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अनन्त दुनिया के लिए तैयारी करना
बाइबल में लिखा है कि, “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है।”(भज 103:15) इससे यह प्रतीत होता है कि मनुष्य का जीवन कितना छोटा और व्यर्थ है।
इस पृथ्वी पर जीवन सब कुछ नहीं है; इस पृथ्वी पर के हमारे जीवन के बाद एक नया जीवन है; हम जिस स्थान से आए हैं, वहां वापस जाएंगे। इस जीवन के समाप्त होने के बाद, हम सभी को मरणोत्तर जीवन में प्रवेश करना चाहिए। तब आइए हम यह सोचने के लिए कुछ समय लें कि जिस स्वर्ग के राज्य में हम जा रहे हैं, हम उस स्थान के लिए कितना समय या प्रयास लगा रहे हैं।
एक सेवक की सलाह
पुराने समय में एक शाही सेवक था जिसने राजा का विश्वास प्राप्त किया था। सेवक अच्छा और विश्वासयोग्य था, पर कुछ बातों में वह भोला और मूर्ख भी था। राजा उसके ईमानदार रवैये से बहुत खुश था, इसलिए राजा ने उस पर विश्वास किया और अपने देश के प्रशासन में बहुत सारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां उसे सौंप दीं।
एक दिन राजा ने अपने सेवक को देश के सारे क्षेत्रों का भ्रमण कर यह जांच करने की आज्ञा दी कि लोग कैसे जी रहे हैं। राजा की आज्ञा के अनुसार, सेवका ने पूरे देश का दौरा किया। कुछ समय के बाद, वह शाही महल में वापस आया, लेकिन अनपेक्षित रूप से राजा बीमार होकर बिस्तर पर पड़ गया था। सेवक को बहुत ही आश्चर्य हुआ, और उसने राजा से पूछा कि क्या हुआ था।
“मुझे लगता है कि मेरे जाने का समय अब आ चुका है।”
“आप क्या बात कर रहे हैं? आप अभी बीमार हैं। आप कहां जा रहे हैं? और यदि आप जाएंगे, तो आप कब वापस आएंगे?”
“यदि मैं अभी जाऊं, तो शायद मैं ऐसे स्थान में जाऊंगा जहां से वापस नहीं आ सकूंगा।”
“तो आप ऐसे स्थान पर जाना क्यों चाहते हैं? कृपया न जाइए।”
राजा अपनी मृत्यु के बारे में बात कर रहा था, क्योंकि वह एक बहुत ही गंभीर बीमारी से पीड़ित था। हालांकि, भोला और निष्कपट सेवक ने यह न समझा कि राजा किसके बारे में बात कर रहा है, और बार–बार राजा को उस जगह पर जाने से रोकने की कोशिश करता रहा, जहां से वह कभी वापस नहीं आ सकता था। राजा ने फिर से उससे कहा कि, “वह कोई ऐसी जगह नहीं है कि यदि मैं जाना चाहूं तो जा सकता हूं, और यदि मैं न जाना चाहूं तो न जा सकता हूं। चाहे मैं वहां नहीं जाना चाहता, फिर भी मुझे वहां जाना ही पड़ेगा।” तब सेवक बहुत ही चिन्तित होकर राजा से पूछने लगा।
“आप लंबी यात्रा पर जा रहे हैं। तो क्या आपने उसके लिए पूरी तैयारी की है?”
यह सुनकर राजा कुछ भी न कह सका, लेकिन चुप पड़ा रहा। केवल तभी उसे यह महसूस हुआ कि उसने कभी भी यह नहीं सोचा था कि इस संसार को छोड़ने का क्षण उसके सामने भी आएगा, और यह भी कि उसने उसके लिए कुछ भी तैयार नहीं किया था।
किसी लंबी यात्रा पर जाने से पहले, लोग अपने कपड़े, पैसे, पासपोर्ट, प्रसाधन का सामान इत्यादि जैसी जरूरी चीजों को तैयार करते हैं; वे अपनी यात्रा के लिए बहुत सी चीजों को ध्यानपूर्वक तैयार करते हैं, ताकि वे किसी अपरिचित जगह में परेशानी में न पड़ जाएं। हालांकि, संसार के बहुत से लोग उस दुनिया के लिए कुछ भी तैयार नहीं करते जहां वे जा रहे हैं।
एक व्यक्ति का जीवनकाल सत्तर या अस्सी साल होता है। चूंकि जीवन बहुत ही छोटा है, जब अचानक लोगों के सामने कोई दुर्भाग्य आ पड़ता है, तो वे बहुत ही व्यथित और खाली महसूस करते हैं। उपर्युक्त कहानी में राजा प्रतिदिन अपने ऊंचे पद को लेकर विलासी जीवन में लिप्त रहा था, और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में बिल्कुल भी न सोचते हुए, उसने अपना पूरा जीवन व्यय कर दिया था। अपनी मृत्यु होने के अंतिम क्षण तक, उसने कुछ भी तैयार नहीं किया था। उसी तरह से यदि हम भी मृत्यु के बाद के जीवन के लिए तैयारी को टालते रहेंगे, तो अनजाने में अचानक ही हमारा इस दुनिया को छोड़ने का समय एकाएक आ जाएगा।(सभ 9:12)
अनन्त दुनिया का रास्ता जहां हर किसी को जाना चाहिए
जब हम इसके बारे में ध्यानपूर्वक सोचते हैं, तो हम यह महसूस कर सकते हैं कि हमें उन परमेश्वर के प्रति कितने ज्यादा कृतज्ञ होने चाहिए, जिन्होंने हमारे उद्धार के शरण स्थान के रूप में सिय्योन को स्थापित किया है और अपने आपको हम पर प्रकट किया है। परमेश्वर को ग्रहण करते हुए और सत्य में एक शुद्ध विश्वास बनाते हुए विश्वास का जीवन जीना ही अनन्त स्वर्ग के राज्य के लिए तैयार करना है।
जो लोग अनन्त दुनिया में विश्वास नहीं करते, वे उस दुनिया के लिए तैयारी नहीं कर रहे हैं। हालांकि, हर किसी को एक निश्चित समय के बाद वहां जाना ही पड़ेगा; चाहे वे वहां जाना चाहते हों या नहीं, वे उसे नकार नहीं सकते।
जीवन व्यर्थता में है। सुलैमान के द्वारा लिखी गई सभोपदेशक की पुस्तक इस तथ्य के बारे में सुलैमान की निराशा व्यक्त करती है कि मृत्यु जैसे पशुओं को आती है उसी प्रकार मनुष्यों को भी आती है, यानी मनुष्यों और पशुओं का अन्त एक ही प्रकार से होता है।
सभ 3:19–21 क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है। सब एक स्थान में जाते हैं; सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। क्या मनुष्यों का प्राण ऊपर की ओर चढ़ता है और पशुओं का प्राण नीचे की ओर जाकर मिट्टी में मिल जाता है? यह कौन जानता है?
इस तथ्य को सोचते हुए, आइए हम उस अनन्त दुनिया के बारे में सोचें जहां इस जीवन के बाद हम जाएंगे। मनुष्यों के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है। यहां समस्या न्याय का होना है।
इब्र 9:27 जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है।
लोगों को इस पृथ्वी पर अपने क्षणिक निवास के बाद किसी एक निश्चित जगह पर जाना ही पड़ेगा। वापस जाते समय दो रास्ते हैं: न्याय किए जाने का रास्ता और उद्धार पाने का रास्ता। यदि हमें उनमें से एक रास्ते में जाना पड़ता है, तो क्या हमें उद्धार पाने के रास्ते का पालन नहीं करना चाहिए? जहां हम युगानुयुग अनन्त जीवन और खुशी भोगेंगे उस अनन्त स्वर्ग के राज्य में नहीं जाना चाहिए?
जब हम सिर्फ एक रात के ठहराव के लिए छोटी अवधि के सफर की योजना बनाते हैं, तो ऐसी बहुत चीजें हैं जिन्हें तैयार करना पड़ता है। अब हम उस स्थान में लंबा सफर करने जा रहे हैं, जहां से हम कभी वापस नहीं आ सकेंगे। फिर भी यदि हमने उसके लिए कुछ भी तैयारी न करते हुए जीवन जिया है, तो यह सच में एक बड़ी समस्या है। आइए हम सोचें कि अपने सफर के लिए अब तक हमने कितनी चीजें तैयार कर ली हैं और अब हम कौन सी चीज तैयार कर रहे हैं। केवल वे लोग ही महिमामय भविष्य पाएंगे, जो भविष्य के बारे में सोचते हैं और उसके लिए तैयारी करते हैं।
उस स्वर्गीय राज्य के बारे में सोचते हुए जहां हम जाएंगे, हमें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, आराधना के माध्यम से उनकी उपासना करनी चाहिए, और उस हर एक वचन का खुशी से पालन करना चाहिए जो परमेश्वर ने हमें दिया है। हमें अपने परिवारवालों, रिश्तेदारों, मित्रों और पड़ोसियों को भी, जो आत्मिक दुनिया का एहसास न करते हुए जी रहे हैं, “अनन्त घर” का परिचय देना चाहिए, ताकि वे भी वहां वापस जाने के लिए पूर्ण रूप से तैयारी कर सकें।(सभ 12:5; 2कुर 5:1) हमें संसार के सभी लोगों के पास जाकर उन्हें स्वर्ग का राज्य महसूस कराना चाहिए, ताकि वे भी स्वर्ग के लिए तैयारी कर सकें। इसके लिए परमेश्वर ने हमें सुसमाचार का प्रचार करने को कहा है।(सभ 12:13–14; मत 28:18–20)
परमेश्वर फिलहाल अपनी सन्तानों के लिए, जो अनन्त स्वर्ग के राज्य में वापस लौटेंगी, जगह तैयार कर रहे हैं।
यूह 14:2–3 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते तो मैं तुम से कह देता; क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।
हमें अपने आत्मिक घर, स्वर्ग में गंभीर पाप करने के परिणाम स्वरूप इस पृथ्वी पर निकाल दिया गया है, और अब हम ऐसे पापियों के रूप में, जिन्हें जीवन भर पश्चाताप करते रहना चाहिए, एक पश्चाताप का जीवन जी रहे हैं। इस पृथ्वी पर रहते समय अपने पापों से पश्चाताप करके, हमें अपने पिता के घर, स्वर्ग के राज्य में वापस लौटने का मौका दिया गया है। हमारा शरीर एक तम्बू मात्र है जिसमें हम थोड़े समय के लिए रहते हैं; हमारा अनन्त घर तो स्वर्ग में है।(2कुर 5:1–4)
हमारे पूर्वजों का विश्वास जिन्होंने स्वर्ग के लिए तैयारी की
इस जीवन में हमें दिया गया समय अनन्त स्वर्ग के राज्य के लिए तैयारी करने के लिए दिया गया सुअवसर है। हमारे विश्वास के पूर्वजों ने इस सत्य को महसूस किया, इसलिए वे अपने स्वर्गीय घर की आशा करते हुए, जहां वे लौटने वाले थे, सभी बातों में संयमी थे, और उन्होंने इस पृथ्वी की पीड़ाओं को अपनी यात्रा के अनिवार्य भाग के रूप में समझा था।
इब्र 11:15–16 और जिस देश से वे निकल आए थे, यदि उस की सुधि करते तो उन्हें लौट जाने का अवसर था। पर वे एक उत्तम अर्थात् स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं, इसी लिये परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाने में उनसे नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिये एक नगर तैयार किया है।
यदि हम अपने घर के बारे में सोचते हैं जहां हम लौटने वाले हैं, तो हम वहां वापस लौटने का मौका पा सकते हैं और उसके लिए तैयारी कर सकते हैं। इस बात को याद रखते हुए कि अनन्त स्वर्ग का राज्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, हमें संसार को बचाने के कार्य में अपने जीवन का अर्थ और उद्देश्य खोजना चाहिए और परमेश्वर के द्वारा तैयार किए गए स्वर्ग के राज्य में बहुत से लोगों के साथ वापस लौटना चाहिए। इब्रानियों के 11वें अध्याय में निरंतर हमारे विश्वास के पूर्वजों का वृत्तांत लिखा गया है, जिन्होंने अनन्त स्वर्ग के राज्य के लिए तैयारी की थी।
इब्र 11:17–26 विश्वास ही से अब्राहम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया; और जिसने प्रतिज्ञाओं को सच माना था... विश्वास ही से इसहाक ने याकूब और एसाव को आनेवाली बातों के विषय मे आशीष दी... विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना अधिक उत्तम लगा। उसने मसीह के कारण निन्दित होने को मिस्र के भण्डार से बड़ा धन समझा, क्योंकि उसकी आंखें फल पाने की ओर लगी थीं।
उन्होंने विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छाओं का पालन करते हुए अपनी लंबी यात्रा के लिए एक एक करके चीजें तैयार की थीं। उन्होंने हमेशा विश्वास के साथ जीवन जिया। अंतत: विश्वास के साथ जीवन जीना ही स्वर्ग के लिए तैयारी करना है।
इब्र 11:6–10 और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है; क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है। विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ जो विश्वास से होता है। विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेनेवाला था; और यह न जानता था कि मैं किधर जाता हूं, तौभी निकल गया। विश्वास ही से उसने प्रतिज्ञा किए हुए देश में, पराए देश में परदेशी के समान, रहकर इसहाक और याकूब समेत, जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्बुओं में वास किया। क्योंकि वह उस स्थिर नींववाले नगर की बाट जोहता था, जिसका रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।
विश्वास के हमारे पूर्वजों ने अपने आपको इस पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी मान लिया। उनके जीवन का उद्देश्य स्वर्ग के राज्य के लिए तैयारी करना था। हमारे जीवन का उद्देश्य भी ऐसा ही है। किसी दिन हम अपने घर, स्वर्ग की ओर लंबी यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे। प्रस्थान करने से पहले, हमें एक संपूर्ण विश्वास धारण करके और परमेश्वर की भली इच्छा का पालन करके अपने आपको पूर्ण रूप से तैयार करना चाहिए। यही हमारा विश्वास का जीवन है।
जिन्होंने स्वर्ग के लिए तैयारी की थी, वे निरंतर परमेश्वर के प्रेम में रह सके थे, और परमेश्वर का प्रेम हमेशा उनके साथ था।
रो 8:35–39 कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊंचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।
प्रथम चर्च के संतों ने स्वेच्छा से कठिनाइयों और सतावों को सहन किया था; चाहे उन पर बड़े–बड़े क्लेश आते थे, इस विश्वास के साथ कि कुछ भी उन्हें मसीह के प्रेम से अलग नहीं कर सकेगा, वे लगन और मेहनत से विश्वास के मार्ग पर चलते थे। अगर वे केवल इतना ही बोलते कि वे यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करेंगे, तो वे जीवित जलाकर मार डाले जाने से या सिर काटे जाने से बच सकते थे। फिर भी उन्होंने उससे छुटकारा पाने से मना कर दिया और मसीह के लिए स्वेच्छा से सब प्रकार के सताव और अपमानों को सहन किया। चूंकि उनके पास इतना बड़ा विश्वास था कि संसार उनके योग्य नहीं था, वे बिना किसी हिचकिचाहट के अनन्त स्वर्ग के राज्य की ओर आगे बढ़ते थे और वे शहीद हो जाना चाहते थे।(इब्र 11:36–38)
आइए हम उस महिमा की ओर आगे बढ़ें जो हमारे लिए आरक्षित की गई है
उनके समान स्वर्ग के लिए तैयारी करते हुए जीवन बिताने के लिए, हमें अपने विश्वास को जांचना चाहिए। हमें यह जांचने के लिए अपने आप पर ध्यान देना चाहिए कि क्या हमने अपना विश्वास का जीवन उस मार्ग पर जिया है या नहीं, जिस पर परमेश्वर ने हमारी अगुआई है। आइए हम सच्चाई से परमेश्वर की आराधना करें और परमेश्वर की इच्छा का पालन करें, और इस बात को न भूलते हुए कि हम पापी हैं, पश्चाताप का अनुग्रहपूर्ण जीवन जीएं।
रो 8:12–18 इसलिए हे भाइयो, हम शरीर के कर्जदार नहीं कि शरीर के अनुसार दिन काटें, क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे तो जीवित रहोगे। इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं। क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं। क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।
बाइबल हमें साफ–साफ कहती है कि यदि हम भौतिक शरीर के अनुसार न जीते हुए आत्मा से देह की क्रियाओं को मारेंगे तो हम जीएंगे, और यह भी कहती है कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम स्वर्ग में पाने वाले हैं, कुछ भी नहीं हैं। फिलहाल हम अपने आपको उस महिमा के लिए तैयार कर रहे हैं।
हमें एलोहीम परमेश्वर, स्वर्गीय पिता और माता को पूरे हृदय से धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने हमें सत्य में बुलाया और हमें स्वर्ग की आशा और खुशी दी है। मैं चाहता हूं कि बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार, जो हमारे लिए आत्मिक तैयारी करने का मैनुअल है, हम सब मेहनत से सुसमाचार का प्रचार करके, परमेश्वर की आज्ञाओं का ईमानदारी से पालन करके, और सिय्योन के भाइयों और बहनों के बीच आपस में सुंदर एकता प्राप्त करके, स्वर्ग के राज्य के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाएं।
आइए हम उस सेवक की सलाह के बारे में सोचें, जिसने राजा से पूछा था कि प्रस्थान करने से पहले उसने क्या तैयार किया है। जब आप यात्रा पर जाते हैं, तो ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जिन्हें आपको तैयार करना चाहिए। अब आप उस स्थान की लंबी यात्रा करने जा रहे हैं, जहां से आप कभी वापस नहीं आ सकेंगे। तब, आपने क्या तैयार किया है?
जब हम संसार के लोगों से यह प्रश्न पूछते हैं, तो उस राजा की तरह, वे भी चुप हो जाते हैं। राजा अपनी मृत्यु के बाद के जीवन के लिए तैयारी किए बिना केवल इस जीवन के भोग–विलास की वस्तुओं के पीछे भागता रहा। जब वह अपना जीवन उसी प्रकार से जी रहा था, तो थोड़े ही समय के बाद उसके जीवन का अंत आ गया।
जब प्रेरित पौलुस ने यह जान लिया था कि उसके जाने का समय आ चुका है, तो उन्होंने कहा था कि, “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मेरे लिये धर्म का मुकुट रखा हुआ है।”(2तीम 4:6–8) इससे उसका अर्थ था कि स्वर्ग जाने के लिए वह पूर्ण रूप से तैयार था। जब सुसमाचार का प्रचार करते हुए पौलुस एक स्थान से दूसरे स्थान में जाता था, तो मसीह के कारण उसे बेहद सताया गया और पीड़ित किया गया था; उसका जीवन पूर्ण रूप से स्वर्ग के लिए तैयारी था।
हमें भी पूर्ण रूप से अपने आपको तैयार करना चाहिए, ताकि हम भी निस्संदेह रूप से यह कह सकें कि, “अपने विश्वास के जीवन में जो कुछ मैं ने परमेश्वर की इच्छा के पालन में किया, वह सब मेरी स्वर्ग के लिए तैयारी थी।” आइए हम एक बार फिर अपने आपको जांचें कि हम कितने तैयार हैं, और अंत तक आत्मा और विश्वास के द्वारा जीवन जीएं। मैं आशा करता हूं कि हम इस दृढ़ विश्वास के साथ कि ऐसा कुछ भी नहीं जो मसीह के प्रेम से हमें अलग कर सकता है, परमेश्वर को और अधिक महिमा चढ़ाएं।
हमें उन लोगों को, जो अभी तक तैयार नहीं हैं, जल्दी ही सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए और उन्हें स्वर्ग के लिए तैयारी करने में सहायता करनी चाहिए। मैं पूरे आग्रह के साथ यह आशा करता हूं कि संसार के सभी लोग बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार पश्चाताप करें और उद्धार पाएं और उस अनन्त स्वर्ग के राज्य में साथ मिलकर जाएं, जिसे पिता और माता ने तैयार किया है, और अनन्त जीवन और खुशी भोगें। सिय्योन के सभी भाइयो और बहनो! मैं एक बार फिर से आपसे विनती करना चाहता हूं कि अपना पूरा मन और शक्ति आत्माओं को एक एक करके बचाने के कार्य में लगाएं और बहुत सी आत्माओं की प्रायश्चित्त और उद्धार की ओर अगुआई करें, ताकि वे भी उस अनन्त महिमा में हमारे साथ सहभागी हो सकें, जिसे पिता और माता ने हमारे लिए आरक्षित की है।