9 नवंबर को जब शरद् ऋतु का अंत हो रहा था और मौसम जिसमें ठंडा ही बना रहना चाहिए था, करवट बदलकर सुहावना हो रहा था, 12 एशियाई देशों के 73 चर्चों से करीब 200 से अधिक सदस्यों ने कोरिया में प्रवेश किया।
64वें विदेशी मुलाकाती दल के सदस्य भारत, फिलीपींस, वियतनाम, कंबोडिया, मलेशिया, सिंगापुर, म्यांमार, मंगोलिया, जापान और अन्य देशों से आए। इन विशेष मेहमानों के लिए पूरी यात्रा के दौरान दस भाषाओं में अनुवाद की सुविधा उपलब्ध कराई गई। सभी सदस्यों में से 90 प्रतिशत से ज्यादा सदस्यों ने पहली बार कोरिया का दौरा किया, और वे 20 से लेकर 30 वर्ष की आयु के थे। वे प्रत्येक चर्च में से खास तौर पर चुने गए सुसमाचार के सेवक थे, क्योंकि बहुत ही ज्यादा सदस्यों ने इस यात्रा के लिए आवेदन किया था।
ⓒ 2015 WATV
64वें विदेशी मुलाकाती दल के सदस्य माता से मिलने को तड़पते थे और पवित्र आत्मा पाने और उसे अपने देशों के लोगों तक पहुंचाने के लिए बहुत उत्सुक थे, क्योंकि वे अपने चर्चों के उन सदस्यों की आशा और सुसमाचार के लक्ष्यों को अपने साथ लेकर आए थे जो पिन्तेकुस्त के दिन और झोपड़ियों के पर्व के बाद जारी रहे प्रचार समारोह के माहौल को गर्माना चाहते थे। स्वर्गीय माता ने उनका हार्दिक स्वागत किया और उनके प्रति अपना आभार व्यक्त किया जो बहुत दूर देशों से आए थे और ज्यादा कठिनाइयां होने के बावजूद यत्नपूर्वक प्रचार करते थे, और स्वर्गीय माता ने उन्हें सुसमाचार के ऐसे बड़े सेवक बनने के लिए आशीष दी जो पिता से बहुतायत से पवित्र आत्मा पाकर उसे अपने देशों तक पहुंचाएंगे।
सदस्यों ने माता के साथ बिताए हर पल को अपने हृदयों पर उत्कीर्ण कर दिया। आराधना और समारोह के दौरान कोरियाई भाइयों और बहनों के साथ जो वक्त उन्होंने बिताया, वह भी उनके मन में एक बहुमूल्य याद बनकर रह गया। 12 नवंबर को ओकछन गो एन्ड कम प्रशिक्षण संस्थान में आयोजित एक समारोह में उन्होंने अपने–अपने देशों के पारंपरिक कपड़े पहनकर एक विशेष गायक–दल के रूप में गीत गाकर परमेश्वर की महिमा की, जिसके द्वारा उन्होंने बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार इस युग का चिन्ह और संकेत दिखाया और कोरियाई सदस्यों के मन पर गहरी छाप छोड़ दी। उन्होंने “माता और अनेक भाई–बहनों के साथ रहकर हमें ऐसा लगा जैसा कि हम स्वर्ग में हैं, हम एहसास कर सकते हैं कि अनन्त स्वर्ग का राज्य ज्यादा दूर नहीं है” कहकर स्वर्गीय परिवारवालों के साथ रहने से मिलने वाली खुशी जाहिर की।
कोरिया में करीब दस दिनों तक रहने के दौरान माता की ध्यानपूर्ण देखभाल और प्रेम–दुलार का अनुभव करने के बाद उन्होंने कहा कि, “सच में हम ही माता के सब कुछ थे।” साथ ही उन्होंने माता से नम्रता, सेवा और आत्म–बलिदान की भावना रखना सीखा। कोरियाई सदस्य और मुलाकाती दल के सदस्य एक–दूसरे से सुसमाचार के कार्य के प्रति उत्साह व जोश और अनुग्रहपूर्ण व्यवहार सीख सके और एक दूसरे को प्रोत्साहित कर सके। उन्होंने स्वर्गीय पिता और माता के अनुग्रह और प्रेम का भरपूर एहसास करते हुए अपने सारे कार्यक्रमों को समाप्त किया और यह दृढ़ संकल्प करके अपने देशों की ओर लौट गए कि वे अपने देश वापस जाकर अवश्य ही सात अरब लोगों को प्रचार करने के मिशन को पूरा करेंगे।
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