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धर्मियों की दुनिया और पापियों की दुनिया

धर्मियों की दुनिया और पापियों की दुनिया के बीच में क्या अंतर है? धर्मियों की दुनिया में “क्षमा कीजिए” जैसा कोई शब्द नहीं है। लेकिन पापियों की दुनिया में हम अक्सर ऐसे शब्द सुनते हैं कि, ‘मुझे क्षमा कर दीजिए,’ ‘मेरी गलती है।’
आप कौन सी दुनिया में रहना पसंद करेंगे, धर्मियों की या पापियों की?
यहां, धर्मियों की दुनिया का मतलब ऐसा नहीं है कि वहां सच्चे धर्मी लोग रहते हैं; ऐसी दुनिया तो केवल स्वर्ग में मुमकिन है। इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने आपको धर्मी समझते हैं। इसलिए मैं यहां जिस धर्मियों की दुनिया की बात कर रहा हूं, वह उस दुनिया के बारे में है जहां अपने आपके धर्मी होने का दावा करने वाले रहते हैं। जहां ऐसे लोग रहते हैं वह दुनिया कैसी होगी?

धर्मियों का घर और पापियों का घर



एक परिवार था जिसके सभी सदस्य धर्मी होने का दावा करते थे। एक दिन, पिता ने एक महंगा मिट्टी का बर्तन खरीदा और उसे संभाल के रख दिया। कुछ दिनों के बाद, उसका पुत्र कमरे में खेल रहा था और उसने मेज़ पर रखे उस मिट्टी के बर्तन को छुआ, और वह टुकड़े टुकड़े हो गया। तब पास ही में खड़ी उसकी दादी उत्तेजित हो गई और गुस्से से कहने लगी, “शरारती बच्चे, क्या मैं ने तुम्हें बाहर जाकर खेलने के लिए नहीं कहा था? देखो क्या हो गया!” जब वह अपने पोते को डांट रही थी और लकड़ी से पीट रही थी, तो उसकी पुत्र–वधू यह चिल्लाहट सुनकर कमरे में दौड़ कर आई। तब उसने अपनी सास से कहा कि, “आप इतनी छोटी सीबात का बतंगड़ क्यों बना रही हैं? यदि आपने उसकी अच्छे से देखभाल की होती, तो क्या ऐसा होता?” “तुम मुझ पर क्यों चिल्ला रही हो? तुम मुझ से इस तरह से बात नहीं कर सकती।” अंत में वे एक दूसरे से झगड़ पड़ीं। जब उसका पति काम से घर वापस आया और सुना कि उसका बहुमूल्य मिट्टी का बर्तन टूट गया है और उसकी वजह से झगड़ा हुआ है, तो उसे गुस्सा आ गया और उसने चिल्लाकर कहा कि, “मैं तुम सब से तंग आ गया हूं। यहां से चले जाओ!”
‘मैं जिम्मेदार नहीं हूं। यह तुम्हारी गलती है।’ यह धर्मियों की दुनिया के लोगों के सोचने का तरीका है। इस दुनिया में लगातार झगड़ा आर शिकायत होती है, क्योंकि वे सब पापी नहीं, परन्तु धर्मी होने का दावा करते हैं।
ऐसी ही परिस्थिति में ऐसे किसी परिवार के सदस्यों के साथ क्या होगा जो खुद पापी होने का दावा करते हैं? एक दिन, पिता एक महंगा चीनी मिट्टी का बर्तन खरीदकर ले आया, और उसके पुत्र ने कमरे में खेलते समय उसे तोड़ दिया। उसी दादी दौड़ते हुए आई और कहा, “अरे! तुम ठीक तो हो ना?” और ऐसा कहते हुए अपने पोते को सांत्वना देने लगी कि, “ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैंने तुम पर ध्यान नहीं दिया था। यह मेरी गलती थी। मुझे पहले से ही तुम्हें सावधान रहने को कहना चाहिए था।” उसकी पुत्र–वधू मिट्टी के बर्तन के टूटने की आवाज सुनते ही कमरे में आई, और अपनी सास से कहा कि, “मां, मुझे क्षमा कर दीजिए। कल मैं ने उस मिट्टी के बर्तन को जरा सा तिरछा हुआ देखा था और मैं ने सोचा था कि मैं उसे बाद में ठीक कर दूंगी। लेकिन मैं उसे भूल गई... यह मेरी गलती है।” उसका पति जो पास से यह देख रहा था, बोला कि, “मैं ने इस चीज की वजह से अपने परिवार को परेशानी दी। यह मेरी गलती थी। यदि मैं ने उसे खरीदा ही नहीं होता, तो यह कुछ भी न हुआ होता। इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं।” इस तरह से, चाहे वह मिट्टी का बर्तन तो टूट गया था, लेकिन उसकी वजह से वह परिवार और भी ज्यादा एक हो गया था।
आपके बारे में कैसा है? आप कौन सी दुनिया में रहना पसंद करेंगे, धर्मियों की या फिर पापियों की?

यीशु पापियों को बुलाने के लिए आए थे



यीशु ने कहा था कि वह धर्मियों को नहीं, लेकिन पापियों को बुलाने के लिए आए थे।

मत 9:13 इसलिए तुम जाकर इसका अर्थ सीख लो: “मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूं। क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूं।”

धर्मियों की दुनिया में, लोग कहते हैं कि, “मैं जिम्मेदार नहीं हूं। यह तुम्हारी गलती की वजह से हुआ है।” पापियों की दुनिया में, लोग कहते हैं कि, “यदि मैं ने थोड़ा और ध्यान रखा होता तो ऐसा न हुआ होता। यह सब मेरी गलती है। मुझे क्षमा कर दीजिए।”
‘मैं गलत नहीं हूं। गलती तुम्हारी ही है।’ यह बात चर्च में परेशानी और सदस्यों के बीच विवाद पैदा करती है। जब हम इसे समझते हैं कि हम पापी हैं, और ऐसा सोचें कि, ‘मैं ही सब बातों के लिए जिम्मेदार हूं; यह सब मेरे ही कारण हुआ है,’ तो हमारा विश्वास परिपक्व हो जाएगा और हम परमेश्वर की इच्छा का पालन कर सकेंगे।
जब हम एक पापी का जीवन जीते हैं, तो हम परमेश्वर की इच्छा का पालन कर सकते हैं जो स्वयं पापियों को बुलाने के लिए आए थे, और बहुत सी आत्माओं को बचा सकते हैं।

मत 3:1–2 उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा: “मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।”

मत 4:17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।”


वह पापी है जिसे पश्चाताप करने की आवश्यकता है। यदि हम उत्सुकता से स्वर्ग की राह देख रहे हैं, तो हमें जानना चाहिए कि हम पापी हैं। हमें न केवल उन गंभीर पापों के लिए पश्चाताप करना चाहिए जो हम ने स्वर्ग में किए थे, लेकिन उन सब पापों के लिए भी पश्चाताप करना चाहिए जो हम ने इस पृथ्वी पर धर्मी होने का ढोंग करते हुए किए हैं। परमेश्वर ने हमें पश्चाताप करने के लिए कहा है, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है। आइए, अब हम धर्मी होने का ढोंग करके किए गए पापों पर पछताएं और अपनी गलतियों को सुधारें।

एक पापी का जीवन जीने के लिए अपने आपको दीन बनाओ



लूक 18:9–14 उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा: “दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेनेवाला। फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि मैं दूसरे मनुष्यों के समान अन्धेर करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूं। मैं सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं।’ “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट–पीटकर कहा, ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर!’ मैं तुम से कहता हूं कि वह दूसरा नहीं, परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”

हम जानते हैं कि हमें अपने आपको नीचा करना चाहिए। लेकिन कोई दीन बनने का रास्ता नहीं जानता होगा। अपने आपको दीन बनाने का सबसे पहला रास्ता है कि हम इस बात को समझें कि हम पापी हैं, और यह कहें कि, “मुझे माफ कर दीजिए,” “सब मेरी ही गलती है।” चुंगी लेनेवाले और फरीसी के दृष्टांत के द्वारा, यीशु ने अच्छे से बताया है कि हमें कैसे अपने आपको दीन बनाना चाहिए।

बहुत समय पहले एक गांव के स्कूल में कुछ ऐसा हुआ था। एक दिन स्कूल के शिक्षक ने अपनी कक्षा की दीवारों पर लगाने के लिए कुछ वॉलपेपर खरीदे, क्योंकि वह बहुत पुरानी हो चुकी थी; और उसने अपने छात्र को उसे दीवार पर लगाने के लिए कहा और वह बाहर चला गया। लेकिन उस छात्र ने पहले कभी भी वॉलपेपर नहीं देखा था, और वह उसके सीधे और उल्टे होने में फर्क नहीं कर पाया।
कुछ देर बाद, जब शिक्षक वापस आया, तो उसने वॉलपेपर को देखते ही अपनी भौंहें तान लीं, क्योंकि उस छात्र ने सभी वॉलपेपर के पूरे फैलाव पर गोंद लगा दी थी। उसी क्षण, शिक्षक ने अपना मुंह कठोर कर दिया और यह देखकर उदास हो गया। जब छात्र को मालूम हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है, तो रोने लगा। तब उस शिक्षक ने ऐसा कहते हुए उस छात्र को सांत्वना दी कि, “मत रो। यह तो मेरी गलती थी। मेरी पहली गलती थी कि मैं ने तुम्हें यह नहीं बताया कि इसे कैसे चिपकाना है। दूसरी गलती है कि मैं ने तुम्हारे साथ मिलकर यह काम नहीं किया। और मैं ने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि तुमने इससे पहले यह काम कभी किया है या नहीं, यह मेरी तीसरी गलती थी।”
शिक्षक की बात सुनकर वह छात्र बहुत प्रभावित हो गया; उससे गलती होने पर भी, यह कार्य अच्छे से कर सकने के लिए उसे कैसे करना है, यह विस्तार से न दिखाने के लिए शिक्षक ने अपने आपको जिम्मेदार ठहराते हुए, सारा दोष अपने ऊपर ले लिया। कहा जाता है कि बाद में उस छात्र ने अपने पूरे जीवन में अपने हृदय को उस शिक्षक के नम्र हृदय के समान बनाने की कोशिश की।

स्वर्गीय शब्दों का प्रयोग करें



यीशु ने कहा कि स्वर्ग का राज्य हमारे मनों में है। यदि हम धर्मियों की नहीं, लेकिन पापियों की दुनिया में रहें, और फिर से इस बात का एहसास करें कि हम पापी हैं, और योग्य रूप से पापियों के शब्दों का प्रयोग करें, तो हम सभी लोगों को आनंद दे सकते हैं और उन्हें अपने हृदयों में स्वर्ग के राज्य का एहसास भी करा सकते हैं।
चाहे हम उत्सुकता से प्रचार करते हों और नियमित रूप से चर्च में आराधना करते हों, फिर भी हमें न तो अपने आपको धर्मी के रूप में समझना चाहिए और न ही ऐसा कहते हुए अपने भाइयों और बहनों की गलतियों को ढूंढ़ना चाहिए कि, ‘तुम्हें अपने मार्ग सही करने चाहिए; ऐसा करो,’ ‘तुमने ऐसा क्यों किया?’ ये सब स्वर्ग के शब्द नहीं हैं। ‘मुझे क्षमा कर दीजिए,’ ‘यह मेरी गलती है,’ ऐसे शब्द, जिनका पापियों की दुनिया में इस्तेमाल किया जाता है, सच में स्वर्ग के शब्द हैं। हमें अक्सर ऐसे स्वर्ग के शब्दों का प्रयोग करते रहना चाहिए। जितना ज्यादा हम स्वर्गीय शब्दों को सुनते हैं, उतना ही ज्यादा हम खुशी महसूस करते हैं, और प्रोत्साहित और आश्वस्त बनते हैं और हम मन से एक बन सकते हैं।
हमारे परिवार में भी वैसा ही है। यदि हम महसूस करें कि हम पापी हैं, तो यह घर में हमारे बच्चों की तालीम पर प्रभाव डालता है। आमतौर पर सन्तान अपने माता–पिता का पालन करती हैं; वे अपने माता–पिता के प्रतिरूप होती हैं। एक खुश और सामंजस्यपूर्ण परिवार की सन्तान ‘प्रिय, मैं जा रहा हूं! आपका दिन अच्छा हो!’ जैसी मधुर आवाज की नकल करती हैं। हालांकि, वे सन्तान जिन्होंने हमेशा अपनेमाता–पिता को झगड़ते हुए ही देखा, अपने माता–पिता के झगड़े की नकल करती हैं। सन्तान जिन्होंने अपने माता–पिता से क्षमा याचना के शब्द सुने हैं, बड़े होने पर दूसरों के लिए विचारशील बनती हैं।
2,000 साल पहले जब मसीह इस पृथ्वी पर आए थे, तो उन्होंने हमें समझाया कि हम पापी हैं, ताकि हम अपने घर में या फिर चर्च में अपना रास्ता बना सकें। चूंकि परमेश्वर ने कहा है कि उन्हें धर्मियों की आवश्यकता नहीं है, इसलिए हमें धर्मी बनने का ढोंग नहीं करना चाहिए। मसीह जो अपने आपको ऊंचा मानते हैं और धर्मी होने का ढोंग करते हैं उन्हें बुलाने के लिए नहीं, वरन् पापियों को बुलाने के लिए आए थे।
आइए हम इन शब्दों को बोलने का प्रयास करें कि, ‘मुझे क्षमा कीजिए,’ ‘मैं दोषी हूं,’ ‘मैं आगे से ध्यान रखकर ऐसी गलती को फिर से नहीं करूंगा,’ और उन्हें अभ्यास में भी लाएं। जब हम ऐसी क्षमा याचना करेंगे, तो सभी के हृदयों में स्वर्ग का राज्य होगा।
यदि मैं धर्मी होने का ढोंग करूं, तो मेरे पड़ोसी नरक के समान पीड़ा भुगतेंगे। हालांकि, यदि मैं अपने आपको पापी के समान दीन बना दूं, तो वे अपने हृदयों में स्वर्ग के राज्य का एहसास करेंगे। आइए हम अपने घर में या चर्च में अपने आपको नीचा करें, ताकि हमारे परिवार और पड़ोसी भी, जो पहले हमें डांटते थे, धीरे–धीरे करके स्वर्गीय शब्दों को सीखेंगे।

अपने भले कार्यों से परमेश्वर की महिमा करो



मत 5:13–16 तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।

प्रथम चर्च के संतों ने यीशु की इस बात का पालन किया था, और उसके परिणाम स्वरूप पवित्र आत्मा हमेशा उन पर बना रहता था। इन अंतिम दिनों में भी, हम चर्च ऑफ गॉड के संतों को उनके शब्दों का अभ्यास करना चाहिए ताकि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य हमेशा हम पर बनी रहे।
चाहे हम अपना बचाव ना भी करें, तो भी हम जो सही करते हैं वह बाद में सही ठहराया जाएगा, और हम जो गलत करते हैं वह बाद में गलत ठहराया जाएगा। सभी लोग इसे समझ सकेंगे।
‘मैं क्षमा चाहता हूं। चिंतन करने के बाद, मुझे लगता है कि मैं गलत था। मैं अविचारी और अविचारशील था कि ऐसा कार्य किया। मैं ऐसी गलती को फिर से न दोहराने के लिए कोशिश करूंगा।’ यदि हम एक दूसरे को दोष देने से पहले ऐसी बातचीत करें, तो हम एह दूसरे को डांटने के बजाय एक दूसरे के प्रति विचारशील होने का एहसास करेंगे।
दूसरों की गलतियों को अपने ऊपर ले लेना, यही मसीह का मन है। ऐसे ही मन के साथ, मसीह इस पापमय संसार में आए; पापियों की जगह में आकर, उन्होंने हमारे सभी पाप अपने ऊपर ले लिए और क्रूस पर बलिदान हो गए। हमें मसीह का मन सीख लेना चाहिए और ऐसे ही हृदय के साथ जीवन जीना चाहिए।

प्रथम चर्च के संत पापी का जीवन जीते थे



प्रे 2:38–47 पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे... अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ।” अत: जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उनमें मिल गए। और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने, और रोटी तोड़ने, और प्रार्थना करने में लौलीन रहे... वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे, और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था।

लिखा गया है कि प्रथम चर्च के संत सभी लोगों के कृपापात्र थे। यदि उन्होंने केवल बाइबल के सत्य का प्रचार किया होता, तो वे अन्यजातियों से प्रशंसा न पा सके होते। जिसका वे प्रचार कर रहे थे वह सत्य था, और उससे बढ़कर उनके कार्यसभी लोगों की नजर में सही थे।
तब, क्या हर रोज एक दूसरे से मिलने पर उनके बीच में कोई संघर्ष न हुआ होगा? चाहे एक पुरुष और एक स्त्री एक दूसरे से प्रेम करते हों, जब वे शादी से बंध जाते हैं और प्रतिदिन एक दूसरे को देखते हैं, तो वे दूसरे की गलतियों को निकालने लगते हैं और अलग होकर अंत में एक दूसरे को घायल करते हैं। प्रथम चर्च के संत प्रतिदिन एक दूसरे से खुशमय और स्वच्छ हृदय के साथ मिलते थे। क्योंकि ऐसा कुछ था जो उन्हें खुशी के साथ एकता में बांधे हुए था। अवश्य ही, वहां पवित्र आत्मा की सहायता थी, लेकिन बहुत सी बातों में सबसे बड़ी बात थी कि उन सब ने ऐसा महसूस कर लिया था कि वे सब पापी हैं।
प्रथम चर्च पापियों की दुनिया का था। एक पापी के समान, सभी संत सभी दोष स्वयं पर लेते थे और अपना मार्ग सही करते हुए, एक दूसरे से क्षमा मांगते थे। ऐसा करते हुए, वे निरन्तर खुशी से भर जा सके थे। स्वयं की दुर्बलता को जानकर, उन्होंने आपसी कमियों को सही किया और एक दूसरे को सही मार्ग की ओर ले गए। इसी कारण से, वे प्रतिदिन निरन्तर खुशी और सच्चाई से भरपूर हो सके थे: सब लोगों के द्वारा उनकी प्रशंसा की गई और सुसमाचार फैलता रहा, और लोगों की संख्या जिन्होंने उद्धार पाया था, बढ़ती गई।

सिय्योन की खुशबू से पूरे संसार को बचाएं



हम स्वर्ग के लोग हैं। इसलिए हमें, ‘मैं क्षमा मांगता हूं,’ ‘यह मेरी गलती है,’ जैसे स्वर्गीय शब्दों का सही ढंग से उपयोग करना चाहिए। आइए हम परमेश्वर की ऐसी योग्य सन्तान बनें जिनकी संसार के लोगों के द्वारा भी ऐसा कहते हुए प्रशंसा की जाती है कि, “मैं नहीं जानता कि वे जिस बात का प्रचार कर रहे हैं वह सच है या झूठ, लेकिन उनके कार्य अच्छे हैं। परमेश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों के रूप में वे दूसरों को अच्छा उदाहरण दे रहे हैं।”
इसके लिए, हमें रियायत देनी चाहिए और कभी–कभी कुछ खोना भी चाहिए। कुछ खोकर, हम दूसरों को हासिल करा सकते हैं और उन्हें खुशी दे सकते हैं। यही मसीह की इच्छा है। फिर एक बार इसके बारे में सोचते हुए कि क्यों मसीह ने ऐसा कहा कि वह धर्मियों को नहीं, लेकिन पापियों को बुलाने के लिए आए हैं, आइए हम पापी के समान जीवन जीएं।
अब, स्वर्ग का राज्य निकट है। मसीह हम से कहते हैं कि जैसे जैसे तुम उस दिन को निकट आते हुए देखते हो, ‘मन फिराओ।’ अपनी गलतियों को जानना और उन्हें ठीक करना, यही उस पापी का रवैया है जो मन फिराता है।
प्रचार करने का अर्थ केवल सत्य के वचनों की घोषणा करना ही नहीं है, लेकिन मसीह की शिक्षाओं का पालन करना भी है। यदि चर्च के सभी सदस्य एक मसीही के योग्य जीवन जीएं, तो उस सुंदर घोंसले को छोड़कर कौन जाएगा? जब हम एक धर्मी का नहीं, लेकिन एक पापी का जीवन जीते हैं, तो वह पूरे संसार की मसीह की ओर अगुआई करने के लिए एक मीठी सुगंध बनता है।
अब से लेकर, आइए हम स्वर्गीय शब्दों के आदी हो जाएं।
“मैं क्षमा चाहता हूं।” “यह मेरी गलती है।”
जितना ज्यादा हम इन शब्दों का प्रयोग करेंगे, उतना ही ज्यादा हम स्वर्ग के खोए हुए लोगों को ढूंढ़ सकेंगे और स्वर्ग का राज्य भी उतना ही शीघ्रता से आएगा।