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स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है

हम ऐसे खुशी के समाचार सुनते हैं कि सुसमाचार की मशाल पूरे संसार में जल रही है और देश भर में और पूरे विश्व भर में, हमारे स्वर्गीय परिवार के सदस्य, बहुतायत से फल पैदा कर रहे हैं। ऐसे अच्छे समाचार सिय्योन में हमारे सभी भाइयों और बहनों के सकारात्मक विचारों का परिणाम है, जो परमेश्वर के वचनों पर निर्भर रहते हैं और ऐसा सोचते हुए कि, ‘परमेश्वर में सब कुछ मुमकिन है,’ सुसमाचार के लिए मेहनत करते हैं।
प्रत्येक युग में, संसार का इतिहास उन्हीं के द्वारा रचा गया है जो सकारात्मक रूप से ऐसा सोचते हैं कि, ‘सब कुछ मुमकिन है।’ विख्यात वैज्ञानिक, थोमस एडिसन ने इस विचार के साथ कि, ‘यह मुमकिन है,’ लगातार प्रयोगों से विज्ञान में महान उपलब्धियां पाई थीं। वह अण्डों से चूजों को बाहर निकालने के लिए मुर्गी की तरह अण्डों पर बैठ गया था, और अपने हवा में उड़ने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपने एक मित्र को हाइड्रोजन सूंघा दी थी। ऐसे विचारों ने बहुत सी कोशिशों और गलतियों के द्वारा विज्ञान की तरक्की की। परिणाम स्वरूप, आज सैकड़ों टन धातुओं का एक बड़ा सा ढेर हवा में उड़ता है और पानी पर तैरता है।
इसके विपरीत, जो सोचते थे कि, ‘यह नामुमकिन है,’ उन्होंने हर बात यहां तक कि छोटी चीजों के लिए भी चिंतित होकर, मनुष्य जाति के लिए कोई भी उपलब्धि या तरक्की नहीं पाई। इतिहास इसकी गवाही देता है। इस समय, स्वर्ग के राज्य में उन लोगों का बलपूर्वक प्रवेश हो रहा है, जो सकारात्मक सोचते हैं कि, ‘मैं यह कर सकता हूं।’ आइए हम बाइबल की शिक्षाओं के द्वारा यह जानें कि हम कैसे स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश कर सकते हैं।

एक सकारात्मक विचार, “मैं कर सकता हूं”


मत 11:12 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं।

स्वर्ग के राज्य पर वे लोग अधिकार प्राप्त करते हैं जो सुसमाचार के लिए मेहनत करते हैं; वह उन्हें नहीं दिया जाता जो कुछ भी न करते हुए केवल बैठे रहते हैं। जो राज्य पर धावा नहीं करता, उसके लिए तो राज्य का एक छोटा सा हिस्सा भी नहीं है। यहूदा इस्करियोती के जैसा व्यक्ति, जो अनुकूल परिस्थितियों में परमेश्वर का साथ देता है लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में उनसे विश्वासघात करता है, वह कभी भी स्वर्ग के राज्य में नहीं जा सकता।
विश्वास के कुछ पूर्वजों के बारे में सोचिए जिन्होंने अंत तक परमेश्वर पर अपना विश्वास रखा था; धधकती हुई भट्ठी भी उनके विश्वास को नष्ट नहीं कर पाई थी। ऐसा विश्वास स्वर्ग के राज्य के लिए बहुत प्रयत्न करने की उनकी दृढ़ इच्छा से पैदा हुआ था। प्रथम चर्च में, प्रेरित पौलुस समेत बहुत से शहीद थे; किसी को जीवित जलाया गया, कोई जंगली प्राणियों का भोजन बन गया, किसी को आरे से काटा गया, और किसी को लाठी से पिटा गया। फिर भी, उन्होंने अंत तक अपना विश्वास कायम रखा और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश किया। यह इसलिए हुआ क्योंकि वे स्वर्ग के लिए बहुत प्रयत्न करके उस पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे।
इस समय में भी, स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश हो रहा है। किसके द्वारा? क्या उनके द्वारा जो सुसमाचार के लिए किसी प्रकार के जोश के बिना, अनिच्छा से चर्च जाते हैं? उनके लिए तो स्वर्ग का राज्य एक अजेय और अभेद्य किले के समान है।
याकूब के जैसे शारीरिक आशीर्वादों को खोने पर भी, जो आत्मिक आशीर्वादों को पाने की कोशिश करते हुए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हर संभव प्रयत्न करते हैं, उनके द्वारा स्वर्ग के राज्य को छीनने का प्रयत्न किया जा रहा है। संसार में बहुत से सदस्यों के द्वारा स्वर्ग को छीनने का प्रयत्न किया जा रहा है; जैसे कि कॉलेज और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, सैनिकों, दफ्तर में कार्य करने वाले आदि युवा सदस्यों के द्वारा, और वयस्क पुरुष और स्त्री सदस्यों के द्वारा। उन सभी के द्वारा जिनके पास ऐसा सकारात्मक विचार है कि, ‘परमेश्वर में सब कुछ मुमकिन है,’ स्वर्ग के राज्य को छीनने का प्रयत्न किया जा रहा है।
क्या आप अब भी हिचकिचाते हैं? यदि आप ऐसा करते हैं, तो ऐसा विश्वास धारण कीजिए कि, ‘मैं कर सकता हूं।’ यदि सब के पास स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की दृढ़ इच्छा हो, तो सभी पवित्र आत्मा का फल पैदा कर सकते हैं।
परमेश्वर ने बच्चों से लेकर बड़ों तक, सब को एक समान मौके दिए हैं। क्या किसी बच्चे के लिए प्रचार करना नामुमकिन है? नहीं। हम अक्सर बच्चों को अपने माता–पिता को सत्य में ले आते देखते हैं।

‘कोई नहीं कर सकता’ और ‘सब कर सकते हैं’


एक बार ‘Nobody’ नामक एक गीत अमेरिका में लोकप्रिय हुआ था। इस गीत ने इस युग को नकारात्मक शब्दों से चुनौती दी थी। यह एक पूरे विश्व में लोकप्रिय हुआ गीत था जिसने बहुत से लोगों का समर्थन पाया था। यह कितना अफसोसजनक है!
गीत के शब्द कुछ ऐसे थे: “इस संसार में राष्ट्रपति पद के लिए कौन लायक है?” “कोई नहीं।” “कौन है जो युद्धों को रोक सकता है?” “कोई नहीं।” “कौन इस संसार में सम्मान के लायक है?” “कोई नहीं।” इस प्रकार, इस गीत में, ‘कोई नहीं’, ‘कुछ नहीं’, या ‘नामुमकिन’ जैसे नकारात्मक शब्दों का प्रयोग किया गया था। यह देखते हुए कि यह युवा पीढ़ी में बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुआ था, हम सोच सकते हैं कि वे उन दिनों में कितने ज्यादा बेजान और निराशावादी थे।
उनके पास ऐसे नकारात्मक और निराशाजनक विचार कैसे आए थे? क्योंकि वे परमेश्वर को नहीं ढूंढ़ते थे, लेकिन सांसारिक खुशी और संतुष्टि पाना चाहते थे। इसी कारण से ऐसे नकारात्मक शब्दों वाला एक गीत इस संसार में लोकप्रिय हो जाता है। यह कितना दु:खद है! ऐसे नकारात्मक विचार वाले लोग इतिहास में कुछ भी प्रगति नहीं कर सकते।
हमारे बारे में क्या है? यदि कोई हम से पूछे कि, “राष्ट्रपति पद के लिए कौन लायक है?” तो हमें क्या उत्तर देना चाहिए? हम उत्तर देंगे, “सब लोग।” हम कहेंगे कि, “सब लोग राष्ट्रपति पद के लिए लायक हैं।” यदि कोई हम से पूछे कि, “कौन है जो युद्धों को रोक सकता है?” तब हम उत्तर देंगे, “सब लोग।” यदि कोई हम से पूछे कि, “कौन सम्मान के लायक है?” तो भी हम उत्तर देंगे, “सब लोग।” हम कहेंगे कि सब लोग राष्ट्रपति पद के लिए लायक हैं, सब लोग युद्धों को रोक सकते हैं, और सब लोग सम्मान के लायक हैं।
क्या हम सब जो सिय्योन में हैं, राज–पदधारी याजक नहीं? हम सब पादरी के कार्यों के लिए और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए योग्य हैं। हम सब कुछ कर सकते हैं; हमारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है।
जब हम ऐसे विचार के साथ कुछ कार्य करते हैं कि, ‘यह नामुमकिन है,’ तो विश्वास का स्विच काम नहीं करता। परमेश्वर ने कहा है कि सब कुछ जो विश्वास से नहीं है, वह पाप है। क्या हम पाप करते हुए, आत्माओं को बचा सकते हैं? कदापि नहीं।
याद रखिए कि इस क्षण भी स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है। हम चाहे कहीं भी हों, हमें सुसमाचार के प्रति और भी ज्यादा समर्पित होना चाहिए। आइए हम उन सभी बातों पर जो हम स्वर्ग के राज्य के लिए करते हैं, गर्व करें, फिर चाहे वह छोटी सी बात हो, चाहे हमने अगली पंक्ति में काम किया हो, चाहे बाहर होकर काम किया हो, या फिर पीछे से काम किया हो।

फिलि 4:10–13 ... क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं; उसी में सन्तोष करूं। मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं; हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना–घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूं।

प्रेरित पौलुस ने हमेशा आत्माओं को बचाने का लक्ष्य रखा था। इसी कारण से वह ऐसा सकारात्मक विचार रख सका कि, “मैं सब कुछ कर सकता हूं।” क्या ऐसा सोचना कि, ‘मैं कुछ भी नहीं कर सकता’ या ‘मेरे पास उसके समान प्रचार करने की योग्यता नहीं है,’ परमेश्वर की शिक्षा के विरुद्ध नहीं है?
यदि हम इस विश्वास के साथ करें कि, ‘जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूं,’ तो सब कुछ मुमकिन है। हालांकि, यदि हम इस विचार के साथ हिचकिचाएं या हार मान लें कि, ‘मैं नहीं कर सकता,’ तो हम इतिहास बनाने के लिए या संसार की अगुआई करने के लिए नाकाम रहेंगे। ‘मैं नहीं कर सकता,’ इस प्रकार के नकारात्मक विचार के साथ हम आगे नहीं बढ़ सकते।
यदि हम स्वयं के बदले, परमेश्वर पर निर्भर हो जाएं, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। सिय्योन में परमेश्वर हमारे साथ हैं और हमारी सहायता करते हैं। कभी–कभी हम इसे भूल जाते हैं और सोचने लगते हैं कि, ‘हम नहीं कर सकते’ या ‘इस कार्य को करने के लिए कोई योग्य नहीं है।’ यह ‘कोई नहीं कर सकता’ वाली मानसिकता है।
“कार्य करने के लिए कौन योग्य है?” “कोई नहीं।” “कौन बहुत फल उत्पन्न कर सकता है?” “कोई नहीं।” यदि चर्च के सदस्यों के पास ऐसी ‘कोई नहीं कर सकता’ वाली मानसिकता हो, तो क्या वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार स्वर्ग के राज्य की ओर बलपूर्वक अग्रसर हो सकेंगे? कभी नहीं। आइए हम पवित्र आत्मा की आग से ‘कोई नहीं कर सकता’ इस विचार को जला दें, और ‘हर कोई कर सकता है’ इस विचार को धारण करें।

इब्र 11:1–6 अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है... और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है...

डब्लू.बी.टी.सी. बाइबल में लिखा है कि, “विश्वास का अर्थ है, जिसकी हम आशा करते हैं, उसके लिए निश्चित होना। और विश्वास का अर्थ है कि हम चाहे किसी वस्तु को देख नहीं रहे हों, किन्तु उसके अस्तित्व के विषय में निश्चित होना कि वह है।”(इब्र 11:1, डब्लू.बी.टी.सी.) विश्वास के साथ सब कुछ मुमकिन है। विश्वास नामुमकिन को मुमकिन बनाता है।
क्या परमेश्वर ने कभी निर्जीव वस्तुओं को फल पैदा करने के लिए कहा है? नहीं। उन्होंने हम से, जो जीवित हैं, फल पैदा करने को कहा है, क्योंकि हम वह कर सकते हैं। यदि हम ‘कोई नहीं कर सकता’ जैसे नकारात्मक विचार से ‘हर कोई कर सकता है’ जैसे सकारात्मक विचार में बदलें, तो हम सच में फल पैदा कर सकेंगे। ऐसे सकारात्मक विश्वास के साथ, हमें परमेश्वर की महिमा को और भी ज्यादा प्रकट करना चाहिए।

स्वर्गीय कनान में प्रवेश करने के लिए विश्वास आवश्यक है


नववर्ष–दिन की सुबह को, मैंने टीवी पर एक विख्यात स्त्री की सफलता कीकहानी के बारे में एक कार्यक्रम देखा। वह कद में छोटी एक कोरियाई स्त्री थी, जो अमेरिका में उन बहुत कम लखपति स्त्रियों में से एक थी; उसने हर प्रकार की परेशानियों से गुजर कर सफलता पाई थी। उसकी सफलता का एकमात्र सिद्धांत था, “मैं कर सकती हूं।” उसने कहा कि वह उन सब लोगों को भी, जिनसे वह मिलती थी, एक शुभकामना संदेश के समान, हमेशा यह सिद्धांत सिखाती थी कि, “वह कर सकता है, वह कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं?”
इस तरह से, उस व्यक्ति के लिए जो सोचता है कि, ‘मैं कर सकता हूं,’ सब कुछ मुमकिन है; वह मरुभूमि में भी एक बड़ा सा शहर बना सकता है। लेकिन उस व्यक्ति के बारे में क्या जो सोचता है कि, ‘मैं नहीं कर सकता’? वह कभी भी मरुभूमि को उपजाऊ नहीं बना सकता; वह हमेशा उजाड़ ही रहती है।
हमें संसार के लोगों को पश्चाताप करने के लिए जगाने के लिए परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया है, ताकि वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए योग्य साबित हो सकें। यह कोई नामुमकिन बात नहीं है। जब कुछ भी नहीं था, तब परमेश्वर ने ज्योति को बनाया, आकाश और पृथ्वी को बनाया, समुद्र को बनाया, एक एक जाति के सभी जल–जन्तुओं को बनाया, और पृथ्वी के सभी वन–पशुओं को और घरेलू पशुओं को और आकाश के पक्षियों को बनाया। संसार में उनका अस्तित्व ही नहीं था; लेकिन परमेश्वर ने उन सब को बनाया। आप क्या सोचते हैं कि क्या आसान है, शून्य से कुछ बनाना या जो पहले से बनाया जा चुका है उसे ले आना? परमेश्वर ने मनुष्यों की सृष्टि की, इस बात की तुलना में, 1,44,000 को ले आना, जो पहले से सृजे गए हैं, इतना मुश्किल नहीं है।

बाइबल उन लोगों के परिणामों के बीच अंतर के बारे में साफ बताती है जो ऐसा विश्वास रखते हैं कि, ‘मैं कर सकता हूं,’ और जो ऐसा सोचते हैं कि, ‘मैं नहीं कर सकता,’ और हार मान लेते हैं। इन दोनों के विपरीत परिणामों को देखते हुए, हम समझ सकते हैं कि स्वर्ग का राज्य केवल उन्हें दिया जाता है जिनके पास ऐसा दृढ़ निश्चय हो कि वे उसमें पक्का प्रवेश करेंगे और साथ में सकारात्मक विचार भी हो।

गिन 13:30–14:30 पर कालेब ने मूसा के सामने प्रजा के लोगों को चुप कराने के विचार से कहा, “हम अभी चढ़ के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।” पर जो पुरुष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, “उन लोगों पर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।” और उन्होंने इस्राएलियों के सामने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया था यह कहकर निन्दा भी की... तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे। और सब इस्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उनसे कहने लगी, “भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! या इस जंगल ही में मर जाते!... हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चले जाएंगे; क्या हमारे लिये अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएं?”... नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब... अपने अपने वस्त्र फाड़कर, इस्राएलियों की सारी मण्डली से कहने लगे... “और न उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।”... फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा... “तुम्हारे शव इसी जंगल में पड़े रहेंगे; और तुम सब में से बीस वर्ष के या उससे अधिक आयु के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे, उनमें से यपुन्ने के पुत्र कालिब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपथ खाई है कि तुम को उसमें बसाऊंगा।”

जैसे कि आप जानते हैं, यह बारह भेदियों की कहानी है। उनमें से दस ने, “कोई नहीं कर सकता,” इन शब्दों को बार–बार दोहराते हुए, बहुत ही जल्दी हार मान ली। “कौन है जो कनान देश में प्रवेश कर सकता है?” “कोई नहीं।” “कौन है जो कनान देश में रह सकता है?” “कोई नहीं।” भेदियों के निराशाजनक शब्दों के कारण, इस्राएल की सारी मण्डली चिल्ला उठी। जब इस्राएलियों में “मैं नहीं कर सकता,” का विचार फैल गया, तो एक पराजयवाद और आशाहीनता की लहर दौड़ गई: ‘भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते!’ ऐसी हीनता की भावना कि, ‘वे सब के सब बड़े डील डोल के हैं, और हम उनके सामने टिड्डे के समान हैं,’ उनके मनों को दबाने लगी।
उन सब ने हार मान ली, और परमेश्वर ने उन्हें कनान में प्रवेश न करने दिया। परमेश्वर ने उन्हें उनके विचार और विश्वास के अनुसार ईनाम दिया।
केवल दो व्यक्ति, यहोशू और कालिब ने, चिल्लाकर कहा कि, ‘सभी कनान में प्रवेश कर सकते हैं।’ वे हमें यह सिखाते हुए कि हम किसी भी परिस्थिति में कुछ भी कर सकते हैं क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ हैं, आज विश्वास का एक उदाहरण देते हैं।

स्वर्ग का राज्य उसे दिया जाता है जो सोचता है कि, ‘मैं कर सकता हूं’


सुसमाचार का कार्य तभी उन्नत हो सकता है जब बहुत से लोग सोचें कि, ‘मैं कर सकता हूं।’ इस्राएलियों के साथ जो जंगल में हुआ था, वह आज हमारे लिए एक उदाहरण है। इतिहास को देखते हुए, यह बात साफ है कि जिनके पास ऐसा सकारात्मक विचार है कि, ‘मैं कर सकता हूं,’ वे अंत में अनन्त स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।
अब, आइए हम ‘हम नहीं कर सकते’ या ‘यह करना हमारे चर्च या समूह के लिए नामुमकिन है,’ ऐसे नकारात्मक विचारों को निकाल दें। ऐसा विचार कि, ‘मैं नहीं कर सकता,’ हमें पीछे हटने के लिए मजबूर करता है और नाश में ले जाता है। आइए हम यहोशू और कालिब के समान परमेश्वर पर निर्भर होकर, ‘मैं कर सकता हूं,’ इस विचार के साथ स्वर्ग के राज्य की ओर बलपूर्वक अग्रसर हो जाएं।
जो ऐसा सोचते हैं कि, ‘मैं कर सकता हूं,’ वे यदि उसमें 1 प्रतिशत की भी संभावना हो, तो अपने उद्देश्य को प्राप्त करते हैं। हालांकि, जो सोचते हैं कि, ‘मैं नहीं कर सकता,’ वे उसे पूरा नहीं कर सकते, फिर चाहे उसमें 99 प्रतिशत की संभावना क्यों न हो। इसलिए परमेश्वर ने कहा है कि, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहां से सरककर वहां चला जा’, तो वह चला जाएगा।”(मत 17:20)
यदि हम परमेश्वर पर निर्भर होते हुए, विश्वास करें कि हम कर सकते हैं, तो हमारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। आइए हम अब से लेकर अपने विचार को बदल दें। यदि हमारे पास यहोशू और कालिब के समान विश्वास हो, तो जैसे यरीहो गिर पड़ा था, वैसे ही बेबीलोन भी जल्दी ही गिर पड़ेगा। चाहे यरीहो अजेय लगता था, वह परमेश्वर के सामने मिट्टी के ढेर के समान गिर पड़ा; वह भूसी के समान उड़ गया और नष्ट हो गया।
चाहे अब बेबीलोन सामर्थी लगता है, लेकिन वह नष्ट होकर मिट जाएगा और हमारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने भूसे के समान भस्म हो जाएगा। बड़ी निर्भयता और दृढ़ विश्वास के साथ, आइए हम स्वर्ग के राज्य की ओर बलपूर्वकअग्रसर हो जाएं।

यश 14:24 सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है, “नि:सन्देह जैसा मैं ने ठान लिया है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी।”

परमेश्वर ने भविष्यवाणी के द्वारा कहा है कि सब कुछ पूरा हो जाएगा। हमारे लिए, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, बाइबल एक वाक्य कहती है कि, ‘जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूं।’ यीशु के शब्द याद रखिए कि, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिए हो।” हमारे स्वर्गीय पिता और माता को प्रसन्न करनेवाले अच्छे फलों से स्वर्गीय खलिहान को भर देने का दृढ़ विश्वास और इरादा धारण कीजिए।
यह संसार उन लोगों का है जो सोचते हैं कि वे कर सकते हैं। उसी तरह से, स्वर्ग का राज्य भी उन्हीं का है जिनके पास सकारात्मक विचार और विश्वास है। जो सोचते हैं कि, ‘मैं नहीं कर सकता हूं,’ वे केवल अपने बैठक कक्ष पर अधिकार रखेंगे। हालांकि, जो सोचते हैं कि, ‘मैं कर सकता हूं,’ वे पूरे ब्रह्माण्ड पर अधिकर प्राप्त करेंगे और स्वर्ग में आकाशगंगाओं पर राज्य करने वाले राज–पदधारी याजक बनेंगे।(1पत 2:9)
प्रिय भाइयो और बहनो, आइए हम ऐसे दृढ़ और सकारात्मक विश्वास के साथ कि, ‘जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूं,’ सुसमाचार का कार्य करें। ‘मैं प्रचार करने के लिए योग्य नहीं हूं,’ इस प्रकार नकारात्मकता से न सोचिए, बल्कि सकारात्मकता से सोचिए कि, ‘सब कुछ मुमकिन है क्योंकि परमेश्वर मेरे साथ हैं; यदि मैं वह करने में नाकाम रहूं, तो मुझ में कुछ कमी होगी।’ मैं आशा करता हूं कि आप सब सभी कार्यों को विश्वास के साथ करते हुए पूरा करेंगे।
इस क्षण भी स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश हो रहा है। आइए हम उस पर अपना निशान भी छोड़ें। आइए हम स्वर्ग के राज्य की ओर बलपूर्वक अग्रसर रहें, और जब हमारे पिता आएं, तो उनसे बहुत फलों के साथ मिलते हुए, खुशी के साथ उसमें प्रवेश करें।