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वचन और भोजन
यदि हम मनुष्य भोजन न खाएं, तो हम कुछ भी अच्छे से नहीं कर सकते; हम न तो कुछ सोच सकते हैं और न ही अपने उद्देश्य और योजनाओं को पूरा कर सकते हैं। आत्मिक रूप से भी ऐसा ही है। यदि हम आत्मिक भोजन न खाएं, तो हम उन आत्मिक कार्यों को शालीनतापूर्वक नहीं कर सकते जिनकी हम आशा करते हैं।
बाइबल हमें इस बात का एहसास करने में सहायता करती है कि परमेश्वर का वचन हमारे लिए जीवन का भोजन है, और उसमें हमारी आत्माओं को नया करने की शक्ति है। यीशु ने हमें सिखाया है कि, “नाशवान् भोजन के लिए परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है।”(यूह 6:27) इससे उनका मतलब था कि हमें नाशवान् भोजन का, यानी सांसारिक चीजों का पीछा करके, परमेश्वर के वचन, यानी आत्मिक भोजन की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अब, आइए हम यह समझने के लिए कुछ समय लें कि परमेश्वर के वचनों का भोजन हमारे लिए कितना बहुमूल्य है।
मजदूर मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी के बीच का अंतर
मधुमक्खियां एक परिश्रमी जीव है जो पौधों को फल उत्पन्न करने में सहायता करता है और प्राकृतिक परितंत्र को बनाए रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उनमें मजदूर मधुमक्खियां होती हैं जो अपना पूरा जीवन ही काम करती हैं और एक रानी मधुमक्खी होती है जो अपने झुण्ड की अगुआई करती है। मजदूर मधुमक्खियों और रानी मधुमक्खी में केवल भोजन का ही अंतर होता है।
जब अंडे इल्लियों में बदलते हैं, तो सभी छोटी मधुमक्खियां शाही जेली कहा जाने वाला एक ही भोजन खाती है। जबकि मजदूर मधुमक्खियां अपनी इल्ली की अवस्था में केवल तीन या चार दिनों तक शाही जेली खाती हैं और बाद में दूसरा भोजन खाती हैं, रानी मधुमक्खी अपने पूरे जीवन–भर शाही जेली खाती है। रानी मधुमक्खी मजदूर मधुमक्खियों से आकार में बड़ी होती है और वह उनसे कहीं अधिक लम्बी आयु जीती है; मजदूरों के सात सप्ताहों के जीवनकाल की तुलना में रानी सात साल तक जीती है। यह अंतर उनके भोजन के कारण पैदा होता है जो वे खाती हैं।
कीड़ों की दुनिया में, हम परमेश्वर की महान इच्छा को देख सकते हैं। अपने अनन्त राज्य में हमें राजकुमार और राजकुमारियां बनाने के लिए, परमेश्वर ने राज–पदधारी याजकों के पद को आरक्षित रखा है और इस पृथ्वी पर हमें आत्मिक रूप से प्रक्षिशित करते हैं।(1पत 2:9; नीत 17:3) हालांकि, यद्यपि हमारे लिए राज–पदधारी याजकों के पद आरक्षित किए गए हैं, यदि हम इस सांसारिक जीवन से थक कर, परमेश्वर के वचनों की उपेक्षा करें और परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करना रोक दें, तो अंत में हम उस पद को पाने में असफल होंगे।
इस संसार में जीवन जीते समय, हम संसार की कई चीजों के पीछे अपना बहुत सा समय बिताते हैं। हम शारीरिक भोजन के लिए काम करने में ज्यादातर समय खर्च करते हैं, और मनोरंजन और प्रिय वस्तुओं या कार्यों के पीछे भी काफी समय गंवा देते हैं। इस सांसारिक जीवन में, हमें अपने आप से सवाल करना चाहिए कि, ‘हम परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने में कितने घंटे बिताते हैं?’ मधुमक्खियों की दुनिया में, कुछ मधुमक्खियां केवल तीन या चार दिनों तक शाही जेली खाती हैं और अंत में एक मजदूर मधुमक्खी बनती है जो सात सप्ताहों का जीवन पाती है। उसके विपरीत, वह मधुमक्खी जो शाही जेली को खाना जारी रखती है, धीरे–धीरे बदलती है और एक रानी मधुमक्खी बनती है जो आकार में बहुत बड़ी होती है और दूसरी सभी मधुमक्खियों से बहुत लंबा जीवन जीती है। इसी तरह से, जो परमेश्वर के वचनों का भोजन खाना जारी रखते हैं, वे दूसरों की अगुआई करनेवालों के पद को पा सकेंगे और अंत में अनन्त जीवन पाएंगे।
परमेश्वर ने यह आत्मिक भोजन सभी लोगों को दिया है। इसलिए, सभी को उसे ग्रहण करना और खाना चाहिए। जब हम हर रोज परमेश्वर के वचनों का भोजन करते हैं और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीते हैं, तो हम उन राज–पदधारी याजकों के तौर पर आत्मिक रूप से प्रशिक्षित हो सकते हैं जिनके पास परमेश्वर के वचनों के प्रति आज्ञापालन, और परमेश्वर के प्रति आदर और विश्वास जैसी सारी योग्यताएं हैं।
परमेश्वर के वचन हमारी आत्माओं के लिए भोजन हैं
हमें अपना जीवन हमेशा परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीते हुए और उस स्वर्गीय आशा को रखते हुए जो परमेश्वर अपने वचनों के द्वारा हमें देते हैं, अपने सभी वर्तमान कष्टों से जीतना चाहिए। आइए हम बाइबल की शिक्षा को देखें जो परमेश्वर के वचनों का आत्मिक भोजन के रूप में वर्णन करती है।
आम 8:11 परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, “देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महंगी करूंगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी।”
परमेश्वर के वचन हमारी आत्माओं के लिए भोजन हैं। जहां तक नए सदस्यों की बात है, वे बहुत सा अनुग्रह पाते और वचनों से गहराई तक प्रभावित होते हुए सत्य के वचनों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करते हैं। हालांकि, कुछ समय के बाद, ऐसा सोचते हुए कि वे सब कुछ जानते हैं, वे परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने में उपेक्षा करने लगते हैं। चूंकि वे सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं और परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने में उपेक्षा करते हैं, धीरे–धीरे वे परमेश्वर के वचनों का स्वाद खो देते हैं जो शुरुआत में उन्हें शहद के समान मीठे लगते थे। जब इस्राएली के पास जंगल में भोजन नहीं था, परमेश्वर ने उनके खाने के लिए हर रोज मन्ना बरसाया था। शुरुआत में, उन्होंने मन्ना का आनन्द लिया, जो मधु के बने हुए पुए के समान स्वादिष्ट था, लेकिन बाद में उन्होंने उसे एक निकम्मी रोटी कहते हुए नापसन्द किया।(निर्ग 16:31; गिन 21:5) हमें अपने आपको जांचना चाहिए कि कहीं हम भी ऐसी ही परिस्थिति में तो नहीं।
यदि हम परमेश्वर के वचन, यानी अपने आत्मिक भोजन का लगातार अध्ययन न करें, तो यह उन मजदूर मधुमक्खियों के समान है जो अपने अंडे से बाहर निकलने के बाद पहले तीन या चार दिनों तक शाही जेली खाती हैं और बाद में उसे खाना बंद कर देती हैं। जिस क्षण से हम परमेश्वर के वचनों से दूर होना शुरू करेंगे, उसी क्षण से हम स्वर्ग के राज–पदधारी याजक के पद से भी दूर हो जाएंगे। यदि हम अपनी आत्माओं को परमेश्वर के वचनों की निरंतर आपूर्ति करें, और चाहे कल अध्ययन किया था, आज फिर से परमेश्वर के वचन पर ध्यान दें, तो हम उसमें से एक ऐसा नया सबक खोज सकेंगे, जो आज हम पर लागू हो सकता हो।
1पत 1:23–25 क्योंकि तुम ने नाशवान नहीं पर अविनाशी बीज से, परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है... प्रभु का वचन युगानुयुग स्थिर रहता है। और यही सुसमाचार का वचन है जो तुम्हें सुनाया गया था।
यीशु ने कहा था कि, “यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।”(यूह 3:3) परमेश्वर के वचनों में ऐसे अत्यावश्यक तत्व हैं जो हमें परमेश्वर की प्रजा के रूप में नये सिरे से जन्म लेने देते हैं।
हमें परमेश्वर के वचनों से मुंह नहीं फेरना चहिए। दिन प्रतिदिन, हमें परमेश्वर के वचनों के और भी करीब जाना चाहिए। यदि परमेश्वर का वचन हमारे हृदय पर अंकित है, तो हम उसे अपने रोजमर्रा के जीवन में अभ्यास में ला सकते हैं। हालांकि, यदि हम केवल संसार की चीजों को देखें, सुनें और महसूस करें, तो हम केवल संसार के मानदण्ड से न्याय करेंगे।
यदि हम दिन में तीन बार भोजन न करें, तो हम इस पृथ्वी पर अपने कार्यों को नहीं कर सकते। उसी तरह से, परमेश्वर के वचनों के बिना, हम आत्मिक कार्य नहीं कर सकते। परमेश्वर के वचन ऐसा बहुमूल्य भोजन है जो हमारी आत्माओं को पोषण देता है। कृपया इसके बारे में ध्यान से सोचिए कि इस भोजन को केवल कुछ दिनों तक खाना चाहिए या फिर उसे अपनी आत्मा को निरंतर देना चाहिए, कि आप स्वर्ग के राज्य में राज–पदधारी याजक का पद पा सकें।
परमेश्वर के वचन से जीवित रहेगा
जब यीशु ने चालीस दिनों के उपवास और प्रार्थना को समाप्त किया था, शैतान ने सबसे पहले भोजन के द्वारा ही उनकी परीक्षा ली थी। शैतान सभी मानव जाति को फुसलाने का प्रयास करता है कि वे अपने जीवन के उद्देश्य और दिशा इस शारीरिक जीवन की ओर रखें। इस तरह से, उसने यीशु को भी शारीरिक जरूरतों के लिए फुसलाकर उन्हें पराजित करना चाहा।
मत 4:1–2 तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो। वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। तब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं।” यीशु ने उत्तर दिया : “लिखा है, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।”
परमेश्वर के मुख से निकलने वाला प्रत्येक वचन एक ऐसा आत्मिक भोजन है जो हमें बचाता है। यीशु ने सिर्फ उस परिस्थिति से बचने के लिए ऐसा नहीं कहा था, लेकिन अपने जवाब के द्वारा, जिसका अर्थ है कि, ‘शारीरिक भोजन नाशवान् भोजन है; उस भोजन को ढूंढ़ो जो अनन्त जीवन तक बना रहता है,’ उन्होंने हमारी आत्माओं के जीने का रास्ता दिया था। जब यीशु ने शैतान से कहा कि, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा,” तब शैतान की सब योजनाएं हवा में उड़ गईं।
यदि हम स्वर्ग के राज्य में राज–पदधारी याजक के समान कार्य करना चाहते हैं, जहां हम अनन्त जीवन और खुशी को भोगेंगे, तो हमें निरंतर और उत्सुकता से अपने आपको परमेश्वर के वचनों का भोजन खिलाना चाहिए, जो हमारी आत्माओं को बचाता है। निस्संदेह, जब तक हम शरीर में हैं, हमें शारीरिक भोजन भी खाना चाहिए। हालांकि, यदि हम केवल शारीरिक भोजन के लिए ही जीवन जीएं, तो हम पशुओं से बिल्कुल भी अलग नहीं हैं। हम मनुष्यों के हृदय में विश्वास और अनादि–अनन्त काल का ज्ञान है। इसलिए, यदि हम सदा तक जीवित रहना चाहते हैं, तो हमें उस भोजन को निरंतर खाना चाहिए जिसे परमेश्वर ने हमारे अनन्त जीवन के लिए दिया है।
यदि हमने परमेश्वर के वचनों का ध्यानपूर्वक अध्ययन नहीं किया, तो आइए हम इस वर्ष में उनका फिर से अध्ययन करें। यदि बाइबल के कुछ ऐसे भाग हैं जिन्हें हमने ध्यानपूर्वक नहीं पढ़ा, तो आइए हम ध्यान से उन्हें पढ़ें। इसके अतिरिक्त, आइए हम सत्य की पुस्तकें पढ़ें, और उपदेश के टेपों या वीडियोस को सुनें और देखें। ऐसा करते हुए, आइए हम पिताजी के वचनों को समझें और माता की शिक्षाओं पर विचार करें, ताकि बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार, हमें हमेशा आत्मिक भोजन मिल सकें और हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जी सकें।
परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन जीने वालों की महिमा
व्य 28:1–10 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएं, जो मैं आज तुझे सुनाता हूं, चौकसी से पूरी करने को चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करेगा। फिर अपने परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण ये सब आशीर्वाद तुझ पर पूरे होंगे... धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय। यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएंगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे सामने से सात मार्ग से होकर भाग जाएंगे। और यहोवा तुझ को पूंछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा, और तू नीचे नहीं, परन्तु ऊपर ही रहेगा; यदि परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं, तू उनके मानने में मन लगाकर चौकसी करे; और जिन वचनों की मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं उनमें से किसी से दाहिने या बाएं मुड़के पराये देवताओं के पीछे न हो ले, और न उनकी सेवा करे।
यदि हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीएं और उनका पालन करें, तो उन्होंने हमें पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करने की प्रतिज्ञा की है। संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो एक राजनयिक या राष्ट्रपति या यूएन का महासचिव बनने का स्वप्न देखते हैं और अपने भविष्य के जीवन के लिए तैयारी कर रहे हैं। सभी लोगों में श्रेष्ठ होने के लिए, वे बहुत सा समय, पैसा और परिश्रम लगाकर अपनी क्षमता और अनुभव को बढ़ाते हैं और बहुत सी अन्य चीजों को तैयार करते हैं। हालांकि, जो परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीते हैं, केवल वे ही ऐसे लोग हैं जो संसार की सारी जातियों में श्रेष्ठ किए जाएंगे और जो सच में अपने भविष्य के लिए तैयारी कर रहे हैं।
वास्तव में, जब सुसमाचार के प्रचारक विदेश में प्रचार यात्रा पर जाते हैं, तो बहुत से लोग उनसे परमेश्वर के वचन सीखने के लिए टूट पड़ते हैं। जैसे कि यीशु ने कहा है कि, “जाओ और सब जाति के लोगों को चेला बनाओ,” जो कोई भी सत्य में आता है, फिर चाहे वह कोई प्रोफेसर हो या एक वैज्ञानिक हो या किसी शाही परिवार का सदस्य हो या फिर कोई राष्ट्रपति हो, वह हमारा चेला बन जाता है; हम अपने आप ही उनके शिक्षक बन जाते हैं। चाहे वे इस पृथ्वी पर ऊंचे पदों पर हैं, लेकिन जब वे सिय्योन में आते हैं, तो वे सब परमेश्वर के नाम के सामने अपने घुटने टेकते हैं और उनके वचनों का पालन करते हैं। संसार के लोगों के द्वारा उन्हें आदर और सम्मान दिया जाता है, लेकिन वे उन लोगों को सचमुच महान समझते हैं और उनका आदर करते हैं जो हर रोज परमेश्वर के वचन का भोजन खाते हैं और उसे दूसरों के साथ बांटते हैं।
हमारे पास इस संसार में सबसे ज्यादा मूल्यवान खजाना है। हालांकि, हमें उसे सिर्फ नहीं रख छोड़ना चाहिए, लेकिन लगातार उस पर पालिश करना चाहिए ताकि वह और ज्यादा चमक सके। हमें हमेशा परमेश्वर के वचन को अपने मुंह में रखना, उसका प्रयोग करना, और दूसरों को उसका प्रचार करना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे, तो शैतान, यानी दुष्ट आत्मा पीछे हटेगी, और परमेश्वर हमें आत्मिक रूप से बुद्धिमान बनाएंगे और हमारी आत्माओं को नया बनाएंगे और सभी लोगों की अनन्त जीवन की और अगुआई करेंगे।
परमेश्वर अपने वचनों के अनुसार सब कुछ पूरा करते हैं
परमेश्वर ने अपने वचनों से सब कुछ उत्पन्न किया था। जब उन्होंने कहा, “उजियाला हो,” तो उजियाला हुआ था। जब उन्होंने कहा कि, “जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए,” तो ऐसा ही हो गया। सब कुछ परमेश्वर के वचन के अनुसार हो गया था। परमेश्वर के वचन में कुछ भी होने देने और सब कुछ पूरा करने की सामर्थ्य है।
इब्र 4:12–13 क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है; और प्राण और आत्मा को, और गांठ–गांठ और गूदे–गूदे को अलग करके आर–पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है। सृष्टि की कोई वस्तु उससे छिपी नहीं है वरन् जिससे हमें काम है, उसकी आंखों के सामने सब वस्तुएं खुली और प्रगट हैं।
परमेश्वर के वचन जीवित और प्रबल हैं, और परमेश्वर का प्रत्येक वचन बिल्कुल वैसा ही पूरा होता है। जब परमेश्वर कहते हैं कि वे हमें राज–पदधारी याजक बनाएंगे, तो वे निश्चय ही ऐसा करेंगे। लेकिन समस्या उन मजदूर मधुमक्खियों जैसी हमारी मानसिकता है जो केवल तीन और चार दिनों तक शाही जेली खाती हैं और बाद में उसे खाना नापसन्द करती हैं।
परमेश्वर ने कहा कि, “मैं मैदान की घास और आकाश के पक्षियों को खिलाता हूं। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? इसलिए, अपने प्राण के लिए यह चिंता न करना कि हम क्या खाएंगे और क्या पीएंगे।”(मत 6:25–34) क्या परमेश्वर ने इस्राएलियों को स्वर्ग का भण्डार खोलकर जंगल में, जहां भोजन नहीं था, मन्ना नहीं खिलाया था? जंगल के चालीस साल के इतिहास में, ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं था जो भूख के कारण मर गया हो; वहां केवल ऐसे ही लोग थे जो अपने अविश्वास और कुड़कुड़ाने वाली सोच के कारण मर गए थे।
परमेश्वर के मुख से निकला कोई भी वचन कभी व्यर्थ ठहरकर नहीं मिटता, और परमेश्वर निश्चय अपनी योजना और उद्देश्य पूरा करेंगे।(यश 45:23; 46:10–11) इस सत्य को अपने मन में रखते हुए, हमें आत्मिक भोजन का और ज्यादा पीछा करना चाहिए और इसके बारे में सोचना चाहिए कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने के लिए, पिता और माता को प्रसन्न करने के लिए, और परमेश्वर को और भी ज्यादा महिमा चढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए।
परमेश्वर के वचनों का भोजन खाना न रोकिए। यदि हम उन्हें खाना रोकते हैं, तो हम मजदूर मधुमक्खियों के समान हैं, लेकिन यदि हम अनन्त स्वर्ग के राज्य में जाने तक वचनों का भोजन करना जारी रखें, तो हम राज–पदधारी याजक बनेंगे। मजदूर मधुमक्खियों को जो रानी मधुमक्खी से अलग करता है, वह यही है कि वे शाही जेली को कितनी देर तक खाती हैं, थोड़े समय के लिए या फिर पूरे जीवन भर। उसी तरह से, लोग जो परमेश्वर के वचनों का थोड़ा ही अध्ययन करते हैं और बाद में अध्ययन करना रोक देते हैं, और लोग जो प्रतिदिन परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हैं और उत्सुक मन के साथ उन्हें ग्रहण करते हैं, उन दोनों की नियति बिल्कुल अलग होगी।
हर रोज परमेश्वर के वचनों का भोजन करने का सबसे अच्छा रास्ता सुसमाचार का प्रचार करना है। सत्य के वचनों का प्रचार करनेवाले हमेशा सोचते हैं कि, ‘आज मैं उन्हें क्या सिखाऊंगा? आज मुझे उन्हें कौन सा भोजन देना चाहिए?’ चूंकि वे दूसरों के बारे में इस प्रकार से सोचते हैं, वे निरंतर परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते रहते हैं। स्वर्ग की अनन्त महिमा उन लोगों के लिए तैयार की गई है।
प्रक 22:3–5 फिर स्राप न होगा, और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा और उसके दास उसकी सेवा करेंगे। वे उसका मुंह देखेंगे, और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा। फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले की आवश्यकता न होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन्हें उजियाला देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे।
यदि आप युगानुयुग स्वर्ग के राज्य में राज्य करना चाहते हैं और साथ ही साथ पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ होना चाहते हैं, तो कृपया परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने में उपेक्षा न कीजिए। मेहनत से सत्य की पुस्तकों और बाइबल का अध्ययन कीजिए और जी लगाकर उपदेशों को सुनिए। ये सब आत्मिक शाही जेली हैं। हम स्वर्गीय राज–पदधारी याजक हैं जिन्हें आत्मिक शाही जेली को हमेशा खाना चाहिए।
परमेश्वर के वचन हमारी आत्माओं के लिए भोजन हैं, और जब हम शैतान को हराते हैं तो वह एक चोखी तलवार है। चूंकि परमेश्वर के वचन शैतान को हराने का एक उपयुक्त हथियार है, आइए हम हमेशा परमेश्वर के वचनों को अपने इतना निकट रखें जितना हमें रखना चाहिए, ताकि इस अंतिम युग में स्त्री की शेष संतान के रूप में शैतान के साथ बड़े आत्मिक युद्ध करते समय परमेश्वर के वचनों की तलवार से हम निरंतर विजयी हो सकें।
सिय्योन के भाइयो और बहनो! आइए हम पिता और माता को हमें पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करने और अनन्त स्वर्ग के राज्य में राज–पदधारी याजक बनाने के लिए जीवन के वचन देने के लिए धन्यवाद दें, और आइए हम हमेशा परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीएं और युगानुयुग पिता और माता को महिमा चढ़ाएं!