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बाइबल उद्धार के लिए मैनुअल है।

जब हम इलेक्ट्रिक उत्पाद खरीदते हैं, इसका इस्तेमाल करने से पहले, जो हमें शुरू में देखना चाहिए, वह मैनुअल है। मैनुअल के द्वारा मशीन की जानकारी मिलती है जैसे मशीन की सुविधाएं, मशीन को चालू करने का ढंग, मशीन का इस्तेमाल और सावधानी। उस उत्पाद की पूरी जानकारी लेने के द्वारा ही, हम लंबे समय तक सही तरह से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

जैसे मैनुअल में उत्पाद के बारे में पूरी जानकारी एकत्रित की गई है, वैसे ही बाइबल में स्वर्ग जाने का पूरा तरीका एकत्रित किया गया है। दूसरे शब्दों में बाइबल ‘उद्धार के लिए मैनुअल'' है। बाइबल की 66 किताबों में स्वर्ग जाने के तरीके विस्तार से लिखे गए हैं जो परमेश्वर ने स्वयं सिखाए थे, और व्यावहारिक उदाहरण के लिए ये भी लिखे गए हैं, उद्धार पाने वाले और नष्ट होने वाले लोगों की मनस्थिति, वचन और कर्म।

जंगल में 40 वर्ष रहने के दौरान, इस्राएली परमेश्वर के क्रोध के कारण नष्ट किए गए। यही इसका मुख्य कारण था कि वे परमेश्वर को धन्यवाद नहीं, पर शिकायत करते थे। ऐसे ही बाइबल के मैनुअल में लिखा है कि जब हम धन्यवादी मन खोएंगे, तब उसकी जगह शिकायत का मन आएगा, और यदि शिकायत करना स्वभाव में होगा, तो स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

जैसा परमेश्वर हमसे प्रेम करता है, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखेगा। वह केवल हमारे उद्धार के लिए परिश्रम करता है, और हमसे अनन्त प्रेम करता है, वह प्रेम जो कभी समाप्त नहीं होगा। आशा है कि सिय्योन के सभी सदस्य हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहें।


धन्यवाद देना भूलने पर शिकायत का बीज उगता है

एक विश्वविद्यालय में मनुष्य की मनोवृत्ति के बारे में एक परीक्षण किया गया था। परीक्षण के लिए एक क्षेत्र चुना गया था। और उस क्षेत्र के अन्दर प्रत्येक घर के प्रवेश द्वार के सामने, एक कर्मचारी हर दिन 400 रुपया रखता था। इससे इस बात की जांच की जाती थी कि जिसने इसे पाया है, उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी। परीक्षण एक महीने तक चला।

पहला दिन था। सभी लोग जिन्होंने घर के अन्दर जाते समय 400 रुपए को देखा, उनका मुख भाग्य से मिले हुए पैसे पर खिल उठा। उन्होंने अपने आसपास देखा। जब कोई नजर नहीं आया, उन्होंने तुरन्त अपने जेब में पैसा रख लिया। दूसरे दिन भी वैसा ही हुआ। जब लोगों ने पैसे को देखा, अपने आसपास देखने के बाद उसे जेब में रख लिया। तीसरे दिन, चौथे दिन... वैसा ही होता था। तब लोगों को यह जानने की इच्छा होने लगी कि कौन द्वार के सामने पैसा डालता है। वे छुपके खिड़की से उसे देखा करते थे जो हर दिन घर के सामने पैसा डालता था।

एक सप्ताह बीता। पूरे नगर में उसके बारे में चर्चा की गई। हर व्यक्ति आपस में काना फूसी किया करता था, "मुझे तो मालूम नहीं है वह कौन है, पर वह हर दिन मेरे घर के सामने 400 रुपया रखता है, मैं बहुत धन्यवादी हूं.।" इस तरह उसके प्रति संदेह और धन्यवाद प्रकट करते हुए एक सप्ताह चला गया।

तीसरा सप्ताह था। लोग न तो उसके बारे में, जो 400 रुपया रखता था, और ज्यादा जानना चाहते थे और न ही धन्यवाद प्रकट करते थे। हर दिन घर के सामने पड़ा हुआ पैसा बटोरना तो उनके लिए एक साधारण सा काम बना। जब चौथा सप्ताह हुआ, लोग उसे कोई धन्यवाद देना आवश्यक नहीं समझते थे। वे पैसा जेब में ऐसे रखते थे जैसे उनके लिए यह बहुत उचित और स्वाभाविक बात हो।

एक महीना पूरा हो गया था और परिक्षण के आखिरी दिन, कर्मचारी किसी भी घर के सामने पैसा न डालकर बेकार ही चला गया। इस पर लोग जो उसे देख रहे थे, गुस्से में आकर उसे गालियां बोलने लगे, "अरे लापरवाह आदमी है!", "अरे वह रोज 400 रुपया रखने वाला नहीं क्या? वह हमारे साथ कैसा व्यवहार कर रहा है।"

ऐसे ही, वे वह धन्यवादी मन भूल गए जो उन्होंने शुरू में लिया था, यहां तक कि वे उससे जिसने शारीरिक रूप से उनकी मदद की, गालियां बोलीं। जब मैंने इस परिक्षण का परिणाम देखा, मुझे बहुत ही अफसोस हुआ, क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से अच्छी तरह से दिखाई देता है कि आसानी से विश्वासघात करना मनुष्य का स्वभाव ही है।

आइए हम सोचें कि परमेश्वर मनुष्य जाति को मुफ़्त में कितनी ज्यादा चीजें दे रहा है। मनुष्य जाति इस पृथ्वी में रहते हुए, जहां जीवों के लिए सूर्य की ज्योति, पानी, ताजा हवा आदि सारी जरूरी चीजें उपलब्ध हैं, परमेश्वर का बनाया हुआ सब कुछ जी भर कर इस्तेमाल कर रही है और आराम से रह रही है। वास्तव में इस पृथ्वी पर सब कुछ, जो परमेश्वर की योजना के अनुसार बनाया जाकर मेल से रहता है, वह उपहार है जो परमेश्वर हर दिन हमें मुफ़्त में देता है।

अब जो भी हम ले रहे हैं, उनमें से कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमने परमेश्वर से नहीं ली।(1कुर 4:7 संदर्भ) फिर भी ऊपर की कहानी में लोगों के समान, हम बहुत बार परमेश्वर को धन्यवाद देने के बजाय, सब कुछ ऐसा सोचकर इस्तेमाल कर रहे हैं कि हमारे पास ये लेने का अधिकार पहले से हो और यह बिल्कुल स्वाभाविक बात हो। ये हमें देना या न देना, वास्तव में, परमेश्वर का अधिकार है। देने की बात परमेश्वर की इच्छा शक्ति पर छोड़ दी जानी चाहिए। लेकिन जब परमेश्वर एक बार हमारी प्रार्थना का जवाब नहीं देता, तब हम परमेश्वर को शिकायत करते हैं। मानव जाति इस तरह से, परमेश्वर के अनुग्रह को शिकायतों में बदल डालने की बड़ी गलती कर रही है।

परमेश्वर ने अपनी प्रजाओं के लिए सब कुछ तैयार किया है। परमेश्वर ने हमारे लिए उद्धार का मार्ग खोलना चाहा, इसलिए उसने हमारे पापों की सजा देने का समय टाल दिया है, ताकि हम इस धरती पर रहने के दौरान, अपने पापों पर पश्चाताप करके क्षमा पा सकें। यदि हम परमेश्वर का ऐसा अनुग्रह सोचें, तो हमें हर बात में केवल धन्यवाद ही देना चाहिए।


जंगल में इस्राएलियों के जीवन से शिक्षा

परमेश्वर ने बाइबल के द्वारा, जो उद्धार के लिए मैनुअल है, हमें सिखाया है कि हर बात में परमेश्वर का धन्यवाद करना उद्धार पाने का तरीका है। यह तथ्य हमें समझाने के लिए, परमेश्वर ने इस्राएलियों के उन अनुभवों को, जो उन्हें जंगल में 40 वर्ष तक मिले थे, एक उदाहरण के रूप में दिया है।

1कुर 10:1­–12 " ... हमारे सभी पूर्वज बादल की अगुवाई में चले और सब के सब समुद्र के बीच से पार हुए। सब ने उस बादल और समुद्र में मूसा का बपतिस्मा लिया, सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया, और सब ने एक ही आत्मिक जल पिया ... परन्तु फिर भी उनमें से अधिकांश से परमेश्वर प्रसन्न नहीं हुआ– वे जंगल में मर कर ढेर हो गए। ये बातें हमारे लिए उदाहरण ठहरीं कि हम भी बुरी बातों की लालसा न करें, जैसे कि उन्होंने की थी। ... न तुम कुड़कुड़ाओ, जैसे कि उनमें से बहुतों ने किया­– और नाश करने वाले के द्वारा नाश किए गए। ये बातें उन पर उदाहरणस्वरूप हुईं, और ये हमारी चेतावनी के लिए लिखी गईं जिन पर इस युग का अन्त आ पहुंचा है। अत: जो यह समझता है कि मैं स्थिर हूं, वह सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े।"

जंगल में अधिकांश इस्राएली लोग नष्ट हो गए थे। इसके कारणों में एक कारण यही था कि उन्होंने परमेश्वर का धन्यवाद नहीं किया, बल्कि उसके खिलाफ शिकायत की। परमेश्वर ने अपनी प्रजाओं के लिए सब कुछ तैयार किया था, लेकिन उन्होंने न तो इसे महसूस किया और न ही इसका धन्यवाद किया। इस कारण से उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न नहीं किया।

हमें हमेशा बाइबल की शिक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए और इनका पालन करते हुए स्वर्गीय कनान की ओर आगे बढ़ना चाहिए। हम विश्वासी जीवन ऐसे जी रहे हैं जैसे जंगल में चल रहे हों। इसके दौरान चाहे हमें कुछ दुखों व कष्टों से गुज़र कर जाना पड़ता हो, तो भी यदि हम प्रार्थना के साथ परमेश्वर पर भरोसा करते हुए इन्हें सह लेंगे और हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करेंगे, तब परमेश्वर हमसे बहुत खुश होगा।

निर्गमन ग्रंथ के अध्याय 16 के द्वारा, आइए हम उनका उदाहरण देखें जो हर परिस्थिति में धन्यवाद न देकर शिकायत करने के कारण नष्ट हो गए थे।

निर्ग 16:1–5 "तब उन्होंने एलीम से कूच किया और मिस्र देश से बाहर निकलने के बाद दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन को इस्राएल की समस्त मण्डली एलीम और सीनै पर्वत के बीच सीन नामक जंगल में आ पहुंची। समस्त इस्राएली जनसमूह जंगल में मूसा और हारून पर कुड़कुड़ाने लगा। इस्राएलियों ने उनसे कहा, "भला होता कि हम यहोवा के हाथ से मिस्र में ही मार डाले जाते जब हम मांस की हांडियों के पास बैठकर जी भरकर रोटी खाते थे। तुम तो हमको इस जंगल में इसीलिए ले आए हो कि इस जन–समुदाय को भूखा मार डालो।" तब यहोवा ने मूसा से कहा, "देखो, मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊंगा और लोग प्रतिदिन बाहर जाकर दिन भर के लिए बटोरें। इस से मैं उनको परखूंगा कि वे मेरी व्यवस्था के अनुसार चलेंगे कि नहीं। ऐसा होगा कि वे प्रतिदिन जितना बटोरते हैं, छठवें दिन उसका दुगुना लाकर तैयार करें।" "

परमेश्वर इस्राएलियों के खाने के लिए 40 वर्ष तक मन्ना बरसा देता था। क्योंकि जंगल में पूरी मिट्टी और कंकड़ी ही थी। उन्हें खाने की चीज कहीं भी नहीं मिली थी। इसलिए जब परमेश्वर हर दिन खाना बरसाता था, तो इस्राएलियों को यह बहुत अद्भुत लगता था और हर दिन परमेश्वर को महिमा और धन्यवाद देते थे।

लेकिन जैसे–जैसे समय बीत रहा था, उनका मन बदलने लगा। शुरू में उन्हें लगा था कि मन्ना का स्वाद मधु के साथ बने पापड़ की तरह है, लेकिन बाद में वे ऐसा कहते हुए शिकायत करने लगे कि ‘हम लोग इस खराब भोजन से घृणा करते हैं।''(निर्ग 16:21, गिन 21:5 तुलना) ऐसे ही, वे जल्दी ही परमेश्वर के सब अद्भुत कामों को, जैसे लाल समुद्र को विभाजित करना, दिन में बादल के खम्भे से और रात में आग के खम्भे से इस्राएलियों की सुरक्षा करना आदि जो कोई सोच भी नहीं सका, पूरी तरह भूल गए।

उस समय से परमेश्वर ने उन्हें कनान में प्रवेश करने से मना किया, और उनकी सुरक्षा करना रोक दिया। अत: 6 लाख पुरुष जंगल में मर गए, और केवल यहोशू और कालेब ने ही कनान में प्रवेश किया। ये सब बातें शिकायत करने से घटी थीं।

हमें इसे लेकर कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि परमेश्वर हमेशा हमें जीवन के मार्ग पर ले जाता है। परमेश्वर के महान उद्धार का कार्य करते समय, हर प्रकार की कठिनाई और मुश्किल कभी–कभी हमारे सामने आती हैं। लेकिन मैं निवेदन करता हूं कि आप कभी शिकायत न करें। जैसे–जैसे समय बीत जाएगा, हमें जरूर एहसास होगा कि जिस मार्ग से हम गुज़रे हैं, वह सबसे अच्छा मार्ग है जो परमेश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।


हर बात में धन्यवाद करो

विश्व के हर कोने से बहुत से सदस्य सत्य स्वीकार करके सिय्योन की ओर उमड़ आ रहे हैं। लेकिन मुझे हमेशा एक बात की चिन्ता है। सिय्योन में कहीं ऐसा सदस्य होंगे जिन्होंने अभी तक अपने सांसारिक विचारों और आदतों को नहीं छोड़ा। कोई काम हमारी मर्जी के अनुसार न किए जाने से, यदि हम परमेश्वर की सामर्थ्य व प्रेम पर सन्देह करें और भाइयों से निराश रहें, तो स्वाभाविक रूप से हम शिकायत करने का मन बना लेंगे और धन्यवाद करना भूल जाएंगे।

यदि किसी ने ऐसे ही परमेश्वर पर विश्वास दृढ़ न किया हो, तो अभी से परमेश्वर के दिए मैनुअल के अनुसार विश्वासी जीवन जीना चाहिए। परमेश्वर ने हमारे लिए यह चेतावनी के रूप में लिखा है कि इस्राएली शिकायत करने के कारण नाश किए गए, और हमें शिक्षा दी है कि हम सर्वदा आनन्दित रहें, निरन्तर प्रार्थना करें, प्रत्येक परिस्थिति में धन्यवाद दें।

1थिस 5:14–18 "हे भाइयो, हम तुमसे आग्रह करते हैं कि आलसियों को चेतावनी दो, कायरों को प्रोत्साहन दो, निर्बलों की सहायता करो, सब के साथ सहनशीलता दिखाओ। ध्यान रखो कि कोई बुराई के बदले किसी से बुराई न करे, परन्तु सर्वदा एक दूसरे की तथा सब लोगों की भलाई करने में प्रयत्नशील रहे। सर्वदा आनन्दित रहो, निरन्तर प्रार्थना करो, प्रत्येक परिस्थिति में धन्यवाद दो, क्योंकि मसीह यीशु में तुम्हारे लिए परमेश्वर की यही इच्छा है।"

बाइबल, जो उद्धार के लिए मैनुअल है, हमें बताती है कि परमेश्वर की सन्तान होने के लिए सदा आनन्दित रहना है, निरन्तर प्रार्थना में लगे रहना है और हर बात में धन्यवाद करना है। ऐसा होने पर भी, यदि कोई इस मैनुअल की अवहेलना करते हुए, धन्यवाद न करेगा और शिकायत करते रहेगा, तो उसे कभी शुभ फल और परिणाम नहीं मिलेगा, चाहे वह सुसमाचार के लिए बहुत मेहनत करता हो।

हमने स्वर्ग में पाप किया था और हम इस धरती पर पाप पर पाप बढ़ा रहे हैं। फिर भी स्वर्गीय पिता और माता ने हमें सत्य में बुलाया है और ऐसा मार्ग खोल दिया है जिससे हम अपने स्वदेश, स्वर्ग वापस जा सकें। परमेश्वर अपने समान अपनी सन्तान का ख्याल रखता है, और उसने अपना बलिदान करके अपने लहू से हमें उद्धार दिया है जिससे हम पर अपना अनन्त प्रेम प्रकट किया है। तो हम परमेश्वर को कैसे शिकायत कर सकेंगे! और कैसे कुड़कुड़ा सकेंगे! परमेश्वर को लाखों, हजारों बार धन्यवाद देते हुए भी यह बहुत कम पड़ेगा।

जब हमारे शारीरिक जीवन में दुख–तकलीफ आए, तो सोचेंगे कि हम पापियों के साथ ऐसा होना निश्चित है। चाहे परमेश्वर इससे भी बहुत बड़ा दण्ड दे, तो भी हमें यह दण्ड पाना ही है। इस तरह हम ऐसे पापी हैं जिनका बहुत बड़ा दण्ड पाना स्वाभाविक है। तो क्या हम छोटी सी कठिनाई को न सह सकेंगे? परमेश्वर अन्त तक हमारे साथ चलता है कि हम परीक्षा और दुख पर विजयी हो सकें, और हमारी आत्माओं को सही मार्ग पर ले चलता है। यदि हम प्रार्थना में इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करेंगे, तब परमेश्वर प्रसन्न होगा और हमें बहुत से अनुग्रह और आशीष देकर, और परमेश्वर का अधिक धन्यवाद करने का मौका देगा।

हम नई वाचा की शिक्षाएं सीख चुके हैं। आइए हम उस गलत विचार, बुरी आदत और दुराचार को हटा दें जो पिछले दिनों अपनाते थे, ताकि हम दिन प्रतिदिन मसीह के समान बदलते जा सकें। आइए हम परमेश्वर के इस मैनुअल के अनुसार मसीही जीवन जीएं कि ‘नम्र बनो'', ‘दीन बनो'', ‘एक दूसरे से मेल–जोल बढ़ाओ'', ‘हर बात में धन्यवाद करो''। यही स्वर्ग जल्दी जाने के लिए सबसे शुभ मार्ग है।

चाहे कोई पिछले दिनों शिकायत करने का स्वभाव का था, फिर भी यदि हमेशा आनन्दित रहे, लगातार प्रार्थना करे और हर बात में धन्यवाद करे, तो वह स्वर्ग में अवश्य ही जा सकेगा। मैं आप सिय्योन के सभी सदस्यों से आशा करता हूं कि बाइबल की शिक्षा के अनुसार किसी भी परिस्थिति में धन्यवादी मन न भूल जाएं, यह विश्वास करें कि विश्वासियों का जीवन परीक्षाओं और दुखों से गुज़रकर और भी अधिक निखरता है जैसे आग में तपाए जाने से सोने की चमक बढ़ती है, और विश्वासयोग्यता से अनन्त स्वर्ग की ओर बढ़ते जाएं।