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आन सांग होंग जो जीवन के वृक्ष का फल लेकर आया


परमेश्वर के मानव जाति को बाइबल देने का अभिप्राय हमारी आत्मा का उद्धार है। इसलिए बाइबल के द्वारा हमें निश्चय ही हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर से मिलना चाहिए।

बाइबल में अनेक दृष्टान्त हैं। उनमें से उत्पत्ति ग्रंथ में लिखा अदन वाटिका का इतिहास हमें यह बताता है कि मानव स्वर्ग में क्या पाप करके इस धरती पर गिरा दिया गया है। यदि हम इस दृष्टान्त में छिपे सच्चे अर्थ को समझ लें तो हम मृत्यु की जंजीर को, जिससे मानव बांधा हुआ है, उधेड़ सकते हैं। जैसा परमेश्वर ने कहा, “तुम्हें यह प्रदान किया गया है कि स्वर्ग के राज्य के भेदों को जानो, परन्तु उन्हें नहीं।”(मत 13:10–16) जिसे इस भेद को जानने की अनुमति दी गई है वह बहुत आशीषित है और उसने ही स्वर्ग की प्रतिज्ञा पाई है।


भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का पाप और जीवन का वृक्ष

अदन वाटिका में परमेश्वर ने आदम और हव्वा को आज्ञा दी कि भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाओ, पर उन्होंने सर्प के बहकावे में आकर वह निषिद्ध फल खाया और परिणाम में मृत्यु पाई।

उत 2:16–17 “फिर यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह कहकर आज्ञा दी: “तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बेखटके खा सकता है, परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है–उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।” ”

उत 3:1–6 “...तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे! परमेश्वर तो जानता है कि जिस दिन तुम उसमें से खाओगे, तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी और तुम भले और बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के समान हो जाओगे।” जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा, आंखों के लिए लुभावना, तथा बुद्धिमान बनाने के लिए चाहनेयोग्य है तो उसने उसका फल तोड़कर खाया, और साथ ही साथ अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया।”

दृष्टान्त का सर्प शैतान को दर्शाता है।(प्रक 12:9 संदर्भ) धूर्त शैतान मनुष्य की मानसिक कमजोरी को अच्छी तरह से जानता है, इसलिए उसने चालाकी से उनके पास आकर उन्हें पाप और मृत्यु में लाया।

अदन वाटिका में आदम और हव्वा के पाप की कहानी, वास्तव में, स्वर्ग में हमारे पाप की कहानी को दुबारा स्पष्ट रूप से जाहिर करने के लिए रची गई है, जिससे हम स्वर्ग में हमारे पाप के बारे में आसानी से समझ सकते हैं। इस धरती पर जो भी पैदा होता है उसे आदम और हव्वा के जैसे मरना पड़ता है।

लेकिन यदि वह, जिसे अदन वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर मरना पड़ता था, जीवन के वृक्ष का फल खाता तो, जी सकता था।

उत 3:22–24 “तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, “देखो, यह मनुष्य भले और बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। अब ऐसा न हो कि वह अपना हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे” –इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसे अदन की वाटिका से बाहर निकाल दिया कि उसी भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया गया था। अत: उसने आदम को बाहर निकाल दिया तथा जीवन के वृक्ष के मार्ग की रक्षा करने के लिए अदन के बगीचे के पूर्व की ओर करूबों को और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को नियुक्त कर दिया। ”

परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अदन वाटिका के बाहर निकाल दिया जिन्होंने पाप किया, और उसने जीवन के वृक्ष के मार्ग की रक्षा करने के लिए करूबों को और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को नियुक्त कर दिया, कि कोई भी जीवन के वृक्ष का फल न खा सके।


लहू बहाने के द्वारा पापों की क्षमा मिलती है

परमेश्वर ने आदम को, जो जीवन के वृक्ष को खोकर विलाप करता था, मसीह के लहू से जीवन के वृक्ष की पुन:स्थापना करने की सच्चाई दिखाई।(इब्र 11:4, 13) आदम ने इस सच्चाई की साक्षी अपने दो पुत्रों को दी, पर कैन ने सच्चाई को अस्वीकार किया। उसने अपने विचार के अनुसार भूमि की उपज को भेंट चढ़ाया, और हाबिल ने आज्ञाकारी मन से सच्चाई को स्वीकार करके मेमने के लहू से बलिदान चढ़ाया जो यीशु के बहुमूल्य लहू को दर्शाता है। परमेश्वर ने कैन की भेंट नहीं, पर हाबिल की भेंट को ग्रहण किया। (उत 4:1–5)

इब्र 9:22 “व्यवस्था के अनुसार प्राय: सब वस्तुएं लहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं, और लहू बहाए बिना क्षमा है ही नहीं।”

हाबिल ने पशु के लहू से बलिदान चढ़ाया, लेकिन कैन ने अपने विचार से उपज को भेंट चढ़ाया। इसलिए परमेश्वर ने कैन की भेंट को ग्रहण नहीं किया। परमेश्वर ने कहा कि लहू बहाए बिना क्षमा है ही नहीं, इसलिए जब हम परमेश्वर से पापों की क्षमा मांगते हैं, तब अवश्य ही हमें परमेश्वर को लहू के साथ बलिदान चढ़ाना चाहिए। इसके द्वारा ही, हम अपने पाप से, जो भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर किए गए, मुक्त हो सकते हैं, और हम जीवन के वृक्ष का फल खाने के रास्ते पर जा सकते हैं।

हाबिल के बाद, लहू बहा कर बलिदान चढ़ाने की कार्यवाही पीढ़ी ­ दर ­ पीढ़ी में सौंपी गई थी। यह मूसा के समय में संहिताबद्ध किया गया। मूसा की व्यवस्था के अनुसार, जहां लहू बहा कर बलिदान चढ़ाया जाता था वहां पवित्रस्थान था।

निर्ग 25:9–21 “अपने निवासस्थान और सब सामान का जो नमूना मैं तुझे दिखाने पर हूं ठीक उसी के अनुसार निर्माण करना। बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाना...जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक में रखना। और तू चोखे सोने का प्रायश्चित्त का ढकना बनाना...और करूबों के पंख ऊपर की ओर ऐसे फैले हुए हों जिस से प्रायश्चित्त का ढकना उनसे ढंका हुआ हो, और उनके मुंह आमने–सामने प्रायश्चित्त के ढकने की ओर हों। और तू प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगाना, तथा जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक में रखना।”

पवित्रस्थान जहां दिन प्रतिदिन बलिदान चढ़ाया जाता था, दो कमरों में विभाजित किया गया था। बाहरी कमरा ‘पवित्र स्थान’ कहलाया, और भीतरी कमरा ‘परम पवित्र स्थान’ कहलाया, और इसी परम पवित्र स्थान में वाचा का सन्दूक रखा गया। परमेश्वर ने आज्ञा दी कि वाचा के सन्दूक के ढक्कन, यानी प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर दो करूब बनाकर खड़ा करें।

जीवन के वृक्ष की रक्षा करने वाले उन करूबों को वाचा के सन्दूक के ऊपर लगाया गया था, यह इस तथ्य को दिखाता है कि वाचा के सन्दूक में जीवन का वृक्ष है। करूब के पास, जो वाचा के सन्दूक की रक्षा करते थे, ज्वालामय तलवार थी, इसलिए जब उज्जा ने परमेश्वर के सन्दूक की ओर गलती से हाथ बढ़ाकर उसे संभाल लिया, वहीं वह मारा गया था, और हारून के दो पुत्र भी परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करने के कारण सन्दूक से निकली आग से भस्म किए गए थे।(2 शम 6:1 ­ 7, लैव 10:1 ­ 3 संदर्भ)

परम पवित्रस्थान में महायाजक वर्ष में एक बार प्रवेश कर सकता था, और वह लहू के बिना प्रवेश नहीं कर सकता था। जैसा हाबिल ने लहू के साथ बलिदान चढ़ाया और इसके कारण, परमेश्वर ने उस बलिदान को ग्रहण किया, वैसा ही परम पवित्रस्थान में, जिसकी रक्षा करूब करते थे, प्रवेश करने के लिए लहू का बहाया जाना अति आवश्यक था। पुराने नियम की ऐसी सब व्यवस्थाएं आने वाली असलियत की छाया और प्रतिरूप थीं।

इब्र 10:1-4 “व्यवस्था में तो भावी अच्छी वस्तुओं का वास्तविक स्वरूप नहीं, परन्तु छाया मात्र है। अत: लोगों द्वारा निरन्तर वर्ष प्रति वर्ष चढ़ाए जाने वाले बलिदानों से समीप आने वालों को वह कभी भी सिद्ध नहीं कर सकती...क्योंकि यह असम्भव है कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे।”

इब्र 10:9 “तब उसने कहा, “देख, मैं आ गया हूं कि तेरी इच्छा पूर्ण करूं।” वह पहिले को हटा लेता है कि दूसरे को स्थापित करे।”

इब्र 10:16-20 “...मैं उन दिनों के बाद जो वाचा उन से बांधूंगा, वह यह है कि मैं अपने नियम उनके हृदय में डालूंगा, और उनके मनों पर उन्हें लिखूंगा।” वह आगे कहता है, “मैं उनके पापों और उनके अधर्म के कामों को फिर स्मरण न करूंगा।” अब जहां इनकी क्षमा हो गई है तो वहां पाप के लिए कोई बलिदान बाकी न रहा...यीशु के लहू के द्वारा एक नए जीवित मार्ग से पवित्र स्थान में प्रवेश करने का साहस हुआ है, जो उसने परदे अर्थात् अपनी देह के द्वारा हमारे लिए खोल दिया है।”

पुराने नियम की व्यवस्था, जो छाया है, कभी भी सिद्ध नहीं कर सकती। केवल मसीह का लहू ही, जो बलिदान की असलियत है, सम्पूर्ण रूप से पापों को क्षमा कर सकता है। इसलिए परमेश्वर ने पुरानी वाचा को हटा दिया और मसीह के लहू से नई वाचा बांधी।


यीशु पवित्र स्थान और वाचा के सन्दूक की असलियत बना

देखने में ऐसा लगता है कि पुरानी व्यवस्था, जो परमेश्वर ने मूसा को दी, जटिल है, लेकिन उसमें मानव को पापों की क्षमा देने के लिए परमेश्वर की पूर्व योजना दिखाई देती है।

इब्र 9:1-5 “अब पहिली वाचा में भी उपासना और उस आराधनालय के नियम थे जो पृथ्वी पर था। क्योंकि एक तम्बू बनाया गया, जिसके पहिले भाग में दीपदान, मेज़ और भेंट की रोटियां थीं। यह पवित्र स्थान कहलाता है। दूसरे परदे के पीछे तम्बू का वह भाग था जो परम पवित्र स्थान कहलाता है। उसमें धूप जलाने के लिए सोने की एक वेदी और वाचा का सन्दूक था जो चारों और सोने से मढ़ा हुआ था जिसमें मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की फूली ­ फली लाठी तथा वाचा की पटियां थीं...”

जब इस्राएली जंगल में जीवन बिताते थे, वे स्थायी मंदिर का निर्माण नहीं कर सके, क्योंकि उन्हें बारबार दूसरे स्थान में चले जाना पड़ता था। इसलिए उन्होंने मंदिर के प्रतिरूप के अनुसार तम्बू(पवित्रस्थान) का निर्माण किया। यीशु ने साक्षी दी कि उसकी देह ही मंदिर है।

यूह 2:19-21 “यीशु ने उत्तर देते हुए उनसे कहा, “इस मंदिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिन में फिर खड़ा कर दूंगा।” इस पर यहूदियों ने कहा, “इस मंदिर को बनाने में छियालीस वर्ष लगे। क्या तू इसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” परन्तु वह तो अपनी देह के मन्दिर के विषय में कह रहा था।”

मंदिर की असलियत यीशु है। इस मंदिर(पवित्रस्थान) में वाचा का संदूक था, जिसमें मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की फूली ­ फली लाठी तथा वाचा की पटियां थीं जो मूसा ने परमेश्वर से लीं। इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि परमेश्वर ने करूबों से वाचा के संदूक की रक्षा करवाई, हम जान सकते हैं कि निश्चित रूप से, वाचा का संदूक और तीन वस्तुएं जीवन के वृक्ष, मसीह को दर्शाते हैं।

यूह 6:31-35 “हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया, जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी’।”...यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आता है, भूखा न होगा, और वह जो मुझ पर विश्वास करता है, कभी प्यासा न होगा।”

कनान देश में प्रवेश करने तक, इस्राएलियों ने जंगल में 40 वर्षों तक स्वर्ग से उतरा मन्ना खाया। यह मन्ना सोने के मर्तबान में डाला गया, और यह वाचा के संदूक के अन्दर रखा गया। यह मन्ना यीशु को दर्शाता है जो जीवन है, जैसा यीशु ने साक्षी दी, “जीवन की रोटी मैं हूं।”

आइए हम दूसरी वस्तु, हारून की फूली ­ फली लाठी के विषय में देखें, परमेश्वर ने इस लाठी के द्वारा हारून को महायाजक के रूप में चुन लिया।(गिन 17:1 ­ 11) तब क्यों परमेश्वर ने लाठी को, जो महायाजक को संकेत करती है, वाचा के संदूक के अन्दर रखा?

इब्र 5:8-10 “पुत्र होने पर भी उसने दुख सह सह कर आज्ञा पालन करना सीखा। वह सिद्ध ठहराया जाकर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा पालन करते हैं अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया, और परमेश्वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक नियुक्त किया गया।”

हारून की फूली ­ फली लाठी भी यीशु को दर्शाती है जो महायाजक के रूप में इस धरती पर आया। अन्त में आइए हम देखते हैं कि क्यों परमेश्वर ने वाचा की पटियां वाचा के संदूक के अन्दर रखीं?

यूह 1:1–14 “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था... वचन, जो अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण था, देहधारी हुआ, और हमारे बीच में निवास किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी जैसी पिता के एकलौते की महिमा।”

परमेश्वर जो वचन था, देहधारी होकर आया, वही यीशु था। इसलिए वाचा की पटियां भी परमेश्वर यीशु को दर्शाती हैं जो वचन है।

परमेश्वर ने वाचा के संदूक के ऊपर दो करूब लगाए और करूबों से मन्ना और हारून की लाठी और वाचा की पटियों की रक्षा करवाई, यह इसे दर्शाता है कि भविष्य में यीशु जो करूबों के पहरे में था, उस जीवन के वृक्ष की असलियत के रूप में प्रकट होगा।


फसह के पर्व द्वारा जीवन के वृक्ष का दिया जाना

यीशु ने भी स्वयं की साक्षी दी कि वही जीवन के वृक्ष की असलियत है।

यूह 6:53–56 “यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है, और मैं अन्तिम दिन में उसे जिला उठाऊँगा। मेरा मांस तो सच्चा भोजन है और मेरा लहू सच्ची पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में बना रहता है और मैं उसमें। जिस प्रकार जीवित पिता ने मुझे भेजा, और मैं पिता के कारण जीवित हूं, इसी प्रकार वह भी जो मुझे खाता है मेरे कारण जीवित रहेगा।”

मानव के लिए, जिसे भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर मरना पड़ता है, अनूठा आशीष का समाचार परमेश्वर के जीवन के वृक्ष का फल देने का वचन होगा। जैसा आप ऊपर का वचन देखते हैं, यीशु ने ऐसा कहने के द्वारा, “जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है।”, हमें जीवन के वृक्ष का फल खाने की अनुमति दी।

वह जिसने करूबों को जीवन के वृक्ष की रक्षा करने की आज्ञा दी कि पापी जीवन के वृक्ष के पास न जा सके, परमेश्वर था। इसलिए इस जीवन के वृक्ष का फल खाने का रास्ता, फिर से खोल कर पापी को बचा सकने वाला भी परमेश्वर है। उसे छोड़ कर कोई है ही नहीं। इसी कारण यीशु जिसने अपने बहुमूल्य मांस और लहू के द्वारा अनन्त जीवन देने का वादा किया, निश्चित रूप से परमेश्वर है। यीशु ने नई वाचा का फसह स्थापित करते हुए अपना मांस और लहू, जो जीवन के वृक्ष का फल है, खाने का तरीका बताया, और उसने कहा, “अपने दुख उठाने से पूर्व मेरी बड़ी अभिलाषा थी कि मैं तुम्हारे साथ फसह खाऊँ।” (मत 26:17 ­ 28, मर 14:12 ­ 24, लूक 22:7 ­ 20 संदर्भ)

लेकिन शैतान ने, जो जीवन के वृक्ष की इस सच्चाई से घृणा करता है, फसह मिटाने के लिए लोगों के मन को उकसाया, जिससे 155 ईस्वी, 197 ईस्वी, और 325 ईस्वी में तीन बार के बहस और बैठक पर चतुर तरीके से फसह मिटा दिया गया था। उस समय पूर्वी चर्च ने फसह पर महत्व दिया, पर बैठक में पश्चिमी चर्च का पक्ष लेकर, फसह की तारीख को फसह के बाद आने वाले रविवार में(पुनरुत्थान का दिन) बदल दिया। अंत: उनके फसह की तारीख बदलने के द्वारा, फसह का पर्व मनाने को रोक दिया गया था।

इस इतिहास के द्वारा दानिय्येल की यह भविष्यवाणी पूरी हो गई थी कि शैतान परमेश्वर के विरुद्ध बातें करके परमेश्वर के नियत कालों तथा व्यवस्था को बदल डालेगा।(दान 7:25 संदर्भ) परन्तु परमेश्वर ने हमें यह सूचित किया कि शैतान के द्वारा रौंदी गई जीवन की सच्चाई, नई वाचा का फसह, मसीह दूसरी बार आकर पुन:स्थापित करेगा।

कई शतकों से बहुत सारे धर्मशास्त्रीय विद्वान बाइबल का अध्ययन करने पर भी इस फसह की सच्चाई को महसूस नहीं कर पाए, क्योंकि जीवन के वृक्ष का फल केवल परमेश्वर ही दे सकता है।


परमेश्वर जिसने जीवन के वृक्ष का फल खाने का रास्ता खोला

पवित्र स्थान में, जिसमें जीवन का वृक्ष रखा गया, कोई नहीं जा सका। केवल तेल से अभिषिक्त महायाजक ही वर्ष में एक बार इसमें प्रवेश कर सका। यीशु ने मलिकिसिदक की रीति के अनुसार महायाजक के रूप में आकर हमारे लिए जीवन के वृक्ष का फल खाने का रास्ता खोला।

इब्र 6:17-20 “...यह आशा मानो हमारे प्राण के लिए लंगर है ­ ऐसी आशा जो निश्चित और दृढ़ है, और जो परदे के भीतर तक पहुंचती है, जहां यीशु ने हमारे लिए अग्रदूत बन कर और मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिए महायाजक होकर प्रवेश किया है।”

पुराने नियम के पवित्र स्थान में बहाए गए सभी पशुओं का लहू, वास्तव में, यीशु के क्रूस पर बहाए गए बहुमूल्य लहू को दर्शाते हैं। परदे से पवित्रस्थान और परम पवित्रस्थान बांटा गया था, लेकिन मसीह ने, जो मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक है, अपने बहुमूल्य लहू की सामर्थ्य से परदे को फाड़ कर ऐसा रास्ता खोला कि कोई भी परम पवित्रस्थान के अन्दर प्रवेश करके जीवन के वृक्ष के पास जा सकता है।

जैसा 2 हजार वर्ष पहले, हमें जीवन देने के लिए इस धरती पर मसीह आया था, वैसे ही मसीह के दूसरी बार आने का उद्देश्य भी हमें जीवन, यानी उद्धार, देने के लिए है।

इब्र 9:28 “वैसे ही मसीह भी, बहुतों के पापों को उठाने के लिए एक बार बलिदान होकर, दूसरी बार प्रकट होगा। पाप उठाने के लिए नहीं, परन्तु उनके उद्धार के लिए जो उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा करते हैं।”

इसलिए दूसरी बार आने वाला मसीह वही है जो जीवन के वृक्ष की सच्चाई, फसह, लेकर आता है। उसके आने के द्वारा ही, अदन वाटिका से लेकर आज पवित्र आत्मा के युग तक गुप्त रहे सब भेद खुल जाएंगे।

लोग, जिन्हें स्वर्ग के राज्य के भेदों को जानने की अनुमति नहीं है, वे देखते हुए भी नहीं देख पाते और सुनते हुए भी नहीं सुन पाते, और न ही वे समझते होंगे। यीशु के समय भी व्यवस्थापकों ने यीशु को नहीं पहचाना था, पर मछुओं और मैदान में भेंड़ चराने वाले चरवाहों ने पहचाना था। चाहे वे निचले और निकम्मे वर्ग के थे, फिर भी परमेश्वर को पहचान कर ग्रहण किया और उसका आदर किया, जिससे वे बहुतायत में आशीष पा सके। वैसा आज भी है। आज, इस युग में हमें स्वर्ग के राज्य के भेदों को जानने की अनुमति दी गई है, यह सचमुच आशीष है।

बाइबल साक्षी देती है कि पुरानी मदिरा से अनन्त जीवन देने वाला ही हमारा परमेश्वर है।(यश 25:6 ­ 9 संदर्भ) इसलिए आन सांग होंग परमेश्वर है जिसने 325 ईसवी के बाद लंबे समय तक न मनाया गया नई वाचा का फसह हमारे लिए फिर से वापस लाया। वही इस युग का उद्धारकर्ता है जिसकी बाट हम जोहते आए हैं।

भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के पाप से हम स्वर्ग से निकाल दिए गए थे और हमने सदा मृत्यु की सजा पाई थी। लेकिन परमेश्वर ने इन पापियों का उद्धार करने के लिए इस धरती पर आकर हमें जीवन के वृक्ष का फल खाने का स्वर्गीय रहस्य खोल दिया।

आशा है कि आप पापों की क्षमा पाने और स्वर्ग के राज्य में वापस जाने की आशीष पाएं जो जीवन के वृक्ष का फल लेकर आया हमारा परमेश्वर, आन सांग होंग, देता है।