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परमेश्वर का बीज

बाइबल में लिखा है कि परमेश्वर अन्तिम समय में उद्धार पाने वालों को अपना वंश(बीज) मानता है, और परमेश्वर तब अपने वंश(बीज) को देखेगा जब वह अपने प्राण की दोषबलि चढ़ाएगा। प्रकृति की समस्त वस्तुओं में बीज एक अद्भुत विशेषता रखता है। एक विशेषता यह है कि जब बीज जीवन लेकर उगता है, तब वह मातृ पौधे का रूप ले लेता है, और दूसरी विशेषता यह है कि बीज अवश्य ही फल लाता है। कोई भी बीज हो, बीज में अंकुर निकलता है और बीज अपना मूल रूप लेकर बढ़ता है, और आखिर में वह अवश्य ही बहुत सारे फल पैदा करता है।

परमेश्वर ने कहा है कि वह हमें अपना वंश(बीज) मानता है। इस वचन में गहरा अर्थ निहित होता है कि जब हम सत्य में नया जीवन पाते हैं, तब हमें परमेश्वर के समान होते हुए बढ़ना चाहिए और अवश्य ही फल पैदा करना चाहिए।

यदि हम परमेश्वर के बलिदान व प्रेम को सही तरह से न सीखेंगे, तब हम परमेश्वर के बीज के रूप में अपनी भूमिका पूरी तरह से नहीं अदा कर सकेंगे। हमें परमेश्वर के ऐसे बीज बनना चाहिए, जिन्हें लोग देखने से भी परमेश्वर को पूरी तरह से समझ सकें, और बहुत सारे फल पैदा करके परमेश्वर को खुशी देनी चाहिए।


मसीह के बलिदान से पैदा हुए बीज

आज, परमेश्वर की सन्तान जो पूरे संसार में आत्मिक इस्राएली यानी ईसाई कहलाती हैं, वे बहुत ज्यादा हैं जैसे समुद्र की बालू हैं। लेकिन चुनी हुईं प्रतिज्ञा की सन्तान, केवल वे ही हैं जिन्हें परमेश्वर अपना वंश(बीज) मानता है।(रो 9:27–29 संदर्भ) परमेश्वर ने अपने वंश(बीज)को रख छोड़ने के लिए, अपने आपको दोषबलि करके चढ़ाया।

यश 53:8–10 “अत्याचार करके और दोष लगाकर उसे ले जाया गया। और उस पीढ़ी के लोगों में से किसने इस पर ध्यान दिया कि वह जीव–लोक में से काट डाला गया? क्योंकि मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी। उसकी क़ब्र दुष्ट मनुष्यों के साथ ठहराई गई, फिर भी मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था, और न उसके मुंह से कोई छल की बात निकली थी। फिर भी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले। उसी ने उसको पीड़ित किया। यदि वह अपने आपको दोषबलि करके चढ़ाए तो वह अपना वंश देखेगा। वह बहुत दिन जीवित रहेगा और यहोवा की भली इच्छा उसके हाथ से पूरी हो जाएगी।”

यशायाह के अध्याय 53 में, भविष्यवाणी के रूप में यीशु मसीह का चित्रण किया गया है जिसने हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर दुखों को सह लिया। इसमें लिखा है कि यदि वह अपने आपको दोषबलि करके चढ़ाए तो वह अपना वंश(बीज) देखेगा। इसमें वंश(बीज) कौन हैं? हम ही मसीह के वंश(बीज) हैं जिन्होंने मसीह के लहू से उद्धार पाया है।

जिस प्रकार बीज बढ़ते हुए अवश्य ही अपने मातृ पौधे के समान बनता जाता है, उसी प्रकार हमें भी, जो मसीह के बीज हैं, मसीह के समान होना चाहिए। मसीह के समान, जिसने मनुष्य जाति के उद्धार के लिए क्रूस पर अपना बलिदान किया, हमें बलिदान एवं दुखों को सहते हुए, पूरे हृदय व पूरे मन से संसार के लोगों का उद्धार करने की कोशिश करनी चाहिए।


माता की सन्तान परमेश्वर के वंश(बीज) हैं

रो 9:6–9 “परन्तु ऐसा नहीं कि परमेश्वर का वचन व्यर्थ हो गया है, क्योंकि वे सब जो इस्राएल के वंशज हैं, इस्राएली नहीं, न ही वे इब्राहीम के वंशज होने के कारण उसकी सन्तान हैं, परन्तु लिखा है, “इसहाक ही से तेरा वंश चलेगा।” अर्थात् शरीर के सन्तान तो परमेश्वर के सन्तान नहीं हैं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश माने जाते हैं। क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है: “मैं इसी समय पर आऊँगा, और सारा के एक पुत्र होगा।” ”

गल 4:26–31 “परन्तु ऊपर की यरूशलेम स्वतन्त्र है, और वह हमारी माता है...।और हे भाइयो, तुम इसहाक के समान प्रतिज्ञा की सन्तान हो। परन्तु जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्मा हुआ तो आत्मा के अनुसार जन्मे हुए को सताता था, वैसा ही अब भी होता है। परन्तु पवित्रशास्त्र में क्या लिखा है? “दासी और उसके पुत्र को निकाल दे, क्योंकि दासी का पुत्र तो स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र के साथ उत्तराधिकारी नहीं होगा।” इसलिए हे भाइयो, हम दासी की नहीं परन्तु स्वतन्त्र स्त्री की सन्तान हैं।”

जो वंश माने जाते हैं, वे प्रतिज्ञा की सन्तान हैं। बाइबल कहती है कि स्वतंत्र माता की सन्तान ही प्रतिज्ञा की सन्तान हैं। जिस प्रकार जो सारा का पुत्र था, केवल इसहाक ही इब्राहीम का वंश(बीज) माना गया था, उसी प्रकार जो माता की सन्तान हैं, केवल वे ही परमेश्वर के वंश(बीज)माने जाएंगे जो प्रतिज्ञा की सन्तान हैं।

हम पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। इसलिए पिता और माता के समान, स्वर्ग के खोए हुए परिवार वालों को खोजने के काम में पूरी मेहनत से जुटे रहें, और सिय्योन के सदस्यों से प्रेम करें, और धीरज रखकर उन्हें बर्दाश्त करें और स्वयं को नीचा समझते हुए ऐसा विश्वासी जीवन जीएं जिससे सदस्यों पर अनुग्रह हो। जब हम ऐसी विशेषताएं रखेंगे, तब हम परमेश्वर के बीज, यानी परमेश्वर के वंश कहलाएंगे।

यदि देवदार का बीज भूमि में गिरा है और बढ़ जाए, तो क्या उसमें से देवदार की पतली पत्तियों की जगह चौड़ी पत्तियां निकलेंगी? यदि वह बीज देवदार की विशेषता नहीं रखता, तो वह देवदार का बीज नहीं हो सकता। हम परमेश्वर के वंश(बीज) हैं। इसलिए हमें सिर्फ बाहर से नहीं, पर अन्दर से भी परमेश्वर के समान होना चाहिए।

मर 9:50 “नमक अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद मिट जाए तो उसे फिर कैसे नमकीन करोगे? अपने में नमक रखो और आपस में मेल–मिलाप से रहो।”

यदि परमेश्वर के बीज अपनी विशेषताओं को खोएं, तो इस संसार में रहने का उद्देश्य और मतलब नहीं होगा। हमें अवश्य ही, मसीह के जीवन को अपना आदर्श बनाना चाहिए और वैसा ही आचरण करना चाहिए जैसा मसीह ने किया। परमेश्वर ने इसलिए हमें अपने वंश(बीज) कहकर बुलाया है, ताकि हम परमेश्वर के समान हो सकें। परमेश्वर ने वंश(बीज) पैदा करने के लिए, अपना पवित्र प्राण तक बलिदान किया है।


परमेश्वर के वंश(बीज) जो आत्मा के उद्धार करने के जोश से भर गए

मसीह के जीवन में कई प्रकार की विशेषताएं होती हैं, जिन्हें हमें अपनाना चाहिए। तब आइए हम मसीह के उन कार्यों को देखते हुए, जो उसने इस धरती पर किए थे, इस पर विचार करें कि ‘मसीह के बीज’ होने का क्या मतलब है।

लूक 19:10 “मनुष्य का पुत्र तो खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।”

यदि हम मसीह के बीज हों, तो संसार में रहते हुए बनाए गए हमारे जीवन के उद्देश्य व अर्थ ठीक वैसा होना चाहिए जैसा मसीह का है। मसीह ने इस धरती पर आकर जो सबसे पहले किया, वह यह था, खोए हुए लोगों को ढूंढ़कर उनका उद्धार करना। यदि हम मसीह की इस इच्छा का अनुसरण करें और आत्मा का उद्धार करने के लिए पूरी मेहनत करें, तब हम मसीह के बीज कहला सकेंगे।

मर 1:35–39 “भोर को जब अन्धेरा ही था वह उठा और बाहर निकल कर एकान्त में गया और वहां प्रार्थना करने लगा। तब शमौन और उसके साथी उसको खोजने लगे, और उन्होंने उसे पाकर कहा, “सब लोग तुझे ढूंढ़ रहे हैं।” उसने उनसे कहा, “आओ, हम और कहीं आस–पास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार कर सकूं, क्योंकि मैं इसीलिए निकला हूं।” अत: वह सारे गलील में उन के आराधनालयों में जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा।”

यीशु बड़ी सुबह उठ कर उत्साह से प्रार्थना करता था और इस नगर से उस नगर जाते हुए परमेश्वर का सुसमाचार सुनाता था, और पश्चाताप के लिए उत्साहित करता था, और परमेश्वर के राज्य की बातों का प्रचार करते हुए उसने जीवन बिता दिया। यदि हम मसीह के बीज हों, तो आत्मा का उद्धार करने के लिए प्रचार में देर न करेंगे।

प्रचार करना एक प्रमुख विशेषता है जिसे परमेश्वर के बीज रखते हैं। बीज कितना भी सुन्दर हो या उसकी विशेषता कितनी भी अनूठी हो, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब वह बढ़े, उसका रूप अपने मूल पौधे के रूप के जैसा बदल जाएगा। हम परमेश्वर के बीज हैं। इसलिए किसी भी समय, कहीं भी, किसी को भी सुसमाचार का प्रचार करना हमारे भाग्य में पहले से लिखा हुआ है। परमेश्वर ने इस धरती पर आकर जीवन देने के उद्धार का काम किया है। इसलिए सुसमाचार का प्रचार करना हमारे लिए अवश्य है, और यह हमारे जीवन में निश्चित मार्ग है जिस पर हमें चलना है।(1कुर 9:16)


परमेश्वर के वंश(बीज) जिनका स्वभाव परमेश्वर के स्वभाव के समान है

फिलि 2:1–8 “अत: यदि तुम्हें मसीह में कुछ प्रोत्साहन, प्रेम की सान्त्वना, आत्मा की सहभागिता, प्रीति और सहानुभूति है, तो मेरा आनन्द पूर्ण करने के लिए एक ही मन, एक ही प्रेम, एक ही भावना और एक ही दृष्टिकोण रखो। स्वार्थ और मिथ्याभिमान से कोई काम न करो, परन्तु नम्रतापूर्वक अपनी अपेक्षा दूसरों को उत्तम समझो। तुम में से प्रत्येक अपना ही नहीं, परन्तु दूसरों के हित का भी ध्यान रखे। अपने में वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा। उसने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया कि दास का स्वरूप धारण कर मनुष्य की समानता में हो गया इस प्रकार मनुष्य के रूप में प्रकट होकर स्वयं को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली।”

यदि हम मसीह के बीज हों, तो हमें यीशु के जैसा नम्र व्यवहार करना चाहिए। हम मूल रूप से पापी हैं जिन्होंने स्वर्ग में पाप किए। पापी को स्वयं को दीन करना है। यदि हम इसे सोचें, हम परमेश्वर के सामने अपना मुंह दिखाने लायक नहीं हैं।

यीशु अपराधी नहीं था, फिर भी हमें आदर्श दिखाने के लिए, उसने अपने आप को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु भी सह ली।(यूह 13:15 संदर्भ) इससे उसने हमें महसूस कराया है कि हमें मसीह के बीज के रूप में कैसा स्वभाव रखना चाहिए। उसने हमें अपने वंश(बीज) के रूप में माना है। इसलिए हमारा व्यक्तित्व मसीह के अनुरूप होना चाहिए, और हमारा कार्य एवं आचरण वैसा होना चाहिए जैसा मसीह का है।

जब स्वयं को दीन न करें, तब मन में घमंड उपजेगा। और इस घमंड से दूसरों के दिल में कांटे चुभाएंगे। हम स्वर्ग में परमेश्वर के खिलाफ पाप करने के कारण इस धरती पर निकाल दिए गए हैं। इसलिए हमें कभी घमंडी नहीं होना चाहिए। यदि कोई भूल जाए कि वह पापी है और दूसरों के सामने अपने आपको ऊंचा करे, तो पवित्र आत्मा उसके साथ मिल कर कार्य नहीं करेगा।

फिलि 2:9–11 “इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया और उसको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि यीशु के नाम पर प्रत्येक घुटना टिके, चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे, और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए प्रत्येक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है।”

यही परमेश्वर की इच्छा है। परमेश्वर ने हमें स्वयं को नीचा करने को इस कारण कहा है, ताकि वह हमें इतना ऊंचा करे कि पूरे ब्रह्मांड में प्रत्येक हमारे सामने झुक जाए। परमेश्वर ने स्वयं हमारे लिए इसका उदाहरण दिखाया है।

उसने दीन–हीन शरीर की पोशाक पहन कर स्वयं को नम्र बना दिया है और पापियों के लिए सेवा की है। इसके द्वारा ही, आज हम सिय्योन में आ सके हैं जो उद्धार का स्थान है, और परमेश्वर की महिमा एवं स्तुति कर सकते हैं।

मसीह ने तभी महिमा पाई और उस महिमा से पिता की महिमा की, जब अपने आप को दीन किया और जब वह प्राण देने तक आज्ञाकारी रहा। यह इसका उदाहरण था जिसका हमें पालन करना चाहिए। यदि हम ऐसा ही न करेंगे, तब हम परमेश्वर के बीज नहीं होंगे, और यदि हम परमेश्वर के बीज नहीं हो, तो कभी अनन्त स्वर्ग नहीं जा सकते।


परमेश्वर के वंश(बीज) जो मसीह के संगी वारिस होकर महिमा पाएंगे

हम परमेश्वर के बीज के रूप में बड़े हो रहे हैं। प्रचार करना, परमेश्वर का नियम मानना, स्वयं को दीन करना, अहंकारी न होना, आदि परमेश्वर के वचनों का हम इस कारण पालन करते हैं, क्योंकि हम ऐसा ही करने के द्वारा परमेश्वर के बीज के रूप में परमेश्वर के समान हो सकते हैं।

परमेश्वर गेहूं का दाना होकर भूमि में मरा, जिससे उसने हमें अपने बीज बनाए।(यूह 12:24 संदर्भ) तब हमारे जीवन का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए जैसा मसीह का है, और हमारा मन भी ऐसा होना चाहिए जैसा मसीह का है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। हमें उद्धार देने के लिए, यीशु मसीह ने अपने आप को नम्र किया, और वह अपना प्राण देने तक परमेश्वर के सारे वचनों पर आज्ञाकारी रहा। हमें मसीह के ऐसे स्वभाव को अपने हृदय में समाना चाहिए।

पिता और माता अपनी सन्तान को सिय्योन में बुला रहे हैं। आइए हम परमेश्वर के इस कार्य में शामिल रहें और हमारा जीवन मसीह के जीवन जैसा बनाकर खोए हुए भाइयों–बहनों को ढूढ़ने में कड़ी मेहनत करें। यीशु बड़ी सुबह उठकर प्रार्थना करने से दिन शुरू करता था, और जहां कही भी लोग उद्धार का शुभ समाचार सुनना चाहते थे, यीशु वहां जाकर प्रचार करता था कि परमेश्वर का राज्य निकट है और उन्हें पश्चाताप कराता था। हमें यीशु के इसी उदाहरण का पालन करना चाहिए।

परमेश्वर अपने बीज को पहले तैयार करके रखता है और उसे पूरे संसार में बोता है। चाहे वह बीज भारत में बोया जाता हो, बढ़ने के बाद उसे परमेश्वर के समान होना है। और चाहे वह अफ्रीका में बोया जाता हो, उसे बढ़ते हुए परमेश्वर के समान बनता जाना है। वह कहीं भी बोया जाए, उसे समान रूप से बढ़ना चाहिए। अगर वह अलग रूप से बढ़ जाए, तो वह परमेश्वर का बीज बिल्कुल नहीं होगा।

मैं पूरे विश्व में सिय्योन के सभी परिवार वालों से आशा करता हूं कि ऐसे सुन्दर बीज बन जाएं जो पिता और माता के स्वभाव के समान हैं। नया जन्म लेने का मतलब यह है, अपने पुराने मनुष्यत्व को उतार डाल कर परमेश्वर के समान नए सिरे से पैदा होना। आइए हम नए सिरे से नया जन्म लेकर बहुत सारे अच्छे फल पैदा करें और हम परमेश्वर के बीज के रूप में उसकी महिमा करें।