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माता का हृदय और सुसमाचार
जब भी शरद ऋतु आती है, हम सड़कों पर ‘जिनको’ पेड़ों के पीले रंग के पत्तों को देख सकते हैं, जो एक सुंदर वातावरण बनाते हैं। जब हम ध्यान से पेड़ों को देखते हैं, उनमें से कुछ में अधिक फल लटके होते हैं, और कुछ दूसरों में एक भी फल नहीं होता। यह इसलिए है क्योंकि उनमें नर ‘जिनको’ पेड़ और नारी ‘जिनको’ पेड़ होते हैं, और केवल नारी पेड़ पर ही फल लगते हैं।
सभी चीजों के सृष्टिकर्ता परमेश्वर की ईश्वरीय योजना बहुत ही गहरी है।(प्रक 4:11) सभी जीवित प्राणी अपनी माता के द्वारा जीवन पाते हैं और फल फलते हैं। सिय्योन में, परमेश्वर ने हमें सुसमाचार का फल फलने की अनुमति दी है; हम तभी फल फल सकते हैं जब हम माता का हृदय रखते हुए आत्मत्याग से अपने भाइयों और बहनों का ध्यान रखते हैं और लगन से उन्हें परमेश्वर के शब्दों के भोजन से पोषित करते हैं।
परमेश्वर चाहते हैं कि जैसा माता का मन है वैसा ही उनकी संतान का मन हो। इसलिए, परमेश्वर ने प्रकृति के नियम और बाइबल के द्वारा लगातार हमें सिखाया है कि यदि हम अधिक मात्रा में आत्मिक फल फलना चाहते हैं, हमारे पास माता का हृदय होना चाहिए।
बीजों को सुरक्षित रखने का उत्तम तरीका
पुराने समय में एक राजा था जिसके तीन बेटे थे। जैसे राजा बूढ़ा हो गया, उसके सेवक आपस में चर्चा करने लगे कि उन तीन राजकुमारों में से कौन अगला राजा बनने के योग्य होगा। हालांकि, वह चर्चा आसानी से समाप्त नहीं हुई, क्योंकि सभी राजकुमार सेवकों की ओर से विश्वास कमा रहे थे। तब सेवकों ने राजा को सुझाव दिया कि उसे हर एक राजकुमार को फसलों के बीजों को शरद ऋतु तक अच्छे तरीके से रखने का काम सौंपना चाहिए, और कहा कि देश पर अच्छे से राज करने के लिए जो सबसे जरूरी काम है वह लोगों की भूख की समस्या को सुलझाना है, इसलिए उसे उस राजकुमार को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुनना चाहिए जो इसे सबसे अच्छे तरीके से संभाल पाएगा।
राजा ने उनके सुझाव को स्वीकार किया, और तीनों राजकुमारों को एक साथ बुलाया, और उनमें से हर एक को बीजों से भरा थैला दिया। तब उसने घोषणा की कि जो सबसे अच्छे तरीके से बीजों को रखेगा, वह राजगद्दी पर बैठेगा। बीजों को पाने के बाद, राजकुमारों ने इसके बारे में सोचना शुरू किया कि उन्हें कैसे रखें, और वे उन्हें सुरक्षित रखने के लिए अपने–अपने तरीके ढूंढ़ पाए।
जब शरद ऋतु फिर आई, राजा और उसके सेवकों ने तीनों राजकुमारों को एक साथ बुलाया और उनसे पूछा कि उन्होंने कैसे बीजों को रखा। पहले राजकुमार ने कहा कि उसने एक मजबूत भण्डार–गृह का निर्माण किया और बीजों को बंद कमरे में रखा ताकि उनमें नमी न हो, और उसने भण्डार–गृह से निकाले गए बीजों को उन्हें दिखाया। दूसरे राजकुमार ने उन पैसों को दिखाया जो उसने बीजों को बेचकर कमाए; उसने कहा कि उसने बीजों को बेच दिया क्योंकि वह चिंतित था कि यदि उन्हें शरद ऋतु तक रखा जाए तो वे चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा नष्ट हो जाएंगे, और उसने यह भी कहा कि वह उन पैसों से जो उसने बीजों को बेचकर कमाए, नए अनाजों को बाजार से किसी भी समय खरीद सकता है।
तीसरे और आखिरी राजकुमार राजा और सेवकों को एक खेत में ले आया। वह खेत हवा से लहराते अच्छे तरह से पके हुए सुनहरे अनाजों से भरा हुआ था। उसने कहा कि उसने सारे बीजों को अच्छी तरह से रखने के लिए उन्हें एक एक करके बोया और उनका पूरा ध्यान रखा, ताकि हर एक डंठल काफी अधिक फल उत्पन्न कर सके।
निश्चय वह तीसरा राजकुमार था जिसने राजा और उसके सेवकों को सबसे अधिक प्रभावित किया। यह स्वाभाविक ही था कि उसने सिंहासन को प्राप्त किया।
परमेश्वर ने हम में से हर एक को सुसमाचार का बीज दिया है। हम में से कुछ पहले राजकुमार की तरह शायद बीज को कहीं पर रख रहे हैं, कुछ दूसरे राजकुमार की तरह इसे दूसरे तरीके से रख रहे हैं, और कुछ तीसरे राजकुमार की तरह लगन से बीज बो रहे हैं और उनका अच्छा ख्याल रख रहे हैं, ताकि वे जो बोए हैं उनसे सौ, साठ या तीस गुना अधिक फल उत्पन्न कर सकें।
उस दिन जब पिता हमसे उनका लेखा–जोखा लेंगे जो हमने अपनी पूरी जिंदगी में प्राप्त किए हैं, यदि वह हम से पूछेंगे, “तुमने अब तक क्या किया है?” तो हमें उन्हें क्या दिखाना चाहिए? क्या हम वह बीज दिखाएंगे जो केवल रखा गया है? या वह पैसा जो हमने बीज को बेचकर कमाया है? यदि हम पिता को अनाज की सुनहरी लहरों का एक खेत दिखाएं, तो वह हमसे यह कहते हुए, “तुम सच में स्वर्ग में राजकीय याजक बनने के योग्य हो!” हमारे उद्धार का निश्चय करेंगे, है न?
यदि तीसरे राजकुमार ने बीजों को बोने के अलावा अन्य कोई काम न किया होता, तो क्या वे बीज फल उत्पन्न करने के लिए खुद बढ़ सकते? यह जरूरी है कि एक बीज को फलने के लिए उपयुक्त परिस्थितियों को प्रदान किया जाए। जब वहां बारिश नहीं हुई, राजकुमार ने जरूर ही उन बीजों को सींचा होगा, और जब कीड़ों ने फसलों पर हमला किया, उसने उन्हें निकालने का प्रयास किया होगा, और उसने लगातार जंगली घासों को खेत से बाहर निकालने का प्रयास भी किया होगा ताकि वे मोटे बनकर फसलों के विकास में बाधा न बनें। एक आत्मिक खेती करने और अच्छा फल फलने के लिए हमें भी उसी तरह का प्रयास और देखभाल करने की आवश्यकता है।
परमेश्वर के झुंड को चराने और उनका ख्याल रखने का सुसमाचार का मिशन
यही एक माता का हृदय है। वह घर में सभी काम करती है और परिवार जनों के लिए हर दिन भोजन तैयार करते हुए उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखती है। इसलिए यदि हमारे पास माता का हृदय हो, हम स्वाभाविक रूप से सुसमाचार का फल फलेंगे। जब तक हम में उस माता का प्रेम और आत्मत्याग न हो जो हमेशा अपने परिवार की सुरक्षा के बारे में चिंता करती है और परिवार जनों की देखभाल रखती है, हम फल नहीं फल सकते।
यूह 21:15–17 भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हां प्रभु; तू तो जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” उसने उससे कहा, “मेरे मेमनों को चरा।” उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हां, प्रभु; तू जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ कि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।”
जब यीशु ने प्रथम चर्च को पतरस की देखरेख में सौंपा, उन्होंने उससे पूछा, “क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” और फिर उन्होंने उससे कहा, “मेरे मेमनों को चरा,” और “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” परिवार वालों को खिलाना और उनकी देखभाल करना माता का एक मुख्य कार्य है। यीशु ने कहा, “मेरे मेमनों को चरा,” और “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” जब हम यीशु के इन शब्दों को आत्मिक रूप से देखते हैं, हम समझ सकते हैं कि यह परमेश्वर की इच्छा है कि हम में माता का हृदय हो।
नीत 27:23 अपनी भेड़–बकरियों की दशा भली–भांति मन लगाकर जान ले, और अपने सब पशुओं के झुण्डों की देखभाल उचित रीति से कर;
आत्मिक रूप से, परमेश्वर के लोगों की तुलना भेड़ों या बछड़ों के झुंड से की गई है। परमेश्वर के झुंड आत्मिक रूप से नहीं बढ़ सकते यदि हम उन्हें परमेश्वर के वचन नहीं खिलाते और उनमें से हर एक की देखभाल नहीं करते। इसलिए परमेश्वर ने हम से कहा है कि हम ध्यान से उन्हें देखें, परखें और समझें कि उनकी हालत और स्थिति कैसी है। क्या कोई बीमार है? क्या कोई भूखा है? यह जानने की कोशिश करना और उनका ध्यान रखना यही माता का हृदय है। माता के समान हृदय न रखते हुए, हम परमेश्वर के झुंड को चराने और उनकी रखवाली करने का कार्य सही तरह से नहीं कर सकते। यह हमारे प्रति हमारे आत्मिक पिता और माता की इच्छा है कि हम माता के हृदय के साथ अपने आत्मिक भाइयों और बहनों की देखभाल करें।
परमेश्वर के वचन से परमेश्वर के झुंड को चरा
एक मां परिवार में अपने बच्चों को अच्छे पौष्टिक आहार देती है ताकि वे अपने स्वास्थ्य व जीवन को बनाए रख सकें, और वह उनका बड़ा ध्यान रखती है कि वे ईमानदार बनें। परमेश्वर हमसे इस प्रकार का मन रखने के लिए लगातार निवेदन करते हैं।
मत 28:18–20 यीशु ने उनके पास आकर कहा... तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूं।”
यीशु ने कहा, “सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” इससे उनके कहने का यह मतलब था कि हमें परमेश्वर के जीवन का सत्य सभी लोगों को सिखाना चाहिए। उन्हें सत्य के वचन सिखाने का अर्थ है, आत्मिक रूप से उन्हें चराना। प्रेरित पौलुस सुसमाचार का प्रचार करने के मिशन के महत्व पर इस प्रकार जोर देता है:
2तीम 4:1–8 परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा।
ऊपर की आयत उस वचन के समान है जो मत्ती के 28 वें अध्याय में यीशु ने कहा। दुनिया में सभी लोग यदि बच पाने में असफल रहें, तो वे नरक की अनंत आग की झील में डाले जाएंगे। जब हम उन्हें माता के हृदय से देखते हैं, हमें उन पर दया आएगी और उन्हें जीवन के वचन खिलाकर बचाने के लिए उनमें से हर एक पर ध्यान देंगे।
अंतत: प्रचार कुछ ऐसा है जिसे हम माता का हृदय रखने पर कर सकते हैं। बाइबल की आयतों को फटाफट और आसानी से ढूंढ़कर अन्य लोगों तक पहुंचाना, यह सब कुछ नहीं है जो हमें करना चाहिए। यदि हम माता के हृदय के साथ दुनिया का ख्याल नहीं करते, तो यह सबूत है कि हम सुसमाचार का सही अर्थ समझने में अब तक असफल हैं। जब हम दुनिया के सारे लोगों को माता के हृदय से परमेश्वर का प्रेम देते हैं, केवल तब ही हम कह सकते हैं कि हम प्रचार कर रहे हैं।
क्या हम माता के समान हृदय के साथ सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं या नहीं – आइए हम इसके बारे में सोचें। हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि हम सुसमाचार के फल तभी बहुतायत से पैदा कर सकते हैं जब हम माता के हृदय के साथ अपने भाइयों और बहनों का पोषण करते हैं, उनका ध्यान रखते हैं, और उनकी सेवा करने के लिए खुद को नम्र बनाते हैं।
माता के हृदय के साथ अधिक तोड़ों को प्राप्त करना
सुसमाचार के कार्य को पूरा करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है, माता के हृदय को सीखना और उसे रखना। यदि हम ऐसा करते हैं, हम फल फल सकते हैं, और हम में से हर एक प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति में बदल सकता है, जैसे कि यीशु न कहा, “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।”(यूह 13:34)
फिलि 2:5–11 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है... और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
उन बच्चों को बचाने के लिए जो मांस और लहू के भागी हैं, परमेश्वर स्वयं इस धरती पर आए। भले ही उनके पास अपनी सारी सृष्टियों को आदेश देने का अधिकार और ताकत है, फिर भी उन्होंने अपने आप को दीन किया, और वह दास का स्वरूप धारण करके मनुष्य के रूप में प्रगट हुए और इतने आज्ञाकारी रहे कि अपने प्राण त्याग दिए। भले ही किसी ने भी उनका मूल्य नहीं जाना, वह चुपचाप कोड़े खाते हुए क्रूस के कंटीले मार्ग पर चले और कांटों से बेधे गए।(इब्र 2:14–15; यश 53:1–12ह)
मसीह का यह मन मूल रूप से माता के मन के जैसा है। मसीह ने खुद को दीन बनाया, आज्ञा मानी, दूसरों की सेवा की और सब कुछ सहे – ये सभी गुण माता के हृदय में निहित होते हैं। अब, क्या हम सब को माता का यह हृदय सीखना नहीं चाहिए?
मत 25:14–23 “क्योंकि यह उस मनुष्य की सी दशा है जिसने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उन को सौंप दी। उसने एक को पांच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उनकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। तब, जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन–देन किया, और पांच तोड़े और कमाए। इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी के रुपये छिपा दिए। बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने पांच तोड़े और लाकर कहा... उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’ और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा... ‘मैंने दो तोड़े और कमाए।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
तोड़ों के दृष्टांत में, यीशु ने इस अभिव्यक्ति का उपयोग किया, “लेन–देन करना” यदि एक व्यवसाय का मालिक एक अच्छा व्यापार करता है, आप क्या सोचते हैं कि उसमें किसका स्वभाव है, पिता का स्वभाव या माता का स्वभाव? जब बच्चे घर लौट आते हैं, उन्हें देखकर बहुत खुश होने पर भी, पिता को उन्हें अपनी भावना व्यक्त करने की आदत नहीं होती। उसके विपरीत, माता नंगे पांव ही दौड़ती है और बहुत खुशी से बच्चों का स्वागत करती है। पिता का उनके बच्चों पर अधिकार होता है, लेकिन माता खुद को नम्र बनाती है और दूसरों के हितों को ध्यान में रखती है।
यदि एक दुकान समृद्ध होती है, इसमें कोई संदेह नहीं कि उस दुकान का मालिक खुद को नम्र बनाता है, अपने ग्राहकों का ख्याल रखता है और माता के हृदय के साथ उनके प्रति सम्मान दिखलाता है। उस दुकान का मालिक जो व्यवसाय में उन्नति करता है, हमेशा ग्राहकों का खुशी से स्वागत करता है जब भी वे उसके दुकान में आते हैं। उन्हें आराम महसूस करवाने की कोशिश करते हुए मालिक उन्हें मुफ्त में कुछ अमुक चीज देता है जब वे कुछ खरीदते हैं। जो व्यापार चलाता है, यदि वह खुद को ऊंचा पद देता है और अपना अधिकार जमाता है, तो सफल नहीं हो सकता। हम अक्सर ऐसे मालिकों को देखते हैं जो अपने कर्मचारियों को इस नारे के अंतर्गत शिक्षित करते हैं – “ग्राहक राजा है।” इसका अर्थ है कि वे खुद को नम्र बनाएंगे और अपने ग्राहकों की राजाओं के रूप में सेवा करेंगे। चाहे छोटे बच्चे हों, जो अपनी दुकान में आने वाले सब लोगों की सेवा कर सकते हैं, वाकई में वे ही अच्छा व्यापार करने वाले हैं।
माता के हृदय के साथ पूरा होता प्रेम
आत्मिक रूप से भी वैसा ही है; हम भी अधिक तोड़ों को तभी प्राप्त कर सकेंगे जब हम माता के हृदय के साथ खुद को नीचा समझेंगे और दूसरों को ऊंचा समझेंगे। तोड़ों के दृष्टांत में, वे दास जिन्होंने दो या पांच तोड़े और कमाए, उस तरह के लोग हैं जो माता के हृदय के साथ अपने आसपास के लोगों की देखभाल करते हैं।
लूक 14:11 क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
याक 4:7–10 इसलिये परमेश्वर के अधीन हो जाओ; और शैतान का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। परमेश्वर के निकट आओ तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा... प्रभु के सामने दीन बनो तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।
खुद को दीन बनाना माता का हृदय रखने जैसा है। भले ही घर में माता की पदवी कभी छोटी नहीं होती, लेकिन वह अपने घर में सारे कामकाज करती है,। वह अपने शिशु के कपड़े धोती है और शिशु के लिए आहार भी तैयार करती है। जब हम खुद को दीन बनाते हैं और हर एक भाई और बहन की उस तरह से देखभाल करते हैं, हम पूरे विश्व में सुसमाचार प्रचार करने के मिशन को पूरा कर सकते हैं और हम स्वयं को विश्वास के तेल से भर सकते हैं जिसकी हमें जरूरत है।
फिलि 2:1–4 ... तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
ऊपर की आयत भी यही अर्थ बताती है कि हमें माता का हृदय रखना चाहिए। बाइबल में कई जगहों पर, चाहे दृष्टांत हो या व्यावहारिक सबक, परमेश्वर हमें माता का हृदय रखने के लिए कहते हैं। अब सिय्योन के सदस्य माता का हृदय रखकर प्रेम के द्वारा संपूर्ण बनाए जा रहे हैं।
1यूह 4:7–11 हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है। जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं... हे प्रियो, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए। परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्वर हम में बना रहता है और उसका प्रेम हम में सिद्ध हो गया है... जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उसको हम जान गए और हमें उसका विश्वास है। परमेश्वर प्रेम है, और जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्वर उसमें बना रहता है, और परमेश्वर उसमें बना रहता है... यदि कोई कहे, “मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं,” और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है; क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उसने देखा है प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उसने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। उससे हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है वह अपने भाई से भी प्रेम रखे।
सभी प्रेमों में से सबसे महान प्रेम माता का प्रेम है। हमें माता के प्रेम के स्तर पर रखने के लिए, परमेश्वर हमें कभी–कभी प्रचार करवाते हैं और कभी–कभी हमें अपने को दीन और दूसरों को ऊंचा समझने के लिए शिक्षित करते हैं, ताकि हम माता का हृदय रख सकें। दूसरों को खुद से बेहतर समझते हुए भक्ति व खुशी के साथ सुसमाचार के लिए सभी प्रकार के कार्य करना – यही माता का हृदय पाने का तरीका है।
पृथ्वी के छोर तक सुसमाचार का प्रचार करने के लिए, हमें अपने हृदयों को माता के हृदय में बदलना और उन्नत करने की आवश्यकता है। भले ही हम दूसरों से सेवा और आराम प्राप्त करना चाहते थे, अब से हमें माता के हृदय को दर्शाना चाहिए। माता का हृदय पाने का हृदय नहीं, पर देने का हृदय है। एक महिला जब वह युवती होती है या शादीशुदा नहीं होती है, वह प्रेम पाना चाहती है। मगर जब वह एक मां बनती है, वह दूसरों को प्रेम देने, उनके साथ अपनी चीजों को बांटने और उनकी सेवा करने की कोशिश करती है। इसलिए, महिलाएं कमजोर होती हैं, पर माताएं ताकतवर होती हैं, है न?
मैं मानता हूं कि यदि हम अपने हृदयों को माता के हृदय में बदल दें, हम स्वर्गीय प्राणियों के समान परिपूर्ण बन जाएंगे और साथ ही पूरी दुनिया को प्रचार कर सकेंगे। जैसा कि बाइबल हम से कहती है कि हम भक्ति के लिए अपने को साधने में लगे रहें, आइए हम माता के हृदय के साथ भक्ति का अभ्यास करने के लिए अपने सबसे श्रेष्ठ प्रयासों को आगे बढ़ाएं। सिय्योन में भाइयो और बहनो! आइए हम खुद को नम्र बनाएं, दूसरों को ऊंचा बनाएं और एक दूसरे की आत्मिक सुरक्षा का ध्यान रखें, ताकि हम परमेश्वर के द्वारा सौंपे गए सुसमाचार के मिशन को पूरा कर सकें और हाथों में हाथ डालकर एक साथ स्वर्ग जा सकें।