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दासों की मानसिकता और पुत्रों की मानसिकता
हम ऐसे सेवक हैं जिन्हें परमेश्वर ने योग्य ठहराकर सुसमाचार का कार्य सौंपा है, और हम परमेश्वर के महान मिशन में भाग ले रहे हैं। फिर, सुसमाचार के कार्य के प्रति हमारा रवैया कैसा है? यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है।
हम आत्मिक लवनेवालों के रूप में जो सुसमाचार के बीज फैलाते हैं और गेहूं इकट्ठे करते हैं, हमारे पास कौन सी मानसिकता है, दासों की मानसिकता या पुत्रों की मानसिकता? क्या हम सिर्फ आंगनों पर चलते हुए दासों की मानसिकता के साथ काम नहीं कर रहे हैं? दासों की मानसिकता और पुत्रों की मानसिकता में बड़ा अंतर है।
पुत्र की मानसिकता वाला मनुष्य परमेश्वर के साथ दुख उठाता है कि उनके साथ महिमा भी पाए
आइए हम ऐसा मानें कि एक बड़े खेत में एक दास है। यह सोचकर कि बस मजदूरी पाना ही काफी है, वह दास बीज बोने का काम और उन्हें बढ़ाने का काम ईमानदारी से नहीं करता, पर आलस्य में हर दिन बिताता है। हवा, गर्मी या बारिश का बहाना बनाकर वह थोड़ा ही काम करता है।
हालांकि, एक पुत्र ईमानदारी से बीज बोता है और उनकी देखभाल करता है ताकि वे फल पैदा कर सकें। पतझड़ के फलों की आशा करते हुए, वह झुलसा देनेवाली धूप में भी खुशी से काम करता है, क्योंकि वह खुद उन फलों का मालिक है जो तपती गर्मी में अपने पसीनों की कमाई हैं। यह सोचते हुए कि पतझड़ में सुनहरे पीले रंग के अनाज और फल उसी के होंगे, उसे झुलसाती गर्मी में भी काम करना कठिन नहीं लगता।
इस प्रकार, दासों की मानसिकता और पुत्रों की मानसिकता के बीच एक बुनियादी फर्क है। इसे ध्यान में रखते हुए, आइए हम सोचें कि सुसमाचार के प्रति हमारा रवैया कैसा होना चाहिए।
रो 8:14–18 इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं... आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं। क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।
हम परमेश्वर की संतान, यानी परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं जिन्हें मसीह के साथ दुख उठाना चाहिए कि उनके साथ महिमा भी पाएं। हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या हमारे पास सुसमाचार के सेवकों के रूप में दासों की मानसिकता है या पुत्रों की मानसिकता है।
हमारे चर्च का हर एक सदस्य जो कार्य उसे सौंपा गया है, उसे चुपचाप करता है और अपने हर प्रकार के कर्तव्य को पूरा करता है। बाइबल कहती है कि सुसमाचार का कार्य करने की प्रक्रिया में बहुत सी बातें हैं जो दुख या क्रोध का कारण बन सकती हैं। वह यह भी कहती है कि दो प्रकार के लोग हैं: वे जो पुत्रों की मानसिकता रखते हुए स्वर्ग के राज्य के लिए कष्ट सहन करते हैं, और वे जो दासों की मानसिकता रखते हुए आलस्य में हर दिन बिताते हैं और सिर्फ अपनी मासिक मजदूरी पाने के दिन का इंतजार करते हैं।
जिनके पास पुत्रों की मानसिकता है, वे परमेश्वर के वारिस, यानी मसीह के वारिस हैं। वे उस महिमा के लिए जो वे पाने वाले हैं, इस समय के अपने दुखों को खुशी से सहते हैं। परमेश्वर के पुत्र के रूप में वे सोचते हैं कि वे सिर्फ दुख के द्वारा ही कुछ पा सकते हैं। वे सभी कठिनाइयों और कष्टों को सहते हैं ताकि वे विरासत में उज्ज्वल भविष्य पा सकें।
हालांकि, जिनके पास दासों की मानसिकता है, वे दुख सहने से इनकार करते हैं। जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है, वे उसे सिर्फ निष्क्रियतापूर्वक करते हैं। वे यह सोचते हुए दुख सहना नहीं चाहते कि दुख सहने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए वे कभी भी स्वर्ग की महिमामय विरासत नहीं पा सकते।
पुत्रों की मानसिकता मसीह की मानसिकता है
आइए हम प्रेरित पौलुस के बारे में सोचें जिसने स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार के लिए दुख उठाया; अनेक अवसरों पर वह सो तक नहीं पाया, भूखा रहा और बिना कपड़ों के ठण्ड में ठिठुरता रहा, और उसने बार बार कोडे. खाए। निश्चित रूप से उसके पास पुत्र की मानसिकता थी। जैसे कि वह परमेश्वर का पुत्र था, उसने हर प्रकार की कठिनाइयों को सहा और अपनी स्वर्गीय विरासत की लालसा करते हुए, सुसमाचार के प्रचार के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया।
गल 4:6–7 और तुम जो पुत्र हो, इसलिये परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो ‘हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारता है,’ हमारे हृदयों में भेजा है। इसलिये तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।
हमें परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग के राज्य के वारिस होना चाहिए। सब कुछ जो हम स्वर्ग के राज्य के लिए करते हैं, वह हमारी ही विरासत और महिमा के लिए है जो स्वर्ग में दूसरों के लिए नहीं, पर हमारे लिए आरक्षित है।
विरासत दास की नहीं, पर पुत्र की होती है। एक किसान का पुत्र तपती गर्मी में कड़ी मेहनत करता है, खेत को सींचता है, जंगली घास को मारने की दवा छिड़कता है… वह इतनी मेहनत करता है, क्योंकि सभी फलों की फसलें उसके पिता की हैं और आखिर में उसे विरासत में दी जाएंगी।
आप अपने बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप पुत्र बनना चाहते हैं या दास? पुत्र अधिक फल पैदा करने के लिए कड़ी मेहनत करता है, जबकि दास अपना समय व्यर्थ बिताता है। सुसमाचार के सेवकों के रूप में हमने दासों की मानसिकता नहीं, पर पुत्रों की मानसिकता को प्राप्त किया है, ताकि हम स्वर्ग की अनंत आशीष पा सकें।
यीशु ने अपने आपको पुत्र के रूप में दिखाया, न कि दास के रूप में; जब वह शरीर में थे, वह पुत्रों की मानसिकता के उदाहरण थे।
इब्र 5:7–10 यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में... पुत्र होने पर भी, उसने दु:ख उठा–उठाकर आज्ञा माननी सीखी, और सिद्ध बनकर, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया...
प्रेरित पौलुस ने कहा, “पुत्र होने पर भी, उसने दु:ख उठा–उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” अगर वह दास होते, तो उन्हें दुख उठाना न पड़ता। क्योंकि दास नियमित समय पर अपनी मजदूरी प्राप्त करता है, और उसे दुख उठाने की जरूरत महसूस नहीं होती।
परंतु पुत्र मजदूरी के लिए काम नहीं करता। अच्छी फसलों की आशा करते हुए वह अपने पूरे मन और ताकत से काम करता है। पुत्र की मानसिकता के साथ यीशु ने पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा का पालन किया और हमारे लिए उद्धार का महिमामय बीज छोड़ा।
यश 53:1–5 जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ? क्योंकि वह उसके सामने अंकुर के समान, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते... परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं।
यीशु ने हमारे पापों के लिए बहुत दुख उठाया। लेकिन लोगों ने उन्हें तुच्छ जाना और ठुकरा दिया। वह इस व्यवहार के योग्य नहीं थे। अपनी प्यारी संतान के लिए वह खुद ही कंटीले मार्ग पर, आज्ञाकारिता के मार्ग पर चले, क्योंकि अपने आपको बलिदान किए बिना वह अपनी संतान को नहीं बचा सकते थे।
जिनके पास दासों की मानसिकता है, वे मसीह की तरह बिल्कुल नहीं बन सकते। दुखों के मार्ग पर चलकर यीशु ने पुत्र होने का उत्तम उदाहरण निर्धारित किया, ताकि हम उनके पथों पर चलें। केवल कठिनाइयों और कष्टों को पार करने के बाद ही, हम स्वर्ग की शानदार महिमा का अनुभव कर सकते हैं और पुत्रों और पुत्रियों के रूप में परमेश्वर के राज्य के वारिस हो सकते हैं। केवल दर्दों और दुखों को पार करने के बाद ही, हम सुधारे जा सकते हैं।
एक बुद्धिमान सेवक की तरह तैयार रहो
पिछले 10 वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि शांत वसंत और शरद ऋतु की तुलना में गर्मी और सर्दियों में सुसमाचार के फल अधिक बहुतायत से उत्पन्न होते हैं। दूसरे शब्दों में, अनुकूल परिस्थितियों की तुलना में प्रतिकूल परिस्थितियों में हमने अधिक भाइयों और बहनों को ढूंढ़ा है। यह ध्यान में रखते हुए, हम महसूस कर सकते हैं कि परमेश्वर देखते हैं कि उनके सेवकों के पास पुत्रों की मानसिकता है या दासों की मानसिकता।
इस निम्नलिखित दृष्टांत में, यीशु पुत्रों की मानसिकता का बहुत अच्छा उदाहरण देते हैं।
मत 24:44–47 इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा। अत: वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर–चाकरों पर सरदार ठहराया कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा।
ऊपर के दृष्टांत में, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” उस व्यक्ति को दर्शाता है जिसके पास पुत्र की मानसिकता है। जब उसका स्वामी आकर उसे उसके घर के सेवकों को उचित समय पर भोजन देते पाएगा, तब वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। वह स्वेच्छापूर्वक उसे सौंपा हुआ कार्य कड़ी मेहनत से करता है। क्या वह सच्चा पुत्र और वारिस नहीं है?
बहुत से वचन दर्ज करते हैं कि सिर्फ परमेश्वर की संतान, यानी उनके वारिसों को उनकी सारी विरासत प्राप्त करने की अनुमति दी जाती है। वे परमेश्वर के अनंत राज्य के वारिस होंगे। क्योंकि वे लगन से दिन रात काम करते हैं, सुसमाचार का प्रचार करते हैं और हर छोटी चीज का ध्यान रखते हैं। वे सच में परमेश्वर के पुत्र और स्वर्ग के वारिस होने के योग्य हैं।
अब, आइए हम अपने आपको जांचें कि हमारे पास पुत्रों की मानसिकता है या नहीं, ताकि उस दिन जब परमेश्वर की संतान स्वर्ग के राज्य के वारिस होंगी, हमें निकम्मे दासों की तरह बाहर के अंधेरे में न फेंका जाए, जहां रोना और दांत पीसना होगा। यदि आप पुत्र होने पर भी दासों की मानसिकता रखते हैं, तो कृपया अपनी मानसिकता को बदल दीजिए ताकि आपको दुष्ट दास होने का कलंक न लगे जैसा कि बाइबल में लिखा है।
मत 24:48–51 परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे कि मेरे स्वामी के आने में देर है, और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए–पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो, तब वह उसे भारी ताड़ना देगा और उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा।
दुष्ट दास खाने और पीने में अपना समय व्यर्थ गंवाता है। वह सही तरीके से अपने स्वामी की इच्छा को नहीं समझता और उसे करने में नाकाम होता है, और परिणाम में वह सजा का हकदार है। इसलिए परमेश्वर हमें बुद्धिमान और विश्वासयोग्य दास होने को कहते हैं और दो प्रकार के लोग दिखाते हैं – एक जो दास की मानसिकता रखता है और अनंत नरक की आग के योग्य है, और दूसरा जो पुत्र की मानसिकता रखता है और अनंत स्वर्ग की विरासत के योग्य है। विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास के दृष्टांत से हमें एक आत्मिक सबक सीखने की जरूरत है।
हम सब परमेश्वर के पुत्र हैं जो अंतिम दिनों में सुसमाचार के कार्य के लिए उनके द्वारा बुलाए गए हैं। हमें पुत्रों की मानसिकता के साथ सुसमाचार के कार्य में सहभागी होना चाहिए, ताकि हम हमारे लिए तैयार किए गए महिमा के मुकुट और सारी आशीषों को प्राप्त कर सकें।
प्यारे भाइयो और बहनो! आइए हम परमेश्वर को हमारे प्रति त्यागपूर्ण प्रेम के लिए धन्यवाद दें और पुत्रों की मानसिकता के साथ, पवित्र आत्मा और दुल्हिन के पुत्रों और पुत्रियों के रूप में सुसमाचार का कार्य पूरा करें, ताकि हमारे पिता जल्दी आ सकें।