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Q. बाइबल में, एक दृश्य है जहां यीशु ने लोगों को यह कहते हुए डांटा, “तुम व्यर्थ मेरी उपासना करते हो।” जब वे परमेश्वर की पूजा करते थे, क्यों यीशु ने कहा कि उनकी उपासना व्यर्थ है?

A. ऐसा सोचना आसान है कि यदि हम सिर्फ परमेश्वर की पूजा करें तो आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हालांकि, बाइबल की शिक्षा अलग है। यीशु ने कहा कि भले ही भविष्यद्वकता उन पर उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करते हैं और उनके नाम से बहुत सी चीजें करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए असमर्थ होंगे।(मत 7:21–23)

लोग जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, परमेश्वर की उपासना करने के लिए उनकी आराधना करते हैं। यदि वे भविष्यद्वकता या अगुवे हैं, उन्होंने अनगिनत बार परमेश्वर की आराधना की होगी। फिर भी, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते, इसलिए उनकी आराधनाएं व्यर्थ होती हैं।

2,000 वर्ष पूर्व, इसी कारण धार्मिक नेताओं ने व्यर्थ परमेश्वर की आराधना की, क्योंकि उन्होंने मनुष्यों के नियमों को रखा। बाहरी रूप से वे अगुवे होने का ढोंग करते थे जो परमेश्वर से सबसे अधिक प्रेम करते थे और होंठों से परमेश्वर का सम्मान करते थे, पर उन्होंने मनुष्यों की आज्ञाओं का पालन करने के लिए परमेश्वर की आज्ञाओं को त्याग दिया। शब्द “कपटी” की तरह, उन्होंने अपने विश्वास को केवल बाहरी रूप से सजाया।


मनुष्यों की आज्ञाओं का पालन करना व्यर्थ परमेश्वर की उपासना करना है


उस समय में फरीसी और शास्त्री बाइबल में लिखित परमेश्वर की आज्ञाओं से ज्यादा मनुष्यों की परम्पराओं को महत्व देते थे। इस कारण से उन्होंने यीशु के चेलों पर उंगली उठाकर कहा कि वे पूर्वजों की परम्पराओं को टालते हैं। उस समय, यीशु ने उन्हें उनकी गलतियों के लिए फटकरा कि वे मनुष्यों की परम्पराओं के कारण परमेश्वर की आज्ञा टालते हैं।

मत 15:1–3 तब यरूशलेम से कुछ फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे। “तेरे चेले पूर्वजों की परम्पराओं को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” उसने उनको उत्तर दिया, “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो?

यशायाह की भविष्यवाणी का सीधे उल्लेख करते हुए, यीशु ने इस बात पर जोर दिया कि परमेश्वर की आज्ञा को त्यागकर मनुष्यों की आज्ञाओं का पालन करते हुए केवल मुंह से परमेश्वर की उपासना करना एक व्यर्थ आराधना ही है जो किसी भी प्रकार की आशीष नहीं दिला सकती।

यश 29:13–14 प्रभु ने कहा, “ये लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं; इस कारण सुन; मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन् अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा, तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।”

मत 15:7–9 हे कपटियो, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक ही की है : ‘ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उनका मन मुझ से दूर रहता है। और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’

ये वचन केवल 2,000 वर्ष पहले फरीसियों को ही नहीं दिए गए हैं। यदि कोई परमेश्वर की आज्ञा को त्यागे और मनुष्यों की परम्परा को और भी अधिक मान्यता दे, तो बाइबल के वचनों में रखी गई परमेश्वर की गहरी इच्छा को समझने का ज्ञान और बुद्धि गायब हो जाएगी। चाहे कितनी बार या कितनी भी ईमानदारी से वे परमेश्वर की आराधना क्यों न करें, वे किसी भी प्रकार की आशीष नहीं पा सकते।


परमेश्वर की आज्ञा जिसे मसीह ने उदाहरण के रूप में दिखाया


पवित्र लोग जो सचमुच परमेश्वर का भय मानते हैं और उनसे प्रेम करते हैं, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं।(यूह 14:15) वह जो परमेश्वर की आज्ञा मानता है, परमेश्वर से आशीर्वाद पाता है, और उसकी यह गवाही दी जाती है कि वह परमेश्वर को जानता है।

1यूह 2:3–6 यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं। जो कोई यह कहता है, “मैं उसे जान गया हूं,” और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है और उसमें सत्य नहीं; पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमें सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है। इसी से हम जानते हैं कि हम उसमें हैं: जो कोई यह कहता है कि मैं उसमें बना रहता हूं, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था।

यीशु ने केवल शब्दों से नहीं सिखाया; उन्होंने स्वयं उदाहरण दिखाते हुए हमें परमेश्वर की आज्ञा सिखाई जिसका हमें पालन करना चाहिए।

यूह 13:15 क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।

प्रेरित जिन्होंने यीशु की शिक्षाओं को प्राप्त किया, हमेशा मसीह के उदाहरण का अनुसरण करना चाहते थे।

1कुर 11:1 तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।

इसी कारण, चर्च जो मसीह के उदाहरण का अनुसरण करते हुए परमेश्वर की आज्ञा का पालन करता है, सच्चा चर्च है जो उद्धार पाने वाला है। चर्च जो परमेश्वर की आज्ञा का त्याग करते हुए, अपनी परम्परा के रूप में मनुष्यों के नियमों का पालन करता है, वह ऐसा चर्च है जहां सच्चाई नहीं है और व्यर्थ परमेश्वर की आराधना की जाती है चाहे वह 2,000 वर्ष पहले फरीसियों की तरह बाहरी रूप से परमेश्वर पर विश्वास करने का ढोंग करता हो।

परमेश्वर की आज्ञा जिसे यीशु अपने चेलों के साथ रखने की सबसे तीव्र इच्छा रखी, नई वाचा का फसह है। यह इसलिए था क्योंकि यीशु ने वादा किया कि नई वाचा के फसह की रोटी और दाखमधु यीशु का शरीर और लहू है और रोटी को खाने और दाखमधु को पीने के द्वारा, मानवजाति जिनके लिए पाप के कारण मरना निर्धारित है, पापों की क्षमा की आशीष और अनंत जीवन पा सकती है।

लूक 22:15 और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं।”

मत 26:17–28 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिए फसह खाने की तैयारी करें? उसने कहा, “नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उससे कहो, ‘गुरु कहता है कि मेरा समय निकट है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहां पर्व मनाऊंगा’।” अत: चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी और फसह तैयार किया... जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिए पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।”

यूह 6:53–54 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।


चर्च जो मनुष्यों के नियम रखते हैं


भले ही परमेश्वर की आज्ञा जो यीशु के द्वारा हमें सिखाई गई, फसह का पर्व है, आज के दिनों में बहुत सारे चर्च फसह का पर्व नहीं मनाते। वे होंठों से मानते हैं कि यीशु ही प्रभु और उद्धारकर्ता हैं, पर जब नई वाचा के फसह के पर्व की बात आती है जिसे यीशु ने हमें अनंत जीवन देने के लिए स्थापित किया, वे जोर देते हैं कि हमें इसे रखने की जरूरत नहीं है। ऐसा कहने के बावजूद, प्रत्येक संप्रदाय की परम्परा के अनुसार वे प्रभु–भोज को निर्धारित दिनांक पर मनाते हैं। सभी अर्थ भी जो उन्होंने प्रभु–भोज के प्रति रखा, अलग अलग हैं।

एक खास संप्रदाय सिखाता है कि जब पादरी रोटी और दाखमधु को आशीष देता है, वे यीशु के असली मांस और लहू में बदल जाते हैं और मसीह उनमें रहते हैं। और लोगों को इस रोटी और दाखमधु के सामने जरूरत से ज्यादा दण्डवत करवाता है और रोटी एवं दाखमधु को मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करवाता है। ऐसे बेतुके नियमों को बनाने के बाद जो बाइबल में कहीं नहीं पाए जाते, लोग इसे अपने चर्च की परम्परा मानते हुए सच ठहराते हैं।

एक अन्य संप्रदाय जोर देता है कि प्रभु–भोज सिर्फ मसीह के बलिदान को याद करने के लिए एक साधारण समारोह है और इसका अनंत जीवन की आशीष से कुछ लेना देना नहीं। यह सीधे यीशु के वचनों के खिलाफ जाता है जिन्होंने कहा, “जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनंत जीवन उसी का है।”

सिर्फ यही दुनिया में मनुष्यों के द्वारा मनमर्जी से बनाया गया नियम नहीं है। रविवार की आराधना और क्रिसमस भी जिसे बहुत चर्च मनाते हैं, मनुष्यों के नियम हैं जो बाइबल में कहीं भी मौजूद नहीं हैं।

रविवार की आराधना और 25 दिसंबर पराए धर्म की विधियों के अनुसार बनाए गए हैं। रविवार मिथरा धर्म का पवित्र दिन है जो सूर्य–देवता की आराधना करता है, और 25 दिसंबर सूर्यदेव, मिथरा का जन्मदिन है। यदि लोग पराए धर्म की विधियों से नकल किए गए नियमों का ऊंचा मूल्यांकन करते हैं और उन्हें अपनी बड़ी परम्परा के रूप में इस प्रकार मान्यता देते हैं, क्या वे वास्तव में उद्धार पा सकेंगे?

यहेज 11:9–12 मैं तुम को इसमें से निकालकर परदेशियों के हाथ में कर दूंगा, और तुम को दण्ड दिलाऊंगा... तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूं; तुम तो मेरी विधियों पर नहीं चले, और मेरे नियमों को तुम ने नहीं माना; परन्तु अपने चारों ओर की जातियों की रीतियों पर चले हो।

इस्राएली अन्यजातियों की रीतियों पर चलने के कारण नष्ट किए गए थे। उनका पिछला इतिहास उन लोगों के परिणाम को दिखलाता है जो सब्त का दिन और फसह का पर्व जैसे परमेश्वर की आज्ञा का त्याग करते हुए मनुष्य के नियमों का पालन करते हैं। लोग जो पापों की क्षमा और अनंत जीवन का आशीर्वाद पाते हुए अनंत स्वर्ग के राज्य पर पहुंचना चाहते हैं, उन्हें अतीत के इतिहास से सबक लेना चाहिए और मनुष्यों के नियमों के बजाय जो लोगों को व्यर्थ परमेश्वर की आराधना करवाते हैं, परमेश्वर की सच्ची आज्ञाओं को मानना चाहिए।