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मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊंगा

पिकासो एक पूरी दुनिया में मशहूर अयथार्थवादी कलाकार है। उसकी कृतियों में से एक, “बैल का सिर” है। यह एक उत्कृष्ट कृति थी जिससे वह संतुष्ट हुआ था और उसकी बहुत अधिक प्रशंसा की गई थी। उससे उसे पूरे संसार में ख्याति और प्रशंसा मिली। इस कलाकृति के द्वारा हम उसकी सर्जनात्मकता और कलात्मकता को देख सकते हैं। उसका बहुत ज्यादा मूल्यांकन किया जाता है।
लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, उसे बनाने की मुख्य सामग्री किसी कूड़ा फेंकने की जगह में फेंकी गई एक साइकिल के पुर्जे हैं। पिकासो ने ऐसी फेंक दी गई चीज के द्वारा जिस पर लोग ध्यान भी नहीं लगाते, एक विश्व प्रसिद्ध उत्कृष्ट कलाकृति बनाई। उसी तरह से, सृजनहार परमेश्वर ने, मक्खी और कीडे. जैसे हम व्यर्थ लोगों को चुना है, और वह हमें एक उत्कृष्ट कलाकृति, अनुपम संपूर्ण लोगों में बदल रहे हैं।

यीशु ने साधारण लोगों को चुना और उन्हें मनुष्यों के मछुए बनाया



पतरस एक गरम मिजाजी मछुआ था जो समुद्री क्षेत्र में अपना कार्य करता था। हालांकि, अब वह प्रेरितों का प्रेरित बन गया है, जो सभी मसीहियों को एक अच्छी प्रेरिताई का उदाहरण देता है। तब, कैसे पतरस, जिसने पढ़ाई नहीं की थी, बहुत सी आत्माओं की परमेश्वर की ओर अगुआई करने वाले मनुष्यों के मछुओं का प्रतिनिधि बन गया? क्योंकि यीशु ने उसे चुना था और तीन साल तक व्यक्तिगत रूप से उसे सिखाया था।

मत 4:17–22 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” गलील की झील के किनारे फिरते हुए उसने दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।”...

यीशु ने अपने चेलों को बुलाने के द्वारा अपना कार्य शुरू किया था। उन्होंने अपने चेलों को ऐसा कहते हुए, “मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊंगा,” अपनी इच्छा उन्हें बताई। चेलों ने अपना जाल, अपनी नाव और अपने परिवारों को छोड़ दिया और यीशु का पालन किया। उस समय से, वे मनुष्यों के मछुओं के रूप में जीने लगे। जैसा यीशु ने कहा था, “मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊंगा,” यीशु ने उनके उग्र स्वभाव को अपने तीन साल के कार्य के दौरान थोड़ा थोड़ा करके नम्र बनाया।
बाइबल की बहुत सी आयतों में से, यह आयत कि, “मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊंगा,” अच्छी तरह से हमें यीशु के अपने चेलों को बुलाने के उद्देश्य को दिखाती है। यह आयत यीशु की अटल इच्छा दिखाती है कि वह अपने चेलों को सुसमाचार के कार्य के सहायक और महान प्रचारक बनाना चाहते हैं।

यीशु ने अपने अनपढ़ चेलों को आत्माओं को बचाने के लिए ‘सुसमाचार के प्रचारक’ बनाया। यदि हम यीशु की तालीम की पद्धति को देखें, तो हम भी बहुत सी आत्माओं को परमेश्वर की ओर ले आ सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो यीशु ने मनुष्यों के मछुए बनाने का एक बुनियादी सिद्धांत विकसित किया था, और अच्छे प्रचारक बनने के लिए हमें निरंतर इसका निरीक्षण करना चाहिए। यीशु की तालीम की पद्धति एक आदर्श है जो सभी प्रचारकों की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
इस तरह से, वह पद्धति जिसका प्रयोग यीशु ने अपने चेलों को ‘मनुष्यों के मछुए’ बनाने के लिए किया था, हम, मनुष्यों के मछुओं के लिए एक अच्छा उदाहरण बनती है। एक कहावत है कि ‘एक बार देखना सौ बार सुनने से बेहतर है,’ या ‘कार्य शब्दों से ज्यादा बढ़कर बोलते हैं।’ यीशु ने अपने चेलों को बहुत सी बातें सिखाई थीं और स्वयं भी उनका पालन करते थे, ताकि जैसा यीशु ने उनसे किया, वे भी वैसा ही कर सकें और मनुष्यों के मछुए बन सकें।
2,000 साल पहले, जब यीशु इस पृथ्वी पर आए और राज्य के सुसमाचार कीघोषणा की, तो उन्होंने सबसे पहले अपने चेलों को बुलाया और उन्हें मनुष्यों के मछुए बनाया। अब, आइए हम देखें कि उन्होंने उन्हें अच्छा सेवक बनाने के लिए कैसे शिक्षित किया था।

1. प्रार्थना



सबसे पहले, यीशु ने इसका उदाहरण दिया कि उन्हें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। जब यीशु ने सुसमाचार का प्रचार करना शुरू किया, सबसे पहले उन्होंने प्रार्थना की।

मत 4:1–2 तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो। वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी।

चालीस दिनों तक उपवास करने के बाद, यीशु ने शैतान का विरोध किया और अपना सुसमाचार का कार्य शुरू किया। अपने दैनिक जीवन को भी, यीशु प्रार्थना करके ही शुरू करते थे। ऐसा उदाहरण छोड़ते हुए, यीशु ने दिखाया कि मनुष्यों के मछुओं को सब कामों से पहले प्रार्थना करनी चाहिए।

मर 1:35–39 भोर को दिन निकलने से बहुत पहले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहां प्रार्थना करने लगा... उसने उन से कहा, “आओ; हम और कहीं आसपास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार करूं, क्योंकि मैं इसी लिये निकला हूं।” अत: वह सारे गलील में उनके आराधनालयों में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा।

यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि परमेश्वर की सामर्थ्य प्रार्थना करने से आती है।

मर 9:28–29 जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उस से पूछा, “हम उसे क्यों न निकाल सके?” उसने उनसे कहा, “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से नहीं निकल सकती।”

ऊपर का वचन दिखाता है कि चाहे हमें सामर्थ्य दी गई हो, लेकिन यदि हम प्रार्थना न करें, तो हम सामर्थ्य को प्रकट नहीं कर सकते। यदि एक गुब्बारे में हवा न भरी जाए, तो वह फूल नहीं सकता; वह केवल रबर का एक टुकड़ा रहता है। उसी तरह से, यदि हम प्रार्थना न करें, तो हम कुछ भी नहीं कर सकते; हम फल पैदा नहीं कर सकते। यीशु ने हमें सिखाया कि प्रार्थना में सब कुछ संभव करने की सामर्थ्य है।

मत 7:7–11 “मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा...”

“मांगो, ढूंढ़ो और खटखटाओ।” इन सब का मतलब है कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए। परमेश्वर ने प्रार्थना के द्वारा सब कुछ मांगने, ढूंढ़ने और पाने का आशीर्वाद दिया है। इस तरह से, प्रार्थना ही उन सब बातों का मूल है जिन्हें हम करते हैं। हम, मनुष्यों के मछुओं को सबसे पहले प्रार्थना करनी चाहिए।

2. विश्वास



अपने चेलों को मनुष्यों के मछुए बनने की तालीम देते हुए, यीशु ने विश्वास का महत्व पर जोर दिया। नई वाचा का सुसमाचार ज्यादातर उन शब्दों से भरा है जो विश्वास के बारे में बात करता है।
पुनरुत्थान के बाद, जब यीशु ने अपने आपको थोमा पर प्रकट किया, तो वह सन्देह कर रहा था और उसने कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूं, और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं, और उसके पंजर में अपना हाथ न डालूं, तब तक मैं विश्वास नहीं करूंगा।” तब यीशु ने उसको अपने हाथ दिखाए और उसे अपने पंजर में हाथ डालने दिया। उसके बाद, थोमा ने कहा कि वह विश्वास करता है, और यीशु ने तब उससे कहा, “तू ने तो मुझे देखा है, क्या इसलिए विश्वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।” (यूह 20:29) ऐसा कहते हुए, यीशु ने अपने चेलों को समझाया कि अदृश्य बातों पर विश्वास करना एक महान विश्वास है। इस तरह से, जब तक यीशु स्वर्ग में न चले गए, तब तक उन्होंने उन्हें लगातार विश्वास के महत्व को सिखाया।

मर 9:22–24 “उसने इसे नष्ट करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है? यह क्या बात है! विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” बालक के पिता ने तुरन्त गिड़गिड़ाकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं, मेरे अविश्वास का उपाय कर।”

कोई भी यीशु को ऐसा कहने की हिम्मत नहीं कर सकता, “यदि आप कर सकते हैं तो।” क्योंकि जिन सृजनहार ने पूरे ब्रह्माण्ड को सिर्फ अपने शब्दों से बनाया है, उनके लिए सब कुछ मुमकिन है। यदि हम संपूर्ण रूप से परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर रहें, तो क्या हमारे लिए सब कुछ मुमकिन नहीं? जब हम दृढ़ता से विश्वास करें कि परमेश्वर हर एक बात को संभव करते हैं, तो हम मनुष्यों के मछुए बन सकते हैं।
जब हम बहुमूल्य आत्माओं के पास सुसमाचार लेकर जाते हैं, तो कभी–कभी हम उनके प्रति एक निजी सोच बनाते हैं और पहले से उनका न्याय करते हैं, और अंत में परमेश्वर की ओर उनकी अगुआई करने में असफल रहते हैं।
जब हम सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तो हमें पहले न्याय नहीं करना चाहिए, “यह व्यक्ति स्वीकार करेगा,” या “यह व्यक्ति नहीं करेगा।” जब हम इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करते हुए कि परमेश्वर इसे संभव करेंगे, हर एक बात के लिए सकारात्मक हों, और आत्माओं को बचाने का प्रयत्न करें, तो हम अच्छा फल पैदा करेंगे।
एक कहावत है कि जब बहुत से गेहूं इकट्ठे होते हैं तो बहुत से भूसे भी इकट्ठे होते हैं। यदि हम पहले से न्याय करें कि, “यह व्यक्ति भूसा है,” और अपनी पूर्व धारणा से सिर्फ गेहूं ही इकट्ठा करने की कोशिश करें, तो हम भूसे में से गेहूं को अलग करने में बहुत सा समय गंवाएंगे। परमेश्वर ने कहा है, “विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ मुमकिन है।” जब हम विश्वास करें कि परमेश्वर सब बातों को मुमकिन बनाएंगे, तो हम मनुष्यों के मछुओं के तौर पर, गेहूं(अच्छा फल) उत्पन्न कर सकते हैं।
उन दो अंधों के द्वारा जिन्होंने अपने विश्वास से अपनी दृष्टि वापस पाई थी, यीशु ने हमें समझाया कि विश्वास कितना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

मत 9:27–30 जब यीशु वहां से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर!” जब वह घर में पहुंचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूं?” उन्होंने उससे कहा, “हां, प्रभु!” तब उसने उनकी आंखें छूकर कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” और उनकी आंखें खुल गईं।

दो अंधों की आंखों की रोशनी लौटाने से पहले, यीशु ने जांचा कि वे दोनों विश्वास के साथ उनका पालन कर रहे हैं या नहीं। यीशु ने देखा कि वे सिर्फ सुनी सुनाई बातों की वजह से उनका पालन नहीं करते थे कि वह प्रत्येक रोग को चंगा करते हैं। यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे साथ हो जाए।” तब उनकी आंखें खुल गईं।
यदि उन्होंने इस बात पर विश्वास न किया होता कि यीशु उनकी आंखों की रोशनी को लौटा सकते हैं, तो उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी वापस न पाई होती। चूंकि उन्होंने ऐसा विश्वास किया था कि वह उनको चंगा कर सकते हैं, उनकी आंखें खुल गईं। यीशु सीधे ही उनकी आंखों की रोशनी लौटा दे सकते थे। लेकिन, ऐसा कहते हुए, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे साथ हो,” उनका विश्वास मांगा। इसके द्वारा यीशु अपने चेलों को सिखाना चाहते थे कि विश्वास करने वालों के लिए सब कुछ मुमकिन है।
पतरस, जिसने विश्वास के महत्व को समझ लिया था, एक महान मनुष्य के मछुए के समान, एक ही दिन में तीन हजार आत्माओं को जीत सका। यह उसके विश्वास का परिणाम था; तीन साल तक यीशु का पालन करने के दौरान, उन सभी उदाहरणों से जो यीशु ने स्वयं दिखाए थे, वह प्रबुद्ध हो गया था। सुबह को भोर होते ही, यीशु एक निर्जन जगह में गए और उत्सुकता से प्रार्थना की। इससे उसने सीखा कि उसे कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। उसने सीखा कि प्रत्येक परिस्थिति में उसके पास एक दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि परमेश्वर के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं।

3. प्रचार



मसीह को समझने के लिए प्रचार करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है; जब तक हम प्रचार नहीं करते तब तक हम मसीह के जीवन को नहीं समझ सकते। यीशु ने स्वयं अपने चेलों को प्रार्थना करने का उदाहरण दिखाया था और उन्हें विश्वास का महत्व सिखाया था। बाद में उन्होंने जो सिखाया था, चेलों को उसका अभ्यास करने दिया।

मत 9:35–38 यीशु सब नगरों और गांवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। जब उसने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। तब उसने अपने चेलों से कहा, “पके खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।”

हर शहर और गांव में जाकर यीशु ने राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया; और उन्होंने सभी प्रकार की बीमारियों और रोगों को चंगा किया। यीशु को यह सब कुछ करते देखकर, चेलों ने प्रचार करना सीखा, और वे महान मनुष्य के मछुए बनने के लिए योग्य और लायक बन गए।

मत 10:1–15 फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें... इन बारहों को यीशु ने यह आज्ञा देकर भेजा: “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। और चलते–चलते प्रचार करो: ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’ बीमारों को चंगा करो, मरे हुओं को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्टात्माओं को निकालो। तुम ने सेंतमेंत पाया है, सेंतमेंत दो।

चेलों ने यीशु को प्रार्थना करते हुए, विश्वास करने वालों को अधिकार देते हुए, सुसमाचार का प्रचार करते हुए, और एक आत्मा को बचाने के लिए दु:ख उठाते हुए ध्यान से देखा था। उन के सभी व्यवहारों को ध्यान से देखने से, वे प्रबुद्ध हो गए और सुसमाचार का प्रचार करते हुए, जो कुछ सीखा था उसका अभ्यास करने लगे। यीशु का पालन करते हुए, वे मनुष्यों के मछुए, सुसमाचार के प्रचारक बन गए, जिन से परमेश्वर बहुत प्रसन्न होते थे।

4. स्वर्ग की आशा



मनुष्यों के मछुओं के लिए स्वर्ग की दृढ़ आशा रखना अत्यावश्यक है। इस आशा के बिना हम बहुत जल्दी थक जाएंगे। यीशु को चिन्ता थी कि जब सुसमाचार का प्रचार करते समय उनके चेलों को सताया जाएगा, ठट्ठों में उड़ाया जाएगा और उनका उपहास किया जाएगा, तो वे निराश हो जाएंगे। इसलिए, यीशु ने उन्हें स्वर्ग की आशा दी, ताकि वे मजबूत विश्वास धारण कर सकें और सभी परेशानियों को सह सकें।

मत 19:27–28 इस पर पतरस ने उससे कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिये हैं: तो हमें क्या मिलेगा?” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूं कि नई सृष्टि में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिये हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।

यीशु ने अपने चेलों को जिन्होंने उनका पालन करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया था और अपना जीवन सुसमाचार के कार्य में लगाया था, इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करने का अधिकार दिया था। प्रेरित पतरस ने उस अधिकार को “राज–पदधारी याजक” कहा है।(1पत 2:9) यीशु ने उन्हें स्वर्ग में इतनी बड़ी महिमा देने की प्रतिज्ञा की, ताकि वे थक न जाएं और बिना रुके सुसमाचार के लिए कार्य करते रहें।
इस तरह से, मनुष्यों के मछुओं के लिए स्वर्ग की आशा रखना एक आवश्यक चीज है। जब हमारे पास आशा है, तो हम सब बातों को सकारात्मक ढंग से देख सकते हैं और आत्मा और शरीर में उत्साह से भर जा सकते हैं। हम खुशी के साथ सब कुछ कर सकते हैं। जैसे एक सीप अपने अंदर रेत के कण को रखते हुए, एक मोती पाने के महिमामय दिन का इंतजार करता है और दर्द को सहन करता है, वैसे ही हम भी उस महिमामय दिन के लिए जब हम स्वर्गीय महिमा में प्रवेश करेंगे, दर्द को सहन करते हैं। स्वर्ग की आशा हमें उन दु:खों पर विजय पाने के लिए सहायता करती है जो हम इस पृथ्वी पर थोड़ी देर के लिए सहते हैं।

5. व्यक्तित्व



मनुष्यों के मछुए बनने के लिए सबसे आखिर में हमें जो करना चाहिए वह है, एक अच्छा व्यक्तित्व धारण करना। यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि जब तक वे नेक नहीं बनते, तब तक वे मनुष्य के मछुए नहीं बन सकते।

मत 12:34–37 “हे सांप के बच्चो, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है। भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है। और मैं तुम से कहता हूं कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष, और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”

यीशु को प्रसन्न करने वाले मनुष्यों के मछुए बनने के लिए, हमें नेक होना चाहिए। हमारे हृदय में भरी अच्छाई से अच्छे शब्द और कार्य उत्पन्न होते हैं। यदि हमारे हृदय में बुराई है, तो हम अच्छे शब्द और कार्य उत्पन्न नहीं कर सकते। जब हमारे हृदयों में से अच्छे शब्द और कार्य उत्पन्न होते हैं, तो हम मनुष्यों के मछुए बन सकते हैं।
यदि हम बहुत ही जल्दी गुस्सा करें और अभद्र शब्द बोलें और अविवेकपूर्ण ढंग से पेश आएं, तो हम मनुष्यों के मछुए बनने के लिए योग्य नहीं हैं। सब के लिए, चाहे वे सत्य में हैं या नहीं, अच्छा व्यक्तित्व रखना आवश्यक है। यीशु ने सिखाया कि मनुष्यों के मछुए बनने के लिए हमें हमेशा नम्र बनना चाहिए।

मत 20:26–27 परन्तु तुम में ऐसा नहीं होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने; और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।

चाहे हमें स्वर्ग में राज–पदधारी याजक बनने की प्रतिज्ञा दी गई है, सबसे पहले हमें मनुष्यों के मछुए बनना चाहिए। मनुष्यों के मछुए बनने के लिए हमें दास बनना चाहिए। यीशु ने हमेशा अपने चेलों के लिए नम्र बनने का और दूसरों की सेवा करने का उदाहरण दिया था, ताकि वे मनुष्यों के मछुए बन सकें।
यदि हम यीशु के उदाहरण का पालन करें, तो हम मनुष्यों के मछुए बनेंगे जो बहुत सी आत्माओं को परमेश्वर की ओर ले आते हैं।

आइए हम मनुष्यों के मछुए बनें



पहले, यीशु के चेले साधारण मछुए थे, और उन्हें पानी में मछली पकड़ने के अलावा और कुछ भी नहीं आता था।
उन्हें मनुष्यों के मछुए बनाने के लिए यीशु ने उन्हें सिखाया और उनके आगे बहुत से उदाहरण रखें। उन्होंने उन्हें अपने चेलों के रूप में चुना, और स्वयं उनके लिए प्रार्थना करने का उदाहरण छोड़ा, उन्हें विश्वास का महत्व सिखाया, स्वयं सुसमाचार का प्रचार किया, उन्हें बहुत सी जगहों में भेजा ताकि वे स्वयं प्रचार करने का अवसर पा सकें, उन्हें स्वर्ग की आशा दी ताकि वे थक न जाएं, और उन्हें एक अच्छा व्यक्तित्व धारण करने को कहा ताकि वे परमेश्वर को महिमा दे सकें। इस तरह से, परमेश्वर ने उन्हें सब कुछ सिखाया था ताकि वे मनुष्यों के मछुओं के रूप में योग्यता प्राप्त कर सकें।
जब हम हर एक बात को जो यीशु ने हमें सिखाई है, समझें, और उनका अभ्यास करें, तो हम योग्य प्रचारक बन सकते हैं। यदि हम हमेशा प्रार्थना करें, मजबूत विश्वास धारण करें, उत्सुकता से सुसमाचार का प्रचार करें, स्वर्ग की उत्कट आशा रखें, और नेक और नम्र बनें, तो हम मनुष्यों के मछुए होने के लिए योग्य ठहरेंगे।

हम परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। अब, हमें, यीशु के चेलों के समान, उनकी सभी शिक्षाओं को समझना चाहिए और उन्हें अभ्यास में लाना चाहिए। तब हम बहुत सी आत्माओं को परमेश्वर के पास ले आ सकेंगे। जैसे पिकासो ने कूड़ों मेंसे उत्कृष्ट कलाकृति बनाई थी, ठीक वैसे ही परमेश्वर ने हम अयोग्य लोगों को, जिन्हें अपने पापों के कारण फेंक दिया गया था, चुना है, और हमें मनुष्यों के मछुए बनाया है और हमें राज–पदधारी याजक बनने का अधिकार दिया है। हमें सृजनहार परमेश्वर, आत्मा और दुल्हिन को धन्यवाद देना चाहिए।
यदि हम परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर रहते हुए, आत्माओं को बचाने का प्रयत्न करें, तो यह सुसमाचार बहुत ही शीघ्रता से पृथ्वी की छोर तक घोषित किया जाएगा, और 1,44,000, सभी बिखरे भाई और बहनें, इकट्ठे हो जाएंगे और परमेश्वर की बांहों में दौड़कर आएंगे: ऐसा महिमामय दिन बहुत ही जल्दी आएगा। हमेशा परमेश्वर पर भरोसा करते हुए, आइए हम उत्सुकता से प्रार्थना करें और संपूर्ण विश्वास के साथ पूरे यत्न से सुसमाचार का प्रचार करें। तब हम बहुत सी आत्माओं को जीवन की ओर ले आने वाले, मनुष्यों के मछुए बन सकेंगे। सिय्योन के सभी भाइयों और बहनों को परमेश्वर की ओर से कृपा और शान्ति प्राप्त हो!