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योना का जहाज और पौलुस का जहाज


जब मनुष्य मरता है, तब वह न्याय का सामना करता है।(इब्र 9:27) एक व्यक्ति अपराधी है या नहीं, और यदि वह अपराधी है तो उसका अपराध कितना बड़ा है, इसका आखिरी निर्णय करने की प्रक्रिया ही न्याय है। आत्मिक दुनिया में भी ऐसा ही होता है।

लोग जो नहीं जानते कि नरक का दुख कितना भयंकर है, वे इस पृथ्वी पर अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं। वे अपने जीवन के अन्त में उस हालत का सामना करेंगे, जिसमें उन्हें अपने किए पर अफसोस होगा। चूंकि परमेश्वर जानते हैं कि मनुष्य के जीवन के अन्त में क्या होगा, इसलिए वह इस पृथ्वी पर शरीर धारण करके आए। उन्होंने हमारे पापों के लिए क्रूस पर एक पापबलि के रूप में अपना बलिदान करने के द्वारा नई वाचा को स्थापित किया है। इसके द्वारा उन्होंने हमारे लिए, जिन्हें सजा पाने के लिए नरक जाना पड़ा, स्वर्ग के राज्य में वापस जाने का मार्ग खोल दिया।

इसलिए अधिक से अधिक आत्माओं को नरक से बचाने और उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए हमें अपना पूरा मन और शक्ति लगानी चाहिए। परमेश्वर चाहते हैं कि हम अपने स्वर्ग में किए गए सारे पापों से पश्चाताप करके स्वर्ग वापस आएं। इसी कारण उन्होंने हमें सुसमाचार का प्रचार करने का मिशन सौंपा है। प्रचार का उद्देश्य सिर्फ बाइबल के वचन लोगों को पहुंचाना नहीं है, बल्कि लोगों को यह जानने देना है कि जिस मार्ग पर अब वे जा रहे हैं, उसका गंतव्य स्थान क्या है, ताकि वे स्वर्ग की ओर अपने कदम बढ़ा सकें। अब आइए हम प्रचार के अर्थ के बारे में सोचने का कुछ समय लें और जानें कि हमें किस प्रकार की मानसिकता के साथ परमेश्वर का आदर करना चाहिए।

एक व्यक्ति के कारण खतरनाक स्थिति – योना का जहाज

बाइबल वर्णन करती है कि जब योना और पौलुस जहाज पर सवार थे, तब उनके जहाज प्रचण्ड आंधी में घिर गए। दोनों जहाज एक ही लकड़ी से बने थे, लेकिन जहाज जिस पर योना सवार था और जहाज जिस पर पौलुस सवार था, उनके बीच बड़ा अन्तर था। योना के जहाज पर वह व्यक्ति सवार था जिसने परमेश्वर की इच्छा को नहीं माना, और पौलुस के जहाज पर वह व्यक्ति सवार था जिसने परमेश्वर की इच्छा को माना। उनका परिणाम क्या था? आइए हम पहले देखें कि उस जहाज के साथ क्या हुआ जिस पर योना सवार था।

योना 1:1–17 यहोवा का यह वचन अमितै के पुत्र योना के पास पहुंचा: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्टि में बढ़ गई है।” परन्तु योना यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को भाग जाने के लिये उठा, और याफा नगर को जाकर तर्शीश जानेवाला एक जहाज़ पाया; और भाड़ा देकर उस पर चढ़ गया कि उनके साथ यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को चला जाए। तब यहोवा ने समुद्र में एक प्रचण्ड आंधी चलाई, और समुद्र में बड़ी आंधी उठी, यहां तक कि जहाज टूटने पर था... तब उन्होंने आपस में कहा, “आओ, हम चिट्ठी डालकर जान लें कि यह विपत्ति हम पर किस के कारण पड़ी है।” तब उन्होंने चिट्ठी डाली, और चिट्ठी योना के नाम पर निकली... तब वे बहुत डर गए, और उससे कहने लगे, “तू ने यह क्या किया है?” वे जान गए थे कि वह यहोवा के सम्मुख से भाग आया है; क्योंकि उस ने आप ही उनको बता दिया था। तब उन्होंने उससे पूछा, “हम तेरे साथ क्या करें जिससे समुद्र शान्त हो जाए?” उस समय समुद्र की लहरें बढ़ती ही जाती थीं। उसने उनसे कहा, “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दो; तब समुद्र शान्त पड़ जाएगा; क्योंकि मैं जानता हूं, कि यह भारी आंधी तुम्हारे ऊपर मेरे ही कारण आई है।”... तब उन्होंने योना को उठाकर समुद्र में फेंक दिया; और समुद्र की भयानक लहरें थम गईं। तब उन मनुष्यों ने यहोवा का बहुत ही भय माना, और उसको भेंट चढ़ाई और मन्नतें मानीं। यहोवा ने एक बड़ा सा मच्छ ठहराया था कि योना को निगल ले; और योना उस महामच्छ के पेट में तीन दिन और तीन रात पड़ा रहा।

नीनवे अश्शूर की राजधानी थी, और उसके निवासी पराए देवताओं की सेवा करते हुए परमेश्वर का विरोध करते थे। इसलिए योना ने मन ही मन कहा, “यदि मैं वहां जाऊं और परमेश्वर के वचन का प्रचार करूं, मेरी कौन सुनेगा? वहां के लोग शायद मुझे मार देंगे।” उसने इस तरह सोचा, और वह यहोवा से कहीं दूर भाग जाने के लिए जहाज पर चढ़ा।

तब अचानक समुद्र में बड़ी आंधी उठी और लहरें प्रबल से प्रबलतर होती गईं। जब जहाज टूटने–टूटने को हो गया, लोगों ने अनुमान लगाया कि किसी व्यक्ति के परमेश्वर को क्रोधित करने के कारण यह विपत्ति आई है, और उन्होंने चिट्ठी डाली। अवश्य चिट्ठी योना के नाम पर निकली। योना ने स्वीकार किया कि यह सब उसके कारण हुआ। योना समुद्र में फेंका गया और महामच्छ के पेट में तीन दिन और तीन रात पड़ा रहा।

योना के पास अधार्मिक मन था, चाहे वह कुछ समय के लिए था। परमेश्वर ने उसे लोगों को बचाने का बड़ा मिशन दिया है, लेकिन वह परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी नहीं था। एक व्यक्ति, योना के कारण जहाज पर सवार लोगों की जान को खतरे में डाला गया।

एक व्यक्ति के कारण उद्धार – पौलुस का जहाज

लेकिन एक जैसी स्थिति में उस जहाज का परिणाम, जिस पर पौलुस सवार था, बिल्कुल अलग था।

प्रे 27:1–44 ... पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया, “हे सज्जनो, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से कप्तान और जहाज के स्वामी की बातों को बढ़कर माना... जब कुछ–कुछ दक्षिणी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा अभिप्राय पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आंधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। जब आंधी जहाज पर लगी तो वह उसके सामने ठहर न सका, अत: हम ने उसे बहने दिया और इसी तरह बहते हुए चले गए... जब हम ने आंधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे; और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज–सामान भी फेंक दिया। जब बहुत दिनों तक न सूर्य, न तारे दिखाई दिए और बड़ी आंधी चलती रही, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़े होकर कहा, “हे लोगो, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हाति उठाते। परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूं कि ढाढ़स बांधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूं, और जिसकी सेवा करता हूं, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ इसलिये, हे सज्जनो, ढाढ़स बांधो... जब भोर होने पर था, तब पौलुस ने यह कहके, सब को भोजन करने के लिए समझाया, “आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते–देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। इसलिये तुम्हें समझाता हूं कि कुछ खा लो, जिससे तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा।” यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा। तब वे सब भी ढाढ़स बांधकर भोजन करने लगे। हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेंहू को समुद्र में फेंक कर जहाज हल्का करने लगे। जब दिन निकला तो उन्होंने उस देश को नहीं पहिचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिसका किनारा चौरस था... जो तैर सकते हैं, पहले कूदकर किनारे पर निकल जाएं; और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की अन्य वस्तुओं के सहारे निकल जाएं। इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले।

प्रे 28:1–10 जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह द्वीप माल्टा कहलाता है। वहां के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह बरसने के कारण जो ठण्ड थी, इसलिए कारण उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया। जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक सांप आंच पाकर निकला और उसके हाथ से लिपट गया... तब उसने सांप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुंची। परन्तु वे बाट जोहते थे कि वह सूज जाएगा या एकाएक गिर के मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो अपना विचार बदल कर कहा, “यह तो कोई देवता है।” उस जगह के आसपास उस टापू के प्रधान पुबलियुस की भूमि थी। उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की।

प्रचार करने के दौरान पौलुस पकड़वाया गया। और जब उसे कैदी की तरह रोम पहुंचाया जा रहा था, एक बड़ी आंधी उठी, और सैनिकों ने जो उस पर पहरा दे रहा था, तेज आंधी के कारण कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन चूंकि पौलुस जहाज पर सवार था, इसलिए परमेश्वर ने पौलुस के कारण सब लोगों को बचाया; उनमें से किसी को भी कुछ हानि न पहुंची। वे सब सुरक्षित रूप से भूमि पर उतरे। जब वे टापू पर उतरे, उनका बहुत गर्माहट से स्वागत किया गया, और उन्होंने फिर से यात्रा करने के लिए आवश्यक चीजों को प्राप्त किया। अत: वे अपने गंतव्य स्थान तक सुरक्षित रूप से पहुंच सके।(प्रे 28:11–14)

वह जहाज जिस पर योना सवार था, योना के कारण बड़े खतरे में पड़ा, लेकिन लोग जो पौलुस के साथ जहाज पर सवार थे, पौलुस के कारण बचाए गए। योना के पास अधार्मिक मन था, इसलिए वह अपने आसपास के लोगों के दुख और तकलीफ का कारण बना। लेकिन पौलुस ने परमेश्वर की इच्छा का पालन किया, इसलिए पौलुस के साथ जहाज पर सवार हुए सभी लोग पौलुस के कारण सुरक्षित रूप से बचाए गए।

परमेश्वर के प्रति कुछ लोगों का मन योना की तरह होता है और कुछ लोगों का मन पौलुस की तरह होता है। हमें भी पौलुस के समान विश्वास रखना चाहिए और अपने आसपास के सभी लोगों को उद्धार की ओर ले जाना चाहिए। आइए हम सिय्योन के लोगों के रूप में परमेश्वर के सामने, जो व्यक्ति के हृदय को देखते हैं, हमेशा सच्चा विश्वास रखें और परमेश्वर से प्रचुर आशीषें पाएं।

आकान के पाप के कारण पैदा हुआ इस्राएल का दुख

यहोशू के समय में भी ऐसी घटना घटित हुई। सभी इस्राएलियों ने एक व्यक्ति के पाप के कारण बहुत ही बड़ा दुख सहा।

यहो 7:1–5 परन्तु इस्राएलियों ने अर्पण की वस्तु के विषय में विश्वासघात किया; अर्थात् यहूदा गोत्र का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कम्र्मी का पुत्र था, उस ने अर्पण की वस्तुओं में से कुछ ले लिया; इस कारण यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा... और उन पुरुषों ने जाकर ऐ का भेद लिया। और उन्होंने यहोशू के पास लौटकर कहा, “सब लोग वहां न जाएं, कोई दो तीन हजार पुरुष जाकर ऐ को जीत सकते हैं; सब लोगों को वहां जाने का कष्ट न दे, क्योंकि वे लोग थोड़े ही हैं।” इसलिये कोई तीन हजार पुरुष वहां गए; परन्तु ऐ के रहनेवालों के सामने से भाग आए, तब ऐ के रहनेवालों ने उनमें से कोई छत्तीस पुरुष मार डाले, और अपने फाटक से शबारीम तक उनका पीछा करके उतराई में उनको मारते गए। तब लोगों का मन पिघलकर जल–सा बन गया।

कनान देश को अपने वश में कर लेने के लिए, इस्राएलियों ने कनान के पहले स्थान, यरीहो नगर को जीत लिया, और फिर जब वे ऐ नगर पर आक्रमण करने वाले थे, तब इस्राएलियों में से एक ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया।

युद्ध जो उन्होंने पूरे विश्वास के साथ किया और युद्ध जो उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने के बाद किया, उनके बीच बड़ा अन्तर था। उन्होंने पहले सोचा था कि वे ऐ नगर को आसानी से जीत सकेंगे, लेकिन वे उसे नहीं जीत सके। ऐ नगर के लोगों ने इस्राएल की सेना को पराजित किया। हार की खबर ने इस्राएलियों को हैरान कर दिया, और इस्राएल के सैनिकों का मनोबल गिर गया। इस्राएल एक व्यक्ति के कारण हार गया; उसकी हार का कारण यह नहीं था कि ऐ नगर मजबूत था या वहां के लोग बहादुर थे। आकान ने परमेश्वर की पवित्र चीजों को लूट लिया, और एक व्यक्ति के पाप के कारण सभी इस्राएलियों ने कष्टों को झेला।

यहो 7:6–12 तब यहोशू ने अपने वस्त्र फाड़े, और वह और इस्राएली वृद्ध लोग यहोवा के सन्दूक के सामने मुंह के बल गिरकर पृथ्वी पर सांझ तक पड़े रहे; और उन्होंने अपने अपने सिर पर धूल डाली। और यहोशू ने कहा... “हाय, प्रभु मैं क्या कहूं, जब इस्राएलियों ने अपने शत्रुओं को पीठ दिखाई है! क्योंकि कनानी वरन् इस देश के सब निवासी यह सुनकर हम को घेर लेंगे, और हमारा नाम पृथ्वी पर से मिटा डालेंगे; फिर तू अपने बड़े नाम के लिये क्या करेगा?” यहोवा ने यहोशू से कहा, “उठ, खड़ा हो जा, तू क्यों इस भांति मुंह के बल पृथ्वी पर पड़ा है? इस्राएलियों ने पाप किया है; और जो वाचा मैं ने उनसे अपने साथ बंधाई थी उसको उन्होंने तोड़ दिया है, उन्होंने अर्पण की वस्तुओं में से ले लिया, वरन् चोरी भी की और छल करके उसको अपने सामान में रख लिया है। इस कारण इस्राएली अपने शत्रुओं के सामने खड़े नहीं रह सकते; वे अपने शत्रुओं को पीठ दिखाते हैं, इसलिये कि वे आप अर्पण की वस्तु बन गए हैं। और यदि तुम अपने मध्य में से अर्पण की वस्तु का सत्यानाश न कर डालोगे, तो मैं आगे को तुम्हारे संग नहीं रहूंगा।

परमेश्वर ने इस्राएलियों के खाने के लिए 40 वर्ष तक हर दिन मन्ना बरसाया और इस्राएलियों को शत्रुओं पर विजय दिलाते हुए कनान देश में ले गए। इस्राएली परमेश्वर की सहायता के द्वारा यरीहो को जीत सके, लेकिन वे यरीहो से भी बहुत छोटे ऐ नगर को जीतने में नाकाम रहे। यह सब एक व्यक्ति के पाप के कारण था।

एक व्यक्ति की भूमिका

हमें इसे अपने मन में रखना चाहिए कि यद्यपि हम परमेश्वर की इच्छा को जानते हैं और उसे अमल में लाने का समय आया है, फिर भी यदि हम उसका पालन न करें, तो हम आकान की तरह हर एक के दुख का कारण बन सकेंगे। यदि हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं, तो हम पौलुस की तरह अपने आसपास के सभी लोगों को बचा सकते हैं। जब हम परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला हृदय रखते हैं, तब परमेश्वर हम में से हर एक के द्वारा पूरी परिस्थिति को बदलते हैं।

रो 5:12 इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।

एक मनुष्य आदम है जिसके द्वारा पाप जगत में आया। जबसे एक व्यक्ति, आदम ने परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन किया, मानव जाति पाप की जंजीरों में जकड़कर तड़पी। उसी तरह से एक व्यक्ति, योना के आज्ञा न मानने के कारण समुद्र में बड़ी आंधी–तूफान उठी और भयंकर स्थिति पैदा हुई।

एक व्यक्ति, आदम के द्वारा पाप जगत में आया, लेकिन एक व्यक्ति, यीशु के द्वारा संसार में सब लोगों के लिए उद्धार का मार्ग खुल गया।

रो 5:17–19 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।

मसीह ने परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी होकर क्रूस पर अपने आपको बलिदान करने के द्वारा उद्धार का मार्ग खोला, और उन्होंने हमें परमेश्वर के सदृश्य पवित्र हृदय रखकर और धर्म के काम करके मानव जाति को बचाने का मिशन सौंपा है। मसीह के एक धर्म का काम करने के फलस्वरूप बहुत से लोगों ने धर्मी ठहरकर उद्धार पाया। उसी तरह से हम में से हर एक के धर्म का काम ही हमारे आसपास के परिवारजनों, रिश्तेदारों, मित्रों और पड़ोसियों को उद्धार की ओर ले जा सकता है।

एक व्यक्ति की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। हम में से हर एक को पौलुस के समान और यीशु के समान बनना चाहिए, जो दूसरों की भलाई और आशीषों का कारण बने। हम में से किसी को भी आकान के समान या उस समय के योना के समान नहीं होना चाहिए जब उसने परमेश्वर के वचन की उपेक्षा की। जिस प्रकार योना के गलत विचार और आकान के दुराचार के कारण उनके आसपास के लोगों को भारी नुकसान और परेशानी का सामना करना पड़ा, उसी प्रकार एक व्यक्ति के गलत विचार या गलत आचरण के कारण दूसरे लोग दुख और कष्ट झेलते हैं। एक पुरानी कहावत है, “जो एक पापी के संग होता है, उस पर बिजली का तार आ गिरता है।” आइए हम “एक व्यक्ति” न बनें जिसने पाप किया, लेकिन “एक व्यक्ति” बनें जो बहुतों का उद्धार की ओर मार्गदर्शन करता है।

इस संसार में अनगिनत लोग हैं; कुछ अपने को ऊंचा उठाने की कोशिश करते हैं, कुछ अमीर बनने की कोशिश करते हैं, और कुछ बहुत सी चीजों को पाने की कोशिश करते हैं। जब हम उनके जीवन के अन्त के बारे में सोचते हैं, तो वे सब गरीब और दयनीय हैं। वे भोर की ओस या कोहरे के जैसे थोड़ी देर ठहरने के बाद गायब हो जाएंगे, और वे अकेले छोड़ दिए जाने पर अनन्त नरक का दण्ड भोगेंगे। उन बेचारे लोगों को बचाने के लिए और हर संभव तरीके से उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए परमेश्वर इस पृथ्वी पर आए। हमें भी ऐसा दयापूर्ण हृदय रखना चाहिए। पौलुस के समान जिसने मृत्यु के खतरे में पड़े लोगों को सुरक्षित रूप से भूमि पर उतार दिया, आइए हम भी सत्य की ओर एक एक करके सभी आत्माओं को ले आएं, ताकि वे जीवन के जल के सोत के पास शांति पाएं जो एलोहीम परमेश्वर देते हैं, और स्वर्ग के अनन्त राज्य में मीरास पाएं।

हमारे आसपास कोई नहीं बदलता यदि हम चुप रहें। यदि हमारे भीतर परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करने वाला मन हो, आइए हम उसे अपने अन्दर से बाहर फेंक दें और अपने मन को परमेश्वर के पवित्र वचन से भर दें। मैं चाहता हूं कि सिय्योन में सभी भाई–बहनें आज के दुखों से उभरें और अपने आसपास के सभी लोगों को शांति और खुशी का प्रचार करें।

आइए हम अवश्य वर्ष 2014 को अनुग्रह का जुबली वर्ष बनाएं जब सारी मानव जाति पापों से मुक्ति पाएगी। मुझे आशा है कि आप बहुत सी आत्माओं की प्रायश्चित्त की ओर अगुवाई करें और स्वर्ग लौटने के समय बड़ी आशीष पाएं।