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अन्त तक धीरज रखो

हम इस्राएलियों के जंगल में 40 वर्ष के इतिहास को याद करें। सभी इस्राएलियों ने कनान पहुंचने के लिए जंगल में लगातार कठोर यात्रा की, फिर भी बहुत से लोगों ने बीच में अपनी यात्रा छोड़ दी। कुछ लोगों ने 20 या 30 वर्ष तक चलने के बाद यात्रा छोड़ी, और कुछ लोगों ने कनान पहुंचने से पहले यात्रा छोड़ी, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के ग्रहण योग्य जीवन नहीं जिया। उनके समान हम भी इस समय मसीही यात्रा कर रहे हैं। मैं आशा करता हूं कि इस यात्रा में बिना किसी को छोड़े हम सब स्वर्ग के कनान तक सब सुरक्षित रूप से पहुंचें।

अब विश्वासी जीवन जीने के लिए अनेक परिस्थितियां पहले से बेहतर हो गई हैं। लेकिन मुझे लगता है कि जितनी बाहरी परिस्थितियां बेहतर होती जा रही हैं उतना ही लोगों का धीरज कम होता जा रहा है। मैं पूरे उत्साह से निवेदन करता हूं कि सिय्योन के सदस्य अन्त तक धीरज रखें। आइए हम देखें कि धीरज के बारे में बाइबल हमें क्या शिक्षा देती है।

उद्धार के लिए आवश्यक शर्त, धीरज



मत 10:22 “मेरे नाम के कारण सब तुम से घृणा करेंगे, परन्तु जो अन्त तक धीरज रखेगा उसी का उद्धार होगा।”

शैतान हमारे धीरज की परख के लिए हर प्रकार का षड्यंत्र व साजिश रचता है। क्योंकि हम दाखलता के वृक्ष पर लगे फल की तरह हैं, शैतान उस वृक्ष को लगातार हिला रहा है। कभी हवा से, कभी जंगली पशु से, वह बिना एक पल रुके हर तरह की कोशिश कर रहा है कि हमारे विश्वास को ठोकर लगाए।

मैराथन में दौड़ने वाले के लिए सबसे कठिन समय वह समय है जब उसकी ताकत और सहनशक्ति अन्तिम बिन्दु के सामने खत्म हो जाती है। मैराथन के अन्तिम बिन्दु तक दौड़ने वाले की तरह, हम भी परमेश्वर के राज्य तक, जो हमारा अन्तिम बिन्दु है, दौड़ रहे हैं। इसलिए किसी भी समय से ज़्यादा हमें अपनी पूरी शक्ति को ज़ोर बटोर कर तेज़ी से दौड़ना चाहिए, और उद्धार पाने तक कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। चाहे शरीर किसी भी समय से ज़्यादा थक जाता हो, फिर भी धीरज धरेंगे, यह सोचकर कि हम अभी तक ज़ोर से दौड़ते आए हैं, यदि थोड़ा और ज़ोर लगाएं तो थोड़ी देर में परिश्रम का फल मिलेगा और हम स्वर्ग की महिमा के सहभागी बनेंगे।

2 हज़ार वर्ष पहले आए यीशु, और पवित्र आत्मा के युग के उद्धारकर्ता पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर एक जैसा ही कहते हैं कि जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। धीरज के बारे में परमेश्वर की दूसरी शिक्षा को इब्रानियों में देखें।

इब्र 10:36–39 “क्योंकि तुम्हें धैर्य की आवश्यकता है कि तुम परमेश्वर की इच्छा पूर्ण करके जिस बात की प्रतिज्ञा की गई थी उसे प्राप्त कर सको। क्योंकि अब थोड़ी ही देर में आने वाला आएगा और विलम्ब नहीं करेगा। मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, परन्तु यदि वह पीछे हटे तो मेरे मन को प्रसन्नता नहीं होगी। हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं, पर उनमें से हैं, जो प्राणों की रक्षा के लिए विश्वास रखते हैं।”

ऊपर की शिक्षा में जैसा कहा है, थोड़ी ही देर में आने वाला आएगा, उस समय परमेश्वर से अनन्त स्वर्ग व अनन्त जीवन पाने के लिए हमें धीरज की आवश्यकता है। भले ही मसीही यात्रा का मार्ग बहुत टेढ़ा–मेढ़ा, सूखा व बंजर है, लेकिन सभी को उसी मार्ग से गुज़र कर जाना पड़ता है। जब हम अनन्त स्वर्ग, कनान में प्रवेश करेंगे, तब हमारे पास न दुख, न मृत्यु, न दर्द, न बीमारी, और न बुढ़ापा होगा, क्योंकि स्वर्ग में हमें अनन्त जीवन दिया जाएगा। मैं आप से निवेदन करता हूं कि हमेशा अनन्त स्वर्ग की आशा करते हुए, जो परमेश्वर ने हमें प्रतिज्ञा में दिया है, अन्त तक परमेश्वर पर विश्वास करें और उसके पीछे चलें।

बाइबल हमें बार–बार कहती है कि हमें धीरज धरना चाहिए।

याक 5:9–11 “भाइयो, एक दूसरे के प्रति दोष न लगाओ, जिससे कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। देखो, न्यायी द्वार ही पर खड़ा है। भाइयो, यातना और धैर्य के लिए भविष्यद्वक्ताओं को आदर्श समझो, जिन्होंने प्रभु के नाम से बातें की थीं। देखो, धैर्य रखने वालों को हम धन्य समझते हैं। तुमने अय्यूब के धैर्य के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु के व्यवहार के परिणाम को देखा है कि प्रभु अत्यन्त करुणामय और दयालु है।”

परमेश्वर ने कहा है कि धैर्य रखने वाला धन्य है, और चाहा है कि हम अय्यूब के धैर्य को अपना आदर्श बनाएं। बहुत से इस्राएली जंगल की यात्रा के दौरान सिर्फ़ थोड़े समय की भूख–प्यास को न सह पाने के कारण बार–बार कुड़कुड़ाते थे, जिससे परमेश्वर की आशीष को नहीं देख सके। उसका परिणाम क्या था? शुरू में जब वे मिस्र से निकले थे, इस्राएलियों के पुरुषों की संख्या छ: लाख थी, लेकिन जब वे कनान तक पहुंचे, उनकी संख्या बिल्कुल भी नहीं बढ़ी, पर एक जैसी ही रही। क्योंकि लंबे समय, 40 वर्षों तक, बहुत से लोग जन्मे थे, पर बहुत से लोग कुड़कुड़ाने के कारण जंगल में मरे भी थे।

परमेश्वर सर्वशक्तिमान व सर्वज्ञानी है। इसलिए हम परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण रूप से समझेंगे, कहीं ऐसा न हो कि हम कठिनाई को बर्दाश्त न करके हताश और निराश हो जाएं।

अय्यूब की पहली परीक्षा



परमेश्वर चाहता है कि हम अय्यूब के धैर्य को अपना आदर्श बनाएं। तो आइए हम जांच करें कि कैसे अय्यूब ने मुसीबत को सहन किया और परमेश्वर ने उसे कैसा परिणाम दिया।

अय 1:7–22 “...यहोवा ने शैतान से कहा, “क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि पृथ्वी पर उसके समान निर्दोष और खरा, तथा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला अन्य कोई नहीं।” तब शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय अकारण मानता है?”... अब जो कुछ उसका है उस पर अपना हाथ तो लगा और वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।” तब यहोवा ने शैतान से कहा, “देख, जो कुछ उसका है वह सब तेरे हाथ में है, केवल अय्यूब पर हाथ न लगाना।” तब यहोवा के सामने से शैतान चला गया। एक दिन जब अय्यूब के पुत्र–पुत्रियां अपने बड़े भाई के घर में खा–पी रहे थे, तब एक सन्देशवाहक ने अय्यूब के पास आकर कहा, “बैलों से खेत जोता जा रहा था और गदहियां उनके पास चर रही थीं, कि शबा के लोग उन पर टूट पड़े और उनको ले गए। नौकरों को उन्होंने तलवार से मार डाला और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देना आया हू।” अभी वह यह कह ही रहा था कि दूसरे ने भी आकर कहा, “आकाश से परमेश्वर की आग गिरी, और उस से भेड़–बकरियां तथा नौकर जल कर भस्म हो गए और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने आया हूं।” वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और नौकर भी आकर कहने लगा, “कसदी तीन दलों में आए और ऊंटों पर धावा करके उन्हें ले गए, और उन्होंने नौकरों को तलवार से मार डाला। मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने आया हूं।” वह अभी यह कह ही रहा था कि अन्य एक और ने भी आकर कहा, “तेरे पुत्र–पुत्रियां अपने बड़े भाई के घर में खा–पी रहे थे। कि देख, जंगल की ओर से एक बड़ी आंधी चली और घर के चारों कोनों को ऐसा मारा कि वह जवानों पर गिर पड़ा, और वे मर गए। मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने आया हूं।” तब अय्यूब ने उठकर, अपना वस्त्र फाड़ा और सिर मुड़ाया और भूमि पर गिरकर आराधना की। उसने कहा, “मैं अपनी मां के गर्भ से नंगा निकला और नंगा ही चला जाऊंगा, यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया: यहोवा का नाम धन्य हो।” इन सब बातों में अय्यूब ने न तो पाप किया और न परमेश्वर पर अन्याय का दोष लगाया।”

परमेश्वर ने अय्यूब से बहुत प्रसन्न होते हुए उसकी प्रशंसा की, क्योंकि वह बहुत खरा और सीधा पुरुष था। लेकिन शैतान ने उस पर दोष लगाया कि यदि अय्यूब कठिनाई का सामना करे, तो वह परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाएगा, और परमेश्वर से अय्यूब के विश्वास को परखने का अनुरोध किया। तब परमेश्वर ने शैतान को उसे परखने की अनुमति दी। शैतान ने सभी सम्भव तरीक़ों से अय्यूब को सताव दिया। एक के बाद एक बहुत से दुखदायक समाचार अय्यूब को सुनाया जाने लगा, यहां तक कि अय्यूब के बच्चे भी मर गए। अय्यूब और उसके परिवार वालों के सामने, जो परमेश्वर पर पूर्ण यत्न से विश्वास करते थे, एक के बाद एक दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी रहा।
हम सिर्फ़ बाइबल में लिखी बातों से उस समय का अनुमान लगाते हैं। इसलिए हमें उन बातों का असली एहसास नहीं हो सकता। लेकिन कल्पना करें कि हमें कैसा लगेगा जब हमारे सामने ऐसी दुर्घटनाएं लगातार घटें। कौन ऐसी मुश्किलों को सह सकेगा? फिर भी अय्यूब ने, जो बड़ी तबाही के दौर से गुज़रा, यह कहते हुए परमेश्वर की प्रशंसा की कि परमेश्वर ने दिया और परमेश्वर ही ने लिया।

दूसरी परीक्षा में अय्यूब का धीरज



परमेश्वर अय्यूब से बहुत प्रसन्न था जो अत्यंत कठिनाई में होकर भी परमेश्वर से दूर नहीं रहा। तब शैतान ने फिर से परमेश्वर से अय्यूब की परख के लिए अनुरोध किया।

अय 2:1–10 “... यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि पृथ्वी पर उसके समान निर्दोष और खरा तथा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला अन्य कोई नहीं। यद्यपि तू ने उसे अकारण नाश करने के लिए मुझे उसके विरुद्ध उभारा, फिर भी वह अब तक अपनी खराई में स्थिर है।” शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, “खाल के बदले खाल। वरन् प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। अब तू केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियों तथा उसके मांस को छू तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।” अत: यहोवा ने शैतान से कहा, “सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।” तब यहोवा के सामने से शैतान चला गया। और उसने अय्यूब को उसके पांव के तलवे से लेकर सिर की चोटी तक भयंकर फोड़ों से पीड़ित किया। तब खुजलाने के लिए अय्यूब एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया। तब उसकी पत्नी ने उस से कहा, “क्या तू अभी भी अपनी खराई पर स्थिर है? परमेश्वर की निन्दा कर और मर जा।” परन्तु उसने उस से कहा, “तू मूर्ख स्त्री के समान बातें करती है। क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुख न लें?” इन सब बातों में अय्यूब ने अपने होंठों से कोई पाप नहीं किया।”

अय्यूब के सामने फिर से दुखदायक और दुर्भाग्यपूर्ण परीक्षा आई। उस समय उसकी पत्नी ने भी ऐसा कहकर आलोचना की कि परमेश्वर की निन्दा कर और मर जा!

कृपया, अय्यूब की परीक्षाओं से हमारी छोटी–मोटी परीक्षाओं की तुलना कीजिए। कौन सी परीक्षाएं इनसे ज्यादा दुखदायक और दर्दनाक होंगी?

वे परीक्षाएं जिनका अय्यूब ने सामना किया था, बिल्कुल भी आसानी से सहने योग्य नहीं थीं। फिर भी अय्यूब ने अपनी पत्नी को ऐसा उत्तर दिया कि हम परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, तो दुख भी लेना अवश्य है, और परमेश्वर के विरुद्ध कभी किसी शिकायत की बात नहीं की।

धीरज के द्वारा पहले से दुगुनी आशीष पाई



जब हम अय्यूब की कहानी को पढ़ते हैं, तो देख सकते हैं कि परीक्षाओं से गुज़रने के समय अय्यूब कड़े दुखों से कितना ज्यादा जूझता रहा। उसने अपने जन्मदिन को शाप दिया और अपने जन्म पर पछताया, यह कहकर कि मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि उसकी पीड़ा व दुख कितना बड़ा था। एक बार जब अय्यूब बीमार पड़ा था, उसके तीन दोस्त उससे मुलाकात करने के लिए आए थे। उस समय दोस्तों से मूर्ख बातें सुनते हुए ग़लत विवाद करने के कारण, उसका आत्मिक ज्ञान अनजाने में बिगड़ गया। लेकिन परमेश्वर ने स्वयं उससे अपनी सर्व शक्ति सामथ्र्य के बारे में बातें की और उसे सिखाया, जिससे अय्यूब ने पहले जैसा विश्वास फिर से प्राप्त किया।

अय 42:1–17 “तब अय्यूब ने यहोवा को उत्तर दिया, “मैं जानता हूं कि तू सब कुछ कर सकता है, तथा तेरी कोई युक्ति विफल नहीं की जा सकती। तू ने पूछा, ‘यह कौन है जो मूर्खता से परामर्श पर परदा डालता है’? ... तू ने कहा, ‘अब सुन, मैं बोलूंगा, मैं तुझ से पूछूंगा, और तू मुझे उत्तर दे।’ ... इसलिए अब मैं पछताता हूं, तथा धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूं।” और जब यहोवा अय्यूब से ये वचन बोल चुका, तब ऐसा हुआ कि यहोवा ने तेमानी एलीपज से कहा, “मेरा क्रोध तुझ पर तथा तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि मेरे विषय में जैसी उचित बातें मेरे दास अय्यूब ने कहीं वैसी तुमने नहीं कहीं...। यहोवा ने अय्यूब की प्रार्थना को स्वीकार किया। जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की तब यहोवा ने उसका दुख दूर किया और जितना अय्यूब के पास पहले था उसका दुगुना यहोवा ने उसे दे दिया...। यहोवा ने अय्यूब के पिछले दिनों को पहले दिनों से अधिक अशीषित किया। अब उसके पास चौदह हज़ार भेड़–बकरियां, छ: हज़ार ऊंट, हज़ार जोड़े बैल तथा हज़ार गदहियां हो गईं। उसके सात पुत्र और तीन पुत्रियां भी उत्पन्न हुईं...। इसके पश्चात् अय्यूब एक सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, तथा अपने पुत्रों और नाती–पौतों को चार पीढ़ियों तक देखने पाया। और अय्यूब वृद्ध और दीर्घायु होकर मर गया।”

अय्यूब ने पश्चाताप करके परमेश्वर से क्षमा मांगी। तब परमेश्वर ने जितना अय्यूब के पास पहले था उसका दुगुना उसे दे दिया। यदि अय्यूब ने शैतान की परीक्षा से ठोकर खाकर परमेश्वर से शिकायत की होती और वह परमेश्वर से दूर चला गया होता, तो उसका विश्वास उस क्षण से खत्म हो गया होता। लेकिन उसने अन्त तक अपने सच्चे विश्वास को बनाए रखा, जिसके द्वारा उसने पहले से और अधिक आशीष पाई और आरामदायक जीवन जिया।

अय्यूब की परीक्षाओं से शिक्षा और हमारा स्वभाव



परमेश्वर ने अय्यूब ग्रंथ को बाइबल में इस कारण लिखा, ताकि वह हमें धीरज के बारे में शिक्षा दे सके। जो अय्यूब के समान धीरज रखता है, वह धन्य है। शैतान जानता है कि उसका न्याय करने का समय थोड़ा ही बाकी है, इसलिए वह और प्रभावशाली तरीक़े से हम परमेश्वर के लोगों को सताव और परेशानी देकर हमें परीक्षा में डालता है, और वह हमारे मन में दुख पैदा करता है। जितना बड़ा नबी होगा, और जितना बड़ा सुसमाचार का सेवक होगा, उसकी परीक्षा भी उतनी ही बड़ी व गंभीर होगी।

यदि कोई इस पर विश्वास करे कि देने वाला भी और लेने वाला भी परमेश्वर ही है और दुखों को सहने के द्वारा परमेश्वर की इच्छा को सीख सकता है, और यदि अय्यूब के समान सच्चे विश्वास को बनाए रखे, तब परमेश्वर उसे आशीष देगा। इसलिए प्रत्येक सदस्य को ऐसा धीरज रखना चाहिए जिससे सामने आने वाली छोटी और बड़ी मुश्किलों पर विजय पा सके।

1तीम 6:7–12 “परन्तु जो धनवान होना चाहते हैं, वे प्रलोभन, फन्दे में, और अनेक मूर्खतापूर्ण और हानिकारक लालसाओं में पड़ जाते हैं जो मनुष्य को पतन तथा विनाश के गर्त में गिरा देती हैं...। हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग, और धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य और नम्रता का पीछा कर। विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़। अनन्त जीवन को पकड़े रह जिसके लिए तू बुलाया गया था और जिसकी उत्तम गवाही तू ने अनेक गवाहों के सम्मुख दी थी।”

उन शिक्षाओं में, जो परमेश्वर आज हमें देता है, धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम और नम्रता हैं, और उनमें परमेश्वर ने धैर्य भी जोड़ा है जो हमारे विश्वास के लिए अति आवश्यक है। आइए हम मसीही यात्रा में कभी भी पीछे न हटें, और परमेश्वर के प्रति अटल विश्वास बनाए रखें, और केवल परमेश्वर की बाट जोहते हुए आगे बढ़ते जाएं। जब हमारी आंखें परमेश्वर की ओर लगी रहें, तब हम परमेश्वर के समान हो सकेंगे। परमेश्वर का प्रेम, परमेश्वर का धैर्य, आदि परमेश्वर का स्वभाव हमारे स्वभाव में उतर सकेगा।

परमेश्वर के अनन्त स्वर्ग के राज्य में रहने के लिए ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी होना आवश्यक है। ईश्वरीय स्वभाव में धैर्य शामिल है।(2पत 1:4–9) धीरज रखना चाहिए। जब कभी कोई काम हमें उलझाए रखता है, तो हम कभी–कभी चिढ़ जाते हैं। फिर भी हम इसे धीरज से सहेंगे। आइए हम परीक्षा में न पड़ें, हमेशा परमेश्वर को याद करें और परमेश्वर को धन्यवाद व महिमा देते हुए अन्त तक धीरज से अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखें। चाहे आसपास लगातार ऐसी बातें घट जाएं जो हमारे मन में दुख पैदा करती हैं, फिर भी हम परमेश्वर को न भूलें। मैं सिय्योन के सदस्यों से निवेदन करता हूं कि कृपया, जहां कहीं भी स्वर्गीय पिता और माता जाते हैं, उनके पीछे अनुग्रहपूर्वक चलिए।