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परमेश्वर से नम्रता सीखें

बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार, बहुत से लोग सिय्योन में इकट्ठे हो रहे हैं। उनमें से कुछ सदस्य अपने पापी स्वभाव व बुरी आदत को त्याग कर, स्वर्ग का ईश्वरीय स्वभाव धारण किए हुए हैं और अपने जीवन को परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे हैं। और कुछ सदस्य अभी तक अपने पापों की गन्दगी को, जो संसार से जमी हुई थी, नहीं निकाल पाए हैं।

इसलिए हमें, जो पहले बुलाए गए हैं, उन सदस्यों के प्रति, जो सत्य में आए हैं लेकिन जिन्हें स्वभाव को सुधारना है, अनुग्रहकारी बात व स्वभाव का अच्छा आदर्श बनना चाहिए। सिय्योन की सन्तान के जो आवश्यक प्रेम के गुण हैं, उनमें से नम्रता के बारे में परमेश्वर के वचन के द्वारा सीखेंगे जो सब से श्रेष्ठ होती है।


गरीब पति–पत्नी का कोमल प्रेम

एक जोड़ा था जो गरीब होने पर भी आनन्दित रहता था। लेकिन, एक दिन वे दुर्भाग्य का शिकार हुए। अज्ञात रोग से पत्नी बीमार पड़ गई। बीमारी से पीड़ित पत्नी को देख कर, पति भावुक हो उठा। लेकिन उसके पास महंगी दवा खरीदने के लिए बिल्कुल पैसा नहीं था। सोचते–सोचते ही उसे इसका हल मिल गया। उसने बाजार में जाकर एक सस्ता जेनशेन(पौधा) खरीद लिया, और पत्नी को ऐसा कहा,
"सपने में कोई प्रकट होकर मुझे उस जगह पर ले गया जहां यह जेनशेन था, और उसने कहा, "यदि वह यह खाएगी, बीमारी से चंगी होगी। इसलिए यह खाकर जल्दी स्वस्थ हो जाओ।"

पत्नी ने उस जेनशेन को, जिसे पति खोद कर ले आया था, पूरा खा लिया। पति ने बग़ल में बैठी हुई पत्नी को खुद पर भरोसा करके खाते हुए देखकर, उसके प्रति आभार महसूस किया। और उसने पत्नी पर तरस भी खाया, क्योंकि उसे मालूम नहीं था कि यह औषधि की जड़, जंगली जेनशेन नहीं है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, पत्नी उसी समय से धीरे–धीरे स्वस्थ होने लगी। अत: पत्नी की बीमारी पूर्ण रूप से चंगी हो गई। इस पर पति इस अपराध भावना से बहुत दुखी हुआ कि उसने पत्नी को सच नहीं कहा, और वह सच कहने लगा,
"प्रिय, मैं सच बाताऊंगा। मैं दवा का खर्चा नहीं उठा पाया, इसलिए आप को झूठ बोलना पड़ा। मुझे क्षमा करो।"

जैसे पति ने सच्चे दिल से माफी मांगी, पत्नी अपने प्रति पति के प्यार के मन को जान गई, जिससे दिल पसीज उठा, और पति को गले लगाकर कहा,
"प्रियतम! मैंने जेनशेन तो कभी नहीं खाया है, लेकिन केवल आपका प्रेम समाया है।"

इसे सुनने के बाद, पति ने अपने काम पर, जो उसी समय तक किया था, सचमुच गर्व और बड़ी खुशी महसूस किया।

इस कहानी में गरीब पति को अपनी पत्नी से बहुत ही प्यार करने की वजह से, झूठ बोलना पड़ा, लेकिन पत्नी ने पति के पूर्ण समर्पण और प्रेम को देखकर, पति को क्षमा किया जिसने सच नहीं कहा। यद्यपि दोनों धनी नहीं थे, फिर भी वे आपस में सुन्दर प्रेम रखते हुए जीवनभर साथ निभाते थे।

ये पति–पत्नी इसी वजह से ऐसा सुन्दर प्रेम बढ़ा सके कि उनके प्रेम के अन्दर नम्रता थी। प्रेम के गुणों में नम्रता है। जैसे इस कहानी में पति–पत्नी में प्रेम और नम्रता थी, वैसे परमेश्वर के प्रेम और उसके भीतरी गुण, नम्रता को सीखकर, हमारे हृदय में प्रेम और नम्रता उपजना चाहिए, ताकि हम ऐसे मसीही बन सकें जो पूरे विश्व में प्रेम का सुगन्ध फैलाते हैं।


परमेश्वर का प्रेम और उसके भीतर नम्रता

परमेश्वर सिर्फ बपतिस्मा देने के लिए नहीं, परन्तु हमें उद्धार देने के लिए इस धरती पर आया। तब हमें इस बात से सन्तुष्ट नहीं रहना है कि ‘मैं एक सदस्य को सिय्योन में ले आया हूं'', लेकिन जहां तक हो सके, यह सोचते हुए उसकी पूरी देखभाल करनी चाहिए कि ‘उसके परमेश्वर के सामने सच्चे विश्वासी के रूप में उद्धार पाने में मैं कैसे मदद करूं''। अब बहुत से परिवार सिय्योन में उमड़ आ रहे हैं। उनके पूरी तरह से उद्धार में पहुंचने तक हमें उन्हें ऐसा प्रेम देना चाहिए जो हमने पिता और माता से लिया है।

कहावत है कि ‘स्त्री तो निर्बल है, पर माता बलवान है''। यहां स्त्री और माता में क्या फर्क है? यह प्रेम लेने और और प्रेम देने का फर्क है। स्त्री हमेशा प्रेम मांगती है, लेकिन जब स्त्री माता हो जाए जो बच्चे को असीम प्रेम देती है, तब वह ऐसा बलवान अस्तित्व बन जाती है जो ‘मातृ–शक्ति'' से सब कुछ कर सकती है। इस तरह से, इंसान का निर्बल होना या बलवान होना इस पर निर्भर है कि क्या वह प्रेम लेने के बारे में सोचता है या प्रेम देने के बारे में सोचता है।

यदि कोई सिर्फ प्रेम लेने के बारे में सोचता है, तब उसे बहुत बार तनाव होगा और ऐसी बात आएगी जिससे वह चिढ़ जाए। इसलिए हमें प्रेम लेने के अनुभव से और अधिक प्रेम देने का अनुभव करना चाहिए। तब ही हम मजबूत विश्वास रख सकेंगे और हमारा सिय्योन और स्थिर नगर हो सकेगा।

1यूह 4:7–8 "प्रियो, हम आपस में प्रेम करें, क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है। प्रत्येक जो प्रेम करता है, परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और परमेश्वर को जानता है। वह जो प्रेम नहीं करता परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।"

परमेश्वर प्रेम है। इसलिए जो प्रेम नहीं करता है, वह परमेश्वर को नहीं जानता। परमेश्वर का प्रेम लेने का नहीं, पर सदा तक देने का है, जिस प्रेम से परमेश्वर मानव का उद्धार करने के लिए आया। हम स्वर्ग के पापी थे जो पिता और माता परमेश्वर के अनुग्रह व प्रेम का विरोध करके, स्वर्ग से इस धरती पर निकाल दिए गए। इसके बावजूद, परमेश्वर ने सिर्फ सन्तान का उद्धार करने की गहरी इच्छा की, और वह स्वर्ग की अपनी सारी महिमा को छोड़ कर, इस धरती तक आया।

परमेश्वर के सभी कठोर बलिदान जो मनुष्यों को पापों से छुड़ाकर क्षमा देने के लिए किए गए, वे सब परमेश्वर के महान प्रेम से पैदा हुए। हमें इसी प्रेम को सीख कर इसका अभ्यास करना चाहिए।

1कुर 13:1–8 "यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की भाषाएं बोलूं पर प्रेम न रखूं तो मैं ठनठनाती घन्टी और झनझनाती झांझ हूं...। प्रेम धैर्यवान है, प्रेम दयालु है और वह ईष्र्या नहीं करता। प्रेम डींग नहीं मारता, अहंकार नहीं करता, अभद्र व्यवहार नहीं करता, अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुराई का लेखा नहीं रखता, अधर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। सब बातें सहता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धैर्य रखता है। प्रेम कभी मिटता नहीं। नबूवतें हों तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हों तो जाती रहेंगी, और ज्ञान हो तो लुप्त हो जाएगा।"

1 कुरिन्थियों 13 वें अध्याय में, व्यापक रूप से प्रेम के विषय–क्षेत्र का विस्तार किया गया है। प्रेम के गुणों में, जिनका अभ्यास हमें करना है, नम्रता भी है। स्वार्थी स्वभाव में नम्रता कभी पैदा नहीं होती, और हम नम्र बने बिना पे्रम के फल की आशा कभी नहीं कर सकते। नम्रता में प्रेम बढ़ता है और हम प्रेम का फल प्राप्त कर सकते हैं।


उद्धार का अनुग्रह जो नम्र लोगों को दिया जाता है

भज 25:8–9 "यहोवा भला और खरा है, इसलिए वह पापियों को अपने मार्ग की शिक्षा देता है। न्याय के मार्ग में वह दीन लोगों की अगुवाई करता है, और नम्र लोगों को वह अपने मार्ग की शिक्षा देता है।"

परमेश्वर नम्र लोगों को अपने मार्ग की शिक्षा देता है, क्योंकि नम्र मन के लोग ही नई वाचा के प्रेमपूर्ण मार्ग को पूर्ण रूप से समझ सकते हैं। चाहे आपने संसार में सिर्फ अपने हित के लिए दूसरे से समझौता न किया हो, और निठुर और स्वार्थी स्वभाव के हो, फिर भी परमेश्वर के अन्दर, जो प्रेम है, नम्र स्वभाव रखना चाहिए। परमेश्वर के मार्ग को सीखने के लिए हमारे पिछले गुस्सैल और कटु स्वभाव को त्याग कर, दीन और नम्र मन से परमेश्वर के पास जाना चाहिए।

भज 76:7–9 "तू, केवल तू ही, भययोग्य है, जब तू क्रोधित हो जाए तो कौन तेरे सामने खड़ा रह सकेगा? तू ने स्वर्ग से निर्णय सुनाया। पृथ्वी उस समय डर कर चुप हो गई जब परमेश्वर न्याय करने और पृथ्वी के सब नम्र लोगों को बचाने उठा।"

जिन्हें परमेश्वर उद्धार देता है, वे नम्र लोग हैं। ऊपर कहे गए नम्र लोग उन्हें संकेत करते हैं जो परमेश्वर के प्रेम में नम्र होते हैं। इसलिए जो नई वाचा के सत्य में मानव को बचाने की इच्छा से स्वयं को नम्र बनाते हैं, वे ही बाइबल में सच्चे नम्र लोग हैं।

मत 11:28–30 "हे सब थके और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ: मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।"

मसीह का मन जिसे परमेश्वर ने सीखने को कहा, नम्र मन है। हमारे जीवन में बहुत से चीजें व्यर्थ और निष्फल होती हैं। फिर भी हम व्यर्थ लालच के कारण, कभी–कभी अपनी आत्मा को चोट लगाते हैं और अपना दिल दुखाते हैं। परन्तु परमेश्वर ने कहा कि यदि हम परमेश्वर के पास जाकर नम्रता सीखें, तो हमारी आत्मा शांति पाएगी।

अब खोए हुए भाई–बहनें पिता और माता की गोद में वापस आ रहे हैं। इसी समय हमें परमेश्वर से नम्रता सीख कर अति नम्र मन रखना चाहिए, जिससे नए सदस्य सिय्योन में आकर सुख और आनन्द से भर सकते हैं और हर्ष और उल्लास से उछल सकते हैं। नम्र स्वभाव सद्गुण है जो नई वाचा के सत्य में परमेश्वर की सभी सन्तान के पास होना चाहिए।


मसीही का आवश्यक सद्गुण, नम्रता

आइए हम नम्रता के बारे में बाइबल की शिक्षा सीखें, जिससे कि हम सब मिलजुल कर प्रेम से रह सकें। जब हम सदस्यों से सलाह या निवेदन की बात कहते हैं, हमें नम्र भाव से कहना चाहिए।

2कुर 10:1 "अब मैं, पौलुस, स्वयं तुमसे मसीह की नम्रता और कोमलता के द्वारा आग्रह करता हूं–मैं जो तुम्हारी उपस्थिति में दीन हूं, किन्तु अनुपस्थिति में तुम्हारे प्रति साहसी हूं।"

गल 5:17–26 "क्योंकि शरीर तो पवित्र आत्मा के विरोध में और पवित्र आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करता है। ये तो एक दूसरे के विरोधी हैं...अब शरीर के काम स्पष्ट हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, मूर्तिपूजा, जादूटोना, बैर, झगड़ा, ईष्र्या, क्रोध, मतभेद, फूट, दलबन्दी, द्वेष, मतवालापन, रंगरेलियां तथा इस प्रकार के अन्य काम हैं...ऐसे ऐसे काम करने वाले तो परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी न होंगे। परन्तु पवित्र आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, दयालुता, भलाई, विश्वस्तता, नम्रता व संयम हैं। ऐसे ऐसे कामों के विरुद्ध कोई व्यवस्था नहीं है। और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने अपने शरीर को दुर्वासनाओं तथा लालसाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है। यदि हम पवित्र आत्मा के द्वारा जीवित हैं तो पवित्र आत्मा के अनुसार चलें भी। हम अहंकारी न बनें, एक दूसरे को न छेड़ें, और न ही डाह रखें।"

पिछले दिनों के अपने कुटिल मन, मिथ्या मन और जिद्दी मन को क्रूस पर चढ़ा देना चाहिए। क्योंकि हम ऐसे मन से मसीह को नहीं जान सकते।

बाइबल शिक्षा देती है कि हमें नम्र स्वभाव से मसीह की शिक्षा सीख कर स्वर्गीय पिता और माता के मार्ग पर चलना चाहिए। जब हम झूठ, घमण्ड और हठ को, जो हमारे मन में भरे हैं, त्याग कर मसीह के नम्र व दीन मन को सीखते हैं, तब हम नई वाचा के सिद्धान्त को और आसानी से समझ सकेंगे तथा पिता और माता के बलिदान को पूर्ण रूप से महसूस करके उसका अभ्यास कर सकेंगे।

इफ 4:1–3 "इसलिए मैं जो प्रभु का बन्धुआ हूं तुम से निवेदन करता हूं कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए हो उसके योग्य चाल चलो, अर्थात् सम्पूर्ण दीनता और नम्रता तथा धीरज के साथ प्रेम से एक दूसरे के प्रति सहनशीलता प्रकट करो, और यत्न करो कि मेल के बन्धन में आत्मा की एकता सुरक्षित रहे।"

परमेश्वर की बुलाहट के योग्य चाल चलने के लिए, हमारे पास नम्रता का गुण होना चाहिए। इसलिए जब कभी पौलुस ने प्रत्येक चर्च को पत्र लिखा, उसने भक्तों से हमेशा निवेदन किया कि सभी सदस्य नम्रता के साथ प्रेम में चलें। यह प्रथम चर्च की महत्वपूर्ण शिक्षा बनी कि नम्र मन से भक्तों का सत्कार करें और नम्र स्वभाव से सुसमाचार का प्रचार करें।

इस तरह से, नई वाचा के सत्य में, जिसका पालन हम करते हैं, सिर्फ परमेश्वर की व्यवस्था और विश्वास के बारे में शिक्षाएं नहीं हैं, परन्तु प्रेम और नम्रता के बारे में शिक्षाएं भी हैं जो हमें बराबर सीखने का दायित्व है।

1तीम 6:11–12 "परन्तु हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग, और धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य और नम्रता का पीछा कर। विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़। अनन्त जीवन को पकड़े रह जिसके लिए तू बुलाया गया था और जिसकी उत्तम गवाही तू ने अनेक गवाहों के सम्मुख दी थी।"

विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ने के लिए हमें नम्रता के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। चाहे हम ऐसी स्थिति में आए जिससे हमें इसका अनुसरण करना कठिन रहे, तो भी अपना धीरज धीरे–धीरे बढ़ाना चाहिए। तब ही हम परमेश्वर जिसने क्रूस के दुखों को भी हमें बचाने के लिए सहा, उसका मन समझ सकेंगे। और हम परमेश्वर जो विद्रोही पापियों पर क्रोधित होने में देर करता है और अन्त तक नम्रता व धीरज के साथ स्वर्ग की ओर अगुवाई करता है, उसके प्रेम को महसूस कर सकते हैं।


सुसमाचार जो कोमल प्रेम से पूरा होता है

जब सिय्योन में सन्तान, जो परमेश्वर की शिक्षा पाती है, पिता और माता की इच्छा के अनुरूप कोमल स्वभाव में बदल जाएगी, तब अनेक आत्माओं को उद्धार की ओर ला सकेगी, और परमेश्वर की आत्मिक सृष्टि का कार्य पूरा हो जाएगा। लेकिन हम तैयार नहीं हैं। हम अभी भी अपने पापों की गन्दगी को धोने के क्रम में हैं। जितना जल्दी हो सके, हमें पाप और गन्दगी को दूर करके, नम्र स्वभाव और दीन मन से परमेश्वर को सारी महिमा देनी चाहिए।

सिय्योन में बहुत जल्दी भर रहे सदस्यों को, हम और ज्यादा प्रेम देंगे और उनकी पूरी देखभाल करेंगे। ऐसा कहा जाता है कि जो सब से प्रभावी शिक्षा है, वह वरिष्ठ का उदाहरण है। इसलिए हमें उन्हें नम्रता, प्रेम और दीनता के सभी सदाचारों को, जो हमने परमेश्वर से सीखे, नमूने के रूप में दिखा कर शिक्षा देनी चाहिए, जिससे वे भी बाद में आने वाले सदस्यों को बराबर का अच्छा उदाहरण दिखाएंगे।

परमेश्वर ने वादा किया है कि जब समय आएगा, तब वह निर्बलों को बलवान बनाएगा। पिछले दिनों हम इतने निर्बल थे कि हम हमेशा प्रेम मांगते रहे। लेकिन हम ने परमेश्वर से देने का प्रेम सीखा है, तब अब से, हम प्रेम देने वाले बलवान लोग बनेंगे। इसके द्वारा सिय्योन प्रेम से भरपूरा होगा, और हम उन नए सदस्यों को, जिन पर संसार के दाग़ लगे हैं, पिता और माता की शिक्षा के अनुसार धुलवा सकेंगे और अच्छी तरह से उनकी देखभाल कर सकेंगे।

मैं सिय्योन के परिवार से उत्सुकता से आशा करता हूं कि आप अत्यंत नम्र मन से भाई–बहन के साथ प्रेमपूर्ण बर्ताव करें और नम्रता के साथ पिता और माता के बलिदान और दुखों को सीखें, और नम्रता की शिक्षा को अपने मन पर लिख कर नम्र व्यवहार करने के द्वारा परमेश्वर से बहुत–बहुत आशीष पाएं, जिससे कि सिय्योन सचमुच सुख, आनन्द और परमेश्वर के प्रेम से भर जाए।