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अनुग्रहपूर्ण वचन, हृदय–स्पर्शी वचन

कहावत है कि ‘उत्तम को उत्तम मिले, मिले नीच को नीच''। हमारे दूसरों से नम्रता से मधुर और उचित बातचीत करने का कारण दूसरों से अरुचिकर बात न सुनने के लिए है, लेकिन इससे और भी ज्यादा जरूरी कारण मुझे यही लगता है कि हमारे दैनिक जीवन में दूसरों से बेहतर रिश्ता कायम करें।

किसी ने कहा है कि जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, उसने एक मुंह बनाया और दो कान बनाए। उसने इस इरादे पर दो कानों को बनाया था कि बात करने से सुनना दो गुणा ज्यादा रहे। परमेश्वर ने बाइबल के अनेक पन्नों में पवित्र लोगों के बातचीत संबंधी शिष्टाचार के बारे में शिक्षाएं दी हैं।

हमें पिछले दिनों आवाज उठाने और लालची होने की आदतें थीं, लेकिन अब से आइए हम उन्हें छोड़ दें और स्वर्गीय पिता और माता की शिक्षाओं के आधार पर ऐसा सुन्दर चरित्र निर्माण करें, जो पिता और माता चाहते हैं। आइए हम बहुतायत से प्रार्थना और विनती करने के द्वारा, स्वर्ग की ऐसी समझदार सन्तान बनें जो अपने स्वभाव को क्षमाशील और दयावान ईश्वरीय स्वभाव के अनुरूप बना कर, आसपास के लोगों को उद्धार दिलाती हैं।


सब बुराइयों से दूर किए जाकर मधुर बात करो

जो शारीरिक बातों पर मन लगाते हैं, उनके बीच परस्पर कलह और झगड़ा होता रहता है। बाइबल इस पर जोर देता है कि जीभ को वश में न रखने वाला बुराई करेगा, अत: हमें केवल ऐसी बात करनी है जो उस समय की आवश्यकता के अनुसार उन्नति के लिए उत्तम हो।

इफ 4:26–32 "क्रोध तो करो पर पाप न करो। तुम्हारा क्रोध सूर्य अस्त होने तक बना न रहे। शैतान को अवसर न दो। चोरी करने वाला फिर चोरी न करे, परन्तु भलाई करने के लिए अपने हाथों से परिश्रम करे, जिससे कि आवश्यकता में पड़े हुए को देने के लिए उसके पास कुछ हो। कोई अश्लील बात तुम्हारे मुंह से न निकले, परन्तु केवल ऐसी बात निकले जो उस समय की आवश्यकता के अनुसार उन्नति के लिए उत्तम हो, जिससे कि सुनने वालों पर अनुग्रह हो। परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिए छाप दी गई है। सब प्रकार की कड़ुवाहट, रोष, क्रोध, कलह और निन्दा, सब प्रकार के बैर–भाव सहित तुम से दूर किए जाएं। एक दूसरे के प्रति दयालु और करुणामय बनो, और परमेश्वर ने मसीह में जैसे तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।"

ऐसा नहीं हो सकता कि मनुष्य को जीवन जीते हुए कभी गुस्सा न आया हो। जब गुस्सा आता है, काफी देर तक उसे नहीं रखना है, बल्कि उसे जल्दी ही उतारना चाहिए, जिससे मुंह से गन्दी तथा कड़वी नहीं, पर मधुर बात निकल सकेगी। जब हमारे मन में दुर्भाव पैदा होता है, तब मीठी वाणी से नहीं बोल सकते हैं।

हितकर वचन, मधुर वचन, शांतिमय वचन बोलने के लिए, हमारे अन्दर परमेश्वर का मन भरना चाहिए जो दयाशील, सहानुभूतिशील और क्षमाशील है। यह परमेश्वर की इच्छा है कि परमेश्वर की सन्तान सभी बुराइयों को निकाल दें और अपने मन में मसीह का स्वभाव रखें जो दयालु व भला है। पवित्र लोगों को, जिन्होंने शुभ समाचार का सुसमाचार सुना है और परमेश्वर की शिक्षा ली है, संसारी लोगों से अलग होना है।

हम स्वर्गीय पिता और माता की शिक्षा के द्वारा, नई सृष्टि में नया जन्म ले रहे हैं। इसलिए हमें पूरे दिल से परमेश्वर की ऐसी इच्छा का पालन करने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। परमेश्वर को बड़ी उत्सुकता है कि सन्तान कोई गंदी बात मुंह से न निकाले, परन्तु केवल ऐसी बात निकाले जिससे सबका हित हो और सब पर अनुग्रह हो, जिससे कि सन्तान फिर कभी पाप न करें।

कुल 4:2–6 "...इसके साथ ही हमारे लिए भी प्रार्थना करते रहो कि परमेश्वर हमारे लिए वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे कि हम मसीह के उस रहस्य का वर्णन कर सकें जिसके कारण मैं बन्दी भी बनाया गया हूं, और यह कि मैं उसे ऐसा प्रकट कर सकूं जैसा मुझे करना भी चाहिए। समय का सदुपयोग करते हुए बाहर वालों के साथ बुद्धिमानी से व्यवहार करो। तुम्हारी बातचीत सदैव अनुग्रहमयी और सलोनी हो कि तुम प्रत्येक व्यक्ति को उचित उत्तर देना जान जाओ।"

जैसे खाना स्वादिष्ट होना इस बात पर निर्भर है कि उसमें पड़ने वाला नमक उचित मात्रा में है कि नहीं, उसी तरह से हमें आसपास के लोगों से मिल जुल कर रहने के लिए, अनुग्रहपूर्ण रीति से सोच समझ कर बात करनी चाहिए।

त्योहार के अवसर पर, सारा परिवार काफी लंबे समय के बाद, घर में इकट्ठा होता है, लेकिन हम कभी–कभी यह देखते हैं कि घरवाले आपस में निंदनीय बात करते हुए लड़ाई–झगड़े करते हैं, जिससे घर के माहौल को खराब किया जाता है। संसारी लोग, जिनके पास स्वर्ग की आशा नहीं है, सांसारिक बातचीत करते हैं। अक्सर उनके बीच में अभिमानपूर्वक कही गई एक बात और दूसरों की तुलना करते हुए कही गई एक बात, सदस्य के मन में चोट लगाती है, जिससे घर का माहौल बिगड़ कर तनाव में रहता है। परन्तु ऐसा उदाहरण भी है जिसमें सिय्योन के सदस्यों ने अपने गांव जाकर अच्छा उदाहरण दिया है। उन्होंने परिवार के मिलन में सौंन्दर्ययुक्त व मधुर नम्रतायुक्त वचन से सदस्यों के दिल को छुआ और उन्हें परमेश्वर की ओर लाया। जब हम परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार चलते हैं, तब परमेश्वर परिवार के लोग और रिश्तेदारों की आत्माएं भी बचाया करता है।

गल 6:6–10 "जो वचन की शिक्षा पा रहा है, वह अपने शिक्षक को सभी उत्तम वस्तुओं में साक्षी बनाए। धोखा न खाओ: परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। क्योंकि जो अपने शरीर के लिए बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा, परन्तु जो पवित्र आत्मा के लिए बोता है, वह पवित्र आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा। हम भलाई करने में निरुत्साहित न हों, क्योंकि यदि हम शिथिल न पड़ें तो उचित समय पर कटनी काटेंगे। इसलिए जहां तक अवसर मिले सब के साथ भलाई करें, विशेषकार विश्वासी भाइयों के साथ।"

जैसा कि लिखा है, "जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे", जब हम बुरा वचन बोएंगे, बुरा फल मिलेगा, और जब भला वचन बोएंगे, भला फल मिलेगा। पास पड़ोस के लोग, घरवाले और रिश्तेदार से मिलते हुए, यदि हम उनके मन में सिर्फ शारीरिक वचन बोएंगे, तो शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेंगे। लेकिन यदि हम उन्हें बचाने को उत्सुक रहते हुए उनके मन में पवित्र आत्मा बोएंगे, तब परमेश्वर की ओर से अनन्त जीवन, सदा की खुशी और आनन्द का फल मिलेगा।

आइए हम परमेश्वर का यह वचन मन में रखें कि ‘जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे'', और जब कभी हम पड़ोसियों और घरवालों से मिलते हैं, केवल भला और सुन्दर वचन बोलें और परमेश्वर के जीवन के वचन को यत्नपूर्वक सुनाएं। कोई अनुग्रहपूर्ण वचन को एकदम नहीं समझता होगा, फिर भी, यदि हम निराश न होते हुए सुनाते ही रहें और इन्तजार करें, तब वचन के बीज में जड़ लगेंगी और यह बढ़कर फल लाएगा।

यूह 12:48–50 "जो मेरा तिरस्कार करता है, और मेरे वचन को ग्रहण नहीं करता, उस को दोषी ठहराने वाला तो एक है: मैंने जो वचन कहा है, वही अन्तिम दिनों में उसे दोषी ठहराएगा। मैंने अपने आप कुछ नहीं कहा, परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है उसी ने आज्ञा दी है कि क्या कहूं और क्या बोलूं। और मैं जानता हूं कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है। इसलिए मैं जो कुछ बोलता हूं, जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसे ही बोलता हूं।"

जैसे परमेश्वर ने कहा है, वैसे ही हम साहसपूर्वक सुनाएंगे। परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी कि परमेश्वर की ओर से संसार को चेतावनी दें, और इसके द्वार परमेश्वर ने हमें आशीष पाने का मौका दिया है। आइए हम विश्वास करें कि परमेश्वर की यह आज्ञा कि ‘नमक जैसे उचित और सुन्दर वचन के द्वारा आत्मा को बचाओ'', हमारे उद्धार और अनन्त जीवन के लिए है, तथा अनेक लोगों के मन को फिराने के द्वारा, परमेश्वर को प्रसन्न्ता दें और परमेश्वर का धन्यवाद करें।


शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटने वाला

सुसमाचार प्रचार करने के दौरान, हम लोगों से कड़वी बात सुना करते हैं। उनके बुरी बात बोलने पर भी, हमें कभी कड़वी बात कहकर उनसे मुकाबला नहीं करना है। चाहे हमें लोगों से बुरी बात सुनना पड़े, फिर भी उन्हें क्षमा करने का बड़ा मन रखना चाहिए।

हमें बुरी बात की अपेक्षा, केवल अनुग्रहपूर्ण व हृदय–स्पर्शी वचन के द्वारा, उद्धार का सुन्दर समाचार और अनन्त जीवन का वचन सुनाना चाहिए। किसी से कटु वचन सुनते ही, यदि उसे हम कटु वचन से जवाब दें, तो परमेश्वर बिल्कुल प्रसन्न नहीं होगा। अपवित्र आचारण करने और कटु वचन बोलने वाले को, जैसा उसने बोया, वैसा फल मिलेगा। इस तरह के लोग आखिर में परमेश्वर की अनन्त सजा पाएंगे।

यहूद 1:15–16 "सब का न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उन के सब अभक्ति के काम जो उन्होंने भक्तिहीन होकर किए, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।" ये कुड़कुड़ाने वाले, दोष ढूंढ़ने वाले, अपनी वासनाओं के अनुसार चलने वाले, घमण्ड भरी बातें करने वाले और अपने लाभ के लिए लोगों की चापलूसी करने वाले लोग हैं।"

1तीम 5:13–15 "इसके साथ ही साथ वे घर घर घूम कर आलसी बनना, और न केवल आलसी रहना परन्तु गपशप करना और दूसरों के कामों में व्यर्थ हाथ डालना सीखती हैं और ऐसी बातें कहती हैं जो कहने के योग्य नहीं...। क्योंकि कुछ तो पहिले से ही बहक कर शैतान का अनुसरण करने लगी हैं।"

प्रथम चर्च के समय, कुछ लोग आलसी रहते, गपशप करते, दूसरों के कामों में व्यर्थ हाथ डालते और अनुचित बात कहते थे, जिसके कारण वे आखिर में बहक कर शैतान का अनुसरण करने लगे थे। इसलिए हमें और अधिक सावधान रहना है। बाइबल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘जो भी निकम्मी बात मनुष्य बोलेंगे, न्याय के दिन परमेश्वर उसका हिसाब लेगा''(मत 12:36–37)

जब मनुष्य को गुस्सा आता है, स्वभाविक रूप से मुंह से कड़वी, अहितकर और गन्दी बातें निकलती हैं। क्योंकि जो हृदय में भरा होता है, वहीं मुंह पर आता है।(मत 12:34) इस्राएलियों के जंगल में घूमने–फिरने के समय में, जो कुड़कुड़ाए थे वे सब नष्ट हो गए।

हम बात कहने से पहले 3 बार से ज्यादा सोचेंगे, और ‘कहने योग्य वचन'' व ‘न कहने योग्य वचन'' में फर्क करके, सिर्फ कहने योग्य वचन कहेंगे। बड़े–बड़ों ने, जिसने हम से पहले जीवन जिया है, ऐसे जीवन जीने की कला बताई है कि ‘न कहने योग्य वचन'' को न बताना ही अच्छा है। इसके बारे में परमेश्वर ने चेतावनी दी है कि न कहने योग्य वचन बोलने वाला आखिर में परमेश्वर के सत्य को खोएगा।

1तीम 6:3–5 "यदि कोई भिन्न प्रकार की शिक्षा देता है और हमारे प्रभु यीशु मसीह के ठोस वचन तथा भक्ति के अनुसार शिक्षा से सहमत नहीं होता, वह अहंकारी है और कुछ भी नहीं समझता। उसे वाद–विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिस से ईष्र्या, द्वेष, निन्दा, अश्लील भाषा, बुरे बुरे संदेह, और उन मनुष्यों के मध्य निरन्तर झगड़े उत्पन्न होते हैं जिनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है, जो सत्य से दूर हो गए हैं और जो भक्ति को लाभ का साधन मानते हैं।"

‘बात'' के बारे में शिक्षा, मसीह की भक्ति के अनुसार शिक्षाओं का एक भाग है। यदि हम खरी बात के बारे में मसीह की शिक्षा की अवहेलना करे, तब हमें अन्त में सत्य खोकर अनन्त विनाश की ओर जाना पड़ेगा।


जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे

सिय्योन के सदस्य अभी हाल में तो, चंचल और अधूरे होने के कारण, भाई–बहन के दिल को बात से कभी–कभी चोट पहुंचाते हैं। परन्तु यदि परमेश्वर की शिक्षा पर और ध्यान लगााएं, तब हम इसे पहले से रोक सकेंगे।

याक 3:2–6 "क्योंकि हम सब कई बातों में चूक जाते हैं। जो अपनी बातों में नहीं चूकता, वही सिद्ध मनुष्य है और सारी देह पर भी नियंत्रण रख सकता है। यदि हम अपने वश में करने के लिए घोड़ों के मुंह में लगाम लगाएं तो हम उनके सारे शरीर को भी नियंत्रण में रख सकते हैं। देखो, जहाज़ भी यद्यपि इतने बड़े होते हैं और तीव्र वायु द्वारा चलाए जाते हैं, फिर भी एक छोटी सी पतवार द्वारा नाविक के इच्छानुसार संचालित किए जाते हैं। वैसे ही जीभ भी, यद्यपि शरीर का एक छोटा सा अंग है, फिर भी बड़ी बड़ी डींगें मारती है। देखो एक छोटी सी चिनगारी कितने बड़े वन में आग लगा देती है! और जीभ भी एक अग्नि अर्थात् अधर्म का एक लोक है। हमारे अंगों में स्थित यह जीभ सारे शरीर को कलंकित करती है और हमारे जीवन की गति में आग लगा देती है, और नरक की अग्नि में जलती रहती है।"

जिस प्रकार आग का छोटा कण उड़ कर इधर–उधर जाते हुए, पूरा पहाड़ और सारा घर जलाता है, उसी प्रकार एक छोटी बात आसपास के लोगों के बीच नफरत पैदा कर सकती है। इसलिए परमेश्वर ने शिक्षा दी है कि जीभ एक अग्नि है।

जैसा कि लिखा है, ‘जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे'', यदि कोई अधर्म की बात बोए, तब अधर्म का फल मिलेगा। लेकिन यदि कोई परमेश्वर का वचन, स्वर्ग और परमेश्वर का हमें सिखाया हुआ प्रेम बोए, तब अनन्त उद्धार और जीवन का फल अधिक पैदा करेगा।

आइए हम प्रेम भरे शब्द से उद्धार का सुन्दर समाचार साहसपूर्वक सुनाएं। यदि प्रिय माँ–बाप, भाई–बहन और रिश्तेदारों का मार्गदर्शन करके, उद्धार की ओर लाएंगे, और परमेश्वर का राज्य प्रत्येक परिवार से पूरा होगा, तब स्वर्ग का राज्य हमारे निकट आएगा।

हम भले कर्म करने के द्वारा, जिसे परमेश्वर ने सिखाया है, ज्योति व नमक के जैसे, संसार में अति उपयोगी लोग बनेंगे, और पिता और माता की अनुग्रहकारी शिक्षा के द्वारा स्वयं को परिवर्तित करके तथा पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर आसपास के सारे लोगों को परमेश्वर की महिमा प्रकट करें।

मधुर बात और सुन्दर बात करने का संकल्प और अहितकर बात मुंह से न निकलने का संकल्प दैनिक जीवनचर्या का अंग होना चाहिए। मैं निवेदन करता हूं कि चाहे अब तक आप पापी स्वभाव में हों, अब से और अधिक सुन्दर बात और भले कर्म करते हुए, परमेश्वर की सन्तान के रूप में जीवन जीएं।