टेक्स्ट उपदेशों को प्रिंट करना या उसका प्रेषण करना निषेध है। कृपया जो भी आपने एहसास प्राप्त किया, उसे आपके मन में रखिए और उसकी सिय्योन की सुगंध दूसरों के साथ बांटिए।
उदार और दयालु बनो
उदार होने का मतलब है, समुद्र जैसे बड़े मन से दूसरों को समझना और उनकी भावनाओं का आदर करना, जैसे माता की शिक्षा में लिखा है। बाइबल में हर कहीं उदार होने के बारे में अनेक शिक्षाएं लिखी हैं, क्योंकि पूरे विश्व में स्वर्गीय माता की महिमा को प्रकट करने के लिए लोग जो बुलाए गए हैं, उन्हें जो सद्गुणों में से अपनाना चाहिए, वह उदारता का सदगुण है।
जब से हम सिय्योन की सन्तान हैं, हमें अपने सारे मन, प्राण और बुद्धि से परमेश्वर का आदर करना चाहिए। परमेश्वर हमसे चाहता है कि जब हम इसे करें, तब इसके साथ–साथ अवश्य ही उदारता का गुण रखें। परमेश्वर की इच्छा के अनुसार, हम अभी तक, सिर्फ आगे की ओर देखते हुए विश्वास की दौड़ दौड़ते आए हैं। तो आइए हम पिछले दिनों की अपनी दौड़ को याद करते हुए, परमेश्वर का यह वचन अपने हृदय में बैठाने का समय लें कि ‘उदार बनो’।
बुद्धि या प्रतिष्ठा से उदारता उत्तम है
कोरिया के जोसन राजवंश के समय, सोंग दोंग–छुन नाम का एक प्रसिद्ध कर्मचारी था। यह उसकी कहानी है। जब वह 10 वर्ष का हुआ, उसके घर में एक बड़े ने उसकी बुद्धि व ज्ञान की परख के लिए एक सवाल पूछा। सवाल यह था, “तीन व्यक्ति हैं –व्यक्ति जिसे लोग धोखा देने की हिम्मत नहीं कर सकते, और व्यक्ति जिसे लोग धोखा देने का मन नहीं करते, और व्यक्ति जिसे लोग धोखा नहीं दे सकते– इन तीनों में क्या अन्तर है?”। इस पर छोटे सोंग दोंग–छुन ने ऐसा उत्तर दिया, “लोग प्रतिष्ठित व्यक्ति को धोखा देने की हिम्मत नहीं कर सकते, क्योंकि वे उसे धोखा देने से डरते हैं। और लोग उदार व दयालु व्यक्ति को धोखा देने का मन नहीं करते, क्योंकि वे उसकी उदारता से अभिभूत हो गए हैं। और लोग बुद्धिमान व्यक्ति को धोखा नहीं दे सकते, क्योंकि वे उसकी तेज बुद्धि से पराजित होते हैं।”
उसका जवाब सुनकर बड़े ने फिर से सवाल पूछा, “उन तीनों में से कौन सबसे उत्तम है?”। इस पर सोंग दोंग–छुन ने ऐसा उत्तर दिया, “वह सबसे उत्तम है जिसे लोग धोखा देने का मन नहीं करते। क्योंकि उसकी उदारता के कारण लोग अपने मन से उसे धोखा देने के विचार को हटाते हैं, जिससे लोग उसे धोखा नहीं दे सकते। इसलिए वह सबसे उत्तम है। दूसरा अच्छा व्यक्ति वह है जिसे लोग धोखा नहीं दे सकते। वह बहुत ही समझदार है। इसलिए मूर्ख लोग उसे धोखा नहीं दे सकते। सबसे निकम्मा व्यक्ति वह है जिसे लोग धोखा देने की हिम्मत नहीं कर सकते। लोग सिर्फ उसके पद व प्रतिष्ठा के कारण उसे धोखा नहीं दे पाते।”
ऐसे ही उदारता मनुष्य के गुणों में सबसे प्रमुख गुण है। काफी पुराने समय से हमारे पूर्वजों ने ऐसी शिक्षा दी है कि अच्छा व्यक्तित्व रखने के लिए, हमें अपने हृदय को नम्र व उदार बनाना चाहिए। यह शिक्षा और परमेश्वर की शिक्षा जो बाइबल में सिखाई है, एक जैसी हैं।
उदारता प्रकट करने की कोशिश करें
परमेश्वर बाइबल के द्वारा हमें सिखाया है कि ‘एक दूसरे के जीवन का निर्माण करो’, ‘दूसरों को अपने से उत्तम समझो’। हम परमेश्वर के राज्य में राज–पदधारी याजक हैं, तो हमें परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार, दूसरों को अपने से उत्तम समझने के लिए और सच्चरित्र व्यक्ति होने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
रो 14:17–19 “क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना–पीना नहीं, परन्तु धार्मिकता, मेल और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा में है। क्योंकि जो मनुष्य इस प्रकार मसीह की सेवा करता है वह परमेश्वर को ग्रहणयोग्य एवं मनुष्यों में प्रशंसनीय ठहरता है। इसलिए हम उन बातों में संलग्न रहें जिनसे मेल–मिलाप होता है तथा एक दूसरे के जीवन का निर्माण होता है।”
परमेश्वर ने कहा है कि हम उन बातों में प्रयत्न करें जिनसे मेल–मिलाप और दूसरे का सुधार हो। आज संसार स्वार्थ से भरा रहता है। इससे हमें स्वार्थ प्रवृत्ति से युक्त होकर यह ज्ञात ही नहीं हो पाता है कि हम स्वर्ग के राज्य की परंपरा को भूल रहे हैं। लेकिन हम जो परमेश्वर की उपासना करते हैं, परमेश्वर के राज्य की परंपरा को बनाए रखते हुए पूरे संसार में परमेश्वर की शिक्षा का प्रचार करना चाहिए। सुन्दरता, शान्ति, आनन्द, अनन्त जीवन, आशा और उम्मीद से भरे हुए परमेश्वर के राज्य की, जहां हम वापस जाएंगे, परंपरा को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। परमेश्वर के राज्य की परंपरा ऐसी है जिसमें लोग आपस में मेल–मिलाप करने का और दूसरों के प्रति दया व उदारता दिखाने का प्रयत्न करते हैं। स्वर्ग की पवित्र प्रजा के रूप में हमारे जो कर्तव्य है, वह स्वर्ग के राज्य की परंपरा का पालन करना है।
जब लोग अपने ‘गांव’ को सोचते हैं, तो उनके मन में जो सबसे पहले आती है, वह माता है। गांव में तो माता के साथ पिता भी रहता है, लेकिन गांव को याद करने के साथ, लोगों के मन में माता की याद पहले आती है। इसका कारण है, क्योंकि ‘पिता’ की सत्ता और अधिकार से ज्यादा उस ‘माता’ की उदारता दिल में गहरे उतर गई है जो प्यार से सभी सन्तान को अपनी गोद में लेती है और उन्हें ध्यान में रखती है।
परमेश्वर ने कहा है कि हमें जो सबसे पहले ध्यान में रखना चाहिए, वह उदारता प्रकट करना है। जब हम दूसरों को अपने से उत्तम समझें, उनकी सेवा करें और उनके हित का ध्यान रखें, तो स्वाभाविक रूप से हम मसीहियों के दूसरे सभी गुणों को भी अपना सकेंगे।
रो 15:1–2 “हम बलवानों को चाहिए कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें, न कि अपने आप को प्रसन्न करें। हम में से प्रत्येक अपने पड़ोसी को प्रसन्न करे कि उसकी भलाई और अन्नति हो।”
आइए हम पिछले दिनों की याद ताजा करते हुए सोचें कि क्या हमने परिवार या समाज में परमेश्वर की शिक्षाओं के अनुसार उदार जीवन जिया है या नहीं। आगे की ओर तेजी से दौड़ना भी महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इसके साथ यह भी लाभदायक होता है कि कभी–कभी हम अपने द्वारा जिए गए जीवन के बारे में सोचें। सोचने की बात यह है कि अपने बीते हुए समय में हम परिवार के सदस्य, पड़ोसी व सिय्योन के भाई–बहनों के प्रति कितना उदार बने और क्या हम उस स्वर्गीय पिता और माता के अनुग्रह के प्रति, जिन्होंने हमें बचाने के लिए अपने बलिदान तक किया, धन्यवादित एवं कृतज्ञ रहे या नहीं।
इंडियन अमेरिकन जब घोड़े पर सवार होकर दौड़ते हैं, वे बीच में थोड़े क्षणों तक रुकते हैं। कहीं ऐसा न हो कि उनकी आत्मा शरीर का पीछा न कर पाए जो तेजी से दौड़ रहा है। ऐसे ही, बीच में रुक कर वे अपनी आत्माओं का इन्तजार करने का समय लेते हैं। तीर की नाई, उड़ कर चले जा रहे समय में हम बहुत ज्यादा व्यस्त जीवन जी रहे हैं। हमें सोचने का समय भी नहीं मिलता। लेकिन मुझे लगता है कि हमें थोड़े समय के लिए रुक कर, अपने बीते समय का सोचना जरूरी है।
जब हम अपने बीते समय का सोचें, तो हमें ऐसी बातें याद आई होंगी जिनमें परमेश्वर की सन्तान के रूप में और इन्सान के रूप में अपने कर्तव्य अदा नहीं कर पाए। परमेश्वर की धार्मिक शिक्षाओं का पालन करने के बजाय, यदि हमारे लिए परमेश्वर की शिक्षाएं सिर्फ आंखों से देखने या कान से सुनने के लिए ही रही, तो अब भी देर न हुई है। हम पड़ोसी, परिवार के और सिय्योन के सदस्यों को परमेश्वर की शिक्षाओं के अनुसार, उदारता प्रकट करते हुए हमारा बाकी जीवन बिताएंगे, और आगे हमारी जान–पहचान के सभी लोगों को भी उदारता व दयालुता प्रकट करते हुए समय बिताएंगे।
हमें ऐसा नहीं समझना है कि उदार या दयालु होना मुश्किल है। आइए हम छोटी–छोटी चीजों से शुरुआत करें। जिनसे अब तक मुलाकात नहीं हो गई है, उनका हालचाल पूछने के लिए एक छोटा सा पत्र लिखकर भेजें। उदारता प्रकट करने का अभ्यास बहुत मुश्किल नहीं है। मुझे विश्वास है कि अगर आप छोटी चीज से लेकर इसका अभ्यास करेंगे, तो आप परमेश्वर की इस शिक्षा के अनुसार जीवन जी सकेंगे कि ‘पड़ोसियों को खुश करने, उनकी भलाई करने और उनके प्रति उदारता दिखाने की कोशिश करो’। हालांकि संसार दिन–ब–दिन निर्मम व कठोर होता जा रहा है और लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं, मैं आशा करता हूं कि सिय्योन के सदस्य, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, बहुत उदार व दयालु बनें।
अपने विश्वास में सद्गुण बढ़ाते जाओ
2पत 1:4–10 “क्योंकि उसने इन्हीं के कारण हमें अपनी बहुमूल्य और उत्तम प्रतिज्ञाएं दी हैं, जिससे कि तुम उनके द्वारा उस भ्रष्ट आचरण से जो वासना के कारण संसार में है, छूट कर ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ। इसी कारण से प्रयत्नशील होकर, अपने विश्वास में सद्गुण तथा सद्गुण में ज्ञान, और ज्ञान में संयम, संयम में धीरज और धीरज में भक्ति, तथा अपनी भक्ति में भ्रातृ–स्नेह, और भ्रातृ–स्नेह में प्रेम बढ़ाते जाओ। क्योंकि यदि ये गुण तुम में बने रहें तथा बढ़ते जाएं तो हमारे प्रभु यीशु मसीह के पूर्ण ज्ञान में ये तुम्हें न तो अयोग्य और न निष्फल होने देंगे। क्योंकि जिसमें ये गुण नहीं, वह अंधा है, अदूरदर्शी है। वह अपने पहिले के पापों से धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है। अत: हे भाइयो, अपने बुलाए जाने और चुने जाने की निश्चयता का और भी अधिक प्रयत्न करते जाओ, क्योंकि इन बातों के प्रयत्न में जब तक रहोगे, तुम कभी ठोकर न खाओगे।”
परमेश्वर ने शिक्षा दी है कि हम अपने विश्वास में सद्गुण बढ़ाएं। केवल विश्वास नहीं, लेकिन यदि हम अपने विश्वास में सद्गुण बढ़ाएंगे, तब हम ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो सकेंगे। जिसके विश्वास में सद्गुण नहीं रहता है, वह आत्मिक रूप से अंधा है। अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो क्या होगा?
इसलिए उदार व दयालु होना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। संसार के लोग तो उसे मूर्ख समझते हैं जो दूसरे के प्रति उदार व सहयोगी होता है और अपने आपको नीचा समझता है। और वे अपनी बड़ाई करना, अपने आप को दूसरों की नजरों में ऊंचा सिद्ध करना, दूसरों से बड़ा बन जाना चाहते हैं। लेकिन यह परमेश्वर की शिक्षा के अनुरूप नहीं है। परमेश्वर हमसे कहा है कि हम अपने विश्वास में सद्गुण बढ़ाएं। परमेश्वर हमारा श्रेष्ठ शिक्षक है, और परमेश्वर की शिक्षा श्रेष्ठ शिक्षा है। इसलिए कभी ऐसा नहीं होना चाहिए कि सांसारिक मजबूरियों के चलते हम मतलबी संसार से समझौता करें। बल्कि हम परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करते हुए, जो हमें अनन्त चीजें प्रदान करती हैं, उदार होने और दयालु होने में लगे रहें।
नीत 31:20–30 “वह निर्धनों के लिए अपनी मुट्ठी खोलती है, और दरिद्रों के लिए अपने हाथ बढ़ाती है...।वह मलमल के वस्त्र बनाकर बेचती है, और व्यापारियों तक कमरबन्ध पहुंचाती है। शक्ति और सम्मान उसका पहिरावा है, और वह आने वाले दिनों पर हंसती है। वह बुद्धिमानी से मुंह खोलती है, और कोमल शिक्षा उसकी जीभ पर रहती है। वह अपनी गृहस्थी के सब मामलों पर ध्यान रखती, और परिश्रम किये बिना रोटी नहीं खाती। उसके बच्चे उठकर उसे धन्य कहते हैं। उसका पति भी यह कह कर उसकी प्रशंसा करता है: “बहुत–सी स्त्रियों ने अच्छे–अच्छे कार्य तो किये हैं, परन्तु तू उनमें से श्रेष्ठ है।” आकर्षण तो झूठा और सुन्दरता व्यर्थ है, परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसी की प्रशंसा होगी। उसके हाथों का फल उसे दो, और नगर–द्वारों में उसके कार्य से उसकी प्रशंसा हो।”
संसार में लाखों सद्गुणों में से जो सबसे श्रेष्ठ और जो सराहनीय है, वह परमेश्वर का भय मानना है। हमें इस सद्गुण को रखना चाहिए। अब तक, हम सिर्फ आगे की ओर देखते हुए दौड़ते आए हैं, तो अब से परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार आसपास के लोगों का ख्याल रखते हुए, उनके प्रति उदारता प्रकट करें, ताकि हम परमेश्वर की महिमा भी साथ ही प्रकट कर सकें।
शत्रु शैतान हर तरह की झूठी बातों से सत्य की निन्दा कर रहा है। लेकिन सत्य अवश्य ही विजयी होगा, और अवश्य ही ऐसे लोग रहते हैं जो सत्य का पालन करते हैं। भले ही दुष्ट बातों से हमारी चारों ओर निन्दा हो रही है, और भले ही लोग बाड़ लगाकर सिय्योन के मार्ग को बंद करते हैं, तो भी जब हम परमेश्वर की शिक्षा का पालन करके और परमेश्वर के सच्चे वचन से परिपूर्ण होकर ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी होंगे, तब परमेश्वर की महिमा को संसार में कोई नहीं छिपा सकेगा
परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार हमें अच्छा कर्म करते देखकर, यदि परिवार वाले या पड़ोसी पाप से पछताते हुए सिय्योन में वापस आएं, तो वे स्वर्ग जाने के बाद हमें बहुत धन्यवाद कहेंगे। इसलिए बाइबल कहती है कि सद्गुण मनुष्य की खुबसूरती या सुन्दरता से नहीं, परन्तु केवल परमेश्वर का भय मानने से आता है।
उन वस्तुओं की खोज में लगे रहो जो स्वर्ग की हैं
सद्गुणों से भरे लोगों में बदल जाने के लिए, हमें ऊपर की वस्तुओं को, यानी स्वर्ग की वस्तुओं की खोज में लगे रहना चाहिए। जब हम स्वर्ग की वस्तुओं के लिए तरसते हैं, तब हमारा बदलाव अपने आप ही हो जाएगा।
कुल 3:1–10 “इसलिए यदि तुम मसीह के साथ जीवित किए गए तो उन वस्तुओं की खोज में लगे रहो जो स्वर्ग की हैं, जहां मसीह विद्यमान है और परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान है। अपना मन पृथ्वी पर की नहीं, परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाओ, क्योंकि तुम तो मर चुके हो और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है...।इसलिए अपनी पार्थिव देह के अंगों को मृतक समझो, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, वासना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्तिपूजा है। इन्हीं के कारण परमेश्वर का प्रकोप आएगा। और जब तुम इन बुराइयों में जीवन व्यतीत करते थे तो तुम इन्हीं के अनुसार चलते थे। परन्तु अब तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा और मुंह से गालियां बकना, छोड़ दो। एक दूसरे से झूठ मत बोलो, क्योंकि तुमने अपने पुराने मनुष्यत्व को उसके बुरे कार्यों सहित त्याग दिया है, और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपने सृष्टिकर्ता के स्वरूप के अनुसार सत्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए नया बनता जाता है।”
परमेश्वर ने कहा है कि सद्गुण अपनाने के लिए हम धरती की नहीं, पर स्वर्ग की वस्तुओं की खोज में रहें। जब हम स्वर्ग जाएंगे, तब हम इस धरती की वस्तुओं को यहीं छोड़ कर जाएंगे। इस संसार में अनेक महान आदमी, दार्शनिक, ज्ञानी व विद्वान जन्मे थे, लेकिन जब वे धरती को छोड़े, अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गए।
इसलिए बाइबल हमें शिक्षा देती है कि स्वर्ग की वस्तुओं की खोज में लगे रहो। इसका मतलब यह नहीं है कि अपने शारीरिक जीवन का त्याग करो। परमेश्वर की इच्छा थी कि हम उसकी रचना होते हुए इस धरती पर जीवन जीएं, इसलिए हमारे जीवन के लिए उसकी इच्छा होती है। हमें शारीरिक जीवन भी ईमानदारी से जीना चाहिए। लेकिन यह ठीक नहीं होगा यदि हम स्वर्ग की वस्तुओं को भूलकर, केवल इस धरती की वस्तुओं का पीछा करें।
पिछले दिनों जब हम परमेश्वर को नहीं जानते थे, अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे। लेकिन अब उन सारी आदतों व स्वभाव को छोड़कर, जो परमेश्वर को जानने से पहले अपनाते थे, नये मनुष्यत्व को पहिन लेना चाहिए। इस तरह, नया मनुष्यत्व पहिनने का क्रम ही, परमेश्वर में होते हुए सद्गुणों को रखने का क्रम है। आइए हम अपने पुराने मनुष्यत्व को छोड़कर, नये मनुष्यत्व को पहिनें, और परमेश्वर पर विश्वास करने से पहले का क्रोधी व प्रबल स्वभाव को उदार व दयालु बना दें, ताकि आसपास के लोगों को स्वर्गीय पिता और माता की सही शिक्षाओं को समझा सकें।
उदारता जो हृदय को छूती है
परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार हम इस कारण से पवित्र होने का प्रयत्न करते हैं, ताकि हम संसार की अपवित्र चीजों से स्वयं को दूर रखें। जब हम अपने अन्दर सद्गुण रखने का और ऐसा स्वभाव रखने का प्रयास करें जैसा परमेश्वर का है, तब स्वर्गीय पिता और माता को प्रसन्न कर सकेंगे और परमेश्वर की महिमा कर सकेंगे।
2तीम 3:1–5 “परन्तु ध्यान रख कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य स्वार्थी, लोभी, अहंकारी, उद्दण्ड, परमेश्वर की निन्दा करनेवाले, माता–पिता की आज्ञा न माननेवाला, कृतघ्न, अपवित्र, स्नेहरहित, क्षमारहित, परनिन्दक, असंयमी, क्रूर, भलाई से घृणा करने वाले, विश्वासघाती, ढीठ, मिथ्याभिमानी, परमेश्वर से प्रेम करने की अपेक्षा सुख–विलास से प्रेम करने वाले होंगे। यद्यपि ये भक्ति का वेश तो धारण करते हैं, फिर भी उसकी शक्ति को नहीं मानते: ऐसे लोगों से दूर रहना।”
संसार में लोग दिनोंदिन स्वार्थी, निर्दय और कठोर होता जा रहा है। परमेश्वर ने चेतावनी दी है कि इस दुनिया की रीति पर मत चलो और उनसे सदा दूर रहो जो धर्म के दिखावटी रूप का पालन तो करते हैं और उसकी भीतरी शक्ति को नकार देते हैं। यही कारण है कि हम सद्गुण रखने का प्रयास करते हैं।
कनफूची के उपदेश में ऐसी बात है कि ‘यदि तू उदार हो, तू कभी अकेला नहीं होगा’। इसका मतलब है कि उदार हृदय वाले लोगों को अकेलापन नहीं लगता है और उनके पास हमेशा दोस्त होता है। जब हम परमेश्वर की शिक्षा को मानें और उसका पालन करने का प्रयास करें, तब यह हमारे आसपास बहुत से लोगों के हृदय को स्पर्श करेगा और वे भी उद्धार के मार्ग की ओर आएंगे। न सत्ता, न अधिकार, न ज्ञान और न बुद्धि मनुष्य के हृदय को स्पर्श कर सकते। केवल जो मनुष्य के हृदय को स्पर्श कर सकता है, वह उदारता है और प्रेम है। आइए हम जो सिय्योन के परिवार के सदस्य हैं, हमेशा परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार दूसरों को अपने से उत्तम समझें और दूसरों के प्रति उदारता प्रकट करें। मैं आशा करता हूं कि परमेश्वर के आदर्शोंं को अपना कर दूसरों की सेवा करें, ताकि परमेश्वर की महिमा की ज्योति को आसपास के सभी लोगों को चमका सकें और अनुग्रह से भरपूर जीवन जी सकें।