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प्रभु! मैं एक पापी मनुष्य हूं!
हमने स्वर्ग में पाप किया, और हम इस शरणनगर, पृथ्वी पर निकाल दिए गए थे। यह बहुत स्वाभाविक है कि हम अपने निज देश की अभिलाषा करते हैं। हम सभी उत्साह से स्वर्ग में वापस जाने की इच्छा रखते हैं, पर हम आसानी से भूल जाते हैं कि हम पापी हैं। अब आइए हम देखें कि हम पापियों का, जिन्हें पश्चाताप करने की जरूरत है, कर्तव्य क्या है, ताकि हम स्वर्ग के राज्य में लौट सकें।
पापी होने की पहचान और बोध होना आवश्यक है
बहुत से लोग खुद के बारे में नहीं जानते। हम भी नहीं जानते थे कि हम कौन हैं: पृथ्वी पर हमारे आने की वजह क्या था? क्यों हम अपने 70 या 80 वर्षों के जीवनकाल के दौरान कठिनाइयों से गुजरते हैं? ज्यादातर लोग एक महत्वपूर्ण पद पाने की आशा करते हैं, और आदर और ताकत प्राप्त करना चाहते हैं, जिससे दूसरे ईर्ष्या करते हैं। हालांकि, वे जो चाहते हैं उसे प्राप्त करना आसान नहीं है। उनकी इच्छा के विरुद्ध, वे कठिन जीवन जारी रखने में लाचार होते हैं। ज्यादातर लोग अपने जीवन के अंत तक उसकी मूलभूत समस्याओं पर ध्यान नहीं देते।
बाइबल हमें सिखाती है कि हम पापी हैं। अगर हम उस पर विश्वास करें, तो इस पृथ्वी पर अपने कष्टों और दर्दों के बारे में हमें कोई शिकायत नहीं होगी। पापियों को खुशी मनाने का और ताकत का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। सांसारिक प्रणाली में देखिए, कैसे अपराधियों के साथ व्यवहार किया जाता है। उनका सारा अधिकार और उनकी स्वतंत्रता छीन ली जाती है।
हमें महसूस कराने के लिए कि हम पापी हैं, यीशु ने यह शिक्षा दी:
मत 9:12–13 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य भले चंगों के लिए नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है... मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूं।”
लूक 19:10 क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।
यहां यीशु ने कहा कि वह स्वर्ग से खोए हुओं को ढूंढ़ने आए हैं। तो, हम समझ सकते हैं कि हम पापी हैं जो स्वर्ग से खो गए हैं। हम सब पापी हैं जो उद्धार और अनंत जीवन की अभिलाषा करते हैं। अगर हम धर्मी होते, तो हमें उद्धार की आवश्यकता नहीं होती। यह ध्यान में रखते हुए कि हम उद्धार की अभिलाषा कर रहे हैं और उसे पाने का प्रयास कर रहे हैं, यह निश्चित है कि हम सब पापी हैं।
हालांकि, कभी–कभी हम भूल जाते हैं कि हम पापी हैं। हम हकीकत जानते हैं, पर आसानी से उसे भूल जाते हैं। न जानना यह भूल जाने से अच्छा है। अगर हम जानते हैं, तो हमें किसी अधिकार को चाहने या प्रयोग करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह सिर्फ धर्मियों के लिए है। जब हम भूल जाते हैं कि हम पापी हैं, तब हम ऊंचे पद पर पहुंचकर और सत्ता चलाकर सेवा करवाना चाहते हैं।
एक जेल अधिकारी कहता है, कि जब अपराधियों को जेल में भेजा जाता है, तब वे पहली बार एक सप्ताह के लिए या एक महिने के लिए अपने आपको दोषी महसूस करते हैं। जबकि अपराध को बार–बार दोहराने वाले व्यक्ति अपने आपको अंत:करण से दोषी नहीं मानते, प्रथम बार के अपराधी अपने पाप के प्रति अफसोस महसूस करते हैं जो उन्होंने खुद को काबू में न रखने के कारण किया। हालांकि एक महिना गुजरता है, दो महिने गुजरते हैं… और एक साल गुजरता है। जैसे समय गुजरता है, वे अपने जेल जीवन के लिए खुद को अनुकूलित करते हैं और अपने अपराध की चेतना को खो देते हैं; वे एक बेहतर पद को पाने की कोशिश करते हैं और जेल में सत्ता पाने के लिए एक–दूसरे से संघर्ष करते हैं।
हमें अभी इस पृथ्वी पर रखा गया है जो आत्मिक जेल है। फिर क्या हम उन अपराधियों के समान आचरण नहीं कर रहे हैं? हम सभी ने स्वर्ग में पाप किया था और शरणनगर, पृथ्वी पर फेंक दिए गए। यीशु ने हमें सिखाया कि जब हम महसूस करेंगे कि हम पापी हैं, तब परमेश्वर का अनुग्रह और दया हम पर आएगी।
लूक 18:9–14 उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा: “दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेनेवाला। फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि मैं दूसरे मनुष्यों के समान अन्धेर करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूं...’ परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट–पीटकर कहा, ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर!’ मैं तुम से कहता हूं कि वह दूसरा नहीं, परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपने घर गया... ”
जो अपने आपको धर्मी समझते हैं, वे न तो पश्चाताप करते हैं, न खुद को नम्र बनाते हैं, और न ही दूसरों की सेवा करते हैं। लेकिन उनका क्या जो महसूस करते हैं कि वे पापी हैं? “हे परमेश्वर! मैं पापी हूं। मुझ पापी पर दया कीजिए।” पश्चाताप की इस प्रकार की प्रार्थना स्वाभाविक रूप से उनके होठों पर आती है।
पापियों का स्वभाव ऐसा होना चाहिए। परमेश्वर को पापियों पर भी दया करने के लिए धन्यवाद देते हुए, उन्हें चुंगी लेनेवाले के समान स्वर्ग की ओर आंखें भी नहीं उठानी चाहिए और छाती पीट–पीटकर पश्चाताप करना चाहिए।
हम कैसे अच्छे भोजन के लालची हो सकते हैं? और हम पापी कैसे खुद की प्रशंसा कर सकते हैं? भले ही हम अपने आपको महान बनाते हैं, फिर भी हम केवल पापी हैं। स्वर्गीय पापी के रूप में हमें सांसारिक खुशियों में नहीं पड़ना चाहिए। जब हम भूल जाते हैं कि हम पापी हैं और खुद को धर्मी समझते हैं, तब हम दूसरों पर राज्य करने की कोशिश करेंगे और उनमें से आज्ञाकारिता को निकालेंगे; हम हर चीज में दूसरों से बेहतर होने की कोशिश करेंगे। क्या हम धर्मी हैं? बिल्कुल नहीं। मसीह धर्मियों को ढूंढ़ने और उनको बचाने नहीं आए, पर उन पापियों को जो अपने पापों की पहचान करते हुए परमेश्वर से डरते हैं, ढूंढ़ने और उनको बचाने आए।
अपने आपको नम्र करो
अगर हम महसूस करते हैं कि हम गंभीर पापी हैं, तो हमें जीवन भर दूसरों की सेवा करनी चाहिए। हमारे पापों का प्रायश्चित करने का यही तरीका है। भले ही हम फटकारे गए हैं, हमें किसी भी स्थिति पर चिड़चिड़ाहट या गुस्सा होने का कोई भी अधिकार नहीं है।
हम पापी हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए। कैसे हम, पापी किसी स्थिति के बारे में, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, शिकायत कर सकते हैं? हमें किसी भी जगह से, पदवी से, कर्तव्य से या दूसरों के हाव भाव से असंतुष्ट होने का कोई भी अधिकार नहीं है। अपने जीवनकाल के दौरान, हमें परमेश्वर को उनके अनुग्रह और प्रेम के लिए सिर्फ धन्यवाद देना चाहिए। यह पापियों का पूरा कर्तव्य है। जब हमारा स्वभाव चुंगी लेनेवाले के जैसा हो जिसने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, तब परमेश्वर हम पर दया करेंगे।
लूका के 18 वें अध्याय में फरीसी के बारे में क्या? उसने खड़े होकर स्वर्ग की ओर देखा और वह घमंडी और ढीठ बनकर कहने लगा। अगर वह विश्वास करता कि वह एक पापी है, तो वह इस तरह के अभिमानी रवैये को ग्रहण नहीं करता। ऐसे सभी लोग उच्च पदवी को हासिल करने पर दूसरों को नीचा दिखाने की और सत्ता चलाने की कोशिश करते हैं। चाहे उनका पद और उनकी ताकत इस संसार में कितनी ही महान क्यों न हो, वे और कोई नहीं, सिर्फ पापी हैं।
चाहे वे पद में बडे. या छोटे हों, वे सभी पापी हैं। पापियों के पद और ताकत का क्या उपयोग है? आइए हम पद पर चिपके न रहें, लेकिन परमेश्वर को इस एक बात के लिए धन्यवाद दें, कि वह स्वयं हमें, जिन्हें पापों के कारण मरने के लिए नियुक्त किया गया था, बचाने के लिए आए; और हमेशा आनन्दित रहें, और एक दूसरे की सेवा और एक दूसरे से प्रेम करें। यह उन सभी का कर्तव्य है जिन्हें पापों से बचाया गया है।
अगर हम उद्धार की आशा करते हैं, तो हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम पापी हैं। जो कुछह्यपादरी, ऐल्डर, डीकन…हृ हमारा पद हो, हमें नहीं सोचना चाहिए कि, ‘मैं ऐल्डर हूं, और मैं एक डीकन को आदेश दे सकता हूं,’ या ‘मैं एक पादरी हूं, और मैं… को आदेश दे सकता हूं।’ हमें हमेशा सोचना चाहिए, ‘मैं कैसे ऐल्डर के रूप में अपने भाइयों की ज्यादा सेवा करूं?’ या ‘मुझे पादरी के रूप में झुण्ड के लिए क्या करना चाहिए?’ यह पापियों का, जो बचना चाहते हैं, स्वभाव होना चाहिए।
लूक 22:24–27 उनमें यह वाद–विवाद भी हुआ कि उन में से कौन बड़ा समझा जाता है? उसने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा है, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने। क्योंकि बड़ा कौन है, वह जो भोजन पर बैठा है, या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? परन्तु मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूं।
यीशु सामान्य ज्ञान के अनुसार नहीं, परंतु अपने वचनों के द्वारा हमारे मन को जागृत करते हैं। वह कहते हैं कि जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने; क्योंकि जो कोई यह महसूस करता है कि वह एक पापी है, और उसे मन में रखता है, वह प्रधान होने के लिए योग्य माना जा सकता है।
कोई भी दूसरों की सेवा नहीं कर सकता जब तक वह न जाने कि वह एक पापी है। बल्कि, वह चाहेगा कि लोग उसकी सेवा करें और चापलूसी करें, क्योंकि वह खुद को दूसरों से ज्यादा उच्च समझता है। हालांकि, परमेश्वर सिखाते हैं कि लीडर को सेवक होना चाहिए।
परमेश्वर की शिक्षाओं और उदाहरणों का पालन करें
जब हमारे पिता इस पृथ्वी पर थे, उन्होंने खुद ही सब कुछ किया, भले ही वह अपने स्वर्गदूतों को या संतान को उसे करने की आज्ञा दे सकते थे। उस समय, मैंने नहीं समझा और आश्चर्य व्यक्त किया, ‘क्यों पिता ने सब अकेले किया?’ अब मैंने समझा है कि पिता ने स्वयं हमें उदाहरण दिखाया, ताकि जैसे उन्होंने हमारे साथ किया, हम भी वैसा ही कर सकें।
जैसे पिता ने हमें सिखाया और उदाहरण दिखाया, हमें भाइयों और बहनों को क्षमा करना चाहिए, उनसे प्रेम करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। चुंगी लेनेवाले के समान, जिसने स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, पर अपनी छाती पीटी, हमें अपने दिल की गहराई से पश्चाताप करना चाहिए: ‘पिता, मैं एक पापी हूं। मैं एक पापी हूं।’ फिर हम अपने पिता से प्रशंसा पाएंगे, “तुम फरीसियों कीतुलना में कहीं अधिक धर्मी हो।”
मत 5:20 क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।
इस वचन का क्या अर्थ है? यह सूचित करता है कि जब हम महसूस करेंगे कि हम पापी हैं, तब हमारी धार्मिकता फरीसियों से बढ़कर होगी।
अभी हम सिर्फ पापी हैं। अभी तक हम स्वर्गीय राजकुमारों और राजकुमारियों के लिए योग्य नहीं हैं। अगर हम यह भूल जाएंगे, तो हम परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करने में नाकाम होंगे। भले ही हम प्रेम करने की कितनी ही कठिन कोशिश क्यों न करें, फिर भी वह बिना खुशबू के फूलों जैसा होगा, और जल्दी से हम उससे ऊब जाएंगे।
“प्रभु! मैं एक पापी मनुष्य हूं।” जब हम हर दिन अपने आपको एक पापी की जगह में रखेंगे, हम सब कुछ कर सकेंगे; भले ही वह अप्रिय और मुश्किल हो, अगर वह परमेश्वर की इच्छा और आज्ञा है, तो हम उसे खुशी से धन्यवाद देते हुए करेंगे। “मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।” जब हम पूरी तरह से इस शब्द को समझेंगे और खुद को पापी के रूप में स्वीकार करेंगे, तब हमारी आज्ञाकारिता पूरी हो जाएगी।
चाहे जो भी हमारा पद हो, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम स्वर्ग से निकाले हुए पापी हैं। अगर हम उसे भूल जाएंगे, हम वही पाप फिर से करेंगे जो हमने स्वर्ग में किया था। जब हम स्वीकार करेंगे कि हम पापी हैं, हम पश्चाताप करेंगे। अगर हम स्वीकार नहीं करेंगे, तो हम फिर से पाप करेंगे।
1थिस 5:16–18 सदा आनन्दित रहो। निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।
हमें इस वचन को मन में रखना चाहिए और दिन रात उसे याद करना चाहिए। इस वचन के अनुसार, हमें हमेशा आनन्दित रहना चाहिए, हर समय प्रार्थना करनी चाहिए, और हर बात में धन्यवाद देना चाहिए। हालांकि, अगर हम यह महसूस किए बिना कि हम पापी हैं, इसे केवल कर्तव्य समझें और ऐसा सोचते हुए इसे करने की कोशिश करें, ‘मुझे आनन्दित रहना है और धन्यवाद देना है क्योंकि यह परमेश्वर की आज्ञा है,’ तो हम एक सप्ताह से भी पहले इसे करना छोड़ देंगे।
अगर हम अपने आपको पापी मानेंगे, तो ऐसा कुछ नहीं होगा जिसके लिए हम धन्यवाद नहीं देंगे; चाहे कुछ भी हमें परेशान करे, हम सोचेंगे कि जो पाप हमने स्वर्ग में किया उससे ज्यादा गंभीर चीज और कोई नहीं है, और हम परमेश्वर को दण्डवत् करेंगे जिन्होंने हमें बचाया है, और उनके प्रेम और अनुग्रह का गीत खुशी से धन्यवाद देते हुए गाएंगे; परमेश्वर के हमें आनन्दित होने के लिए कहने से पहले, हमारे हृदय आनन्दित होंगे। यद्यपि हम कुछ हीन परिस्थितियों के कारण परेशान हैं, लेकिन हमारे इस समय के दुख हमारे पापों की क्षमा की खुशी के सामने कुछ भी नहीं हैं।
हमारे पाप सिर्फ पश्चाताप के द्वारा क्षमा किए जाते हैं। परमेश्वर ने हमें अपने सभी पापों का पूरी तरह से पश्चाताप करने का एक मौका दिया। वह दूसरी आत्मा को यह महसूस कराना है कि वह पापी है, और उसे बचाना है। कभी भी प्रचार करने के मौके को न छोड़िए जो परमेश्वर की पवित्र आज्ञा है और पापों की क्षमा पाने का मार्ग है। आइए हम अपने पूरे जीवन के दौरान जिद, खुदगर्जी जैसे अपने पापी स्वभाव से छुटकारा पाएं, और आइए हम मन में यह रखते हुए कि हम धर्मी नहीं, पर पापी हैं, बलिदान और सेवा करने के मार्ग पर चलें।
हम, पापी, कैसे स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर पवित्र परमेश्वर को अपनी आंखों से देखने की हिम्मत कर सकते हैं? जब हमारे पास ज्ञान नहीं होता और समझने में कमी होती, हम ऐसी हिम्मत कर सकते हैं। ‘प्रभु! हम पापी हैं। हम पर दया करना।’ ऐसे नम्र मन के साथ, आइए हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करें, और अपने हृदय और प्राण को सुसमाचार के कार्य पर लगाएं; जब हमारे पिता आएंगे, तब हम सुंदर गहनों के रूप में, जो माता के शुद्ध और चमकदार महीन मलमल पर लगे हैं, पवित्र और निर्दोष पाए जाएंगे।