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आसान मार्ग और सही मार्ग

हर किसी के जीवन में हमेशा एक आसान मार्ग होता है और एक सही मार्ग होता है। जब जापान ने कोरिया को अपना उपनिवेश बनाया, कुछ लोगों ने एक आसान और आरामदायक जीवन जीने के मार्ग को चुना, लेकिन कुछ ने सही मार्ग को चुना और अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अपने चुनाव के अनुसार, उन्होंने पूरी तरह से अलग–अलग जीवन जिया, और अंत में उन्हें बिल्कुल अलग–अलग परिणाम मिले: पहले वाले लोगों पर देशद्रोही का कलंक लगाया गया, लेकिन दूसरे वाले लोगों को कोरियाई आजादी के सेनानी के रूप में ख्याति प्राप्त हुई, और पीढ़ी दर पीढ़ी उनके नामों को याद किया जाता है।

हमारे विश्वास के जीवन में भी एक आसान मार्ग होता है और एक सही मार्ग भी होता है। अभी तक हमने अपने जीवन में उस सही मार्ग को चुना है जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किया है। हालांकि बहुत लोग यह सोचते हैं कि रविवार की आराधना का पालन करना सही है और उनके पास सही विश्वास है, लेकिन हम परमेश्वर के वचन, यानी सब्त का पालन करते हैं और सही मार्ग पर विश्वास रखते हैं। हर साल 25 दिसंबर को पूरा संसार खुशी में मस्त और त्योहार के रंग में रंगा होता है, लेकिन हम नई वाचा के फसह के पर्व जिसे परमेश्वर ने अपने लहू से स्थापित किया है, का पालन करते हैं और लोगों को उनकी गलत बताते हुए सही मार्ग सिखाते हैं।

हर कोई आसान मार्ग चुनता है, लेकिन सही मार्ग वह नहीं है जो हर कोई चुन सकता है। हम कौन से मार्ग पर चले हैं और हमें कौन से मार्ग पर चलना चाहिर, इसके बारे में हमें सोचना चाहिए, ताकि हम हमेशा सही मार्ग को चुन सकें और स्वर्गीय पिता और माता की इच्छा के अनुसार सच्चा व खरा जीवन जी सकें।

परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए


हम अपने जीवन में कई बार आसान मार्ग और सही मार्ग के बीच दोराहे पर खड़े होते हैं। सही मार्ग को चुनने के लिए हमें परेशानियां और पीड़ाओं को उठाना पड़ता है। जब हम दूसरे लोगों को आसान मार्ग चुनते हुए देखते हैं, तब ऐसा गलत सोचने लगते हैं कि, ‘दूसरे लोग आसान मार्ग पर चलते हैं, काश मैं भी आसान मार्ग पर चलूं!’

आसान मार्ग पर चलने के लिए शैतान हमें हमेशा भरमाता है। लेकिन परमेश्वर हमेशा हमें सही मार्ग की ओर ले जाते हैं, क्योंकि उस मार्ग के अंत में स्वर्ग का राज्य हमारा इंतजार करता है।

प्रे 14:21–22 वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए, और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।”

परमेश्वर के लोगों को, जो सच में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, दुख पाना होगा। यह संसार दुष्ट शैतान के नियंत्रण में है, जो परमेश्वर के लोगों को स्वर्ग में प्रवेश करने से रोकता है। जब हम ज्योति चमकाते हैं, अंधकार की शक्ति ज्योति से घृणा करती है और उसे अस्वीकार करती है, क्योंकि उसे डर होता है कि कहीं उसके दुष्ट कार्य उजागर न हो जाएं(यूह 3:19–21)। इसलिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

कठिन मार्ग को टालकर आसान मार्ग को चुनना, यह वह बात है जो शैतान चाहता है। उस मार्ग के अन्त में जो हमारा इंतजार कर रहा है, वह न्याय और विनाश है। सही मार्ग पर चलने के दौरान हम थकान और परेशानी महसूस कर सकते हैं। लेकिन उस मार्ग के अंत में अनंत स्वर्ग का राज्य हमारा इंतजार कर रहा है। इसलिए अंत तक हमें धीरज के साथ सही मार्ग पर चलना चाहिए।

बहुत लोग सही मार्ग का पालन नहीं करते, क्योंकि बिना असफल हुए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का दृढ़ संकल्प लिए बिना उस मार्ग पर चलना असंभव है। सिर्फ थोड़े लोग ही उस मार्ग पर चल सकते हैं। इसलिए बाइबल उस मार्ग का सकेत मार्ग या सकेत फाटक के रूप में वर्णन करती है(मत 7:13–14)।

यीशु ने सही मार्ग चुना


आसान और सही मार्ग के दोराहे पर हमेशा परीक्षा होती है। यीशु ने आसान मार्ग और सही मार्ग के दोराहे पर सही मार्ग को चुनने का उदाहरण दिखाया।

मत 4:1–4 तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो। वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। तब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं।” यीशु ने उत्तर दिया: “लिखा है, ‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।’”

जब यीशु अत्यंत भूखे और व्यथित थे, तब शैतान ने उनकी कमजोरी को ध्यान में रखा और यह कहते हुए यीशु की परीक्षा ली कि, “कह दे कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं।” शैतान ने यीशु से पत्थर को रोटियों में बदल देने को इसलिए कहा, क्योंकि वह यह अच्छी तरह से जानता था कि यीशु केवल प्रार्थना के द्वारा ही जौ की पांच रोटियों और दो मछलियों से पांच हजार लोगों को खिला सकते हैं।


यीशु ने आसान मार्ग और सही मार्ग के दोराहे पर बिना किसी हिचकिचाहट के सही मार्ग को चुना। एसाव के बारे में क्या? जब वह भूखा था, उसने सबसे पहले अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए केवल रोटी खाने के बारे में सोचा। वह बस खाना खाना चाहता था, और उसने अपने पहलौठे के जन्मसिद्ध अधिकार की परवाह किए बिना भोजन को चुना। हालांकि यीशु चालीस दिन तक उपवास करने के बाद एक अत्यंत नाजुक स्थिति में थे, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए परीक्षा पर विजय प्राप्त की कि, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहता है,” यह हमें सिखाता है कि हमें अत्यधिक भूखे और कठिन परिस्थिति में होने पर भी परमेश्वर के वचनों से जीना चाहिए।

मत 4:5–10 तब इब्लीस उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है: ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों–हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पांवों में पत्थर से ठेस लगे।’” यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’” फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।” तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’”

शैतान ने यीशु को अपने आपको मन्दिर के कंगूरे से नीचे गिराने का प्रलोभन दिया और कहा कि यदि वह परमेश्वर हो तो उसे कोई चोट न लगेगी। जब शैतान ने यीशु को आसान जीवन जीने का प्रलोभन दिया, यीशु ने कहा, “तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न करना।” उसके द्वारा उन्होंने हमें सिखाया कि परमेश्वर परीक्षा लेने का नहीं, बल्कि विश्वास करने का विषय है। क्या होता यदि यीशु ने अपने सभी दुश्मनों को, अर्थात् सैनिकों, महायाजकों, फरीसियों और शास्त्रियों को नष्ट करके क्रूस पर बलिदान होने से इनकार किया होता? यदि उन्होंने इस तरह का आसान मार्ग चुना होता, तो क्या हम बचाए जा सकते थे? यहां तक कि परमेश्वर ने भी जो कुछ भी कर सकते थे, अपनी सन्तानों को बचाने के लिए सही मार्ग, यानी बलिदान से भरे मार्ग को चुना।

अंत में शैतान ने यीशु को सुझाव दिया कि यदि वह गिरकर उसे प्रणाम करें और उसकी उपासना करें, तो वह उन्हें इस संसार का सारा वैभव और महिमा दे देगा। तब यीशु ने बाइबल की इस शिक्षा के द्वारा शैतान के प्रलोभन को दूर किया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर।” यीशु ने शैतान के हर एक प्रलोभन का यह जवाब दिया कि वह आसान मार्ग पर चलने के लिए कभी भी सही मार्ग को नहीं त्यागेंगे, फिर चाहे वह कितना भी कठिन मार्ग क्यों न हो। यह हमारे लिए एक व्यावहारिक सबक है जिसे यीशु ने शरीर में इस पृथ्वी पर आकर सिखाया।

यीशु ने एक प्रचारक के रूप में जीवन जीना चुना


शैतान हमेशा एक आसान मार्ग का सुझाव देता है। वह हमें भरमाने के लिए हमारे कानों में फुसफुसाते हुए कहता है, “यदि तुम ऐसा करोगो, तो तुम्हारा जीवन अब से और ज्यादा आसान हो जाएगा,” “एक बार जब तुम यह करोगे, तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी।” लेकिन मसीह ने अपनी सेवकाई की शुरुआत से ही सिखाया कि दुख और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें हमेशा विश्वास के साथ सही मार्ग की ओर बढ़ना चाहिए।

यदि हम सिर्फ आसान मार्ग ही लेना चाहते हैं, तो हम शैतान के प्रलोभन में फंस जाएंगे। लेकिन यदि हम सही मार्ग को चुनें, तो हम शैतान की हर एक रुकावट को पार कर सकेंगे। आइए हम इसके बारे में सोचें कि कैसे हम ईमानदार जीवन जी सकते हैं, और मसीह के जीवन को जांचें जिन्होंने सही मार्ग को चुना, ताकि हम पूरी तरह से उनके उदाहरण का अनुसरण कर सकें।

मत 4:17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।”

शैतान के प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करने के बाद वह पहला कार्य जो यीशु किया, वह इस संसार के लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा स्वर्ग के राज्य के मार्ग को जानने देना था। हमसे आगे सुसमाचार के मार्ग पर चलने के द्वारा उन्होंने हमें दिखाया कि प्रचार करना सभी कार्यों में से सबसे सही कार्य है जो हमें करना चाहिए।

मसीह का आखिरी निवेदन पूरे संसार में सुसमाचार का प्रचार करना था।

मत 28:18–20 यीशु ने उनके पास आकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूं।”

यीशु ने तीन साल की सेवकाई के दौरान यह कहते हुए कि, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है,” सुसमाचार का प्रचार किया और मानव जाति के उद्धार के लिए अपने आपको समर्पित किया और अपने पुनरुत्थान के बाद अपने चेलों से वह सही कार्य करने का निवेदन किया और फिर वह स्वर्ग में उठा लिए गए।

सुसमाचार का प्रचार करना कोई आसान बात नहीं है। प्रचार करने में बहुत सारी कठिनाइयां आती हैं। उन लोगों को जिनके हृदय केवल भौतिक अभिलाषाओं से भरे हुए हैं, मन फिराव का मन देकर परमेश्वर के पास वापस लौटाना बहुत कठिन होता है। इसी कारण पे्ररित पौलुस ने प्रचार करने के परिश्रम की तुलना जच्चा की पीड़ा से की(1कुर 4:15; गल 4:19)। लेकिन यही इस पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व होने और इस पृथ्वी पर सही ढंग से जीवन जीने का उपाय है। इसलिए परमेश्वर ने हमें सिर्फ खुद के बारे में सोचने के बजाय अपने आसपास के सभी लोगों की देखभाल करने की शिक्षा दी है। हमारे पवित्र स्वर्गीय पिता और माता की यह आज्ञा है कि हम सभी लोगों को बचाकर एक साथ अपने अनंत घर, स्वर्ग की ओर वापस लौट आएं।

बाइबल के द्वारा परमेश्वर ने हमारे जीवन के लिए स्पष्ट रूप से मार्गदर्शन प्रदान किया है, ताकि हम मसीह के जीवन का पालन कर सकें। यदि हम आसान मार्ग पर चलने के बजाय सही मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प करें और उस मार्ग पर चलें जिस पर पिता और माता चले, तो हम बहुत सी आत्माओं को बचाने में सक्षम हो पाएंगे।

आसान मार्ग और सही मार्ग जो योना ने चुना


सुसमाचार का प्रचार करते समय चाहे हम किसी भी प्रकार की मुश्किल का सामना करना पड़े, हमें हमेशा सही मार्ग चुनना चाहिए। योना नबी ने हमें सही मार्ग और आसान मार्ग को चुनने का परिणाम दिखाया।

योना 1:1–3 यहोवा का यह वचन अमित्तै के पुत्र योना के पास पहुंचा: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्टि में बढ़ गई है।” परन्तु योना यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को भाग जाने के लिये उठा, और याफा नगर को जाकर तर्शीश जानेवाला एक जहाज़ पाया; और भाड़ा देकर उस पर चढ़ गया...

परमेश्वर ने योना से नीनवे जाकर वहां के लोगों को अपना संदेश सुनाने के लिए कहा था। नीनवे नगर इस्राएल के दुश्मन–देश, यानी अश्शूर की राजधानी थी, जो इस्राएल को दुख देता था। नीनवे के लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते थे और मूर्तिपूजा करते थे। इसलिए योना ने वहां जाने से इनकार किया और परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करके तर्शीश को भाग जाने की कोशिश की। मुश्किल परिस्थिति से बचने के लिए, उसने परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होने के सही मार्ग पर चलने के बजाय आसान मार्ग को चुना। हालांकि योना ने जहाज में सवार होकर भाग जाने की कोशिश की, लेकिन वह परमेश्वर से नहीं भाग सका।


योना 1:4–7 तब यहोवा ने समुद्र में एक प्रचण्ड आंधी चलाई, और समुद्र में बड़ी आंधी उठी, यहां तक कि जहाज टूटने पर था... तब उन्होंने आपस में कहा, “आओ, हम चिट्ठी डालकर जान लें कि यह विपत्ति हम पर किस के कारण पड़ी है।” तब उन्होंने चिट्ठी डाली, और चिट्ठी योना के नाम पर निकली।

तब योना को समुद्र में फेंका गया, और एक बहुत बड़ी मछली ने जिसे परमेश्वर ने ठहराया था, उसे निगल लिया। उस मछली के अंदर रहने के दौरान, उसने परमेश्वर से पश्चाताप की प्रार्थनाएं कीं और नए सिरे से संकल्प किया कि उसे चाहे कितना ही मुश्किल क्यों न लगे, वह परमेश्वर की इच्छा का पालन करेगा। जब उसने अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ा, तब परमेश्वर ने मछली को आज्ञा दी और उसने योना को सूखी धरती पर अपने पेट से बाहर उगल दिया, और परमेश्वर ने फिर से योना को नीनवे जाने की आज्ञा दी।


योना 3:1–10 तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुंचा: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूंगा, उसका उस में प्रचार कर।” तब योना यहोवा के वचन के अनुसार नीनवे को गया... योना ने नगर में प्रवेश करके एक दिन की यात्रा पूरी की, और यह प्रचार करता गया, “अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।” तब नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया... राजा ने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया: “क्या मनुष्य, क्या गाय–बैल, क्या भेड़–बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएं और न पानी पीएं। मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्वर की दोहाई चिल्ला–चिल्ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्चात्ताप करें। सम्भव है, परमेश्वर दया करे और अपनी इच्छा बदल दे, और उसका भड़का हुआ कोप शान्त हो जाए और हम नष्ट होने से बच जाएं।” जब परमेश्वर ने उनके कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।

जब परमेश्वर ने योना को जिसने पश्चाताप किया, दुबारा नीनवे जाने के लिए कहा, तब उसने बिना हिचकिचाहट के सही मार्ग को चुना। जब वह वहां गया और नीनवे के लोगों को परमेश्वर के वचन का प्रचार किया, तब कुछ अकल्पनीय घटना घटी। राजा सहित नीनवे के सभी लोगों ने परमेश्वर पर विश्वास किया और उपवास करते हुए अपने पापों से मन फिराया। इसके परिणामस्वरूप 1,20,000 से भी ज्यादा लोग आने वाली विपत्ति से बचाए गए(योना 4:10–11)।

बाइबल कहती है कि जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गईं हैं(रो 15:4)। योना की पुस्तक हमें क्या सिखाती है? शुरुआत में योना ने आसान मार्ग को चुना और इससे उसे परमेश्वर से दण्ड मिला। लेकिन वह मछली के अंदर रहते समय पछताया, और उसने निडर होकर परमेश्वर के वचनों का प्रचार किया। इससे यह अद्भुत परिणाम निकला कि 1,20,000 लोगों ने तुरन्त पश्चाताप किया। नए नियम में हम देख सकते हैं कि पतरस ने एक दिन में 3,000 से 5,000 लोगों की मन फिराव की ओर अगुवाई की, लेकिन पुराने नियम में उस अभिलेख को ढूंढ़ना मुश्किल है जिसमें उल्लेख किया गया कि इतनी ज्यादा संख्या में परमेश्वर को न जानने वाले अन्यजातियों के लोगों ने अपना मन फिराया। “चाहे मैं मर ही क्यों न जाऊं, जैसे भी बन पड़ेगा, ऐसा करूंगी,” इस मजबूत संकल्प के साथ सही मार्ग को चुनने से ये सभी परिणाम निकले।

परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए जानेवाले लोगों का चुनाव और उनका परिणाम


ज्यादातर लोग आसान मार्ग को चुनना चाहते हैं। लेकिन हमें आसान मार्ग के बजाय सही मार्ग चुनना चाहिए। यदि हम पिता और माता की इच्छा के अनुसार सही मार्ग को चुनेंगे, तो हमारे जीवन में चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं, पर शैतान की शक्ति नष्ट हो जाएगी।

स्वर्गीय पिता और माता ने अपनी सन्तानों को सिखाया है कि हम अपने जीवन में आसान मार्ग चुनने के बजाय मुश्किलों में ईमानदार जीवन जीएं, और उन्होंने हमारे लिए ऐसा जीवन जीने का उदाहरण भी दिखाया है। चूंकि हमने पिता और माता के उदाहरण का पालन किया है, इसलिए चर्च ऑफ गॉड का आश्चर्यजनक रूप से विकास हुआ है।

अब पूरे संसार में हमारे भाई और बहनें सभी 700 करोड़ लोगों को बचाने के लिए मजबूत संकल्प के साथ एक साथ सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं। हमें इसलिए प्रचार करना चाहिए क्योंकि यही सही कार्य है जिसे हमें करना चाहिए। यदि हम बस उन्हें अकेला छोड़ दें, वे सभी नरक की ओर चले जाएंगे। इसलिए हम उनकी आत्माओं की चिंता करते हैं यह सोचते हुए कि, ‘हम कैसे उन्हें मन फिराव का मन देकर स्वर्ग ले जा सकते हैं?’ क्या हमें अपने हृदय में ऐसी ईमानदारी रखते हुए सुसमाचार का प्रचार नहीं चाहिए? क्या होगा यदि हम केवल आसान मार्ग अपनाते हुए जीना चाहें। जब योना ने आसान मार्ग को चुना, उसने दूसरों की परवाह न करते हुए बस अपनी खुद की सुरक्षा की ओर ध्यान दिया, लेकिन जब उसने सही मार्ग चुना, तब वह प्रचार करते हुए मरने को भी तैयार था। तब परमेश्वर ने नीनवे के सभी लोगों को मन फिराव की ओर ले आने में योना की सहायता की। यदि हम भी इस तरह से सही मार्ग को चुनें, तो अवश्य ही परमेश्वर हमें वह शक्ति और अनुग्रह देंगे जो उन्होंने योना को प्रदान की थी, ताकि सारी मानवजाति बचाई जा सके।

1थिस 2:3–4 ... पर जैसा परमेश्वर ने हमें योग्य ठहराकर सुसमाचार सौंपा, हम वैसा ही वर्णन करते हैं, और इस में मनुष्यों को नहीं, परन्तु परमेश्वर को, जो हमारे मनों को जांचता है, प्रसन्न करते हैं।

प्रचार वह सही कार्य है जो सिर्फ उसी के द्वारा किया जाता है जिसे परमेश्वर योग्य ठहराते हैं। बाइबल कहती है कि जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे स्वर्ग में सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे। इसका कारण यह है क्योंकि परमेश्वर जानते हैं कि अपने खुद के क्रूस को उठाते हुए और मसीह के बलिदान के सहभागी होते हुए फल उत्पन्न करना बिल्कुल भी आसान कार्य नहीं है।

तोड़ों के दृष्टान्त में वह व्यक्ति जिसे पांच तोड़े मिले थे, उसी वक्त बाहर चला गया और कठिन परिश्रम किया, और उसने पांच और कमाए। लेकिन वह व्यक्ति जिसे एक तोड़ा मिला था, उसने कुछ न किया और बस जाकर अपने तोड़े को मिट्टी में छिपा दिया(मत 25:14–30)। यदि हम अपने तोड़ों को छिपा दें और बस चुप रहें, तो हम अपने आसपास के लोगों को नहीं बदल सकते। इसके विपरीत, यदि हम मुश्किलों पर विजय पाते हैं और उत्सुक होते हुए सुसमाचार का प्रचार करते हैं, हम अपने तोड़ों के साथ बहुतायत से फल उत्पन्न करेंगे।

मैं आशा करता हूं कि सिय्योन में आप सभी भाई–बहनें चाहे किसी भी कठिनाई का सामना करना पड़े, परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञाकारी होकर सही मार्ग पर लगातार चलते रहें। सही मार्ग पर बहुत सी कठिनाइयां हमारा इंतजार करती हैं, लेकिन उसी सही मार्ग पर पैदा किए जाने वाले फल बहुत ही बहुमूल्य हैं। आइए हम अपने आपको जांचकर देखें कि हम अब किस प्रकार का जीवन जी रहे हैं: ‘क्या मैं एक तोड़ा धारने वाले व्यक्ति के समान आसान जीवन जी रहा था? या फिर क्या मैं दस और तोड़ों को कमाने के लिए सही मार्ग पर चल रहा था?’ मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि आप उस सही मार्ग पर चलें जिस पर हमसे आगे पिता और माता चले, और संसार के सभी लोगों की स्वर्ग की ओर अगुवाई करें ताकि आप हमेशा पवित्र आत्मा की आशीषों से भरपूर रह सकें और जरूर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।