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प्रचार जो उद्धार की बातचीत है

हम एक दिन में भी बहुत सी बातचीत करते हैं; हम अपने व्यवसाय के लिए बातचीत करते हैं और घर में अपने परिवार वालों के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत करते हैं और चर्च में सदस्यों के हाथ थामकर “परमेश्वर आपको आशीष दें” कहते हुए अभिवादन करते हैं। मुझे लगता है कि मानव जीवन में बातचीत का बड़ा महत्व है। बातचीत के बिना दूसरों को समझना और अपने विचारों एवं भावनाओं का आदान–प्रदान करना मुश्किल है। इस तरह बातचीत करना अत्यंत आवश्‍यक है।

लेकिन हम बातचीत करने के दौरान व्यर्थ और निकम्मी बातें भी करते हैं।(मत 12:34–37) इसलिए परमेश्वर ने हमें सुन्दर बातचीत करने का ढंग सिखाया है। वही प्रचार है। प्रचार एक बातचीत है, जिसे हम परमेश्वर के वचनों को विषय बनाकर आत्माओं को बचाने के लिए करते हैं। सचमुच यही भली और मनोहर बातचीत है और संसार का उद्धार करने की बातचीत है।

परमेश्वर ने हमसे उद्धार की बातचीत करने का प्रयत्न करने के लिए कहा। हमें वह सुन्दर बातचीत करने के द्वारा, जिसे परमेश्वर चाहते हैं, संसार को शुद्ध करना चाहिए।

हमारे जीवन में बातचीत की जरूरत है

बातचीतों का बन्द होना आज आधुनिक समाज में बहुत सी समस्‍याओं को उत्पन्न कर रहा है। एक व्यवसाय प्रबंधन विशेषज्ञ ने बताया कि व्यवसाय प्रबंधन की विफलता से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का 60 प्रतिशत कारण उन बातचीतों का बन्द होना है जो कर्मचारियों के बीच होनी चाहिए। परिवार में भी ऐसा ही है। विशेषज्ञों ने कहा कि तलाक का 50 प्रतिशत कारण पति पत्नी के बीच बातचीत का बन्द होना है। और अपराध मनोवैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि 90 प्रतिशत अपराधियों को दूसरों से संपर्क बनाने में और बातचीत करने में दिक्कत होती है।

संक्षेप में कहें तो, जहां बातचीत नहीं है, वहां संघर्ष और विफलता है। बातचीत का बन्द होना ऐसा है मानो दोनों तरफों को जोड़ने वाला पुल टूट गया हो। बातचीत बन्द होने पर छोटी सी भावना को भी दूसरों पर जाहिर नहीं किया जा सकता और इससे आपसी नफरत, घृणा और झगड़ा उत्पन्न होता है। पति पत्नी के बीच, कर्मचारियों के बीच और दोस्तों के बीच बिना बातचीत के कुछ भी न मिल सकता। इस तरह हमारे जीवन में बातचीत बहुत आवश्यक है।

मत 7:12 इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्तओं की शिक्षा यही है।

यीशु ने निश्चयपूर्वक कहा कि आपको यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि दूसरे पहले आपके लिए कुछ करें, मगर आपको दूसरों के लिए पहले कुछ करना चाहिए, तब जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार आप अवश्य पाएंगे। बातचीत भी इसका अपवाद नहीं है।

आपको यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि दूसरे पहले आपसे बात करें, मगर आपको दूसरों के मन को समझते हुए पहले बात करनी चाहिए। तब बातचीत शुरू होगी, और एक अजनबी रिश्ते में मैत्रीपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण बातचीत की जाएगी और भावनाओं का आदान–प्रदान किया जाएगा।

फिर भी ऐसा नहीं है कि सब प्रकार की बातचीत अच्छी है। सब बातचीत अच्छा प्रभाव नहीं डालती। ऐसी बातचीत है जो अपने विचार का आग्रह करने के लिए या डींग मारने के लिए की जाती है और दूसरों को चोट पहुंचाती है, और ऐसी बातचीत भी है जो अर्थहीन और व्यर्थ है।

जब हम दूसरों के साथ बातचीत करते हैं, हमें परमेश्वर की सन्तानों के रूप में सुन्दर बात करनी चाहिए, ताकि जो सुनें उनका उससे लाभ और भला हो जाए। यीशु मानव जाति से सुन्दर बातचीत करने के लिए स्वयं स्वर्ग से इस पृथ्वी पर आए।

यीशु जिन्होंने उद्धार की बातचीत की

यीशु इस पृथ्वी पर आकर हमसे अति मूल्यवान और सुन्दर बातचीत की। उन्होंने बताया कि स्वर्ग का राज्य कैसा है, हमारे पापों की क्षमा पाने का मार्ग क्या है, और यह भी बताया कि परमेश्वर उस दिन के लिए क्या तैयार कर रहे हैं जिस दिन हम अनन्त स्वर्ग वापस जाएंगे। क्या यही संसार में सबसे सुन्दर बातचीत नहीं है जिसे परमेश्वर ने मानव जाति का उद्धार करने के लिए की?

यदि यीशु ने हमसे यह बातचीत न की होती, तो हम जो स्वर्ग में पाप करने के कारण शरण नगर, इस पृथ्वी पर गिरा दिए गए हैं, यह भी न जानते हुए कि भविष्य में क्या घटेगा, अंधेरी जिंदगी में भटकते–भटकते मर जाते। हम पहले जीवन भर पाप के दासत्व में फंसकर सिर्फ पृथ्वी की चीजों की कामना करते हुए जीवन जीते थे, मगर यीशु की बातचीत के द्वारा ही हमारा जीवन पूरी तरह से बदल गया। हम पापी पापों की क्षमा पाकर इस आशा को अपने मन में बिठा ले सके कि हम भी स्वर्ग जा सकते हैं।

हमें स्वर्ग की आशा देने के लिए, यीशु ने पतरस जैसे चेलों को पहले बुलाया और उनसे निवेदन किया कि वे बहुत लोगों को उद्धार की महान बातचीत में शामिल होने का आमंत्रण दें।

मत 4:17–20 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” गलील की झील के किनारे फिरते हुए उसने दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।

यीशु ने उन चेलों से, जो मछली पकड़कर अपनी जीविका चला रहे थे, यह आशापूर्ण बातचीत की कि वह उन्हें मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाएंगे। उद्धारकर्ता परमेश्वर और सांसारिक वस्तुओं की लालसा में जीवन जीने वाले मनुष्यों के बीच उद्धार की महान बातचीत शुरू हो गई।

पतरस और अन्द्रियास, जिन्होंने यीशु के वचनों पर कान लगाया, उद्धार की महान बातचीत में शामिल होने के लिए अपने नाव और जालों को छोड़कर यीशु के पीछे हो लिए। यदि उन्होंने यीशु से बात न की होती, तो उन्होंने जीवन भर मछली पकड़नेवाले मछुओं का जीवन जिया होता। लेकिन जब यीशु ने उन्हें बुलाया, उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। वे परमेश्वर के संदेशवाहक बन गए, जो क्षणिक और अस्थायी जीवन जीने वाले लोगों को अनन्त दुनिया के बारे में बताते थे, और वे परमेश्वर के प्रेरित बने, जिनका अब भी बहुत से लोग आदर करते हैं। पतरस और अन्द्रियास समेत बारह प्रेरितों ने उन लोगों को, जिन्हें उद्धार की बातचीत की आवश्यकता थी, बिना किसी संकोच के यीशु के द्वारा सुने और सीखे गए वचनों का प्रचार किया।(रो 10:14–15)

परमेश्वर ने जीवन बचाने के लिए बातचीत करने का अनुरोध किया

परमेश्वर ने हमें भी आज्ञा दी है कि हम बड़ी लगन से लोगों के साथ वह बातचीत करें जो परमेश्वर के वचनों के साथ आत्माओं को जिलाती है।

2तीम 4:1–2 परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य की सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा।

परमेश्वर की इच्छा यह है कि व्यर्थ बातचीत करने के बजाय, हम एक आत्मा की परमेश्वर की बांहों में कैसे अगुवाई कर सकते हैं, हम उसके साथ कैसे अनन्त स्वर्ग जा सकते हैं, इस विषय पर आपस में बातचीत करें।

जीवन बहुमूल्य है, इसलिए उद्धार के लिए हम चाहे कितनी भी बार बातचीत करें, यह कुछ भी ज्यादा नहीं है। जो परमेश्वर की आशीष को महसूस करते हैं, उन्हें बाइबल की शिक्षा के अनुसार समय और असमय जीवन बचाने के लिए बातचीत करने में लगे रहना चाहिए।

2तीम 4:3–5 क्योंकि ऐसा समय आएगा जब लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे, पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुत से उपदेशक बटोर लेंगे, और अपने कान सत्य से फेरकर कथा–कहानियों पर लगाएंगे। पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार का प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर।

संसार के लोग परमेश्वर के सत्य से ज्यादा कथा–कहानियों पर अपने कान लगाते हैं। लेकिन परमेश्वर के लोगों को उसमें समय बर्बाद करने के बजाय सुसमाचार का प्रचार का काम करना और अपनी सेवा को पूरा करना चाहिए। प्रचारक की सेवा क्या होगी? वह बड़े यत्न से उद्धार की बातचीत करना है। लोगों को परमेश्वर का राज्य, उद्धार और अनन्त जीवन सुनाना, और अच्छी तरह से परमेश्वर की सेवा करने का और परमेश्वर की इच्छा के सामने आज्ञाकारी रहने का तरीका सिखाना यही प्रचारक की सेवा है।

उन सब को, जिनके पास जीवन है, अधिक देखभालों और बातचीतों की जरूरत है। एक व्यक्ति था जो अच्छी तरह से फूलों की खेती करता था। एक बार मैंने उससे फूल–पौधे को अच्छे से बड़ा करने का उपाय पूछा। उसने कहा कि मुझे उसे अवश्य समय पर पानी और पोषक तत्व देना चाहिए और इसके साथ उससे बातचीत भी करनी चाहिए क्योंकि उसके पास जीवन है। उसने बताया कि यदि हम फूल–पौधे को नमस्ते शब्द से अभिवादन करते हैं और प्रोत्साहन भरे शब्द कहते हैं, तो वह स्वस्थ रूप से बड़ा होता है।

हमारे आसपास बहुत से लोग हैं जिनसे जीवन की बातचीत करना अति आवश्यक है। हमें उनके पास जाकर बड़े यत्न से उद्धार का समाचार सुनाना चाहिए ताकि उनके लिए स्वर्ग का मार्ग खुल जाए। परमेश्वर निश्चय उन लोगों को आशीषों का इनाम देंगे जिन्होंने जीवन बचाने के लिए बातचीत करने का प्रयत्न किया।

पतरस जिसने अनुग्रहपूर्ण बातचीत के द्वारा स्वर्ग के राज्य की कुंजियां प्राप्त कीं

परमेश्वर और हमारे बीच बातचीत रुकना नहीं चाहिए। बातचीत न होने से हमारा परमेश्वर से अलगाव बढ़ जाता है।

जिस माध्यम से हम अब तुरंत परमेश्वर के साथ बातचीत कर सकते हैं, वह प्रार्थना है। यीशु बहुत सवेरे उठकर प्रार्थना करते थे और प्रचार शुरू करते थे जो एक सुन्दर बातचीत है।(मर 1:35–39)

प्रार्थना आत्मा का सांस लेना है। यह एक बातचीत है जिसे हम अपने आत्मिक माता–पिता, यानी परमेश्वर के साथ करते हैं, इसलिए इसमें कोई जटिल औपचारिकता जरूरी नहीं है। जैसे एक परिवार में माता–पिता और बच्चे बातचीत के द्वारा एक दूसरे को समझ सकते हैं, वैसे ही हमारे प्रार्थना करने के द्वारा परमेश्वर और हमारे बीच अनुभूतियों का आपस में आदान–प्रदान किया जाता है, और हम परमेश्वर से सामर्थ्य पा सकते हैं और परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास को और दृढ़ बना सकते हैं।(मर 11:24)

जैसे कहावत है – “एक शब्द के द्वारा ऋण रद्द किया जाता है,” बाइबल ने उन लोगों के कार्य दर्ज किए हैं, जिन्होंने अनुग्रहपूर्ण बातचीत के द्वारा बड़ी आशीष पाई। पतरस ने यीशु के साथ एक अनुग्रहपूर्ण बातचीत करने के द्वारा स्वर्ग के राज्य की कुंजियां प्राप्त कीं।

मत 16:13–19 यीशु कैसरिया फिलिप्पी के प्रदेश में आया, और अपने चेलों से पूछने लगा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं, और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” उसने उनसे कहा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि मांस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। और मैं भी तुझ से कहता हूं कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बांधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।”

चेलों से बातचीत करने के दौरान, यीशु ने उनके विश्वास को जानने के लिए उनसे पूछा, “तुम मुझे क्या कहते हो?” तब उनमें से पतरस ने बिना किसी संकोच के बताया कि यीशु उद्धारकर्ता हैं। उन दिनों में बहुत लोग यीशु को “नासरियों का कुपन्थ” कहते थे और यह कहते हुए उनकी निन्दा करते थे, “तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” मगर पतरस का विश्वास दृढ़ था। उसने परमेश्वर के वचनों पर कान लगाकर दृढ़ विश्वास के साथ सही उत्तर दिया। इससे वह यीशु को बड़ी खुशी दे सका और स्वर्ग के राज्य की कुंजियों की बड़ी आशीष प्राप्त कर सका।

यदि पतरस ने यीशु के वचनों पर कान न लगाया होता या सच्चा और गंभीर होकर बातचीत न की होती, तो वह ऐसी बड़ी आशीष कभी न पाता। हमें भी पतरस के समान अनुग्रहपूर्ण बात करने के द्वारा परमेश्वर को बड़ी खुशी देनी चाहिए।

यीशु की बातचीत जिससे शैतान दूर हटा

शैतान हम उद्धार पानेवालों से ईष्र्या करता है, इसलिए वह गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किसको फाड़ खाए।(1पत 5:8) वह हमें लुभाने के लिए बातचीत के द्वारा फंदा लगाता है और हमारे मन से अनन्त दुनिया की आशा को मिटाने की कोशिश करता है। यीशु ने धूर्त शैतान की लुभावनी बातचीत में विजयी होने का तरीका स्वयं दिखाया।

मत 4:1–11 तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो। वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। तब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं।” यीशु ने उत्तर दिया : “लिखा है, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।” तब इब्लीस उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है : ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों–हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पांवों में पत्थर से ठेस लगे।’ ” यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’ ” फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।” तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’ ” तब शैतान उसके पास से चला गया, और देखो, स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे।

शैतान ने यीशु से ये दुष्ट बातें करके यीशु की परीक्षा लेना चाहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं,” परन्तु यीशु ने उसे बाइबल का यह अनुग्रहपूर्ण वचन बताकर शैतान की बात पर रोक लगा दी, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।”(व्य 8:3) और फिर बातचीत के दौरान शैतान ने यीशु को परमेश्वर की परीक्षा लेने के लिए चालाकी से लुभाया। तब यीशु ने परमेश्वर के इस वचन के द्वारा शैतान को गलत साबित किया कि परमेश्वर परीक्षा लेने का नहीं, बल्कि विश्वास करने का विषय है।(व्य 6:16) और आखिर में शैतान ने यीशु को यह कहकर सारे जगत के वैभव का लालच देने की कोशिश की, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं सब वैभव तुझे दे दूंगा।” लेकिन क्षणिक और अस्थायी चीज अनन्त दुनिया के स्वामी, यीशु को नहीं लुभा सकी। जब यीशु ने परमेश्वर के वचन के द्वारा ही सभी परीक्षाओं को पार किया, तब शैतान दूर चला गया।

यीशु की बातचीत का केंद्र परमेश्वर था। शैतान बातचीत के केंद्र से परमेश्वर को बाहर निकालता है और ‘हम क्या पहिनेंगे या क्या पीएंगे’ जैसी शारीरिक वस्तुओं की ओर हमारे मन को खींच लेता है। लेकिन चाहे शैतान कितनी ही हमारी परीक्षा क्यों न करे, यदि हम परमेश्वर को बातचीत का केंद्र बनाएं, तो हम शैतान पर विजयी हो सकते हैं।

हमें यीशु के समान वह बातचीत करनी चाहिए, जिसमें हम परमेश्वर के वचनों के द्वारा शैतान पर विजयी हो सकते हैं, और हमें पतरस के समान वह बातचीत करनी चाहिए, जिससे हम आशीष प्राप्त कर सकते हैं। अलाभकर और व्यर्थ बातचीत में जीवन नहीं है। वह बातचीत जिसे हमें करना चाहिए, एक आत्मिक जीवन की बातचीत है। हमारा अनन्त घर, परमेश्वर का प्रेम, फसह का पर्व जिससे अनन्त जीवन मिलता है और विपत्ति से बचाव होता है, जैसी स्वर्ग की कहानियों के बारे में अधिक से अधिक बातचीत कीजिए। यदि आप सोचें कि प्रचार लोगों के साथ स्वर्ग के बारे में बातचीत करना है, तो प्रचार मुश्किल नहीं होगा। आइए हम बातचीत के तरीके को सीखें, जिसे परमेश्वर ने हमें सिखाया है, और संसार में उद्धार का समाचार फैलाएं।

अब से आइए हम अधिक बातचीत करें। यदि हम दूसरों से अधिक सुन्दर बातचीत करें, हम परमेश्वर के अधिक करीब हो सकते हैं और बहुत लोगों की उद्धार की ओर अगुवाई कर सकते हैं। इतना ही नहीं, परिवारजनों के रिश्ते की नजदीकियां बढ़ जाती है, और कर्मचारी एकजुट होकर काम कर सकते हैं। मैं आशा करता हूं कि आप सभी हमेशा वह बातचीत करने का हर संभव प्रयत्न करें जिससे आप अपने आसपास के लोगों को जीवन के मार्ग में ला सकते हैं, और आप स्वर्ग के राज्य में बड़ी आशीष पाएं।