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आइए हम सुयोग्य विश्वासी बनें
परमेश्वर इस पृथ्वी पर आए ताकि वह मनुष्यजाति को, जिसके लिए पापों के कारण मरना नियुक्त किया गया था, अनन्त स्वर्ग के राज्य की ओर ले जा सकें, और परमेश्वर ने इस बात की ओर हमारा मार्गदर्शन किया कि हम स्वर्ग की ओर देखते हुए इस पृथ्वी पर सबसे सुयोग्य जीवन जीएं। इसलिए बाइबल कहती है कि चांदी के लिए कुठाली, और सोने के लिए भट्ठी होती है, परन्तु मनों को परमेश्वर जांचते हैं।(नीत 17:3)
परमेश्वर हमारे मनों को इसलिए जांचते हैं, क्योंकि वह अपनी संतानों को जांचने–परखने की प्रक्रिया के द्वारा उन्हें शुद्ध सोने से अधिक बहुमूल्य और चमकदार बनाना चाहते हैं। आइए हम बाइबल के द्वारा देखें कि परमेश्वर इस पृथ्वी पर सबसे सुयोग्य जीवों के रूप में कैसे हमारी रचना करते हैं, और यह सोचें कि हमें किधर जाना चाहिए और क्या करना चाहिए।
एक सुयोग्य जीवन
रिप्ले की किताब “बिलीव इट आर नाट” में ऐसा लिखा गया है:
5 डालर के लोहे के टुकड़े से 50 डालर का घोड़े का खुर बनाया जा सकता है। अगर उसका शोधन करके सुइयां बनाई जाएं, तो वह 5,000 डालर का मूल्य पैदा कर सकता है। जब लोहे के टुकड़े को घोड़े के खुर में बनाया जाता है, वह सिर्फ 50 डालर के मूल्य को पैदा करता है, लेकिन अगर वह पतली सुइयों में बनाया जाता है, तो वह घोड़े के खुर के मूल्य से 100 गुना अधिक मूल्य पैदा कर सकता है।
हालांकि, अगर वह एक घड़ी में बनाया जाता है, तो वह 50,000 डालर का मूल्य पैदा कर सकता है। जब 5 डालर के लोहे के टुकड़े को दूसरे रूप में बदला जाता है और इस्तेमाल किया जाता है, तब वह अपने मूल की तुलना में 10,000 गुना अधिक मूल्य पैदा कर सकता है।
भले ही वह एक ही लोहे का टुकड़ा है, लेकिन उसका कैसे इस्तेमाल किया जाता है, उसके अनुसार वह विभिन्न मूल्य पैदा करता है। परमेश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों के साथ भी वैसा ही है। हम पापी हैं, जिनके लिए पापों के कारण सदा तक मर जाना नियुक्त किया गया। हम जो ऐसे मूल्यहीन जीव हैं, परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा बुलाए गए हैं। परमेश्वर के दिए गए तोड़ों का हम जैसे इस्तेमाल करते हैं, उसके हिसाब से हम अपने विश्वास के अनुरूप विभिन्न आत्मिक मूल्यों को पैदा कर सकते हैं।
हम सब परमेश्वर की संतान हैं जो परमेश्वर के द्वारा बुलाई गई हैं, लेकिन हम में से कुछ 50 डालर की भूमिका अदा करते हैं, कुछ 5,000 डालर की और कुछ 50,000 डालर की भूमिका अदा करते हैं। इस पृथ्वी के जीवन के बाद जब आप परमेश्वर के सामने खड़े होंगे, तब आप कितना मूल्य रखनेवाली स्वर्गीय संतान होना चाहते हैं? हर कोई सबसे मूल्यवान जीव बनना चाहता है। फिर, हमें किस प्रकार का विश्वास का जीवन जीना चाहिए, ताकि हम सबसे बड़ा मूल्य पैदा कर सकें? हमें हमेशा इसके बारे में सोचना चाहिए और सबसे अधिक मूल्य प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।
यीशु के चेले जिन्हें मूल्यवान कार्य करने के लिए बुलाया गया था
जब यीशु मानवजाति को बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए और सुसमाचार का प्रचार करने की शुरुआत की, वह पहले गलील की झील के किनारे गए। उस समय पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना, जो मछवे थे, हमेशा की तरह अपने जालों को सुधार रहे थे। तब यीशु ने उन्हें बुलाया और उन्हें “मनुष्यों के मछवे” बनाया।
मत 4:17–22 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” गलील की झील के किनारे फिरते हुए उसने दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। वहां से आगे बढ़कर, यीशु ने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को देखा। वे अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधार रहे थे। उसने उन्हें भी बुलाया। वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
परमेश्वर अपनी संतानों को सबसे मूल्यवान जीव बनाना चाहते हैं। हम आत्मिक पापी थे, जिनके लिए मर जाना पहले से नियुक्त किया गया था। लेकिन आज परमेश्वर ने हमें बुलाकर फिर से जन्म लेकर नया और सुयोग्य जीवन जीने की अनुमति दी है।
माता–पिता अपने बच्चों के लिए कोई भी दर्द सहने को और बलिदान करने को तत्पर रहते हैं; वे अपने बच्चों को वह चीज करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे उन्हें खुशी और सफलता मिलती है, और उसे अच्छे से करने के लिए उनकी मदद और मार्गदर्शन करते हैं और स्वयं उदाहरण भी दिखाते हैं। ठीक इसी प्रकार हमारे आत्मिक पिता और माता भी करते हैं। उन्होंने कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” यीशु ने अपने चेलों को सिर्फ कष्ट या तकलीफ देने के मकसद से नहीं बुलाया, पर उन्हें इसलिए बुलाया कि वे इस दुनिया में सबसे अनुग्रहपूर्ण और सुन्दर मूल्य को पैदा करने का विशेष अनुभव कर सकें।
अगर प्रेरित सिर्फ अपनी जीविका चलाने–बचाने के लिए यत्नशील रहते, तो वे इस प्रकार मूल्यवान और प्रशंसनीय जीवन जीने के लायक नहीं बनते। 2,000 साल पहले बहुत लोग थे, परन्तु उनमें से ज्यादातर लोगों को यह पीढ़ी याद नहीं करती। हालांकि, पतरस और यूहन्ना जैसे प्रेरितों को आज, 2,000 साल बाद भी याद किया जाता है; हम उनके लिखे हुए वचनों को देखते हैं और उनके भक्ति के कामों के बारे में चर्चा करते हुए एक साथ अनुग्रह बांटते हैं। प्रेरितों ने आत्माओं को बचाने के लिए बलिदान करने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ी। उन्होंने ऐसा सुयोग्य जीवन जिया, जो केवल इस पृथ्वी के लोगों के द्वारा नहीं पर स्वर्ग में स्वर्गदूतों के द्वारा भी सम्मानित किए जाने के योग्य है। उन्हें ऐसी अद्भुत आशीष देने के लिए, यीशु गलील की झील के किनारे गए और अपने चेले होने के लिए उन्हें बुलाया।
जिन्होंने मसीह को ग्रहण किया है और जिन्होंने नहीं किया है, भले ही वे सभी एक इंसान हैं, फिर भी उनके जीवन के मूल्यों के बीच बड़ा अंतर है। महायाजकों और फरीसियों के जीवन के बारे में सोचें, जो उन दिनों में प्रतिष्ठित और सम्मानित माने जाते थे, और यहूदा इस्करियोती के जीवन के बारे में भी सोचें। उनके जीवन का मूल्य सिर्फ पांच डालर के लोहे के टुकड़े की तरह था। दरअसल, उनका मूल्य पांच डालर से भी कम था, अगर हम यीशु के इस वचन का ध्यान रखें: “यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता, तो उसके लिए भला होता।”(मत 26:24)
हालांकि, पतरस, यूहन्ना, याकूब और पौलुस के जीवन का मूल्य बहुत महान था; यीशु ने उन्हें शुद्ध सोने जैसा चमकदार बनाया और अति अनमोल रत्नों की तरह बनाया। हमें यह मन में रखना चाहिए कि पूरे संसार को बचाना, यह परमेश्वर की संतान के रूप में सबसे सुंदर और सुयोग्य जीवन जीने का तरीका है।
सुसमाचार के सेवक मूल्यवान जीवन जीते हैं
एक ही सामग्री का किस तरह इस्तेमाल होता है, उसके हिसाब से उसका मूल्य अलग–अलग हो सकता है। उसी तरह से एक व्यक्ति का किस तरह इस्तेमाल होता है, उसके हिसाब से उसका आत्मिक मूल्य भी अलग–अलग होता है। मसीह जो इस पृथ्वी पर हमें सबसे मूल्यवान बनाने के लिए आए, उनके उदाहरण का पालन करते हुए, अगर हमारा इस्तेमाल परमेश्वर के सुसमाचार के कार्य के लिए हो, तो हमारा जीवन सबसे मूल्यवान होगा।
2कुर 3:5–6 ... पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है, जिसने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है।
परमेश्वर चाहते हैं कि हम सुसमाचार के सेवक बनें; वह सबसे ज्यादा प्रसन्न तब होते हैं जब हम नई वाचा का प्रचार करते हैं। मनुष्य की दृष्टि से देखें तो यह इतना मूल्यवान नहीं लग सकता, लेकिन बाइबल दिखाती है कि परमेश्वर की दृष्टि से देखें तो नई वाचा के सेवक वो लोग हैं जिनके पास सबसे बड़ा मूल्य है।
चाहे इस पृथ्वी पर डाक्टर कितना ही सक्षम क्यों न हो, वह मरे हुओं को जिलाकर अनन्त जीवन नहीं दे सकता। चाहे मनुष्य की शक्ति कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उसे लोगों को स्वर्ग में प्रवेश कराने का कोई अधिकार नहीं। हालांकि, नई वाचा के सेवक फसह का प्रचार करते हैं, जो स्वर्ग में पाप करने के कारण मौत की सजा पानेवाली आत्माओं को बचा सकता है और सुरक्षित रूप से स्वर्ग के राज्य की ओर उनकी अगुवाई करता है। परमेश्वर उन लोगों को सबसे मूल्यवान मानते हैं जो दूसरों को जीवन के मार्ग की ओर मार्गदर्शित करते हैं और उन्हें सबसे सुयोग्य जीवन जीने के लिए मदद करते हैं और प्रोत्साहित करते हैं।
इसी कारण पतरस समेत सब प्रेरितों ने तुरंत और हर्षपूर्वक यीशु की बुलाहट का जवाब दिया। उस समय में उन्हें पहले शायद नहीं पता था कि यीशु के पीछे चलना अनन्त स्वर्ग के राज्य की ओर जाने का मार्ग है, परन्तु वे अब कहां हैं? वे अब परमेश्वर की बगल में बहुत ही अवर्णनीय खुशी व आनन्द मनाते होंगे।
ऐसे अर्थपूर्ण और बहुमूल्य जीवन के लिए हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए या इससे विमुख नहीं होना चाहिए। हम किस प्रकार का काम करते हैं, उसके अनुसार हमारा मूल्य विभिन्न बनता है।
सुसमाचार के सेवक जिन्होंने दस और मुहरें कमाईं
लूक 19:11–26 ... एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर लौट आए। उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं और उनसे कहा, “मेरे लौट आने तक लेन–देन करना।”... जब वह राजपद पाकर लौटा, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन–देन से क्या–क्या कमाया। तब पहले ने आकर कहा, “हे स्वामी, तेरी मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।” उसने उससे कहा, “धन्य, हे उत्तम दासॐ तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों पर अधिकार रख।” दूसरे ने आकर कहा, “हे स्वामी, तेरी मुहर से पांच और मुहरें कमाई हैं।” उसने उससे भी कहा, “तू भी पांच नगरों पर हाकिम हो जा।” तीसरे ने आकर कहा, “हे स्वामी, देख तेरी मुहर यह है, जिसे मैं ने अंगोछे में बांध रखा था।”... उसने उससे कहा, “हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुंह से तुझे दोषी ठहराता हूं। तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूं, जो मैं ने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैं ने नहीं बोया उसे काटता हूं; तो तू ने मेरे रुपये सर्राफों के पास क्यों नहीं रख दिए कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता?” और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, “वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।” उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।” मैं तुमसे कहता हूं कि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा।
एक ही मुहर के साथ, एक व्यक्ति ने दस और मुहरें कमाईं और दूसरे ने पांच और मुहरें कमाईं, पर तीसरे ने जो मुहर उसे मिली थी उसे अपने पास ही रखा। इस दृष्टांत के द्वारा, हमें फिर से सोचने की जरूरत है कि हमें जो मिशन परमेश्वर से मिला है, उसे आज हम किस प्रकार से कर रहे हैं।
परमेश्वर ने सिय्योन में अपनी सभी संतानों को सम्पूर्ण मनुष्यजाति को अनन्त जीवन के सुसमाचार का प्रचार करने का मिशन सौंपा है। इस एक सुसमाचार के साथ, कुछ दस और मुहरें पाते हैं, कुछ पांच और मुहरें पाते हैं, और कुछ मुहर को अपने पास ही रखते हैं। यह उनके मूल्य को हमेशा के लिए निर्धारित करेगा।
हमारा मूल्य हमारे पृथ्वी पर किए सुसमाचार के कार्य के अनुसार निश्चित किया जाता है; स्वर्ग में हमारे पास काम करने का कोई और अवसर नहीं है। इस तथ्य पर ध्यानपूर्वक विचार करते हुए, हम सुसमाचार के प्रेरितों को इस पृथ्वी पर परमेश्वर के द्वारा दिए गए नियत समय में अपने मिशन के लिए ईमानदारी से कार्य करना चाहिए।
1थिस 2:1–4 ... क्योंकि हमारा उपदेश न भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साथ है; पर जैसा परमेश्वर ने हमें योग्य ठहराकर सुसमाचार सौंपा, हम वैसा ही वर्णन करते हैं, और इस में मनुष्यों को नहीं, परन्तु परमेश्वर को, जो हमारे मनों को जांचता है, प्रसन्न करते हैं।
परमेश्वर ने हमें इसलिए सुसमाचार सौंपा है क्योंकि उन्होंने हमें योग्य ठहराया है। चूंकि परमेश्वर ने हमें बुलाकर सुसमाचार के सेवक बनाया है जो किसी भी अन्य चीज से अधिक मूल्यवान हैं, इसलिए हमें धन्यवादित मन से परमेश्वर की इच्छा का पालन करना चाहिए और मनुष्यों को नहीं परन्तु परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए।
हमें वह जीवन जीना चाहिए जो सबसे ज्यादा मूल्य लाता है
परमेश्वर सुसमाचार के सेवकों से प्रसन्न होते हैं और उन पर मुहर लगाते हैं। यह मुहर छुटकारे का चिन्ह है जो मनुष्य नहीं देख सकते पर स्वर्गदूत देख सकते हैं।
प्रक 14:1–4 फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हजार जन हैं, जिनके माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है... ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुंवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिए मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।
जैसे एक प्रसिद्ध सुलेखक केवल अपनी सबसे उत्कृष्ट कृति पर अपनी मुहर या हस्ताक्षर लगाता है, वैसे ही परमेश्वर ने पृथ्वी पर मोल लिए गए एक लाख चौवालीस हजार जनों के माथे पर अपने नाम की मुहर लगाई है, और परमेश्वर ने उन्हें महिमामय नाम “पहले फल” दिया है। परमेश्वर ने उन्हें सबसे उत्कृष्ट मूल्य रखनेवाले संपूर्ण जीव के रूप में स्वीकारा है और उनके माथे पर अपना नाम लिखा है।
यह आशीष सिर्फ 1,44,000 को नहीं, परन्तु उन सभी लोगों के लिए है जो नई वाचा का पालन करते हैं। बाइबल कहती है कि ऐसी बड़ी भीड़ है जिसे कोई गिन नहीं सकता, और संसार के लोग धारा के समान सिय्योन की ओर परमेश्वर की व्यवस्था सीखने के लिए आएंगे। इसलिए हमें महान पात्र बनना चाहिए ताकि हम पूरे संसार से धारा के समान सिय्योन की ओर आ रहे अपने भाई–बहनों को, यानी उन सभी लोगों को जिन्हें परमेश्वर भेजते हैं, भली–भांति संभाल सकें। परमेश्वर के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। पूरी तरह से भविष्यवाणियों पर विश्वास कीजिए और सुसमाचार के प्रचार के मिशन के लिए अपने आप को समर्पित कीजिए, कहीं ऐसा न हो कि हमारा कमजोर विश्वास उनके सिय्योन आने के मार्ग में बाधा खड़ी करे।
अगर पतरस, अन्द्रियास, यूहन्ना और याकूब ने यीशु के द्वारा बुलाए जाने के बाद कुछ भी न किया होता, तो बाइबल में उनके कार्य को कहीं भी दर्ज नहीं किया जाता। यीशु के उदाहरण का पालन करते हुए, उन्होंने हमेशा यह सोचते हुए लगन से सुसमाचार का प्रचार किया, ‘मैं कैसे ज्यादा आत्माओं की अगुवाई जीवन के सत्य और उद्धार की ओर कर सकता हूं?’ या ‘मैं कैसे नरक की ओर जाने वाले लोगों के कदम रोककर स्वर्ग की ओर ले जा सकता हूं?’ भले ही उन्हें सताया गया, उनका तिरस्कार किया गया और उन्हें दुख दिया गया, फिर भी उन्होंने अंत तक आत्माओं को बचाने के लिए खुद को समर्पित किया। इसलिए यीशु ने उनसे यह कहते हुए स्वर्ग की आशीष देने का वादा किया, “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहा; और जैसे मेरे पिता ने मेरेलिए एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिए ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ–पियो, वरन् सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।”(लूक 22:28–30)
आइए हम सब परमेश्वर की ऐसी संतान बनें जो परमेश्वर की दृष्टि में सबसे मूल्यवान और मनोहर है। भले ही परमेश्वर ने हमें सबसे बहुमूल्य कार्य में सहभागी होने के लिए बुलाया, लेकिन अगर हम बिना कुछ किए सिर्फ चुप रहेंगे, तो हम संसार को नहीं बचा सकते। दुनिया भर में सिय्योन के हमारे सभी भाइयो और बहनोॐ मैं आग्रहपूर्वक प्रार्थना करता हूं कि आप परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप बदल जाएं और अपनी परिस्थितियों में मेहनत से नई वाचा के सेवकों के रूप में अपना मिशन पूरा करते हुए संसार के सब लोगों की अगुवाई स्वर्ग के राज्य की ओर करें।