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परमेश्वर का बचानेवाला प्रेम
परमेश्वर प्रेम हैं(1यूह 4:8)। वह पूरे अंतरिक्ष का संचालन करते और शासन करते हैं, और वह असंख्य स्वर्गदूतों से आदर और महिमा पाने के योग्य हैं। लेकिन वह स्वर्ग की महिमा पीछे छोड़कर अपनी संतानों को बचाने के लिए इस छोटी सी पृथ्वी पर आए। वह पापियों के समान शरीर में आए और उन्होंने पापियों के द्वारा हर प्रकार की निन्दा और अपमान को सहन किया। वह सिर्फ अपनी संतानों के उद्धार की आशा रखते हुए बलिदान के मार्ग पर चले। इसलिए बाइबल कहती है कि परमेश्वर प्रेम हैं।
परमेश्वर के महान प्रेम ने हमें वह बनाया है जो आज हम हैं, इस तथ्य को फिर से सोचते हुए, आइए हम पिता और माता जो अपनी संतानों को बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं, उनके पवित्र प्रेम और बलिदान को अपने मन पर अंकित करने का समय लें।
बलिदान का मार्ग जिस पर यीशु चले
स्वर्गीय माता ने कहा कि हम यदि पिता को देखना चाहते हैं तो बहुत ज्यादा बाइबल पढ़ें, क्योंकि बाइबल में बलिदान के उस मार्ग के बहुत सारे निशान हैं जिस पर स्वर्गीय पिता 2,000 वर्ष पहले स्वयं इस पृथ्वी पर चले थे। उनमें से, आइए हम उस अभिलेख को देखें जिसमें जब यीशु महायाजक के सेवकों के द्वारा पकड़े गए तब से लेकर क्रूस पर चढ़ाए जाने के समय तक की घटनाओं का वर्णन है।
मत 27:1–26 जब भोर हुई तो सब प्रधान याजकों और लोगों के पुरनियों ने यीशु को मार डालने की सम्मति की। उन्होंने उसे बान्धा और ले जाकर पिलातुस हाकिम के हाथ में सौंप दिया... प्रधान याजकों और पुरनियों ने लोगों को उभारा कि वे बरअब्बा को मांग लें, और यीशु का नाश कराएं। हाकिम ने उनसे पूछा, “इन दोनों में से किस को चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूं? उन्होंने कहा, बरअब्बा को।” पिलातुस ने उनसे पूछा, “फिर यीशु को, जो मसीह कहलाता है, क्या करूं?” सब ने उससे कहा, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए!” हाकिम ने कहा, “क्यों, उसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्ला–चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।”... इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
जिस रात यीशु ने नई वाचा के फसह को स्थापित किया, उस दिन यहूदा इस्करियोती ने 30 चांदी के सिक्कों के लिए यीशु को प्रधान याजकों के हाथ सौंप दिया, ठीक जैसे यीशु ने पहले कहा था। सभी चेले जिन्होंने हमेशा यीशु के पीछे चलने की शपथ खाई थी, यीशु को छोड़कर चले गए। पतरस ने भी जो उनका सबसे उत्तम चेला था, तीन बार उनका इनकार किया(मत 26:47–75)। यहूदा इस्करियोती यीशु को धोखा देने से पछताया और आखिर में उसने आत्महत्या की(मत 27:3–10)।
यहूदी यीशु को पिलातुस हाकिम के पास लाए और उससे मांग की कि वह बरअब्बा को छोड़े और यीशु को जिन्होंने कुछ पाप नहीं किया था, क्रूस पर चढ़ाए। वे मसीह को क्रूस पर चढ़ाने के लिए आगे आए जो उन्हें पापों की क्षमा और उद्धार देने के लिए इस पृथ्वी पर आए थे।
मत 27:27–56 तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चारों ओर इकट्ठी की, और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल रंग का बागा पहिनाया, और कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा, और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे और कहा, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहिनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले... तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया, और चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए, और वहां बैठकर उसका पहरा देने लगे। और उसका दोषपत्र उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है।” तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएं, क्रूसों पर चढ़ाए गए। आने–जाने वाले सिर हिला–हिलाकर उसकी निन्दा करते थे। और यह कहते थे, “हे मन्दिर के ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।” इसी रीति से प्रधान याजक भी शास्त्रियों और पुरनियों समेत ठट्ठा कर करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, और अपने आप को नहीं बचा सकता। यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए तो हम उस पर विश्वास करें। उसने परमेश्वर पर भरोसा रखा है; यदि वह इस को चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूं।’ ” इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, उसकी निन्दा करते थे... तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए...
रोमन सैनिकों ने यीशु के कपड़े उतारकर उन्हें लाल रंग का बागा पहिनाया। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के यीशु को बेइज्जत और अपमानित किया; उन्होंने यीशु को कोड़े मारे, उनके सिर पर कांटों का मुकुट रखा और उनके दाहिने हाथ में एक सरकण्डा देकर उन्हें ठट्ठों में उड़ाया। इतना ही नहीं, उन्होंने यीशु पर थूका और वही सरकण्डा लेकर उनके सिर पर मारते हुए गालियां दीं।
जब यीशु ने क्रूस पर कड़वे दुखों का समय बिताया, उस समय भी उन्होंने प्रधान याजकों और डाकुओं सहित अपने सृष्ट जीवों के द्वारा किए गए सभी प्रकार के अपमानों और तिरस्कारों को सह लिया। उन्होंने मसीह के साथ इस तरह बर्ताव किया भले ही मसीह इस पृथ्वी पर उन्हें बचाने आए थे।
हमें उद्धार देने के लिए
जिस दिन यीशु क्रूस पर चढ़ाए गए, उस दिन के भयावह दृश्य का बाइबल विस्तार से वर्णन नहीं करती; बाइबल उस दिन की कहानी का केवल मोटे तौर पर वर्णन करती है। फिर भी यीशु के दुखों और क्रूस पर उन्हें दी गई यातनाएं, जिन्हें बाइबल चित्रित करती है, हमारा दिल बहुत तोड़ने वाली होती हैं। परमेश्वर जो स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु और पूरे अंतरिक्ष का शासन करने वाले हैं, उन्हें क्यों शरीर में आकर ऐसी भयानक चीजों से गुजरना पड़ा?
लूक 19:10 क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।
यीशु ने कहा कि वह खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने इस पृथ्वी पर आए। हमारे पाप इतने गंभीर थे कि राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु परमेश्वर को स्वयं इस पृथ्वी पर आकर इतना अधिक दुख उठाना पड़ा। अनगिनत अपमान, अत्याचार, नोकदार कोड़े की सजा और क्रूस पर अत्यंत तीव्र दर्द, इन सब पीड़ाओं के क्षणों को उन्होंने अपनी संतानों के पापों का दण्ड उठाने के लिए सहन किया।
स्वर्ग में भी नियम है जिसक पालन किया जाना आवश्यक है, और व्यवस्था है जो अंतरिक्ष को शासित करती है। इसलिए न्यायी परमेश्वर ने हमारे द्वारा स्वर्ग में किए गए पापों की कीमत चुकाने के लिए खुद को बलिदान किया। यदि यह हमारे उद्धार के लिए न होता, तो परमेश्वर को शरीर पहनने की, भूखे–नंगे रहने की, पापी के समान बर्ताव किए जाने की और क्रूस पर अपमानित होने की कोई जरूरत नहीं होती थी। परमेश्वर ने हमारे लिए इन सभी दुखों को सहा और बलिदान के मार्ग पर चले।
जब हम उस दुख भरे मार्ग के बारे में सोच–विचार करें जिस पर यीशु चले, तो हमारे मन में यह विचार आता है कि क्या वह सच में इस संसार में आना चाहते थे जहां उन्हें ठुकराया जाना और तुच्छ माना जाना था। लेकिन 2,000 वर्ष पहले यीशु इस पृथ्वी पर अपनी संतानों को बचाने के लिए आए; उन्होंने चुपचाप सभी अपमानों को सहन किया और यह कहा कि वह एक जैसे उद्देश्य के लिए इस पृथ्वी पर फिर से आएंगे।
इब्र 9:27–28 और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है, वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं, उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा।
पृथ्वी पर कौन उस जगह में दुबारा जाना चाहेगा जहां एक बार उसे तुच्छ माना गया, सताया गया और मार डाला गया? लेकिन यीशु मृत्यु की जंजीर में बंधी हुई अपनी संतानों को छुड़ाने के लिए फिर से इस पृथ्वी पर आए। चूंकि उद्धार का मार्ग जो उन्होंने क्रूस पर खुद को बलिदान करके खोला था, अंधकार के युग के दौरान शैतान के द्वारा नष्ट हुआ था, इसलिए वह इस पृथ्वी पर फिर से आए और नई वाचा के सत्य को वापस लाकर उद्धार का मार्ग पुन:स्थापित किया।
वह मार्ग भी जिस पर यीशु दूसरी बार पृथ्वी पर आकर चले, उस मार्ग से अलग नहीं था जिस पर वह पहली बार आकर चले थे। परमेश्वर स्वयं इस पृथ्वी पर आए, लेकिन किसी ने भी उन्हें ग्रहण नहीं किया; सभी लोगों ने जो कुछ चाहा उनके साथ किया और उनका इनकार किया। परमेश्वर इस पृथ्वी पर दुबारा न आने का चुनाव भी कर सकते थे जहां केवल दुख और पीड़ा उनका इंतजार कर रही थी। लेकिन वह इस पृथ्वी पर फिर से शरीर में आए और हम पर अपना प्रेम दिखाया। स्वर्गीय पिता और माता भले ही उनकी कितनी भी निन्दा और तिरस्कार किया गया, तौभी अपनी संतानों को बचाने के लिए चुपचाप दुख भरे मार्ग पर चले। मैं निवेदन करता हूं कि आप उनकी संतानों के रूप में उनके बलिदान और प्रेम को अपने हृदयों पर अधिक गहराई से अंकित करें।
हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ
परमेश्वर को अपनी संतानों के कारण दुख उठाना पड़ा, लेकिन उन्होंने उनसे एक बार भी यह नहीं कहा कि वह उनके कारण पीड़ित या परेशान हैं। इतने बड़े प्रेम को भी उन्होंने शायद कम महसूस किया होगा। वह उन्हें यह कहते हुए अधिक प्रेम देना चाहते हैं, “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”
मत 11:28–30 “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”
परमेश्वर हमसे ज्यादा भारी बोझ उठा रहे हैं। इसके बावजूद वह हमसे कह रहे हैं कि हम अपने छोटे बोझ को भी उतारकर उनके पास उसे ले आएं और विश्राम पाएं। तो हमें उनकी संतानों के रूप में उनसे यह कहना चाहिए, “आपका बोझ कितना भारी है! अब से हम अपने बोझों को खुद उठाएंगे।” लेकिन पिता और माता अपनी संतानों के बोझों को भी अपने ऊपर खुशी से उठाने के लिए तैयार हैं। हमें पिता और माता के असीम प्रेम को बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए।
कभी–कभी जब चीजें वैसी नहीं होतीं जैसी हम उम्मीद करते हैं, तब हम अपनी शिकायतों को बाहर उंडेलते हैं और कभी–कभी हम बहुत छोटी सी बात पर भी एक दूसरे को चोट पहुंचाते हैं। लेकिन यदि हम उस दर्द और दुख के बारे में सोचें जिससे परमेश्वर गुजरे हैं, तो हम महसूस करेंगे कि हमारा जूआ और बोझ बहुत छोटा है और कुछ भी नहीं होता। चूंकि हमने परमेश्वर से ऐसा महान प्रेम प्राप्त किया है, हमें न तो परमेश्वर से ज्यादा खुद को महत्व देना चाहिए और न ही आत्मिक जीवन से ज्यादा अपने शारीरिक जीवन को महत्व देना चाहिए। आत्मिक दुनिया अदृश्य होने के कारण सिर्फ दिखाई देनेवाले पृथ्वी के जीवन से मूर्खता से ही चिपके रहने के बजाय, हमें हमेशा उद्धार के मूल्य और परमेश्वर के महान बलिदान और प्रेम को महसूस करने की जरूरत है।
जिस क्षण उद्धार का कार्य पूरा होगा और सभी स्वर्गीय संतान अनन्त स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगी, उसी क्षण परमेश्वर आखिरकार अपने कंधों पर लंबे समय तक रखे गए सभी भारी बोझ उतार सकेंगे। इसलिए हमें सिर्फ अपने खुद के उद्धार की ही नहीं, बल्कि दूसरों के उद्धार की भी परवाह करनी चाहिए जिन्होंने अब तक सत्य ग्रहण नहीं किया है, और हमें सुसमाचार का प्रचार करने का बहुत अधिक प्रयास करना चाहिए।
यदि परमेश्वर न आते
यदि परमेश्वर इस पृथ्वी पर न आते, तो हमारे साथ क्या होता? आइए हम बाइबल के द्वारा देखें कि न बचाए जानेवालों का अन्त क्या होगा।
प्रक 14:6–11 ... “जो कोई उस पशु और उसकी मूर्ति की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उसकी छाप ले। वह परमेश्वर के प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतों के सामने और मेम्ने के सामने आग और गन्धक की पीड़ा में पड़ेगा। उनकी पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम ही छाप लेते हैं, उनको रात दिन चैन न मिलेगा।”
प्रक 19:19–21 ... वह पशु, और उसके साथ वह झूठा भविष्यद्वक्ता पकड़ा गया जिसने उसके सामने ऐसे चिन्ह दिखाए थे जिनके द्वारा उसने उनको भरमाया जिन पर उस पशु की छाप थी और जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे। ये दोनों जीते जी उस आग की झील में, जो गन्धक से जलती है, डाले गए। शेष लोग उस घोड़े के सवार की तलवार से, जो उसके मुंह से निकलती थी, मार डाले गए; और सब पक्षी उनके मांस से तृप्त हो गए।
बाइबल दिखाती है कि हमारा दुश्मन शैतान जिसे पशु के रूप में दर्शाया गया है, और उसकी पूजा करने वाले लोग और उन्हें भरमाने के लिए चिन्ह दिखाने वाले झूठे भविष्यद्वक्ता पकड़े जाएंगे और उस आग की झील में जो गन्धक से जलती है, डाले जाएंगे। नरक का दण्ड उनका इंतजार कर रहा है जो बचाए नहीं जाएंगे। गन्धक से जलती हुई आग की झील में उनकी पीड़ा का धुंआ युगानुयुग उठता रहेगा, और उन्हें रात दिन चैन न मिलेगा; वे अनन्तकाल तक पीड़ा में रहेंगे।
मर 9:41–49 “... यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल। टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक की आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं। यदि तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल। लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो पांव रहते हुए नरक में डाला जाए। यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल। काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो आंख रहते हुए तू नरक में डाला जाए। जहां उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। क्योंकि हर एक जन आग से नमकीन किया जाएगा।”
यीशु ने हमसे अनुरोध किया कि हम नरक जाने से बचें भले ही हमें कितनी ही भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। नरक का दुख इतना भयानक है कि यीशु ने बार–बार जोर देकर कहा कि हमें नरक से बचना है। नरक में इतनी भयानक पीड़ा और तड़प होती है कि नरक में लोग मरने के लिए तरसेंगे किन्तु मौत उन्हें मिल नहीं पाएगी। लेकिन हम अपनी शक्ति से नरक के दण्ड से नहीं बच सकते। इसलिए परमेश्वर अपनी संतानों पर तरस खाकर उत्सुकता से उन्हें नरक के अनन्त दण्ड से बचाना चाहते थे। इसी कारण वह इस पृथ्वी पर शरीर में आए और उन्होंने अत्यंत दर्दनाक पीड़ा और दुख को सहन किया।
उद्धार की उपेक्षा न करो
पुराने नियम की व्यवस्था के अनुसार, इस्राएलियों को अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए पशुओं की बलि चढ़ानी होती थी। परमेश्वर बलि किए गए सभी पशुओं की असलियत के रूप में आए और हमारे द्वारा किए गए सभी पापों को अपने ऊपर उठाया और बेइज्जती और अपमान को सहा जो हमें सहना चाहिए था। परमेश्वर हमसे इतना अधिक प्रेम करते हैं कि वह हमारे लिए पापबलि भी बन गए। इसी कारण हम अब स्वर्ग की आशा रख सकते हैं।
इब्र 2:3–9 तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से निश्चिन्त रहकर कैसे बच सकते हैं? जिसकी चर्चा पहले–पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ... “तू ने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया; तू ने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा, और उसे अपने हाथों के कामों पर अधिकार दिया। तू ने सब कुछ उसके पांवों के नीचे कर दिया।” ... पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं, ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद चखे।
परमेश्वर स्वर्ग में सदा के लिए महिमा और प्रशंसा पाने के योग्य हैं, फिर भी वह स्वर्गदूतों से भी खुद को छोटा बनाकर इस पृथ्वी पर आए। हमें बचाने के लिए पल–भर भी हिचके बिना वह इस पृथ्वी पर दुबारा आए और स्वेच्छा से दुख के मार्ग पर चले। हमें ऐसे महान उद्धार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें मुक्त में उद्धार प्राप्त हुआ है, परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर के द्वारा हमें दिए गए उद्धार का थोड़ा सा मूल्य है।
मैं आपसे आग्रहपूर्वक कहता हूं कि आप एसाव की तरह क्षणिक सुख और भोग–विलास में लिप्त होकर उद्धार की अनन्त आशीष खोने की गलती न करें। आइए हम पूरी ताकत लगाकर स्वर्ग की ओर दौड़े, ताकि परमेश्वर का हमें बचाने का अनुग्रह व्यर्थ न जाए। हमें अपने अन्दर झांककर देखना चाहिए कि कहीं हम यह सोचने की गलती तो नहीं कर रहे हैं कि शारीरिक चीजें करने में अपना ज्यादातर समय बिताना कुछ लाभदायक है लेकिन मसीह जिन्होंने हमें बचाने के लिए कठिनाई भरा जीवन जीने का चुनाव किया, उनके लिए कुछ करना समय व्यर्थ गंवाने जैसा है। आइए हम अपने उद्धार को अन्त तक दृढ़ता से थामकर संसार के सभी लोगों को उद्धार के शुभ संदेश का प्रचार करें।
स्वर्ग का राज्य जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है, ऐसी अत्यंत सुंदर और महिमामय जगह है जिसकी कल्पना कोई भी मनुष्य अपनी सोच में नहीं कर सकता(1कुर 2:9)। दृष्टांत में उस राजा की तरह जिसने अपने विश्वासयोग्य दास से कहा, “धन्य, हे उत्तम दास! तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला, तो अब दस नगरों पर अधिकार रख,’ पिता और माता ने वादा किया है कि वे हमारे बहुत छोटे से प्रयास को भी नहीं भूलेंगे और जब हम अपने स्वर्गीय घर जाएंगे, हमारे सभी कठिन कार्यों का प्रतिफल देंगे(लूक 19:12–17; प्रक 22:12)। वे अपनी संतानों को जिन्होंने खुद को सुसमाचार का प्रचार करने के लिए समर्पित किया है, ऐसे लोगों के रूप में स्वीकार करते हैं जिन्होंने परमेश्वर के प्रेम को महसूस किया है और परमेश्वर की शिक्षाओं का अभ्यास किया है।
मैं आशा करता हूं कि आप सभी परमेश्वर का प्रेम और बलिदान सीखें और उसे उदाहरण के रूप में लें और अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को बचाने में आगे रहें, ताकि 7 अरब लोगों को प्रचार करने का मिशन जल्दी पूरा हो सके। परमेश्वर ने हमारे लिए अपने बलिदान के द्वारा उद्धार का मार्ग खोला है। मैं ईमानदारी से आशा करता हूं कि हमारे स्वर्गीय परिवार के सभी सदस्य उस उद्धार के मार्ग पर अपनी दौड़ को पूरा करें और एक भी सदस्य छूटे बिना स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।