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अनन्त जीवन, माता परमेश्वर

वैज्ञानिक लंबे समय से जीवन की शुरुआत और प्रकृति के प्रति जिज्ञासु थे, और उन्होंने उस पर लगातार अध्ययन किया है। परिणाम में हाल ही में उन्होंने जाना कि मनुष्य सहित सभी जीवों की विशेषताएं और उनकी जीवनावधि उस जीन से निर्धारित होती है जो वे अपने माता–पिता से विरासत में पाते हैं। मगर अब भी जीवन के बारे में बहुत से अनसुलझे हुए सवाल हैं।

बाइबल वह पुस्तक है जो उन परमेश्वर की गवाही देती है जो जीवन के सृष्टिकर्ता हैं और जो स्वयं अनन्त जीवन हैं। बाइबल में जीवन के रहस्य हैं जिन्हें वैज्ञानिक अभी तक सुलझा नहीं सके हैं। इस समय आइए हम बाइबल में उन रहस्यों को खोजें जो संसार की सृष्टि के समय से गुप्त रखे गए हैं।

परमेश्वर के पास अनन्त जीवन है



परमेश्वर जिन पर हम विश्वास करते हैं और जिनका हम प्रचार करते हैं, वह सभी लोगों को जीवन और श्वास देने वाले हैं(प्रे 17:25)। बाइबल स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि क्यों हम मनुष्यों को परमेश्वर को जानना चाहिए।

आम 5:4 यहोवा, इस्राएल के घराने से यों कहता है: मेरी खोज में लगो, तब जीवित रहोगे।

आत्मिक रूप से सभी मानव जाति पापी हैं जो स्वर्ग में पाप करके इस पृथ्वी पर गिरा दिए गए हैं। चूंकि वे पाप की जंजीरों से बंधे होकर मृत्यु से बच नहीं सकते, इसलिए जीवित रहने के लिए उन्हें अवश्य परमेश्वर को ढूंढ़ना चाहिए।

तब परमेश्वर की अप्रतिम विशेषता क्या है जो हमें उन्हें पहचानने में सक्षम बनाती है? वह अनन्त जीवन है। स्वर्ग में न तो स्वर्गदूत और न ही कोई दूसरे आत्मिक जीव अमर हैं। केवल परमेश्वर के पास ही अमरता है और हमें जीवन दे सकते हैं। चूंकि सिर्फ परमेश्वर ही अनन्त जीवन का मार्ग है, इसलिए मानव जाति को अनन्त जीवन देने के लिए, उन्होंने उन्हें करने के लिए एक कार्य दिया है। कार्य यह है कि वे परमेश्वर की खोज करें।

यूह 5:39 तुम पवित्रशास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।

जैसे ऊपर का वचन कहता है, बाइबल वह पुस्तक है जो उन परमेश्वर की गवाही देती है जो हमें अनन्त जीवन देते हैं। बाइबल में अनन्त जीवन छिपा हुआ है, और अनन्त जीवन देने वाले परमेश्वर का रहस्य भी छिपा हुआ है। हमें बाइबल में ही अनन्त जीवन का मार्ग खोजना चाहिए और साथ ही परमेश्वर को भी ढूंढ़ना चाहिए।

यूह 10:10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।

यूह 14:6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूं...

परमेश्वर जो जीवन हैं, 2,000 वर्ष पहले एक बालक के रूप में इस पृथ्वी पर आए। वह यीशु मसीह थे। यीशु के इन वचनों में, “जीवन मैं ही हूं,” हम परमेश्वर को खोज सकते हैं जो मानव जाति को बचाने के लिए शरीर में इस पृथ्वी पर आए। परमेश्वर ने मनुष्यों पर दया की जो स्वर्ग में पाप करके पृथ्वी पर गिरा दिए गए थे, और वह स्वयं उन्हें अनन्त जीवन देने के लिए आए।

हव्वा जो जीवन देती है, माता परमेश्वर जो अनन्त जीवन देती हैं



मानव जाति को जीवन देने के लिए यीशु इस पृथ्वी पर आए, और उन्होंने हमारे पापों को उठाकर और क्रूस पर अत्यधिक दर्द को सहन करके अपने पवित्र मांस और बहुमूल्य लहू के द्वारा उद्धार की प्रतिज्ञा, यानी नई वाचा के फसह को स्थापित किया। और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जो लोग उनकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिए वह दूसरी बार दिखाई देंगे।(इब्र 9:27–28)

दूसरी बार आकर उद्धार देने की उनकी प्रतिज्ञा का अर्थ है कि वह प्रथम आगमन के समय की तरह द्वितीय आगमन के समय भी मानव जाति को जीवन देंगे। उस बलिदान के मार्ग ने, जिस पर यीशु 2,000 वर्ष पहले शरीर में आकर चले, मानवजाति को उद्धार देने में कोई कमी नहीं रखी, लेकिन क्यों यीशु को दूसरी बार आने की जरूरत थी?

बाइबल की भविष्यवाणियों के मुताबिक, यीशु को उस नई वाचा के सत्य को पुन:स्थापित करने के लिए दूसरी बार आना चाहिए जिसे उन्होंने प्रथम आगमन के समय इस पृथ्वी पर स्थापित किया था। यदि प्रथम आगमन के समय से तुलना करें, तो द्वितीय आगमन के समय में सिर्फ एक चीज अलग है। वह नई यरूशलेम स्वर्गीय माता है, जिन्हें परमेश्वर ने प्रकाशन में प्रेरित यूहन्ना और पौलुस को दिखाया। स्वर्गीय माता यीशु के दूसरी बार आते समय प्रकट होंगी। यीशु के दूसरी बार आने का उद्देश्य हमें स्वर्गीय माता के बारे में जानने देना है।

उत 3:20 आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई।

मत 22:32 ... वह मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवतों का परमेश्वर है।

आदम ने अपनी पत्नी का नाम “हव्वा” रखा, जिसका अर्थ इब्रानी शब्द में “जीवन” है। हव्वा, जिसके नाम का अर्थ “जीवन” है, सभी मनुष्यों की आदिमाता हुई।

परमेश्वर का वर्णन “जीवितों के परमेश्वर” के रूप में किया गया है। इसका मतलब है कि वह छोटी व सीमित जीवनावधि के बाद मरने वालों के नहीं, बल्कि सदा से सदा तक जीने वालों के परमेश्वर होंगे। दूसरे शब्दों में परमेश्वर मानव जाति को अनन्त जीवन देंगे। परमेश्वर “जीवितों के परमेश्वर” हैं, और हव्वा को “सभी मनुष्यों की आदिमाता” कहा जाता है। वह सिर्फ परमेश्वर हैं जो मानव जाति को जीवन दे सकते हैं। तब ऐसा क्यों है कि हव्वा को “जीवन” कहा गया?

आदम दूसरी बार आनेवाले यीशु का चिन्ह है(रो 5:14)। चूंकि आदम दूसरी बार आनेवाले यीशु को दर्शाता है, उसकी पत्नी हव्वा निस्संदेह दूसरी बार आनेवाले यीशु की आत्मिक पत्नी को दर्शाती है। यह दिखाता है कि मानव जाति को अनन्त जीवन देने के लिए माता परमेश्वर को प्रकट होना चाहिए।

प्रक 22:17 आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुननेवाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।

परमेश्वर अनन्त जीवन का मार्ग है। इसलिए परमेश्वर मनुष्यों को अनन्त जीवन देने के लिए इन अंतिम दिनों में पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में इस पृथ्वी पर आए। मानव जाति को तब जीवन दिया गया था जब हव्वा आदम के सहायक के रूप में प्रकट हुई थी। इसी तरह, हमें अनन्त जीवन तब दिया गया है जब माता परमेश्वर पिता परमेश्वर के साथ उनकी दुल्हिन के रूप में प्रकट हुईं। जैसे आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा(जीवन) रखा, ठीक वैसे ही दूसरी बार आनेवाले यीशु ने उन माता परमेश्वर के बारे में सत्य प्रकट किया जो सभी मनुष्यों की आदिमाता है।

जीवन माता से विरासत में मिलता है



परमेश्वर की प्रबल इच्छा है कि मानव जाति, जो पाप के कारण अंधी होकर अंधकार में भटक रही है, अनन्त जीवन का मार्ग खोजे। इसलिए परमेश्वर ने अपनी रची हुई सारी सृष्टियों के द्वारा अपनी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व को साफ–साफ दिखाया है, ताकि मनुष्य परमेश्वर का पता लगा सकें।

रोम 1:18–20 ... इसलिये कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है। उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।

परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हर जीवित प्राणी के पास अपना निर्धारित जीवनकाल है। क्षणभंगुर मक्खी पूरी तरह से विकसित होने के बाद औसत सिर्फ एक ही दिन तक जीवित रहती है। कुत्तों का औसत जीवनकाल 15 वर्ष का होता है। हाथी जो जमीन पर रहने वाला सबसे बड़ा जानवर है, लगभग 60 वर्ष की आयु तक जीते हैं। समुद्री कछुए, जिन्हें दीर्घजीवी प्राणी माना जाता है, लगभग 200 वर्ष तक जीते हैं।

भले ही वे एक ही जगह, यानी पृथ्वी पर रहते हैं, लेकिन प्रजातियों के अनुसार उनके जीवनकाल में क्यों बहुत बड़ा अंतर होता है? यह इसलिए है क्योंकि हर एक प्रजाति को अपने माता–पिता से निर्धारित जीवनकाल विरासत में मिलता है। क्षणभंगुर मक्खियां इसलिए एक दिन तक जीती हैं क्योंकि उनकी माताएं सिर्फ एक ही दिन तक जीती हैं। हाथी औसत 60 वर्ष की आयु तक जीते हैं क्योंकि उनकी माताओं का औसत जीवनकाल 60 वर्ष का होता है। चाहे वे लंबा जीवन जीने की कितनी ही कोशिश क्यों न करें, वे अपने माता–पिता से विरासत में मिले जीवनकाल को पार कर सौ वर्ष या हजार वर्ष तक नहीं जी सकते।

परमेश्वर ने इस तरह प्रत्येक जीव को जीवनकाल दिया है। इसके पीछे परमेश्वर की गहरी पूर्व योजना है।

1यूह 2:25 और जिसकी उसने हमसे प्रतिज्ञा की वह अनंत जीवन है।

परमेश्वर ने हमसे अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा की है। इसका मतलब है कि जैसे इस पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणी अपने माता–पिता से जीवन विरासत में प्राप्त करते हैं, परमेश्वर जो हमारे आत्मिक पिता और माता हैं, हमें अपना अनन्त जीवन का डीएनए विरासत में देंगे।

सभी जीवों को अपने माता–पिता से एक निर्धारित जीवनकाल विरासत में मिलता है। उन्नत व आधुनिक विज्ञान के सहारे यह अब साबित किया गया है कि हमें अपने जीवन की सभी गतिविधियों की प्रेरक शक्ति अपनी माताओं से विरासत में मिलती है। परमेश्वर की बनाई हुई सभी चीजों में छिपा जीवन का गहरा सिद्धांत अभी उन वैज्ञानिकों के द्वारा पहचाना जा रहा है जो जीवन का अध्ययन कर रहे हैं।

जीवन का स्रोत, माता परमेश्वर



हमारा शरीर अधिक कोशिकाओं से बना हुआ है, और कोशिकाओं के भीतर माइटोकॉण्ड्रिया नामक अंग हैं। माइटोकॉण्ड्रिया हमारे शरीर के कोशिका के कार्यरत होने की ऊर्जा बनाता है। माइटोकॉण्ड्रिया के बिना, हम देख या सोच नहीं सकेंगे और हम सांस भी नहीं ले सकेंगे।

माइटोकॉण्ड्रिया इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सिर्फ माता से पारित होकर उसके बच्चे में जाता है। दूसरे शब्दों में नाभिकीय डीएनए का आधा भाग पिता से और आधा माता से मिलता है, लेकिन माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सिर्फ माता से ही पारित होकर उसके बच्चे में जाता है।

क्या होगा यदि हम अपनी माताओं से माइटोकॉण्ड्रिया प्राप्त न करें? माइटोकॉण्ड्रिया के बिना जीवन नहीं हो सकता। माता उस ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है जिससे जीवन उत्पन्न होता है।

गल 4:26 पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है।

जैसे हमारे पास पृथ्वी पर मानव माताएं हैं जो जीवन की ऊर्जा का मुख्य स्रोत विरासत में देती हैं, ठीक वैसे ही हमारे पास स्वर्ग में माता परमेश्वर हैं जो हमें अनन्त जीवन विरासत में देती हैं। इसलिए हमें परमेश्वर से, जिनके पास अनन्त जीवन है, उनका डीएनए विरासत में पाना चाहिए, विशेष रूप से माता परमेश्वर का अनन्त जीवन का डीएनए विरासत में पाना चाहिए।

उत 1:26–27 फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं...”... तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।

परमेश्वर ने ऐसा नहीं कहा, “मैं मनुष्य को बनाऊंगा,” लेकिन कहा, “हम मनुष्य को बनाएं।” मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया, और नर और नारी की सृष्टि हुई। इससे हम जान सकते हैं कि परमेश्वर के दो स्वरूप हैं: नर स्वरूप और नारी स्वरूप।

यीशु ने हमें सिखाया कि परमेश्वर का नर स्वरूप “हमारे पिता” हैं(मत 6:9)। तो नारी स्वरूप की परमेश्वर को जिन्होंने मानव जाति की सृष्टि की, बेशक, “हमारी माता” होनी चाहिए। प्रेरित पौलुस ने दर्शन में स्वर्ग में मौजूद हमारी माता के अस्तित्व को देखा और उनके बारे में बाइबल में लिखा।

परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जीवन देने वाले परमेश्वर के बारे में जानें। किसी भी युग में व्यवस्था ने परमेश्वर की ओर हमारी अगुवाई करने वाले शिक्षक की भूमिका निभाई। जैसे इस संसार में माता के बिना जीवन का जन्म नहीं हो सकता, वैसे हम माता परमेश्वर को जाने बिना अनन्त जीवन नहीं पा सकते।

हमारा अनन्त घर, स्वर्ग जहां माता निवास करती हैं



इस संसार में अब भी बहुत से लोग हैं जो माता परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। शैतान लंबे समय से सत्य को बिगाड़कर और झूठे ज्ञानों को फैलाकर मनुष्यों को धोखा दे रहा है। इसके परिणाम में बहुत से लोग परमेश्वर के अस्तित्व को स्पष्टता से नहीं पहचान पाते और गलत सोचते हैं कि परमेश्वर सिर्फ पिता अकेले होते हैं।

निम्नलिखित भविष्यवाणी के द्वारा, बाइबल स्पष्ट रूप से दिखाती है कि उनके साथ क्या होगा जो माता परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते।

2थिस 1:7–8 ... उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उनसे पलटा लेगा।

बाइबल कहती है कि जब परमेश्वर धधकती आग में स्वर्ग से प्रगट होंगे तब वह उन्हें दण्ड देंगे जो परमेश्वर को नहीं पहचानते। पूर्ण रूप से परमेश्वर को जाने बिना परमेश्वर के दण्ड से कोई भी नहीं बच सकता। जीवन पाने के लिए हमें परमेश्वर को खोजना चाहिए जो इस पृथ्वी पर दूसरी बार आए हैं।

बहुत से लोग हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते। हमें उन सभी की अगुवाई सिय्योन में करनी चाहिए, क्योंकि अगर वे परमेश्वर के बारे में अनजान रहें, तो वे परमेश्वर के दण्ड का सामना करेंगे। बाइबल कहती है कि सिय्योन में जहां परमेश्वर निवास करते हैं और नई वाचा मनाई जाती है, छोटे से लेकर बड़े तक, सभी लोग परमेश्वर को जानेंगे।(यिर्म 31:31–34; यश 33:20–24) सिय्योन वह जगह है जहां वे लोग एक साथ इकट्ठे होते हैं जिन्होंने माता परमेश्वर को महसूस करके अनन्त जीवन पाया है।

पिता परमेश्वर स्वयं इस पृथ्वी पर आए और हमें माता परमेश्वर के बारे में सिखाया, और उन्होंने वादा किया कि जितनी अधिक हम माता परमेश्वर की महिमा की घोषणा करेंगे, उतने अधिक सभी जातियों के लोग सिय्योन में धारा के समान उमड़ आएंगे।(यश 60:1–9) यह इसलिए है क्योंकि माता एक चाबी है जो लोगों के हृदयों के मजबूती से बन्द हुए दरवाजों को खोल सकती है। सभी उम्र के लोगों और देशों में “माता” शब्द हर एक के हृदय को छूता है और उनकी आंखों में आंसू लाता है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि उनकी आत्माएं अचेतनता से माता परमेश्वर को महसूस करती हैं और उन्हें याद करती हैं।

हम सभी स्वर्गीय परिवार के सदस्य हैं जो माता के साथ रहने के कारण खुश हैं। लोग इसलिए अपने घर को याद करते हैं और वहां जाते हैं क्योंकि वहां उनकी माता है। मैं चाहता हूं कि आप सभी अपने घर, यानी स्वर्ग में जहां हमारे आत्मिक पिता और माता एक साथ निवास करते हैं, सदा सर्वदा खुशी और आनन्द मनाएं।