान के पास कभी भी नहीं हो सकता। हमें परमेश्वर के स्वभाव के सरूप होना चाहिए और एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए।
प्रेम एकता और विजय पैदा करता है
कोरियाई युद्ध के दौरान ऐसा कुछ हुआ था। युद्धविराम के बिल्कुल पहले, ‘खूनी पर्वतश्रेणी’ नामक पहाड़ पर, दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के बीच में भीषण युद्ध हो रहा था; तेगुक्गी(दक्षिण कोरियाई राष्ट्रीय ध्वज) दिन के समय में लहराता था, तो रात के समय में उत्तर कोरियाई ध्वज लहराता था। फौजी सेना को मृत्यु तक भी पहाड़ की रक्षा करने का आदेश दिया गया था। एक दिन, दो दिन, तीन दिन,... सैनिकों ने रातदिन रक्षा की। जैसे जैसे युद्ध बढ़ता गया, आपूर्ति भेजने का रास्ता बंद कर दिया गया; उनका पानी और भोजन खत्म होने लगा।
एक दिन, एक सैनिक जिसे गोली लगी थी, बड़े जोर से पानी मांग रहा था। अपने साथी सैनिक को पीड़ा से कराहते हुए देखकर, सैनिकों ने अपनी अपनी बोतलें हिलाईं, लेकिन उनमें से किसी में भी पानी नहीं था। उसी समय, एक सैनिक ने उस घायल सैनिक को अपनी बोतल दी; उसमें सिर्फ मुंह भर पानी ही था। जब वह घायल सैनिक पानी पीने पर था, तो उसने महसूस किया कि सभी प्यासे सैनिकों की आंखें उसी पर टिकी हुई थीं।
वह पानी नहीं पी सका; उसने सिर्फ पानी निगलने का दिखावा किया, और बोतल को अपने पास बैठे सेनाध्यक्ष को दे दिया। सेनाध्यक्ष जिसने इस बात को करीब से देखा था, उस सैनिक का मन समझ गया, और उसने पानी पीने का सिर्फ दिखावा किया, और पानी की बोतल को अपने पास बैठे एक दूसरे सैनिक को दे दिया। “एक घूंट,” “एक घूंट,”... जब सभी सैनिकों ने घूंट भर लिया और वह बोतल अपने मालिक के पास वापस आई, तो पहले जितना था उतना ही पानी अभी भी था, लेकिन असाधारण रूप से उनमें से कोई भी प्यास महसूस नहीं कर रहा था; उससे बढ़कर उन्होंने अपनी शक्ति वापस पाई और उनका मनोबल बढ़ गया, इससे वे अंत तक पहाड़ की रक्षा कर सके।
ऐसा सोचते हुए, “मैं केवल अपनी ही प्यास बुझाऊंगा,” यदि उन्होंने तेरी हार पर मेरी जीत जैसी विचारधारा अपनाई होती, तो वे सब के सब नष्ट हो गए होते। हालांकि, उनमें से हर एक ने खुद से ज्यादा अपने साथी सैनिक का ध्यान रखा। परिणाम स्वरूप, वे सब के सब बच सके। प्रेम चमत्कार पैदा करता है।
ऐसे ऐसे उदाहरण किसी और जगह से ज्यादा सिय्योन में घटित होने चाहिए। यदि हमारे पास तेरी भी जीत और मेरी भी जीत के समान मानसिकता है, तो हमारी समस्याएं सुअवसरों में बदल जाएंगी। प्रेम सब बातों को मुमकिन बनाता है; वह हमें एक दूसरे के साथ सुसंगत होने देता है, ताकि हम किसी भी परेशानी को पार कर सकें और जीत हासिल कर सकें। प्रेम एकता और जीत पैदा करता है।
परमेश्वर के प्रेम के लक्षण
1कुरिन्थियों का 13 वां अध्याय परमेश्वर के तेरी भी जीत, मेरी भी जीत वाले प्रेम को अच्छे से व्यक्त करता है।
1कुर 13:1–4 यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
परमेश्वर के प्रेम का मूलभूत लक्षण घीरज है। जरा सोचिए कि परमेश्वर ने हमारे विषय में कितना घीरज धरा है; छह हजार सालों से वह हमारे लिए इंतजार कर रहे हैं, कि हम उनके वचनों के द्वारा पश्चाताप करें। सच में घीरज परमेश्वर का स्वभाव है।
प्रेम स्वयं को समर्पित करता है; वह दयालु है और डाह नहीं करता। ईर्ष्या उनको होती है जिनके पास मेरी हार तो तेरी भी हार या मेरी जीत और तेरी हार जैसी विचारशैली होती है; वे दूसरों के अच्छे भाग्य से जलते हैं।
स्वयं को दूसरों से बढ़कर समझने से घमण्ड पैदा होता है। हालांकि, प्रेम दूसरों को स्वयं से बेहतर समझता है; वह घमण्ड नहीं करता।
यहां तक कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी इस पृथ्वी पर आए और हम पापियों की सेवा की।(यूह 1:1–14; लूक 22:24–27) कैसे हम अपने आपको ऊंचा कर सकते हैं?
चर्च में हमारे पास पादरी, ऐल्डर या डीकन के जैसे कुछ पद हो सकते हैं, लेकिन हमें दूसरों को खुद से नीचा नहीं समझना चाहिए। और यदि हमारे पास कोई पद नहीं है, तो हमें दूसरों से निम्न महसूस नहीं करना चाहिए। ये सब घमण्ड से पैदा होते हैं, जिससे परमेश्वर घृणा करते हैं।
1कुर 13:5–13 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो, तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा... पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
जब हम स्वयं को दूसरों से ऊंचा समझते हैं तो हम असभ्य बन जाते हैं। हमें इस प्रकार के विचारों को छोड़ देना चाहिए। जब हम परमेश्वर के स्वभाव के सरूप बन जाते हैं, तो परमेश्वर हमें ज्यादा फल देते हैं।
परमेश्वर का प्रेम असभ्य नहीं है; वह स्वार्थी नहीं है; वह गुस्सा नहीं करता। मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता।(याक 1:20) तेरी भी जीत, मेरी भी जीत जैसे मन के साथ, प्रेम स्वयं को शैतान से दूर रखता है और लगातार दूसरों को भी दुष्ट न बनने के लिए प्रोत्साहित करता है; प्रेम कुकर्म से आनन्दित नहीं होता लेकिन सत्य से आनन्दित होता है।
परमेश्वर हम से अक्षय प्रेम से प्रेम करते हैं; हमें उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के द्वारा उनके प्रेम के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। जैसे परमेश्वर ने हम से प्रेम किया है, हमें अपने भाई बहनों से प्रेम करना चाहिए।
जब यहूदियों ने अपना राज्य वापस पाने के बाद अरब देशों से लड़ाई की, तो अपने देश के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें एकजुट बना दिया था; सिर्फ चालीस लाख की आबादी के साथ, इस्राएल ने एक करोड़ की आबादी वाले अरब देश के विरुद्ध युद्ध को जीत लिया। उन्होंने अरब लोगों का बड़े जोर से विरोध किया जिन्होंने उनके देश को सताया था; वे सभी जो यहूदियों को सताते थे, डर से कांपने लगे, और वे अब बिना सोचे समझे उनको मार या घायल नहीं करते थे।
अपने देश के प्रति उनके उत्साही प्रेम ने, पूरी दुनिया में बिखरे यहूदी लोगों को, शीघ्रता से अपने निज देश में वापस आने दिया। उनकी विजय के पीछे, चाहे वह शारीरिक ही था, निस्संदेह परमेश्वर की सहायता थी; क्योंकि वे पुराने नियम का पालन करते थे। चाहे जैसे भी हो, उनकी शारीरिक भाईचारे की प्रीति, आज, हम आत्मिक यहूदियों के लिए एक अच्छा उदाहरण है।
हमें परमेश्वर के सरूप होना चाहिए, जो प्रेम हैं। हमें परमेश्वर से और सत्य से प्रेम करना चाहिए। हमें सिय्योन से और अपने आत्मिक परिवार से प्रेम करना चाहिए। आइए हम अपने आत्मिक भाइयों और बहनों को बहुतायत से प्रोत्साहन दें और उन से प्रेम करें जो परमेश्वर की महिमा को प्रकट करते हैं। परमेश्वर ने पहले से कहा है कि प्रेम सबसे महान है। जब तक हम परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास नहीं करते, यह दिखाता है कि हम अभी भी उनके वचनों पर विश्वास नहीं करते।
कोई और आपकी सेवा करेगा ऐसी आशा न कीजिए। अपने विश्वास में बालक नहीं पर वयस्क बन जाइए; खास तौर पर सेवा करवाने की चाह न रखते हुए, सिय्योन की महिमा के लिए कार्य करते हुए भाइयों की सेवा करें।
अंतिम दिन में शैतान आत्मिक युद्ध में हार जाएगा; क्योंकि उसके पास प्रेम नहीं है। परमेश्वर की सन्तान के तौर पर, हमें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए, ताकि हम शैतान की योजनाओं का विरोध कर सकें जो चाहता है कि हम एक दूसरे की ईर्ष्या करें और एक न बनें। तेरी भी जीत और मेरी भी जीत जैसी विचारशैली के साथ, आइए हम आपसी आशीर्वाद पाएं। यह प्रचार के साथ मुमकिन है। प्रचार करना परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास करने का सबसे उत्तम रास्ता है। जब हम प्रचार करते हैं, अपने हृदय प्रेम से भर जाते हैं और फलत: हम परमेश्वर के सरूप बन जाते हैं। आइए हम परमेश्वर का प्रेम और आशीर्वाद एक दूसरे के साथ बांटे, ताकि सभी 1,44,000 भाई और बहनें परमेश्वर के सरूप बन सकें।