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परमेश्वर की महिमा प्रकट करने वाले
हम सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा परमेश्वर के नाम की महिमा कर रहे हैं, और भले काम करने से परमेश्वर को महिमा देने का प्रयास कर रहे हैं। आखिरकार यह हमारी भलाई के लिए है। माता ने शिक्षा दी है कि जब हम परमेश्वर को महिमा देते हैं महिमा हमें वापस मिलती है।
परमेश्वर की सन्तान के लिए, परमेश्वर की महिमा प्रकट करना बेहद महत्वपूर्ण सद्गुणों में से एक है। बाइबल की अनेक भविष्यवाणियां प्रमाणित करती हैं कि हम परमेश्वर की महिमा के लिए सृजे गए हैं। आइए हम बाइबल के द्वारा जानें कि हम किसके लिए सृजे गए हैं, और बुद्धि लें कि हमें कैसे मसीही जीवन जीना चाहिए कि परमेश्वर की महिमा सब से अधिक प्रकट कर सकें।
मनुष्य यात्री है जो स्वदेश की ओर जा रहा है
एक पिता और उसका बेटा लंबी पैदल यात्रा कर रहे थे। मार्ग के दोनों किनारों पर चित्र जैसा मनोरम और हृदयस्पर्शी दृश्य नजर आया तो उनकी आंखें भर आईं, जिससे लंबी यात्रा की थकान दूर हो गई।
सुन्दर प्राकृतिक दृश्य पर मोहित हो जाकर बेटे ने आगे जाना नहीं चाहा, और वह अपने पिता को वहां पड़ाव डाल कर ठहरने की बात कहकर अनुरोध करने लगा। बेटे के अनुरोध से पिता ने उसे सिर्फ कुछ दिनों तक आराम करने के लिए कहा। यह सुनते ही बेटे का दिल बहुत बहल गया, और वह सिर्फ पड़ाव नहीं, पर पेड़ों को काट कर बाड़ भी लगा रहा था। यह देखकर पिता ने बेटे को कहा,
"बेटा, ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि दो या तीन दिनों के बाद हम इस जगह को छोड़ कर घर वापस चले जाएंगे। इस जगह से ज्यादा मोहित न होना।"
यह सुनने के बाद भी, बेटे ने पिता की बात पर ध्यान नहीं दिया, और मजबूत पेड़ काट कर चारों ओर बाड़ बनाई और फूल लगाते हुए इसे सजाने में पूरा मन लगाया, मानो वह हमेशा के लिए वहां रहेगा।
ऊपर की कहानी में पिता और बेटे के जैसे जो यात्रा कर रहे थे, हम भी इस धरती पर अजनबी की तरह यात्रा कर रहे हैं। हमारी यात्रा का गंतव्य स्थान अनन्त घर, स्वर्ग है। यद्यपि पिता अनन्त स्वर्ग की ओर हमारी अगुवाई कर रहा है और वचन के द्वारा हमेशा स्वर्ग की याद दिला रहा है ताकि हम अपना घर स्वर्ग न भूलें, तो भी हम सन्तान बहुत बार स्वर्ग को भूल जाते हैं। हो सकता है कि हम भी उस बेटे की तरह हों, जिसने मनमोहक दृश्य में मन टिका कर, यात्रा के बीच में घर सजाने और सुन्दर बगीचा बनाने में मन लगाया और पिता की आवाज को अनसुना किया, और हो सकता है कि हम निकट आ रहे परमेश्वर के राज्य से अधिक इस धरती पर मन लगा रहे हों।
हमारे धरती पर का जीवन भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे बढ़कर स्वर्ग जो हमारा गंतव्य स्थान है, ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए हमें कभी स्वर्ग को नहीं भूलना चाहिए। आइए हम बीते हुए दिनों की याद करें और खुद को प्रश्न पूछें, "क्या मैं केवल स्वर्ग को सोचते हुए जोर–जोर से आगे बढ़ रहा हूं? या आंखों के सामने जो नजर आता है उस पर मन लगाने के कारण क्या स्वर्ग की आशा धुंधली पड़ रही है?"
परमेश्वर की महिमा के लिए सृजे गए लोग
हम परदेशी हैं जो स्वर्ग की ओर यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा में हमें निश्चय ही परमेश्वर की महिमा प्रकट करनी है, जिसके द्वारा हम गंतव्य स्थान, स्वर्ग वापस जा सकते हैं। क्योंकि हम परमेश्वर की महिमा के लिए सृजे गए हैं।
यश 43:1–7 "...मेरे पुत्रों को दूर से तथा मेरी पुत्रियों को पृथ्वी के छोर से ले आओ, अर्थात् हर एक को जो मेरे नाम का कहलाता है, जिसको मैंने अपनी महिमा के लिए सृजा है, तथा जिसको मैंने रचा और बनाया है।"
यश 60:21–22 "तेरे सब लोग धर्मी होंगे, वे सर्वदा के लिए देश के अधिकारी होंगे, वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथ का कार्य ठहरेंगे, जिससे कि महिमा प्रकट हो। छोटे से छोटा तो एक गोत्र और सबसे तुच्छ एक महान् जाति बन जाएगा। मैं यहोवा यह सब ठीक समय पर शीघ्रता से पूरा करूंगा।"
यशायाह नबी ने बताया है कि परमेश्वर की सन्तान परमेश्वर की महिमा प्रकट करेगी, और भविष्यवाणी भी की है कि जब वे परमेश्वर की महिमा प्रकट करेंगी, तब छोटे से छोटा तो एक गोत्र और सबसे तुच्छ एक महान् जाति बन जाएगा।
तब कैसे हम, जो परमेश्वर की महिमा के लिए सृजे गए हैं, परमेश्वर की महिमा को सब से अधिक प्रकट कर सकेंगे? आइए हम इसे बाइबल में पुराने इतिहास के द्वारा देखें।
आज्ञाकारी लोगों के द्वारा परमेश्वर की महिमा प्रकट होती है
2रा 5:1–14 " "सीरिया के राजा की सेना का नामान नाम एक सेनापति था...वह बड़ा शूरवीर भी था, परन्तु कोढ़ी था। सीरियाई दल इस्राएल में गए और एक बालिका को बन्दी बनाकर ले आए। वह नामान की पत्नी की सेवा– टहल करती थी। उसने अपनी स्वामिनी से कहा, "काश, मेरा स्वामी सामरिया के नबी के पास होता! वह उसे उसके कोढ़ से चंगा कर देता।"...तब नामान अपने घोड़ों और रथों सहित आकर एलीशा के घर के द्वार पर खड़ा हुआ। तब एलीशा ने एक दूत से संदेश भेजा, "जा, यर्दन में सात बार स्नान कर, तब तेरा शरीर चंगा हो जाएगा और तू शुद्ध हो जाएगा।" परन्तु नामान अत्यन्त क्रोधित हुआ और यह कहते हुए चला गया, "देखो, मैंने तो सोचा था: वह निश्चय मेरे पास बाहर आएगा और खड़े होकर यहोवा, अपने परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और कोढ़ के स्थान पर अपना हाथ फेरकर मेरा कोढ़ दूर कर देगा। क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सारे जलाशयों से उत्तम नहीं?...तब उसके सेवकों ने पास आकर उस से कहा, "हे हमारे पिता, यदि नबी तुझे कोई कठिन कार्य करने को कहता तो क्या तू न करता? तो जब वह कहता है कि स्नान करके शुद्ध हो जा तो इसे कितना और न मानना चाहिए।" अत: उसने जाकर परमेश्वर के जन के वचन के अनुसार यर्दन में सात बार डुबकी लगाई, और उसकी देह छोटे बच्चे की देह के समान हो गई और वह शुद्ध हो गया।"
पुराने समय में कोढ़ रोग एक लाइलाज बीमारी के रूप में जाना जाता था, और इसे लोग ‘ईश्वर की सजा'' मानते थे। इस कोढ़ से ग्रस्त सीरिया का सेनापति, नामान इलाज की आशा को बरकरार रख कर इस्राएल के नबी एलीशा के पास गया। परन्तु एक राज्य के महान सेनापति के आने पर भी, परमेश्वर का नबी, एलीशा बाहर नहीं निकला, पर सिर्फ मुुंह से सुझाव पारित किया कि यर्दन में सात बार स्नान करे तो शरीर चंगा हो जाएगा।
नामान, जिसने पहले सोचा था कि परमेश्वर का नबी तो विशेष ढंग से उसे चंगा करेगा, बहुत क्रोधित हुआ। उस समय यदि उसने अपने क्रोधित भाव को न दबा कर परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन न किया होता, तो उसके द्वारा परमेश्वर की महिमा न प्रकट की होती।
जब नामान ने अपने विचार को परमेश्वर के वचन से आगे ले लिया, तब उसे क्रोध आया। लेकिन जब वह सेवकों के निवेदन से वचन पर आज्ञाकारी रहा, तब आश्चर्यजनक रूप से उसका कोढ़ चंगा हो गया। तभी नामान को परमेश्वर का अस्तित्व और सामर्थ महसूस हो सकी, और उसने परमेश्वर को महिमा दी।
इस तरह जब हम परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी रहते हैं, तब परमेश्वर की महिमा बहुतायत से प्रकट होती है।
अत: लोग जो विश्वास के साथ वचन पर आज्ञाकारी रहते हैं, वे परमेश्वर की महिमा को सब से अधिक प्रकट कर सकते हैं। यदि हम नामान के जैसे परमेश्वर की आज्ञा का अनुसरण करते हैं, तब संसार में परमेश्वर की महिमा दिखाई देगी और स्वयं के लिए भी अनुग्रहपूर्ण और सुखपूर्ण परिणाम आएगा।
आज्ञापालन विजय दिलाता है
बाइबल में बहुधा उन लोगों के नमूने लिखे हुए हैं जिन्होंने आज्ञापालन से परमेश्वर की महिमा प्रकट की। यहोशू के छठवें अध्याय में यह इतिहास लिखा हुआ है कि परमेश्वर ने यरीहो नगर को गिरा दिया। यहोशू और इस्राएलियों ने ख़तना करने के बाद फसह का पर्व मनाया, और वे परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी होकर यरीहो नगर पर आक्रमण करने के लिए बढ़े।
यहो 6:1–5 "इस्राएलियों के कारण यरीहो तो दृढ़ता से बन्द रहता था। कोई बाहर भीतर आने जाने नहीं पाता था। तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "सुन, मैंने यरीहो को उसके राजा और शूरवीरों सहित तेरे हाथ में कर दिया है। तुम्हारे सब शूरवीर नगर को घेर कर उसकी एक बार परिक्रमा करें। छ: दिन तक ऐसा ही किया जाए। मेढ़ों के सींगों की सात तुरहियां लिए हुए सात याजक भी वाचा के सन्दूक के आगे आगे चलें। सातवें दिन तुम शहर की सात बार परिक्रमा करना और याजक तुरहियां फूंकें। और ऐसा हो कि जब वे नरसिंगे देर तक फूंकते रहें, और तुम तुरही–नाद सुनो तब सब लोग ऊंचे स्वर से जयजयकार करें। तब शहरपनाह नींव से ढह जाएगी और लोग अपने अपने सामने चढ़ जाएंगे।" "
यहो 6:15–20 "सातवें दिन उन्होंने भोर को शीघ्र उठकर नगर की उसी प्रकार सात बार परिक्रमा की। केवल उसी दिन उन्होंने नगर की सात बार परिक्रमा की। सातवीं परिक्रमा के बाद ऐसा हुआ कि जब याजकों ने तुरही फूंकी तब यहोशू ने लोगों से कहा, "जयजयकार करो, क्योंकि यहोवा ने यह नगर तुम्हें दे दिया है... तब लोगों ने जयजयकार किया और याजकों ने तुरही फूंकी। और ऐसा हुआ कि जब लोगों ने तुरही की ध्वनि सुनी तब उन्होंने ऊंचे स्वर से जयजयकार किया और शहरपनाह नींव से गिर पड़ी..." "
उस समय यरीहो का किला बहुत मजबूत करके अजेय बनाया गया था। शारीरिक अवस्था के अनुसार यरीहो के निवासी बड़े और ऊंचे थे, और उनकी तुलना में इस्राएली टिड्डियों के जैसे थे। लेकिन परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा शहरपनाह तत्काल गिर पड़ी।
तब परमेश्वर की ऐसी महिमा क्यों प्रकट हो सकी? यह यहोशू और इस्राएलियों के आज्ञापालन के कारण था। उन्होंने परमेश्वर के वचन का पालन किया, जिससे परमेश्वर की महिमा संसार में जान पड़ी।
गिदोन भी ऐसा ही था। जब परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी कि तीन सौ सैनिकों के साथ एक लाख पैंतीस हज़ार लोगों को मार डालो, यदि उसने इसे असंभव सोच कर आज्ञापालन न किया होता, तो बुरा परिणाम लाया होता। लेकिन उसने आज्ञापालन किया, जिससे परमेश्वर ने आश्चर्यजनक कार्य किया और अपनी महिमा प्रकट की। परमेश्वर ने मिद्यान की सारी सेना को एक दूसरे के विरुद्ध तलवार चलवा कर मरवा डाला। यह उनके विश्वास और आज्ञापालन का परिणाम था।
बाइबल यह तथ्य प्रमाणित करता है कि प्रत्येक युग में जिन्होंने आज्ञाकारी होकर परमेश्वर की इच्छा का खुशी से पालन किया, उनके द्वारा ही परमेश्वर की आश्चर्यजनक सामर्थ दिखाई दी और परमेश्वर ने महिमा पाई।
मसीह जो आज्ञाकारिता का आदर्श बना
यीशु मसीह ने शैतान के अधिकार को नाश किया और मृत्यु एवं पाप के दास बने मनुष्यों को छुड़ाया। इसके द्वारा यीशु ने परमेश्वर की महिमा बहुतायत से प्रकट की। तब आइए हम देखें कि यीशु ने कैसे यह महान कार्य पूरा किया और परमेश्वर की महिमा प्रकट की।
फिलि 2:5–11 "अपने में वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा। उसने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया कि दास का स्वरूप धारण कर मनुष्य की समानता में हो गया इस प्रकार मनुष्य के रूप में प्रकट होकर स्वयं को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया और उसको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि यीशु के नाम पर प्रत्येक घुटना टिके, चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे, और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए प्रत्येक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है।"
त्रिएक(पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा एक हैं) के अनुसार देखें, यीशु मूल रूप से परमेश्वर है। परन्तु यीशु मृत्यु भी सह कर आज्ञाकारी रहा, जिससे कि हम सीख सकें कि हमें कैसे परमेश्वर की महिमा प्रकट करनी है। बाइबल वर्णन करती है कि यीशु को सब नामों में श्रेष्ठ नाम प्रदान किया गया है।
शरीर में आया परमेश्वर भी यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु भी सह ली। इस सम्पूर्ण आज्ञाकारिता के द्वारा उसने सभी महान कार्यों को पूरा किया और परमेश्वर की महिमा को प्रकट किया, जिससे उसने महिमा भी पाई। हमें परमेश्वर के इस व्यावहारिक नमूने को मन में रखना चाहिए। आज्ञाकारिता सर्वश्रेष्ठ मार्ग है जिससे हम परमेश्वर की महिमा प्रकट कर सकते हैं।
आज्ञाकारी भक्त, एक लाख चवालीस हज़ार
तब बाइबल में कौन सब से अच्छी तरह से मसीह के नमूने के अनुसार आज्ञापालन करता है? प्रेरित यूहन्ना ने प्रकाशन से देखा कि एक लाख चवालीस हज़ार, जो अन्तिम दिनों में प्रकट होते हैं, सब से ज्यादा आज्ञाकारी हैं। इसलिए उसने एक लाख चवालीस हज़ार के बारे में यह लिखा कि ‘ये वे ही हैं जो मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं''।(प्रक 14:1–5)
वे परमेश्वर की इच्छा का बिना कुड़कुड़ाए अनुसरण करते हैं। चाहे रास्ता बंजर हो या काटों भरा हो, वे कहीं भी विश्वास और खुशी के साथ परमेश्वर के पीछे हो लेते हैं। उनकी ऐसी आज्ञाकारिता परमेश्वर की महिमा लाती है, जैसे कि यशायाह अध्याय 60 में लिखा है।
आज्ञाकारिता के बिना परमेश्वर की महिमा कभी प्रकट नहीं होती। यहोशू और इस्राएली परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी रहे, जिससे वे यरीहो की शहरपनाह गिरते देख सके। जो उन्होंने किया, वह केवल आज्ञापालन था। अंतत: यह ही परमेश्वर की महिमा को ले आया।
इसलिए बाइबल कहती कि एक लाख चवालीस हज़ार, जो 6,000 वर्ष के उद्धार–कार्य के अन्त में प्रकट होते हैं, मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं, और इसके साथ यह भविष्यवाणी भी की गई है कि वे अन्तिम दिनों में परमेश्वर की महिमा का तेज पूरे विश्व में चमकाएंगे।
वचन पर भरोसा रखकर विश्वास के साथ आज्ञाकारी रहें
बाइबल के इतिहास हमें दिखाते हैं कि जिस समय लोग विश्वास के साथ वचन पर आज्ञाकारी रहे, उस समय परमेश्वर की महिमा प्रकट हुई, परन्तु जब वे आज्ञाकारी न रहे तब वे दुर्भाग्य का शिकार बने। राजा शाऊल तो इसका व्यावहारिक उदाहारण है। उसने अपने विचार को आगे बढ़ा कर परमेश्वर के वचन को भंग किया। यह दुर्भाग्य का कारण बना, और वह परमेश्वर से त्यागा गया। इसके द्वारा परमेश्वर हमें सिखाता है कि ‘आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर उत्तम है''।
1शम 15:22–23 "तब शमूएल ने कहा, "क्या यहोवा होमबलि और बलिदानों से उतना प्रसन्न होता है जितना अपनी आज्ञाओं के माने जाने से? सुन, आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर और ध्यान देना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। क्योंकि विद्रोह करना शकुन विचारने के बराबर पाप है और अनाज्ञाकारिता मूर्तिपूजा के समान अधर्म है। इसलिए कि तू ने यहोवा के वचन को अस्वीकार किया है। उसने भी राजा होने के लिए तुझे अस्वीकार किया है।" "
हम स्वर्ग की ओर यात्रा पर हैं। ऐसे में ऊपर के नमूने पाठ देखते हुए, हमें इस पर जांचना–परखना होगा कि हम कितना परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी होते हैं, और विचार करना चाहिए कि हम कैसे परमेश्वर की महिमा को बहुतायत से प्रकट करेंगे। प्रेरित पतरस की आज्ञाकारिता हमारे लिए एक भला आदर्श बनती है।
पतरस, जो मछुआ था, सारी रात मछलियां न पकड़ पाया था। वह मछली पकड़ते पकड़ते थका–मांदा हुआ था। उस समय यीशु ने उसे कहा कि नाव को गहरे पानी में ले चल और मछली पकड़ने के लिए अपने जाल डाल। यीशु के कहने से पतरस ने फिर से जाल डाला, और जाल में भरे मछलियों को देखकर हैरान हो गया। वह सुन्दर मन से आज्ञाकारी रहा, जिससे परमेश्वर की महिमा प्रकट की। बाद में वह मसीह को ग्रहण करके मनुष्यों को पकड़ने वाला मछुआ बना, और बारह प्रेरितों के महिमामय पद पर नियुक्त किया गया।(लूक 5:1–11 संदर्भ)
वह वचन पर भरोसा रखकर विश्वास के साथ आज्ञाकारी रहा, जिससे ऐसा अनुग्रहपूर्ण परिणाम निकला कि आश्चर्यकर्म के साथ परमेश्वर की महिमा प्रकट की गई।
अब से हम पतरस के जैसे विश्वास रखेंगे, और परमेश्वर की सारी शिक्षाओं पर ऐसा कहेंगे, "हां मैं वचन पर भरोसा करके वैसा ही करूंगा"। इससे हम ऐसी स्वर्गीय सन्तान बन सकेंगे जो परमेश्वर की महिमा पूरे विश्व में प्रसारित करती हैं।
यदि आपने आज्ञापालन करने का तय किया हो, तो नामान के जैसे न बनना जिसने वचन का पालन तो किया, लेकिन पहले वचन सुनकर अपने विचार से क्रोधित हुआ था, परन्तु पतरस के जैसे बनना जिसने परमेश्वर के वचन कहते ही तुरन्त उसी का पालन किया। क्या पतरस का आदर्श और ज्यादा अनुग्रहपूर्ण नहीं है? परमेश्वर जब हमारी आज्ञाकारिता पूरी हो जाए तो सब प्रकार की अवज्ञा को दण्डित करने के लिए तैयार कर रहा है।(2कुर 10:6)
परमेश्वर की महिमा को सब से अधिक प्रकट करने वाले वे ही हैं जो विश्वास और खुशी के साथ परमेश्वर के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं। हम भविष्यवाणी किए गए प्रमुख पात्र, एक लाख चवालीस हज़ार हैं, तो मैं सिय्योन के परिवार से आशा करता हूं कि आप नामान, यहोशू, गिदोन, यीशु और प्रेरित पतरस की आज्ञाकारिता के आदर्श को सोचते हुए वचन पर और ज्यादा ध्यान दें और आज्ञाकारी रहें।