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सदा आनन्दित रहो

स्वर्ग का राज्य जहां हम जा रहे हैं, वह जगह कितने आनंद और उल्लास से भरी रहेगी! बाइबल हमें कहती है कि इस पृथ्वी की वस्तुएं स्वर्ग की वस्तुओं का प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब है(इब्र 8:5)। इसलिए अगर हम ध्यान से आनन्द की भावनाओं को जांचेंगे जो परमेश्वर ने हम मनुष्यों को दी हैं, तो हम सच्चे आनन्द को महसूस कर सकते हैं जो हम स्वर्ग में भोगेंगे।

आनन्द और खुशी जो हम महसूस करते हैं, वह मुस्कान और हंसी के द्वारा व्यक्त होते हैं। हर दिन की बातचीत में जब हम भारी विषयों या नकारात्मक चीजों के बारे में बातें करते हैं, तब हम असहज महसूस करते हैं और हमारे चेहरे सख्त हो जाते हैं। इसके विपरीत, जब हम कुछ मजाकिया या दिल बहलाने वाली बातें करते हैं, तब हमारे चेहरे पर मुस्कान या हंसी आती है। बहुत हंसते हुए हम अपने दिल से बोझ को निकाल देते हैं, और भले ही यह थोड़े समय के लिए हो, हम खुशी की भावनाओं का पूरी तरह से आनन्द उठाते हैं। उस समय, सभी लोग स्वर्ग में होने जैसा महसूस करते हैं।

जैसे बाइबल कहती है, “भक्ति की साधना कर”(1तीम 4:7), हमें भक्ति की साधना करने के लिए और साथ ही आनन्दित रहने के लिए खुद को प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि हम आनन्द से भरे हुए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें। परमेश्वर अपनी संतानों को हर्ष और आनन्द से भरा विश्वास का जीवन जीने के लिए मदद करते हैं।

हर्ष और आनन्द से भरा सिय्योन



यीशु कहते हैं कि जो परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।(मत 7:21) तो सदा आनन्दित रहना भी परमेश्वर की इच्छा है जिसे हमें अभ्यास में लाना चाहिए।

1थिस 5:16–18 सदा आनन्दित रहो। निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।

अभी तक हमने सब्त के दिन और फसह के पर्व सहित परमेश्वर की व्यवस्थाओं को ऐसी आज्ञाओं के रूप में बहुमूल्य माना है जिनका हमें पालन करना चाहिए, लेकिन हर समय आनन्दित रहने की परमेश्वर की आज्ञा को हम अक्सर भूल जाते हैं। परमेश्वर ने हमें “सदा आनन्दित रहने” के लिए कहा है। हम पाप और मृत्यु से बच गए हैं और स्वर्ग जा सकते हैं जहां अनन्त जीवन और खुशी है। तो क्या कोई ऐसा कारण है जिससे हम सदा आनन्दित नहीं रह सकते?

अगर हम अब्राहम के परिवार के इतिहास को जांचें, तो हम देख सकते हैं कि अब्राहम के एकमात्र वारिस का नाम इसहाक था जिसका अर्थ है, “हंसी”। चूंकि बाइबल कहती है कि हम “इसहाक के समान प्रतिज्ञा की संतान हैं,” क्या हमें जिन्होंने परमेश्वर से ऐसी बहुमूल्य प्रतिज्ञा पाई है, हमेशा हंसी, खुशी और धन्यवाद से भरा जीवन नहीं जीना चाहिए? अगर हम ऐसा करें, तो जैसे इसहाक ने अपने पिता अब्राहम और माता सारा को मुस्कान दी, वैसे हम स्वर्गीय पिता और माता को मुस्कान दे सकते हैं(उत 21:1–7; गल 4:28)

यदि हम हमेशा आनन्द न करें और न मुस्कुराएं, तो यह शायद इसलिए है कि भले ही हमने पहले से परमेश्वर की प्रतिज्ञा को ग्रहण किया है, लेकिन हमने अभी तक पूरी तरह से उसके मूल्य को नहीं महसूस किया है। जिनको अपने उद्धार का निश्चय है, वे हर दिन लगातार खुशी का जीवन जीते हैं। परमेश्वर हमें “हंसी” अर्थ वाले नाम, यानी इसहाक के समान प्रतिज्ञा की संतान कहकर बुलाते हैं, तो आइए हम स्वर्ग की संतान के रूप में हमेशा मुस्कुराएं और हंसें। बाइबल हमें दिखाती है कि सिय्योन, जहां इसहाक के समान प्रतिज्ञा की संतान एक साथ इकट्ठी होती हैं, आनन्द और धन्यवाद से भरी जगह है।

यश 51:3 यहोवा ने सिय्योन को शान्ति दी है, उसने उसके सब खण्डहरों को शान्ति दी है; वह उसके जंगल को अदन के समान और उसके निर्जल देश को यहोवा की वाटिका के समान बनाएगा; उसमें हर्ष और आनन्द और धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सुनाई पड़ेगा।

परमेश्वर कहते हैं कि हर्ष, आनन्द, धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सिय्योन में सुनाई पड़ेगा। इस दुनिया में दर्द, शोक और विलाप का शब्द सुनाई पड़ता है, लेकिन सिय्योन में हर्ष और आनन्द के शब्द का कभी अन्त न होगा। सिय्योन और इस दुनिया के बीच यही अंतर है।

यीशु कहते हैं कि बाइबल के वचनों से एक मात्रा या एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा(मत 5:18)। इसलिए सिय्योन को हर्ष और आनन्द से भरी जगह होना चाहिए। जब हम स्वर्ग जाएंगे, हम हर दिन खुशी से भरे रहेंगे, लेकिन हमें पहले इस पृथ्वी पर हर्ष और धन्यवाद से भरा जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए।

माता खुशी उत्पन्न करती है



यह कहा जाता है कि बच्चे एक दिन में लगभग 400 बार हंसते हैं। लेकिन वे वयस्क बनने पर दिन में सिर्फ 8 बार हंसते हैं, और 50 साल से ऊपर की आयु में पहुंचने पर उससे भी कम हंसते हैं।

आपको क्या लगता है कि बच्चे क्यों वयस्कों की तुलना में अधिक बार हंसते हैं? यह इसलिए है क्योंकि हमेशा उनके पास उनकी माताएं हैं, जो उनकी हंसी का स्रोत है। जब माताएं हंसती हैं, तब वे भी हंसते हैं। जब माताएं उनके साथ खेलती हैं, तब वे ठठाकर हंसने लगते हैं। जब माताएं उनसे हास्य शब्द कहती हैं, तब वे अपनी हंसी नहीं रोक पाते। लेकिन, जैसे–जैसे वे बड़े होते हैं, वे अपनी माताओं के साथ कम समय बिताते हैं। मुझे लगता है कि इससे उन्हें हंसने का समय कम मिलता है और उनके हंसने के अवसरों की संख्या कम होती है।

यश 65:17–19 “क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करने पर हूं, और पहली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊंगा। मैं आप यरूशलेम के कारण मगन, और अपनी प्रजा के हेतु हर्षित हूंगा; उसमें फिर रोने या चिल्लाने का शब्द न सुनाई पड़ेगा।”

बाइबल कहती है कि परमेश्वर के लोग नए आकाश और नई पृथ्वी, यानी स्वर्ग में सदा सर्वदा हर्षित और मगन रहेंगे। जब हम अनन्त स्वर्ग के राज्य में जाएंगे, तब वहां अवश्य हर्ष एवं आनन्द के शब्द और परमेश्वर का भजन गाने के शब्द से भरा होगा। इसके विपरीत, अनन्त आग और पीड़ा की जगह, यानी नरक में रोने का शब्द, विलाप का शब्द और दर्द में शोक मनाने का शब्द सुनाई पड़ेगा। इसलिए माता अपनी संतानों को, जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगी, हमेशा हर्ष और मुस्कान के साथ सुसमाचार का जीवन जीने के लिए सिखाती हैं।

बाइबल कहती है कि हर्ष और आनन्द यरूशलेम से उत्पन्न होते हैं, और ऊपर की यरूशलेम हमारी माता को दर्शाती है जो स्वतंत्र हैं(गल 4:26)। जैसे बच्चे तब बहुत ज्यादा हंसते हैं जब वे अपनी माताओं की बांहों में होते हैं, ठीक वैसे सिय्योन जिसे परमेश्वर ने इस पृथ्वी पर स्थापित किया है, हमेशा हर्ष और मुस्कान से इसलिए भरा है, क्योंकि खुशी उत्पन्न करने वाली यरूशलेम माता हमारे साथ हैं।

यश 66:10–14 “हे यरूशलेम से सब प्रेम रखनेवालो, उसके साथ आनन्द करो और उसके कारण मगन हो; हे उसके विषय सब विलाप करनेवालो, उसके साथ हर्षित हो! जिससे तुम उसके शान्तिरूपी स्तन से दूध पी पीकर तृप्त हो; और दूध पीकर उसकी महिमा की बहुतायत से अत्यन्त सुखी हो।” क्योंकि यहोवा यों कहता है, “देखो, मैं उसकी ओर शान्ति को नदी के समान, और जाति जाति के धन को नदी की बाढ़ के समान बहा दूंगा; और तुम उस से पीओगे, तुम उसकी गोद में उठाए जाओगे और उसके घुटनों पर कुदाए जाओगे। जिस प्रकार माता अपने पुत्र को शान्ति देती है, वैसे ही मैं भी तुम्हें शान्ति दूंगा; तुम को यरूशलेम ही में शान्ति मिलेगी। तुम यह देखोगे और प्रफुल्लित होगे; तुम्हारी हड्डियां घास के समान हरी भरी होंगी, और यहोवा का हाथ उसके दासों के लिये प्रगट होगा, और उसके शत्रुओं के ऊपर उसका क्रोध भड़केगा।”

परमेश्वर ने यरूशलेम का मन रखने वाली अपनी संतानों से कहा कि यरूशलेम के साथ आनन्द करो और उसके कारण मगन हो। इस दुनिया में रहने के दौरान हमेशा ऐसे पल नहीं आते, जिनमें हम परेशानी और चिंताओं के बिना सिर्फ खुश रहते हैं। लेकिन हम किसी भी दुख को जिसका हम इस पृथ्वी पर रहते हुए सामना करते हैं, हर्ष और आनन्द में इसलिए बदल सकते हैं, क्योंकि यरूशलेम हमारी माता जो खुशी उत्पन्न करती हैं, हमारे साथ हैं।

हमेशा माता और उनकी शिक्षाओं के बारे में सोचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ हर्ष और खुशी बांटने की जरूरत है। सिय्योन में हम हमेशा अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर के कारण आनन्दित रह सकते हैं(हब 3:18) और दुख व विलाप के शब्द को हर्ष, आनन्द और भजन के शब्द में बदल सकते हैं।

सोच में अंतर



एक मनुष्य था जो हीनभावना से ग्रस्त था कि वह बचपन के दिनों से अपने दोस्तों की तुलना में बहुत छोटा है। संयोग से एक दिन जब वह एक पुस्तक पढ़ रहा था, उसे एक संदेश मिला, “जो तुम नहीं बदल सकते, उन चीजों को स्वीकार करना ही खुशी की कुंजी है।” तब उसने अपने विचारों को बदलने का फैसला किया, क्योंकि उसने कितनी ही कोशिश की थी, लेकिन वह अपने कद को नहीं बदल सका।

जब उसने गहराई से चिंतन किया, तब उसे जान पड़ा कि वह ऐसी बहुत सी चीजें कर सकता है, जो लंबे कद के लोग नहीं कर सकते। वह अपने छोटे कद के कारण बच्चों के कपड़े भी पहन सकता था, और जब बरसात होती थी, वह लंबे कद के लोगों की तुलना में थोड़ी देर बाद गीला होता था। जब उसने शांति से उन चीजों की गिनती की जो वह कर सकता था, तब वह जान गया कि बहुत सी चीजें थीं जिनमें वह अच्छा था। यह हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन वह अपने विचार को थोड़ा सा बदलने से अपनी हीन भावना को दूर कर सका और जीवन भर उससे पीड़ित होने से बच सका।

खुशी और दुर्भाग्य हमारे सोचने के तरीके पर निर्भर करते हैं। कुछ लोग गुलाब से सिर्फ इसलिए नफरत करते हैं क्योंकि उनमें कांटे होते हैं, जबकि दूसरे लोग गुलाब इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि कांटे होने के बावजूद वे सुंदर दिखते हैं। जो ज्यादा नहीं हंसते, वे वो हैं जो गुलाब के कांटों पर ध्यान देते हैं, और जो ज्यादा हंसते हैं, वे वो हैं जो गुलाब के फूल पर ही ध्यान देते हैं। भले ही हमें प्रतिकूल स्थितियों में रखा जाए, लेकिन जब हम अपने सोचने के तरीके को थोड़ा सा भी बदलें, तो हम दुख को सुख में बदल सकते हैं।

यह कहा जाता है कि किसी एक का चेहरा उसके विचारों को दर्शाने वाला आईना है। जिनके विचार हर्ष से भरे होते हैं, वे हमेशा खुश और उल्लासित दिखते हैं। इसलिए जब लोग हमारे चर्च ऑफ गॉड में आते हैं, तब वे हमारे भाइयों और बहनों की उज्ज्वल मुस्कान की प्रशंसा करते हैं। वे सभी कहते हैं कि वे हमारे सदस्यों को सुंदर मुस्कान के साथ उनका हार्दिक स्वागत करते हुए और उनकी देखभाल बहुत ध्यानपूर्वक करते हुए देखकर ज्यादा प्रभावित होते हैं। चूंकि परमेश्वर जो खुशी देते हैं, हमारे साथ हैं, और हमारे हृदय में स्वर्ग की आशा है, इसलिए हमें खुशी होती है, और वह खुशी हमारे चेहरे पर झलकती है।

भले ही आज हम कठिन और दर्दभरा जीवन जी रहे हैं, लेकिन आइए हम न भूलें कि हम उस स्वर्ग में जा रहे हैं जहां कोई दुख या दर्द नहीं है, लेकिन केवल सदा के लिए खुशी उमड़ती है। हमें परमेश्वर के द्वारा दी हुई अपनी स्थितियों को संसार के लोगों के मापदण्ड से नहीं देखना चाहिए, लेकिन स्वर्ग जाने वाले लोगों के मापदण्ड से देखना चाहिए।

मुस्कुराना दस तोड़ों को कमाने की कुंजी है



अमेरिका में एक विश्वविद्यालय ने बिक्री रणनीति के बारे में एक प्रयोग किया। विश्वविद्यालय ने तीन दुकानों को एक ही कीमत पर एक ही उत्पाद को प्रदर्शित करने के लिए कहा और फिर हर दुकान में कर्मचारियों से अलग अलग चेहरे के भाव के साथ उसे बेचने के लिए कहा। तब अलग अलग बिक्री के परिणाम सामने आए; 85 प्रतिशत ग्राहकों ने उस दुकान से सामान खरीदा जहां कर्मचारियों ने हार्दिक मुस्कान और अभिवादन के साथ ग्राहकों का स्वागत किया, और 15 प्रतिशत ग्राहकों ने रूखे चेहरे वाले कर्मचारियों की दुकान से सामान खरीदा, और बहुत नाराज चेहरे वाले कर्मचारियों की दुकान में कोई भी ग्राहक नहीं गया।

हमारे साथ भी ऐसा ही है जो लोगों को परमेश्वर के राज्य का परिचय देते हैं। अगर हम उदास और नाराज चेहरे के साथ सुसमाचार का प्रचार करेंगे, तो कोई भी हमारी नहीं सुनेगा। सुसमाचार जिसका हम प्रचार करते हैं, यह शुभ संदेश है कि परमेश्वर मानव जाति को पाप और मृत्यु के जुए से मुक्त करेंगे और उनकी अगुवाई हर्ष और खुशी की दुनिया में करेंगे। तो क्या हमें जिन्हें यह सुसमाचार का प्रचार करने का मिशन सौंपा गया है, उदास और नाराज चेहरे के साथ कार्य करना चाहिए? यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है।

मत 25:14–30 क्योंकि यह उस मनुष्य की सी दशा है जिसने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। उसने एक को पांच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। तब, जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन–देन किया, और पांच तोड़े और कमाए। इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी के रुपये छिपा दिए। बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने पांच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तू ने मुझे पांच तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने पांच तोड़े और कमाए हैं।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’... तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहां कहीं नहीं बोता वहां काटता है, और जहां नहीं छींटता वहां से बटोरता है। इसलिए मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है, वह यह है।’ उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘हे दुष्ट और आलसी दास, जब तू यह जानता था कि जहां मैंने नहीं बोया वहां से काटता हूं, और जहां मैं ने नहीं छींटा वहां से बटोरता हूं; तो तुझे चाहिए था कि मेरा रुपया सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। इसलिये वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहां रोना और दांत पीसना होगा।’

इन अंतिम दिनों में जब परमेश्वर ने हमें सुसमाचार का प्रचार करने का मिशन दिया, तब उन्होंने तोड़ों का दृष्टांत दिया। इस दृष्टांत में जिन्होंने अपने तोड़ों का व्यापार किया और अधिक तोड़े कमाए, उन्होंने स्वामी से यह प्रशंसा पाई, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास!” लेकिन जिसने एक तोड़ा भी नहीं कमाया, उससे उसका एक तोड़ा भी ले लिया गया और उसे बाहर अंधेरे में डाल दिया गया।

बाइबल कहती है कि जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा स्वर्ग में तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे(दान 12:3)। कृपया सोचिए कि जिन्होंने बहुतों को धर्मी बनाकर दस तोड़े कमाए, उन्होंने कैसे अपने तोड़ों का व्यापार किया होगा? जैसे कि एक विश्वविद्यालय के द्वारा किए गए प्रयोग के परिणामों का ऊपर उल्लेख किया गया है, उन्होंने निश्चय ही परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हर्ष और धन्यवाद से भरकर कड़ी मेहनत की होगी। इसके विपरीत, उसने जिसे एक तोड़ा मिला था, अपने हृदय को हर्ष और आनन्द से भरने के बजाय, नकारात्मक विचार, संदेह, परेशानी और चिंताओं में फंसकर अपना समय बिना कुछ किए व्यर्थ गंवाया होगा।

आइए हम उस मूर्ख दास के समान न बनें जिसे एक तोड़ा मिला था, और जो अभी तक घटित न हुईं उन चीजों से डरकर खुद पर दर्द और पीड़ा न लाएं। इसके बदले, आइए हम हमेशा हर्ष और आनन्द से भरे स्वर्ग के बारे में सोचें और बुद्धिमान दास के समान मुश्किल स्थिति को भी खुशी के अवसर के रूप में बदलें। अगर हम परमेश्वर के वचन के अनुसार हर समय आनन्द करेंगे और मुस्कुराएंगे, तो हम दस तोड़े प्राप्त कर सकेंगे।

आइए हम पीछे मुड़कर देखें कि जैसे पिता और माता ने हमें “सदा आनन्दित रहना” सिखाया, वैसे हम कितने आनन्दित रहते थे। परमेश्वर उस हर्ष और आनन्द के द्वारा, जो हम इस पृथ्वी के छोटे जीवनकाल में भोगते हैं, हमें स्वर्ग के राज्य को थोड़ा सा चखने की अनुमति देते हैं और वह चाहते हैं कि हम सभी स्वर्ग के राज्य में रहने के योग्य बनने के लिए खुद को बदलें और अनन्त स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें। इसलिए परमेश्वर हमसे इसहाक के समान संतान बनने के लिए कहते हैं।

चूंकि यह दुनिया आत्मिक शरणनगर है, इसलिए हम यहां दुख, दर्द और पीड़ा से नहीं भाग सकते। दर्द और दुख से तड़पने के शब्द को हर्ष और भजन गाने के शब्द में बदलना, यही वह कार्य है जो परमेश्वर पर विश्वास करने वालों को करना चाहिए। चाहे हम घर में हों, स्कूल में हों, या काम की जगह पर हों, हर जगह आइए हम परमेश्वर की संतानों के रूप में परमेश्वर की “सदा आनन्दित रहने” की आज्ञा को अमल में लाएं, और साथ ही अपने पड़ोस में, समाज में, देश में और पूरी दुनिया में लोगों के चेहरों पर उस हर्ष एवं खुशी को लाएं जो स्वर्गीय माता उत्पन्न करती हैं।