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फसह का पर्व स्वर्ग के द्वार को खोलने की चाबी है
आज दुनिया में बहुत से चर्च हैं जो कहते हैं कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास है। लेकिन सिर्र्फ चर्च ऑफ गॉड है जो परमेश्वर के पर्वों में से एक नई वाचा का फसह मनाता है जिसमें उद्धार की प्रतिज्ञा शामिल है।
जैसे कि बाइबल कहती है, “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई(हो 4:6),” बहुत से लोग बाइबल को सही तरह से नहीं समझते और फसह के बारे में ऐसा मानते हैं कि उसे मनाने की जरूरत नहीं है; वे सोचते हैं कि यदि वे परमेश्वर पर सिर्फ विश्वास करें तो स्वर्ग का राज्य उनके निकट आएगा। बाइबल के वचनों के द्वारा आइए हम फसह के अर्थ पर पुनर्विचार करें और झूठ में से सत्य को पहचानें।
वे जो स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हैं
2,000 वर्ष पहले जब यीशु इस पृथ्वी पर आए, उन दिनों के धार्मिक नेता परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करने के बजाय बहुत लोगों का मार्गदर्शन गलत मार्ग पर कर रहे थे।
मत 23:13 हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उस में प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो।
शास्त्री और फरीसी उन दिनों की मुख्य धारा वाले धार्मिक नेता थे। फिर भी यीशु ने उन्हें यह कहकर फटकारा कि उन्हें लोगों की अगुवाई स्वर्ग के राज्य में करनी चाहिए लेकिन वे लोगों के लिए स्वर्ग का द्वार बन्द कर देते हैं और न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हैं और न ही उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हैं।
यह बात स्पष्ट है कि दूसरों को स्वर्ग में प्रवेश करने से रोकनेवाले लोग अन्त में कहां जाएंगे। यीशु ने बार–बार उन्हें सख्त चेतावनी दी।
मत 23:32–33 ... हे सांपो, हे करैतों के बच्चो, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे?
यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों की तुलना पुती हुई कब्रों से की। उन्होंने ऐसी तुलना इसलिए की क्योंकि बाहर से सुंदर दिखाई देने पर भी भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हुई कब्रों की तरह, वे बाहर से धर्मी दिखते थे, किन्तु अंदर से कपट और कुकर्म से भरे हुए थे(मत 23:27–28)। उन्होंने बहुत लोगों को धोखा देकर स्वर्ग में प्रवेश करने से रोका और इसलिए वे नरक के दण्ड से बिल्कुल नहीं बच सके।
आइए हम वह दृश्य देखें जहां उनकी कोशिश के बावजूद उन्हें स्वर्ग में प्रवेश करने से मना किया जाएगा।
मत 7:21–23 जो मुझ से, “हे प्रभु! हे प्रभु!” कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, “हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?” तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा, “मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।”
प्रभु–प्रभु कहने वाला हर व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेगा, परन्तु वही जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, स्वर्ग में प्रवेश कर सकेगा।
क्या आपको लगता है कि जो लोगों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हैं और उसमें प्रवेश करनेवालों को रोक देते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा पर चलने वाले हैं? बिल्कुल नहीं! भले ही वे प्रभु के नाम से भविष्यद्वाणी करते हैं, लेकिन यीशु उन्हें “हे कुकर्म करनेवालो” कहते हैं।
“मुझे बड़ी लालसा थी कि यह फसह तुम्हारे साथ मनाऊं”
तब, फसह का पर्व जिसे आज हम मनाते हैं‚ क्या उसे मनाना परमेश्वर की इच्छा है या नहीं? यीशु ने कहा कि यदि हम परमेश्वर की इच्छा पर चलें तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। इसलिए हमें स्पष्ट रूप से जानने की जरूरत है कि फसह मनाना परमेश्वर की इच्छा है या नहीं। आइए हम खोजें कि नया नियम फसह के बारे में क्या कहता है।
लूक 22:7–15 तब अखमीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्ना बलि करना आवश्यक था। यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा: “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।”... उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया और फसह तैयार किया। जब घड़ी आ पहुंची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं।”
यीशु ने अपने दो चेले पतरस और यूहन्ना को जिनसे वह खास प्रेम रखते थे, फसह की तैयारी करने के लिए भेजा। जब फसह का समय आया, तब यीशु मेज पर बैठे और कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं।” यह कहकर यीशु ने दिखाया कि वह फसह मनाने की कितनी अधिक तीव्र इच्छा रखते थे। इस तरह, फसह का पर्व यीशु की तीव्र अभिलाषा के अनुसार मनाया गया। फसह के भोज पर यीशु ने अपने चेलों के साथ इस प्रकार एक वाचा बांधी;
लूक 22:19–20 फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।”
फसह का पर्व मनाते समय यीशु ने रोटी ली और अपने चेलों को यह कहते हुए दी कि वह उनकी पवित्र देह है और उनके स्मरण के लिए यही करें। फिर उन्होंने दाखमधु का कटोरा लिया और अपने चेलों को यह कहते हुए दिया कि वह कटोरा उनके लहू में नई वाचा है। इससे उन्होंने हमें समझाया कि फसह का पर्व नई वाचा है जो हमारे लिए मसीह के द्वारा स्थापित की गई है।
फसह का पर्व एक पवित्र व्यवस्था, नियम और विधि है जिसे मानवजाति को बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए परमेश्वर ने अपने बहुमूल्य मांस और लहू के द्वारा स्वयं स्थापित किया। हम वही दृश्य मत्ती रचित सुसमाचार में भी देख सकते हैं। वह भी हमें स्पष्ट रूप से दिखाता है कि फसह मनाना हमारे प्रति परमेश्वर की इच्छा है।
मत 26:17–19 अखमीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” उसने कहा, “नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उससे कहो, ‘गुरु कहता है कि मेरा समय निकट है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहां पर्व मनाऊंगा’।” अत: चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी और फसह तैयार किया।
ऊपर के वचनों में भी हम देख सकते हैं कि यीशु ने स्वयं कहा कि वह फसह मनाएंगे और अपने चेलों को फसह की तैयारी करने की आज्ञा दी। यीशु ने हमें हर एक चीज का उदाहरण दिखाया ताकि हम उसका पालन कर सकें(यूह 13:15)। यीशु के चेलों के साथ फसह का पर्व मनाने का दृश्य उन चार सुसमाचार की पुस्तकों में लगातार प्रगट होता है जिसमें यीशु का जीवन और कार्य दर्ज है। इसके पीछे परमेश्वर की यह इच्छा छिपी होती है कि हम उनके उदाहरण के अनुसार फसह का पर्व मनाएं।
फसह का पर्व स्वर्ग के द्वार को खोलने का सत्य है
इसलिए नई वाचा का फसह मनाना हमारे प्रति यीशु की इच्छा, यानी परमेश्वर की इच्छा है। चूंकि यीशु ने कहा कि सिर्फ वही जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है, इसलिए सिर्फ वे ही जो फसह मनाते हैं, स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं।
फिर, कैसे फसह के पर्व के द्वारा स्वर्ग का द्वार खुल सकता है? आइए हम देखें कि फसह के पर्व में कौन सी आशीष शामिल है।
यूह 6:53–54 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है, और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में। जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा, और मैं पिता के कारण जीवित हूं, वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा। जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, उस रोटी के समान नहीं जिसे बापदादों ने खाया और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।”
यीशु ने कहा कि जब तक हम उनका मांस न खाएं और उनका लहू न पीएं, हम में जीवन नहीं है, और जो कोई उनका मांस खाता और उनका लहू पीता है, उनन्त जीवन उसी का है। उन्होंने फसह की रोटी और दाखमधु में यह महत्वपूर्ण अर्थ डाला है कि रोटी उनके मांस को दर्शाती है और दाखमधु उनके लहू को। इसलिए जो कोई फसह का पर्व नहीं मनाता, उसके पास भले ही इस पृथ्वी पर जीवन है, लेकिन स्वर्ग में सदा रहने के लिए अनन्त जीवन नहीं है।
स्वर्ग में मृत्यु नहीं है(प्रक 21:1–4)। इसलिए सिर्फ वे ही जिन्हें अनन्त जीवन की आशीष दी गई है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। फसह का पर्व जिसमें अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा है, सचमुच स्वर्ग का द्वार खोलने का सत्य है।
फसह एक पर्व है जिसे परमेश्वर ने 3,500 वर्ष पहले मूसा के समय से अपने लोगों को मनाने की आज्ञा दी है। परमेश्वर ने अपने लोगों को पुराने नियम के समय में पुराने नियम की विधि के अनुसार और नए नियम के समय में नए नियम की विधि के अनुसार फसह का पर्व मनाने का आदेश दिया है। यह इसलिए है क्योंकि वे सिर्फ तब ही स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं जब वे फसह मनाएंगे।
1कुर 11:23–26 क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया, रोटी ली, और धन्यवाद करके उसे तोड़ी और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
प्रेरित पौलुस ने प्रथम चर्च के सदस्यों से कहा कि जो शिक्षा उसने उन्हें दी है, वह उसकी खुद की शिक्षा नहीं, परन्तु प्रभु की शिक्षा है, और फिर उसने उन्हें फसह की विधि बताई और उनसे प्रभु के आने तक उसका प्रचार करने के लिए अनुरोध किया। पौलुस ने यीशु से जो शिक्षा पाई, वह फसह मनाना था। इसलिए फसह का पर्व जिसे आज हम मनाते हैं, ऐसा पर्व नहीं है जिसे हमें मनाने की जरूरत नहीं है, बल्कि वह जीवन की व्यवस्था है जिसे हमें अवश्य ही मनाना चाहिए।
फसह के पर्व के मिटाए जाने का इतिहास
इन सब के बावजूद चर्च ऑफ गॉड के अलावा कोई चर्च नहीं है जो आज फसह का पर्व मनाता है। यह सच में आश्चर्य की बात है। शैतान जो परमेश्वर का विरोध करता है, परमेश्वर के दिए जीवन के सत्य को मिटाने के लिए हर प्रकार की चालाक युक्तियों को बनाता है(दान 7:25)। यीशु के स्वर्गारोहण के लगभग 100 वर्ष बाद, यानी दूसरी शताब्दी से लेकर आज तक विशेषकर, वह स्वर्ग के द्वार को खोलने वाले फसह के सत्य को रोकने की कोशिश कर रहा है।
प्रेरितों के युग के बाद, प्रथम चर्च दो चर्चों में विभाजित हुआ; पूर्वी चर्च जो यरूशलेम व एशिया माइनर के द्वारा चलाया जाता था, और पश्चिमी चर्च जो रोम के द्वारा चलाया जाता था। उस समय रोम का चर्च जो ईस्टर पर भोज मनाता था, और पूर्वी चर्च जो फसह के पर्व पर भोज आयोजित करता था, उन दोनों के बीच फसह को लेकर कई बार वाद–विवाद होता था।
155 ईस्वी में पूर्वी चर्चों में से स्मुरना के चर्च के बिशप पोलिकार्प और पश्चिमी चर्च के प्रतिनिधि यानी रोम के चर्च के बिशप एनिसीटस के बीच पहला विवाद छिड़ गया। पोलिकार्प ने जिसे बारह प्रेरितों में से एक, यूहन्ना ने शिक्षित किया था, बड़ी सख्ती से पश्चिमी चर्च के इस दावे से इनकार किया कि पवित्र कैलेंडर के अनुसार नीसान नाम के पहले महीने के चौदहवें दिन फसह का पर्व मनाने की प्रथा को मिटाकर ईस्टर पर प्रभु भोज मनाना चाहिए।
पास्का(फसह) के मुद्दे पर उठा पहला विवाद नाकाम हो गया, और लगभग 197 ईस्वी में पूर्वी चर्च और पश्चिमी चर्च ने एक समान मुद्दे को लेकर फिर से विवाद शुरू किया। रोम के चर्च के बिशप विक्टर ने सभी चर्चों को जबरदस्ती इस डोमिनिकल नियम का पालन करने के लिए मजबूर किया कि वसंत विषुव के बाद पहली पूर्णिमा के बाद पहले रविवार को जिस दिन ईस्टर मनाया जाता है, वे फसह के पर्व का पवित्र भोज मनाएं। उस समय भी इफिसुस के बिशप पोलिक्रेट्स समेत पूर्वी चर्चों ने यह कहकर इस नियम से इनकार किया, “हमें अवश्य फसह का पर्व मनाना चाहिए जिसे प्रेरितों ने मनाया था।”
लेकिन शैतान की धूर्त साजिशों के कारण व्यवस्था का उल्लंघन करने वालों की शक्ति और अधिक बढ़ती गई, और 325 ईस्वी में रोमन सम्राट कॉनस्टॅन्टीन के द्वारा बुलाई गई नीकिया परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि पवित्र भोज ईस्टर पर मनाया जाएगा, और इससे फसह का पर्व पूरी तरह मिटा दिया गया। फसह का पर्व और ईस्टर एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, फिर भी शैतान ने इन दोनों पर्वों को चतुराई से जोड़ लिया और फसह के पर्व को मिटा दिया।
जब फसह का पर्व जिसमें अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा शामिल थी, मिटाया गया, तब उसके बाद 1,600 वर्षों से अधिक समय तक कोई भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सका। आज के दिनों में भी इस दुनिया में बहुत से चर्च फसह नहीं मनाते और बदले हुए सिद्धांतों का पालन करते हैं। लेकिन बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार इस पृथ्वी पर फिर से आए यीशु ने नई वाचा का फसह पुन:स्थापित किया, और स्वर्ग का द्वार जो पहले बन्द हुआ था, फिर से खोला गया।
एक अनन्त प्रतिज्ञा, फसह का पर्व
नई वाचा वह सत्य है जो सिर्फ परमेश्वर ही स्थापित कर सकते हैं। फसह के पर्व के दिन “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है,” यह कहते हुए यीशु के नई वाचा की घोषणा करने के लगभग 600 वर्ष पहले से ही, पुराने नियम की यिर्मयाह की पुस्तक में यह भविष्यवाणी की गई थी कि परमेश्वर नई वाचा को स्थापित करेंगे।
यिर्म 31:31–36 फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बांधूंगा... परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बांधूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है। तब उन्हें फिर एक दूसरे से यह न कहना पड़ेगा कि यहोवा को जानो, क्योंकि, यहोवा की यह वाणी है, छोटे से लेकर बड़े तक, सब के सब मेरा ज्ञान रखेंगे; क्योंकि मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।” जिसने दिन में प्रकाश देने के लिये सूर्य को और रात में प्रकाश देने के लिये चंद्रमा और तारागण के नियम ठहराए हैं, जो समुद्र को उछालता और उसकी लहरों को गरजाता है और जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है, वही यहोवा यों कहता है: “यदि ये नियम मेरे सामने से टल जाएं तब ही यह हो सकेगा कि इस्राएल का वंश मेरी दृष्टि में सदा के लिये एक जाति ठहरने की अपेक्षा मिट सकेगा।”
परमेश्वर ने कहा कि वह उनके परमेश्वर होंगे जिनके हृदय पर व्यवस्था लिखी हुई है और वे परमेश्वर के लोग होंगे। इसका मतलब है कि सिर्फ वे ही जो नई वाचा की व्यवस्था, यानी नई वाचा का फसह मनाते हैं, परमेश्वर के लोग हो सकते हैं। पिछले दिनों में किए गए उनके सभी अधर्मों और पापों को भी परमेश्वर ने क्षमा करने की प्रतिज्ञा की है। इस प्रतिज्ञा के बारे में परमेश्वर ने स्पष्ट कह दिया कि जिस प्रकार दिन में प्रकाश देने के लिए सूर्य को और रात में प्रकाश देने के लिए चंद्रमा और तारागण के पक्के और दृढ़ नियम ठहराए गए हैं, उसी प्रकार नई वाचा की प्रतिज्ञा कभी न बदलने वाली अनन्त और पक्की प्रतिज्ञा है।
जब नई वाचा के फसह के द्वारा स्वर्ग का द्वार खोला जाएगा, तब परमेश्वर जांचेंगे कि क्या हम अपने अन्दर उनका मांस और लहू रखते हैं या नहीं। जिस प्रकार इस संसार में खून की जांच के जरिए असली संतान का पता लग सकता है, उसी प्रकार फसह के जरिए परमेश्वर की संतान का पता लगता है; जिन्होंने फसह का पर्व मनाया है, वे स्वर्ग के फाटक से प्रवेश कर सकेंगे क्योंकि उन्होंने परमेश्वर से उनका मांस और लहू उत्तराधिकार में पाया है, मगर जिन्होंने फसह का पर्व नहीं मनाया है, उन्हें तुरन्त परमेश्वर की संतानों से अलग किया जाएगा क्योंकि उनमें परमेश्वर का मांस और लहू नहीं है।
संसार में अनगिनत चर्च हैं, लेकिन बहुत से ईसाई लोग विश्वास का जीवन जी रहे हैं, यह जाने बिना कि परमेश्वर की इच्छा क्या है और परमेश्वर कैसे हमें जीवन देते है। जैसे 2,000 वर्ष पहले बहुत से लोगों ने जिन्होंने परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा किया, यीशु से इनकार किया और उनकी शिक्षाओं को नकार दिया, इस युग में भी बहुत से लोग जो यीशु पर विश्वास करने का दावा करते हैं, फसह का पर्व नहीं मनाते जिसमें यीशु की पवित्र इच्छा शामिल है। यह बड़ी ही अफसोसजनक बात है।
हमें स्पष्ट रूप से महसूस करना चाहिए कि किस चर्च में उस नई वाचा का सत्य है जिसे परमेश्वर ने स्वयं स्थापित किया है, और हमें उस चर्च में जाना चाहिए ताकि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें। सिय्योन के भाइयो और बहनो! मैं आपसे निवेदन करता हूं कि फसह के जरिए दिए जाने वाले परमेश्वर के अनुग्रह को समझें और बहुत से लोगों को जो अब तक उसे नहीं जानते, बड़े साहस के साथ जीवन के सत्य, यानी नई वाचा के फसह का प्रचार करें।