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नए सिरे से जन्म लेना
लोग अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों और परीक्षणों का अनुभव करते हैं। अपने क्रूस को उठाते हुए, वे पीड़ा के मार्ग पर चलते हैं। यह यात्रियों का जीवन है।
हमारे बारे में क्या जिन्होंने परमेश्वर को प्राप्त किया है? परमेश्वर के पास हमारे जीवन के लिए योजना है। अगर हम इस सत्य को महसूस करेंगे, हम समझेंगे कि हमारे वर्तमान समय का दुख, हमारे उद्धार और नए सिरे से जन्म लेने की क्रिया के लिए परमेश्वर की महान योजना का एक हिस्सा है।
परमेश्वर की योजना में पीड़ा
यह वह है जो अमेरिका में हुआ था। शिकागो में एक दुकान में आग लग गई थी, और वह दुकान आग से पूरी तरह नष्ट हो गई। उसका मालिक एक ऐसा मनुष्य था जो अपनी मेहनत से सफल हुआ और अधिक कठिनाइयों से गुजरा था। इसलिए उसके पड़ोसियों और ग्राहकों ने उसके दुर्भाग्य के लिए उसे सहानुभूति दी।
एक दिन, राख में एक छोटा सा नोटिस बोर्ड खड़ा हुआ था, जिस पर यह लिखा गया था, “मैं कल फिर से शुरू करूंगा। मेरे पास निराश होने का कोई कारण नहीं है।”
नष्ट हुई दुकान के मालिक ने बोर्ड के पास रास्ते पर स्टाल लगाया और दुकान के कुछ सामान को बिक्री के लिए रखा। उसका सारा कारोबार रात भर धुएं में चला गया, लेकिन वह निराश नहीं हुआ। लोग उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रेरित हो गए। जैसे ही उसने स्टाल पर सामान प्रदर्शित किए, वे सब बिक गए। कुछ समय बाद ही उसने नई इमारत बनाने के लिए पर्याप्त पैसा बना लिया।
वह कैसे फिर से शुरू कर सका? सिर्फ एक सामान्य बात ने ही उसे प्रेरणा प्रदान की। जब वह इमारत आग से पूरी तरह नष्ट हो गई और उसके सारे परिश्रम एक ही रात में व्यर्थ हो गए, वह बहुत ही परेशान हो गया। तब वह शहर का चक्कर मारने के लिए चला गया, और उसने एक राजमिस्त्री को ईंटें लगाते हुए देखा। पहली ईंट से शुरुआत करके, राजमिस्त्री ने लाल ईंटों को एक के ऊपर एक रखा; दिन के कई घंटों के बाद वहां पर एक ऊंची ईंट की दीवार खड़ी हो गई। यह देखकर, उसे महसूस हुआ: ‘मेरे पास शुरुआत में कुछ भी नहीं था। हालांकि, मैं बड़ी दुकान बना सका, क्योंकि मैंने पूरे मन से राजमिस्त्री की तरह एक के बाद एक ईंट लगाई। अभी, मैं राजमिस्त्री के मन से एक नई शुरुआत करने की कोशिश करूंगा।’ इस अदम्य भावना ने उसे फिर से वृद्धि और उसके कारोबार में सफल होने के लिए सक्षम बनाया।
वह इमारत, जो जल गई थी, अपने मालिक के धैर्य के द्वारा पुनस्र्थापित की गई। हमारे विश्वास के जीवन में, हम कठिनाइयों को पार कर सकते हैं या नहीं, यह इस पर निर्भर होता है कि कौन हमारी आत्माओं का नेतृत्व करता है। अगर हम पर परमेश्वर नहीं, लेकिन किसी अन्य आत्माएं प्रभुता करें, तो जब भी हम कठिनाइयों का सामना करेंगे, हम निराशा में डाल दिए जाएंगे।
अगर अहंकार का हमारी आत्माओं पर प्रभुत्व है, तो हमें उसे क्रूस पर चढ़ाना चाहिए। अगर हमारी आत्माएं निराशा से शासित हो रही हैं, तो हमें उसे भी अपने दिल से बाहर निकालना चाहिए।
परमेश्वर में हमारे नए सिरे से जन्म लेने की प्रक्रिया में बहुत परीक्षण और दर्द होते हैं। क्योंकि हमारे पास आशा है, कोई प्रतिकूल परिस्थिति हमें रोक नहीं सकती। इसके विपरीत, जो लोग आसानी से निराश हो जाते हैं, भले ही उन्होंने सफलता हासिल की हो, वे निराशा में डाल दिए जाते हैं जब कोई दुर्भाग्य उन पर आता है। हम यह विश्वास करके कि परमेश्वर की हमारे जीवन के प्रति कोई निश्चित योजना है, किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति और कठिनाई को सह सकते हैं।
कठिनाइयों के बाद फल लाना
प्रकृति के माध्यम से परमेश्वर अपनी रीति दिखाते हैं। सब प्रकृति के सिद्धांतों को देखकर, हम महसूस करते हैं कि नए सिरे से जन्मने के दर्द के बिना, हम परमेश्वर के अनुग्रह में तैयार किए हुए फल को नहीं ला सकते।
कीड़ा अपने कवच से बाहर निकले बिना तितली नहीं बन सकता। एक चूजे को जीवन पाने के लिए अपने अंडे के छिलके को तोड़ना चाहिए।
यीशु ने कहा कि जब गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मरता है, वह बहुत फल लाता है।
यूह 12:24 मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।
अगर गेहूं का दाना अकेला रहता है, वह अंकुरित नहीं होता और बढ़ता नहीं। फल फलने के लिए, उसे टूटना चाहिए; बिना टूटे नए सिरे से जन्म नहीं ले सकता या नए स्वरूप को नहीं पहिन सकता।
दाने का कुछ भाग टूट जाना चाहिए, ताकि वह अंकुरित हो सके; टूटे हुए भाग से शुरू होकर दाना अंकुरित होता है। अगर वह टूटने के दर्द से डरता है और नहीं टूट जाता, वह फल नहीं ला सकता। सिर्फ जब दाना दर्द सहकर फिर से जन्म लेता है, तब वह बहुत फल ला सकता है।
इसलिए बाइबल कहती है कि जब तक हम जल और आत्मा से न जन्में, तो हम परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकते।
यूह 3:3 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नए सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।”
फिर से जन्म लेने के बिना, टूटने के बिना, कोई भी फल नहीं ला सकता और परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
हमारी वर्तमान पीड़ा दाने के अंकुरित होने और अंडे के टूटने के दर्द जैसी है। अगर हम दृढ़ विश्वास करेंगे कि अंत में परमेश्वर हमें बहुत फल लाने की अनुमति देंगे, तो हम आनन्द और धन्यवाद के साथ सहन कर सकेंगे।
मसीह गेहूं के दाने के रूप में मर गए
यीशु ने स्वयं गेहूं के दाने के रूप में फिर से जन्मने का एक उदाहरण दिखाया।
यश 53:3–10 ... निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा–कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं। हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया... तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब वह अपना प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।
मसीह पर अत्याचार किया गया, और उन्हें घायल किया गया, छेदा गया, तुच्छ जाना गया, और ठट्ठों में उड़ाया गया… “वह अपना वंश देखने पाएगा”: जब तक यह वचन पूरा न हुआ, मसीह पूरी तरह से पीड़ा में कुचले गए। हालांकि, यीशु ने यह जाना कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह बहुत फल नहीं लाता, और सारा दर्द सहा। मसीह के धीरज के द्वारा, हम उद्धार की खोज कर सके और अनन्त जीवन की आशा रख सके।
बाइबल कहती है कि मसीह का कुचला जाना परमेश्वर की इच्छा थी। फिर, यह भी परमेश्वर की इच्छा है कि हम पीड़ा सहन करें। अगर हम सहन करें और फिर से जन्म लें, तो हम बहुत फल ला सकते हैं।
स्तिफनुस ने उनके लिए प्रार्थना की जो उस पर पथराव कर रहे थे, “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।”(प्रे 7:59–60) अगर उसके पास पापी मनुष्य का मन होता, तो उसने उनसे नफरत की होती। हालांकि, उसने मसीह को अपने स्वामी के रूप में ग्रहण किया था, ताकि वह फिर से जन्म ले सके और मसीह के हृदय के साथ अपने दुश्मनों से भी प्रेम कर सके।
प्रेरित पौलुस ने मसीह को स्वामी के रूप में ग्रहण करके फिर से जन्म लिया
गल 2:20 मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूं, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है; और मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।
प्रेरित पौलुस ने यीशु मसीह को ग्रहण करने के बाद नया जीवन जिया। उसने प्रथम चर्च के संतों को पत्र लिखा: ‘यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है,’(2कुर 5:17) ‘तुम पुराने मनुष्यत्व को उतार डालो और मसीह में नये मनुष्यत्व को पहिन लो।’(इफ 4:22–24)
पौलुस ने अपना पुराना मनुष्यत्व क्रूस पर चढ़ाया और नया मनुष्यत्व पहिन लिया। उसने कहा कि मसीह उसमें रहते हैं; जो मसीह को प्रसन्न करता, वह उसकी खुशी थी, और जो मसीह की इच्छा थी, वह उसकी इच्छा थी।
यीशु इस पृथ्वी पर पापियों को बचाने के लिए आए, और जब उन्होंने पश्चाताप किया, तब यीशु प्रसन्न हुए। इसलिए पौलुस जिसने मसीह को अपने स्वामी के रूप में ग्रहण किया, उसके लिए सभी मनुष्यों को बचाना उसका उद्देश्य था। इसलिए उसने प्रचार करना शुरू किया।
फिर से जन्मे हुए को परमेश्वर बहुत फल देते हैं
पौलुस की तरह, हमें भी अपने पुराने मनुष्यत्व को क्रूस पर चढ़ाना चाहिए जो परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करता। जब सिर्फ मसीह हम में रहते हैं, तब हम उससे प्रसन्न होंगे जिसे मसीह चाहते हैं।
कभी कभी हम बिना टूटे फल लाने की कोशिश करते हैं। हालांकि, यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है। सिर्फ हमारे पापी स्वभाव के टूटने के दर्द के द्वारा ही, हम नए मनुष्यत्व को पहिन सकते हैं; जब हम परमेश्वर को अपने स्वामी के रूप में ग्रहण करके नए बनेंगे, तब जिससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं वह हमारी खुशी होगी, और परमेश्वर की महिमा हमारी महिमा होगी। तब परमेश्वर हमें बहुत फल लाने देंगे।
तोड़ों के दृष्टांत में, यीशु ने उस मनुष्य को डांटा जिसने एक तोड़ा प्राप्त किया था, और उसे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। यह इसलिए था क्योंकि उसने अपने मनुष्यत्व को बिना तोड़े अपना एक तोड़ा सिर्फ ऐसे ही रखा। लेकिन उनके साथ क्या हुआ जिन्होंने दो या पांच तोड़े प्राप्त किए थे? उन्होंने फिर से जन्मने के लिए अपने आपको तोड़ दिया, ताकि वे बहुत फल ला सकें। वह मनुष्य जिसे एक तोड़ा मिला था, उसने अंकुरित होने के दर्द के डर से उसे सिर्फ अपने पास रखा। इसी कारण यीशु ने उसे अस्वीकार किया।
अब हम कठिनाइयों और दुखों से गुजरते हुए, जीवन का फल लाने का प्रयास कर रहे हैं। दर्द हमारा अंतिम उद्देश्य नहीं है, लेकिन यह सिर्फ फल लाने की एक प्रक्रिया है। यह परमेश्वर की रीति है कि हम दर्द सहन करें, ताकि हम फिर से जन्म ले सकें और फल ला सकें।
अगर हम इसे समझेंगे, तो हम किसी भी कठिनाई को हमारे लिए परमेश्वर के बड़े उपहार के रूप में स्वीकार कर सकेंगे और परमेश्वर को धन्यवाद दे सकेंगे। भले ही हमारे फिर से जन्म लेने की प्रक्रिया में कठिनाइयां हैं, हमें सहन करना चाहिए और यह मन में रखना चाहिए कि हमारे जीवन में सब कुछ परमेश्वर की योजना के अनुसार होता है। प्रिय भाइयो और बहनो! मैं आशा करता हूं कि आप नए सिरे से जन्म लें और स्वर्ग की आशा करें, ताकि आप परमेश्वर को और अधिक महिमा दे सकें।