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जीवन का मार्ग और स्वर्गीय माता

शुरुआत में, मार्ग उन पदचिन्हों के निशानों के अनुसार बनाया जाता है जिन्हें कोई एक व्यक्ति लगातार गंतव्य की ओर जाते हुए या वहां से वापस आते हुए छोड़ता है। भले ही पहले किसी जगह में मार्ग मौजूद नहीं था, लेकिन वहां से गुजरने वाले एक राहगीर से मार्ग शुरू किया जाता है और वह थोड़ा–थोड़ा करके ज्यादा स्पष्ट दिखाई देने लगता है, ताकि बहुत लोग उस पर आ–जा सकें।

आत्मिक रीति से देखा जाए, तो हमारी आत्माओं के लिए दो प्रकार के मार्ग हैं। पहला स्वर्ग का मार्ग है, जिसे परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिए स्वर्ग से इस पृथ्वी तक आते हुए और फिर इस पृथ्वी से स्वर्ग तक जाते हुए बनाया है। दूसरा नरक का मार्ग है, जिसे शैतान ने अपने दूतों को लेकर इस पृथ्वी पर आने के बाद, बहुत आत्माओं को बहला–फुसलाकर नरक की ओर खींचकर ले जाते हुए बनाया है।

यदि आप गलत मार्ग पर जाएंगे, तो आप अपनी दिशा खोकर भटक जाएंगे और बिल्कुल अलग गंतव्य स्थान पर पहुंचेंगे। इसलिए हमें अवश्य ही स्वर्ग के मार्ग पर चलना चाहिए। आपको इस मार्ग से हटकर अन्य किसी दूसरे मार्ग पर नहीं जाना चाहिए। हमारे गंतव्य स्थान, यानी स्वर्ग पर पहुंचने के लिए, पहले हमें परमेश्वर की आवाज को सुनना चाहिए जो हमें “आओ!” पुकारते हुए बुला रहे हैं, और फिर उस स्वर्ग के मार्ग को ढूंढ़ना चाहिए जिसे परमेश्वर ने खोला है। आइए हम बाइबल के द्वारा स्पष्ट रूप से यह समझने का समय लें कि स्वर्ग का मार्ग कहां है जिस पर हमें चलना चाहिए।

पतरस के द्वारा देखे गए दर्शन से संबंधित शिक्षा


जो स्वर्ग जाने के मार्ग को सबसे अच्छी तरह से जानता है, वह परमेश्वर हैं जिन्होंने उस मार्ग को बनाया है। इसलिए यीशु ने कहा, “मार्ग मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता(यूह 14:6)।” जिस मार्ग की ओर परमेश्वर हमें ले जाते हैं, उस पर आज्ञाकारी होकर चलना ही स्वर्ग के मार्ग को ढूंढ़ने का सवोत्तम तरीका है।

प्रे 10:9–16 दूसरे दिन, जब वे चलते चलते नगर के पास पहुंचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा। उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया; और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक पात्र बड़ी चादर के समान चारों कोनों से लटकता हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है। जिस में पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे। उसे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया, “हे पतरस उठ, मार और खा।” परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैं ने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” फिर दूसरी बार उसे शब्द सुनाई दिया, “जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह।” तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह पात्र आकाश पर उठा लिया गया।

एक दिन पतरस ने दर्शन देखा कि आकाश से एक पात्र बड़ी चादर के समान चारों कोनों से लटकता हुआ पृथ्वी की ओर उतर रहा है, जिसमें सब प्रकार के जन्तु थे। उसे परमेश्वर का एक स्वर सुनाई दिया, “हे पतरस उठ, मार और खा।” परन्तु पतरस जिसने पुराने नियम की व्यवस्था के अनुसार भोजन के नियमों का पूरी तरह से पालन किया था, उसने सोचा कि वे पशु अपवित्र और अशुद्ध हैं, और यह कहकर उन्हें खाने से नकार दिया, “प्रभु निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।”

फिर उसे तीन बार यह स्वर लगातार सुनाई दिया, “जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह।” उस समय परमेश्वर ने उसे डांटा–फटकारा, क्योंकि उसने परमेश्वर के वचनों के बजाय अपने सीखे हुए ज्ञान और धारणा को प्राथमिकता दी।
पतरस जाग उठा और उन सेवकों से मिला जिन्हें अन्यजाति के कुरनेलियुस ने भेजा था। तभी पतरस ने महसूस किया कि परमेश्वर ने अशुद्ध पशुओं को खाने वाले अन्यजातियों को शुद्ध किया है और उन्हें बचाना चाहा है। उसके बाद उसने कुरनेलियुस और उसके घराने को प्रचार किया और बपतिस्मा दिया।

आज हम भी विश्वास के मार्ग पर चलते हुए कभी–कभी पतरस के समान गलती कर बैठते हैं। जैसे पतरस ने परमेश्वर की इच्छा के बजाय अपने विचार को और अधिक आगे बढ़ाया और अनजाने में परमेश्वर के वचन को नकार दिया, वैसे ही यदि हम परमेश्वर के वचन से ज्यादा अपने ज्ञान और जानकारी को महत्व दें, तो हम परमेश्वर की इच्छा को नकारेंगे।

पुराने नियम के समय में परमेश्वर ने शुद्ध पशुओं और अशुद्ध पशुओं के बीच अंतर किया था और केवल इस्राएलियों को शुद्ध पशु खाने की आज्ञा दी थी(लैव्यव्यवस्था का 11वां अध्याय)। इसलिए इस्राएली अशुद्ध पशु नहीं खाते थे और अशुद्ध पशु खाने वाले अन्यजातियों को भी अशुद्ध मानते थे और उनके साथ बिल्कुल संबंध नहीं रखते थे। वास्तव में शुद्ध पशुओं और अशुद्ध पशुओं से संबंधित नियम परमेश्वर के वचन के द्वारा ही बनाया गया था। परमेश्वर के वचन के दिए जाने से पहले यह नियम मौजूद नहीं था। भले ही कुछ पशुओं को अशुद्ध माना गया, लेकिन जब परमेश्वर ने उन्हें शुद्ध ठहराने की बात कही है, तो हमें उस बात पर विश्वास करके उसका पालन करना चाहिए।

वे जहां कहीं मेमना जाता है, उसके पीछे हो लेते हैं



परमेश्वर ने 6,000 वर्षों की उद्धार की योजना बनाई और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के युग को नियुक्त किया और स्वयं अपनी संतानों को बचाने के लिए स्वर्ग से इस पृथ्वी तक आते–जाते हुए स्वर्ग का मार्ग खोला। इसलिए यदि हम जो भी वचन परमेश्वर युग के अनुसार देते हैं, उसी का पालन करें, तो हम स्वर्ग जाने के सही मार्ग पर चल सकेंगे। इसलिए प्रकाशितवाक्य में उद्धार पाने वालों के बारे में ऐसा कहा गया है कि वे जहां कहीं परमेश्वर उन्हें ले जाते हैं, वहां उनका पालन करते हैं।

प्रक 14:4 ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, एक कुंवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिए मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।

यहां “मेमना” दूसरी बार आने वाले यीशु को दर्शाता है। वो लोग जिनके बारे में प्रकाशितवाक्य में भविष्यवाणी की गई है कि वे अंतिम दिनों में उद्धार पाएंगे, वे जहां कहीं दूसरी बार आने वाले यीशु उन्हें ले जाते हैं, वहां उनका पालन करते हैं। बाइबल उनके बारे में ऐसा वर्णन करती है कि वे अपने खुद के विचारों और अनुभवों को आगे रखने का आग्रह नहीं करते और सच्चे मन से परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं। तब, मसीह जो मेमना हैं, उद्धार पाने वाले लोगों को कहां ले जाते हैं?

प्रक 7:16–17 वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे; और न उन पर धूप, न कोई तपन पड़ेगी। क्योंकि मेम्ना जो सिंहासन के बीच में है, उनकी रखवाली करेगा, और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा; और परमेश्वर उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।

बाइबल कहती है कि चूंकि मेमना स्वयं हमारी रखवाली करेगा और हमें जीवन के जल के सोते के पास ले जाएगा, इसलिए हमें मेमने के मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि जीवन के जल का सोता जहां मेमना हमें ले जाता है, वहां स्वर्ग का मार्ग है। आइए हम जानें कि उस जीवन के जल के सोते का मतलब क्या है जहां हम दूसरी बार आने वाले यीशु के मार्गदर्शन का पालन करके पहुंच सकते हैं।

जक 14:7–8 और लगातार एक ही दिन होगा जिसे यहोवा ही जानता है, न तो दिन होगा, और न रात होगी, परन्तु सांझ के समय उजियाला होगा। उस समय यरूशलेम से बहता हुआ जल फूट निकलेगा उसकी एक शाखा पूरब के ताल और दूसरी पश्चिम के समुद्र की ओर बहेगी, और धूप के दिनों में और जाड़े के दिनों में भी बराबर बहती रहेंगी।

वह सोता जहां से हर समय जीवन का जल बह निकलता है, यरूशलेम है। बाइबल में यरूशलेम हमारी माता को संकेत करती है(गलातियों 4:26 संदर्भ)। आखिरकार, वह जगह जहां हमारे मेमने, दूसरी बार आने वाले यीशु हमें ले जाते हैं, हमारी यरूशलेम माता की बांह है।

यरूशलेम माता जो जीवन का मार्ग हैं



जब परमेश्वर ने सब्त का मार्ग बनाया है, तब हमें सब्त का पालन करने के द्वारा स्वर्ग की ओर बढ़ना चाहिए। और जब परमेश्वर ने फसह के पर्व का मार्ग बनाया है, तब हमें फसह का पालन करने के द्वारा स्वर्ग की ओर बढ़ना चाहिए। उसी तरह से, पिता परमेश्वर जिन्होंने नई वाचा के सभी नियमों को स्थापित किया है, जीवन के जल के सोते, यानी हमारी माता की ओर हमें ले गए हैं, तो हमें अवश्य ही माता पर विश्वास करते हुए स्वर्ग के राज्य की ओर बलपूर्वक दौड़ना चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं कि हम माता पर विश्वास किए बिना केवल फसह का पर्व या सब्त का दिन मनाने के द्वारा उद्धार पा सकते हैं। वे ऐसा इसलिए सोचते हैं क्योंकि उन्होंने व्यवस्था की भूमिका को अच्छी तरह से नहीं समझ लिया है।

गल 3:24 इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारी शिक्षक हुई है कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।

व्यवस्था हमें मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारी शिक्षक की भूमिका अदा करती है। पुराने समय में पुरानी वाचा की व्यवस्था ने लोगों को पहली बार आनेवाले यीशु तक पहुंचाने के लिए शिक्षक की भूमिका अदा की, तो फिर नई वाचा की व्यवस्था, जिसका आज हम पालन करते हैं, हमें किसकी ओर पहुंचाएगी? वह पवित्र आत्मा और दुल्हिन है, जो पवित्र आत्मा के युग के उद्धारकर्ता हैं।

दूसरी बार आने वाले यीशु ने नष्ट और गायब हुई नई वाचा की व्यवस्था को पुन: स्थापित किया, इसके पीछे उनकी यह इच्छा छिपी हुई है कि उनकी संतान जीवन के जल के सोते का सही–सही पता लगाकर स्वर्गीय माता के पास आएं और अनन्त स्वर्ग के राज्य में वापस आएं। दूसरे शब्दों में कहें, उन्होंने नई वाचा का सत्य इसलिए पुन: स्थापित किया, ताकि वह स्वर्गीय माता की ओर आने का मार्ग तैयार कर सकें। इसलिए हम सिर्फ शिक्षक के जैसी व्यवस्था के द्वारा सम्पूर्ण उद्धार नहीं पा सकते। उद्धार केवल स्वर्गीय माता के द्वारा दिया जाता है जो जीवन का स्रोत हैं।

मसीह आन सांग होंग ने, जो मेमने की असलियत के रूप में इस पृथ्वी पर आए, नोट पर हाथ से यह लिखा, “पतरस यीशु के पीछे चला, यहोशू मूसा के पीछे चला, एलीशा एलिय्याह के पीछे चला, और मैं माता के पीछे चलता हूं।” पिता ने स्वर्ग जाने से पहले यह अन्तिम विनती की कि हम माता के वचनों का अच्छी तरह से पालन करें। पिता ने आशा की कि उनकी संतान उस मार्ग पर चलें जिस पर वह चले थे, और जीवन के जल के स्रोत, माता के प्रति आज्ञाकारी होकर स्वर्ग तक सुरक्षित रूप से पहुंचें।

पिता ने स्वर्गीय माता के सभी वचनों को सुनने और मानने की बात कही, इसे बाइबल अब्राहम के परिवार के इतिहास के द्वारा स्पष्ट रूप से दिखाती है।

उत 21:8–12 ... तब सारा को मिस्री हाजिरा का पुत्र, जो अब्राहम से उत्पन्न हुआ था, हंसी करता हुआ दिखाई पड़ा। इस कारण उसने अब्राहम से कहा, “इस दासी को पुत्र सहित निकाल दे; क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ भागी नहीं होगा।” यह बात अब्राहम को अपने पुत्र के कारण बहुत बुरी लगी। परन्तु परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, “उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा वह इसहाक ही से चलेगा।

एक दिन सारा ने अपनी दासी हाजिरा के पुत्र इश्माएल को अपने बच्चे इसहाक को तंग करते हुए देखा। इस कारण उसने अब्राहम से हाजिरा और उसके पुत्र को घर से बाहर निकालने के लिए कहा। यह सुनकर जब अब्राहम इश्माएल और इसहाक के बीच परेशान हुआ और उलझन में पड़ा, तब परमेश्वर ने उससे कहा, “जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान।” इस तरह परमेश्वर ने फैसला किया कि वह सारा के निर्णय के अनुसार ही सब कुछ करे।

बाइबल में अब्राहम पिता परमेश्वर को दर्शाता है। तब बेशक, उसकी पत्नी सारा स्वर्गीय माता को दर्शाती है(गलातियों 4:21–31 संदर्भ)। जैसा कि परमेश्वर ने अब्राहम से सारा की सारी बातें मानने के लिए कहा, माता के दिए सभी वचनों को मानना और उनकी इच्छा का पालन करना ही जीवन के मार्ग पर चलने का सबसे सही तरीका है।

यरूशलेम की बात न मानने वाले लोग



यदि हम पिता के मार्गदर्शन का पालन करके जीवन के जल के स्रोत, यानी स्वर्गीय माता पर सम्पूर्ण रूप से विश्वास करेंगे और उनकी बात मानेंगे, तब हम अनन्त स्वर्ग में पहुंच सकेंगे। लेकिन जो यरूशलेम माता की सेवा नहीं करेंगे और उनकी बात नहीं मानेंगे, वे स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे और नष्ट हो जाएंगे(यश 60:12)।

इब्र 4:6–13 तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें, और जिन्हें उसका सुसमाचार पहले सुनाया गया उन्होंने आज्ञा न मानने के कारण उसमें प्रवेश न किया... अत: हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो कि कोई जन उन के समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े। क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है; और प्राण और आत्मा को, और गांठ–गांठ और गूदे–गूदे को अलग करके आर–पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है...

बाइबल हमें सिखाती है कि हम सावधान रहें, कहीं ऐसा न हो कि हम आज्ञा न मानकर गिर पड़ें। क्योंकि यदि हम परमेश्वर के वचन न मानें, तो हम उस स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते जहां अनन्त विश्राम तैयार किया गया है। जो कोई परमेश्वर के वचन के बजाय अपने खुद के विचार और मत को आगे रखता है, वह आखिर आज्ञा न मानकर गिर पड़ेगा और उद्धार नहीं पाएगा।

पिता ने स्वर्गीय माता की ओर हमारी अगुवाई करने के लिए, हमें बार–बार बाइबल के बहुत सारे सबूत दिखाए हैं। यद्यपि उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक बाइबल की सभी पुस्तकें स्वर्गीय माता की गवाही देती हैं, और बाइबल में “एलोहीम” शब्द अनगिनत रूप से लिखा गया है, लेकिन यदि पिता परमेश्वर ने हमें यह न सिखाया होता, तो हम कैसे इस उद्धार के वचन को महसूस कर सकते थे और कैसे स्वर्ग जाने का मार्ग ढूंढ़ सकते थे?

पिता के द्वारा बताई गई स्वर्गीय माता पर विश्वास न करना पिता परमेश्वर के वचनों का पालन न करने जैसा है। इसलिए बाइबल में बताया जा रहा है कि स्वर्गीय माता की बात न मानने वाले लोग स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।

“आओ!” पुकारते हुए बुला रहे परमेश्वर की आवाज



पिता जो मानवजाति के उद्धार के लिए इस पृथ्वी पर आए, उन्होंने नई वाचा की व्यवस्थाओं, नियमों और विधियों को पुन: स्थापित किया और फिर हमारी अगुवाई जीवन के जल के स्रोत, यानी स्वर्गीय माता की ओर की है जो जीवन का मार्ग हैं। और आज पिता और माता दोनों हमें अपने पास बेसब्री से बुला रहे हैं, ताकि हम जीवन के मार्ग के अन्त तक पहुंचकर अपने गंतव्य, यानी स्वर्ग में प्रवेश कर सकें।

प्रक 22:17 आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुननेवाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।

त्रिएक के अनुसार पवित्र आत्मा पिता परमेश्वर हैं, और उनकी दुल्हिन बेशक माता परमेश्वर हैं। प्रेरित यूहन्ना ने पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर को “आओ!” पुकारते हुए और मानव जाति को स्वर्ग के मार्ग पर ले जाते हुए दर्शन में देखा और इसे बाइबल में लिखा। आज पवित्र आत्मा के युग में, लोग जो पवित्र आत्मा और दुल्हिन, यानी स्वर्गीय पिता और माता के वचनों पर आज्ञाकारी होंगे, वे मुफ्त में जीवन का जल पाएंगे।

वह अलिखित व्यवस्था जो उस समय की थी जब व्यवस्था को संहिताबद्ध नहीं किया गया था, पत्थरों पर लिखी गई अक्षरों की व्यवस्था और मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा स्थापित की गई नई वाचा की व्यवस्था, ये सब स्वर्गीय माता की गवाही देने के लिए मौजूद थीं। पुराने नियम के समय और नए नियम के समय से गुजरकर आज के समय तक जो 6,000 वर्षों का लंबा समय बीत गया है, वह स्वर्गीय माता से मिलने के लिए समय था। चूंकि उस लंबे समय के अन्त में हम पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर से मिले हैं जिनसे मिलने को हमारा मन बहुत चाहता था, हमें पतरस की गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाहिए जिसने अपने खुद के विचार के कारण परमेश्वर के वचन को नकार दिया, बल्कि यह कहते हुए परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी होना है कि, “जहां कहीं आप हमें ले जाएंगे, वहां हम आपका पालन करेंगे।”

परमेश्वर के द्वारा बनाए गए स्वर्ग के मार्ग को छोड़ और कोई दूसरा मार्ग नहीं है जिससे हम अनन्त जीवन तक पहुंच सकते हैं। यदि हम दूसरे मार्गों को देखने के लिए इधर–उधर गर्दन झुकाएंगे, यह सोचते हुए कि शायद उससे बेहतर मार्ग होगा, तो हम उस जाल में फंस जाएंगे जिसे शैतान ने बनाया है।

यदि हम पिता के बलिदान के द्वारा तैयार किए गए जीवन के मार्ग पर सीधे आगे चलेंगे, अवश्य ही हमें अनन्त स्वर्ग दिखाई देगा। मुझे आशा है कि उस सुन्दर स्वर्ग में पहुंचने के लिए जहां पिता हमारा इंतजार कर रहे हैं, एक भी सदस्य छूटे बिना सिय्योन के सभी सदस्य स्वर्ग के मार्ग पर चलें और आखिर असंख्य स्वर्गदूतों के द्वारा शानदार स्वागत व सत्कार पाते हुए अपने घर स्वर्ग में प्रवेश करें।