
ⓒ 2017 WATV
“बोनजुर,” “जामबो,” “शिन चाओ,” “शालोम,” “ओला,” “कोनिचिवा,” “हेलो”...
दोपहर 2 बजे जब मेजबान ने सेमिनार शुरू होने से पहले बहुत सी भाषाओं में दर्शकों का खुशी से अभिवादन किया, तो कोरिया में पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्रों के चेहरे पर आनन्द–भरी बड़ी मुस्कान छा गई। कोरियाई विश्वविद्यालय के छात्रों ने उत्साह और तालियों के साथ अपने सपनों को पूरा करने के लिए दूर से आए विदेशी दोस्तों का स्वागत किया।
23 जुलाई 2017 को “हमारी माता” शीर्षक के तहत नई यरूशलेम फानग्यो मन्दिर में विदेशी छात्रों के लिए “हमारी माता” सेमिनार 2017 आयोजित किया गया। चूंकि वे प्रत्येक देश के भविष्य के लिए जिम्मेदार हैं, यह कार्यक्रम कोरिया में पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्रों को माता के प्रेम के साथ प्रोत्साहन का संदेश देने और आज से कल को बेहतर बनाने में उनकी मदद करने के लिए आयोजित किया गया।
भारी बारिश और खराब मौसम के बावजूद, घाना, रोमानिया, मंगोलिया, अमेरिका, वियतनाम, ब्राजील, इथोपिया, ब्रिटेन, यूक्रेन, मिस्र, इटली, भारत, जिम्बाब्वे, कोलंबिया, फ्रांस इत्यादि 43 देशों के 200 से अधिक विदेशी छात्र आए और उन्होंने 400 कोरियाई विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ भाषा और देश की सीमा से परे विशेष मित्रता बनाई और अविस्मरणीय स्मरण बनाया। बुल्गारिया के दूतावास के मिशन उप–प्रमुख श्रीमान पानको पानोव सहित समाज के सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोग भी उपस्थित थे और उन्होंने उन्हें प्रोत्साहित किया जो वैश्विक गांव के भविष्य का नेतृत्व करेंगे।
सेमिनार कोरियाई विश्वविद्यालय के छात्रों के द्वारा तैयार किया गया था और संचालित किया गया। प्रस्तुतकर्ताओं ने साहित्य की विभिन्न रचनाओं का सस्वर पाठ किया जो माता के प्रेम के मूल्य को दिखाती हैं, जैसे कि कवि युन दोंग जु की कविता “रात को तारे गिनना,” गी ह्यंग दो द्वारा लिखित “माता की चिंता,” और “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई कुछ रचनाएं इत्यादि। इससे विदेशी छात्रों को शांति मिली जो अपने घरों और माताओं को याद करते थे। साथ ही उन्होंने उपस्थित लोगों से अनुरोध किया कि वे माता के प्रेम के द्वारा अपने जीवन को खुशियों भरा बनाएं क्योंकि इस संसार में, जहां प्रेम ठंडा हो रहा है, थकी और घायल आत्माओं को आराम देने और बेहतर दुनिया बनाने के लिए जो आवश्यक है, वह माता का प्रेम है। यह सेमिनार अंगे्रजी में संचालित किया गया और नौ भाषाओं जैसे चीनी, वियतनामी, रूसी, मंगोलियाई, नेपाली इत्यादि में उसका अनुवाद किया गया।
सेमिनार से पहले और बाद में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों ने विदेशी छात्रों के उत्साह को बढ़ाया। फानग्यो मन्दिर की पांचवीं मंजिल पर आयोजित “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी में शाम तक उन विदेशी छात्रों की भीड़ लगी रही जिनकी भाषा और रंग–रूप अलग–अलग था। रचनाओं के अनुवाद को पढ़कर उन्होंने कहा, “चाहे कोई भी देश हो, माताओं का प्रेम और बच्चों के प्रति उनका समर्पण एक समान है।” कोरिया की पारंपरिक वस्तुओं, जैसे नौरिगे(महिलाओं के गहने), लकड़ी का चावल की रोटी बनाने का ढांचा, सांगमुनगाप(लकड़ी के फर्नीचर का जोड़ा) आदि को देखकर उन्होंने अपनी दिलचस्पी दिखाई और कहा, “यह कोरिया की एक जीवंत संस्कृति है जिसका हम कैंपस में अनुभव नहीं कर सकते।”
डेगु के विश्वविद्यालय के छात्रों के द्वारा तैयार किया गया सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम भी सफल रहा। विदेशी छात्रों ने कुछ समय के लिए अपने निजदेश की याद भूलकर अलग–अलग तम्बुओं में कोरियाई संस्कृति को सीखा और उसका अनुभव करने का आनन्द लिया; उन्होंने हानबोक पहना, पारंपरिक कोरियाई खेल खेला, और थैग्वंडो फुमसे और कोरियाई भाषा(हांगुल) सीख ली। ब्राजील के कायो सोनजा(यनसे विश्वविद्यालय की छात्रा) ने कृतज्ञता से कहा, “यह देखना काफी प्रभावशाली था कि भले ही बहुत से लोग विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों से आए हैं, लेकिन माता के प्रति वे समान भावना रखने की वजह से एक साथ मिलकर हंस सकते हैं। आज मैंने एक नई संस्कृति की खोज की है और सीखा है कि कैसे एक नए तरीके से सोचना है।”
बुल्गारिया के दूतावास के मिशन उप–प्रमुख श्रीमान पानको पानोव ने एक विश्वविद्यालय के छात्र से आमंत्रण पाकर सेमिनार में भाग लिया और कहा, “माता शीर्षक पर आयोजित इस हृदयस्पर्शी सेमिनार में विदेशियों को आमंत्रित करने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। इस कार्यक्रम के द्वारा मैं कोरियाई लोगों के अनुराग और माता के प्रेम के बारे में सोच सका। कृपया मुझे किसी भी समय फिर से आमंत्रित कीजिए।”
विश्वविद्यालय के छात्र जिन्होंने इस कार्यक्रम को तैयार किया था, उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय के छात्रों को यदि एक शब्द में व्यक्त किया जाए, तो वह शायद ‘चुनौती,’ ‘उत्साह’ या ‘जोश’ जैसा शब्द होगा है। इस दुनिया को बदलने के लिए जो प्रेम खो रही है, हम अपने कैंपस के जीवन में सिर्फ पढ़ाई और नौकरी के लिए चुनौती नहीं देंगे, बल्कि दूसरे लोगों को माता का प्रेम प्रदान करने के लिए भी अपना उत्साह और जोश दिखाएंगे।”

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“हमारी माता” सेमिनार में आमंत्रित विदेशी छात्रों के साथ इंटरव्यू
एनेट रोगासीन असेंगा(तंजानिया से, ग्यंगबुक विश्वविद्यालय की छात्रा)
कोरिया की तरह तंजानिया भी पहले दूसरे देश का उपनिवेश बन गया था और 1961 में स्वतंत्र हो गया। युद्ध के बाद कोरिया को तेजी से बहाल किया गया और उल्लेखनीय रूप से विकसित हो गया है। मैं उस विकास का रहस्य सीखना चाहती थी, और दोनों देशों के मिलते–जुलते इतिहास ने मुझे कोरिया की ओर आकर्षित किया था।
आज मुझे महसूस हुआ है कि तंजानिया के विकास के लिए एक माता के हृदय की आवश्यकता है। सेमिनार का विषय अर्थपूर्ण था और इतनी अच्छी तरह से सुनियोजित किया गया कि अलग–अलग संस्कृति और सोच रखने वाले हम लोग माता के प्रेम के महत्व और मूल्य को पर्याप्त रूप से समझ सके। एक माता खुद न खाते हुए भी अपने सभी बच्चों को खिलाने की कोशिश करती है, चाहे उसके पास कितने भी ज्यादा बच्चे क्यों न हो। वह खुद को इसलिए बलिदान कर सकती है क्योंकि वह अपने बच्चों से प्यार करती है। सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं को इस माता की भूमिका निभानी चाहिए। अगर उनके पास प्रेम, त्याग और समर्पित भाव नहीं है, तो वे ऐसा करने में विफल होंगे। जब मैं तंजानिया वापस जाऊं, मैं एक माता के हृदय के साथ काम करना चाहती हूं। जब मैं डेगु से यहां आ रही थी, बहुत भारी बारिश हुई थी, लेकिन यहां आकर मुझे लगता है कि मेरा यहां आना तो बहुत ही अच्छा हुआ।
स्टोइका एलेक्जेंड्रा रॉक्साना(रोमानिया से, ग्यंगबुक विश्वविद्यालय की छात्रा)
इन दिनों में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके साथ उनकी माताओं का संबंध अच्छा नहीं है। कुछ लोग अपनी माताओं को कष्टप्रद मानते हैं। माताएं भी स्वयं को अपने बच्चों से ज्यादा दूर महसूस करती हैं, क्योंकि वे काम करने के कारण उनके साथ कम समय बिताती हैं। यह बहुत अच्छा होगा अगर बच्चों को ऐसा मौका मिले जिससे वे अपनी माताओं के प्रेम का अधिक एहसास करें और अपने पारिवारिक रिश्ते को मजबूत करें। मेरा मानना है कि “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी और सेमिनार जो मैंने आज देखा है, उनके लिए एक शानदार मौका प्रदान करेगा। मुझे लगता है कि सेमिनार के बाद लोगों ने अपनी माताओं को फोन किया होगा। मैं पूरे सेमिनार में अपनी माता को फोन करना चाहती थी।
एडलिन बेकन(निकारागुआ से, आनयांग विश्वविद्यालय की छात्रा)
वैश्विक गांव में अलग–अलग लोग रहते हैं, इसलिए यदि वे एक–दूसरे को समझ नहीं सकते, तो समस्याएं बढ़ेंगी। यदि हर कोई एक माता का हृदय रख सकता है जो अपने सभी बच्चों का प्यार से आलिंगन करता है, तो दुनिया स्नेह से भरकर एक बेहतर जगह बन जाएगी। मैं अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सीय नीतियों का अध्ययन कर रही हूं, इसलिए मैं अक्सर मरीजों को सलाह देती हूं। मुझे लगता है कि यदि मैं मरीजों का इलाज इस तरह करूं जिस तरह एक माता अपने बच्चे के साथ बर्ताव करती है, तो मैं उन्हें बड़ी मदद दे सकूंगी। यह वह समय था जब मैं अपनी माता के प्रति जिसे मैंने एक वर्ष तक नहीं देखा, अपनी तड़प को शांत कर सकी और यह सीख सकी कि किस तरह की मानसिकता के साथ मैं मरीजों को संभालूं।
रबिया कोर्कमाज(तुर्की से, किफो विश्वविद्यालय की छात्रा)
आज का कार्यक्रम प्रेम से भरा था। सब लोग मुस्कुरा रहे थे। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने ऐसी उज्ज्वल मुस्कुराहट को कहीं भी नहीं देखा है। कोरिया तुर्की से मिलता–जुलता सा लगता है क्योंकि कोरियाई हृदय से बहुत स्नेही और उदार हैं।
मैं अब कोरियाई भाषा सीख रही हूं। जब मैं धाराप्रवाह कोरियाई बोल सकूंगी, तो मैं कानून का अध्ययन करूंगी। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता बनने का सपना देख रही हूं। चर्च ऑफ गॉड के विश्वविद्यालय के छात्रों के समान जो बहुत लोगों की मदद करते हुए विभिन्न प्रकार के स्वयंसेवा कार्य करते हैं, मैं भी ऐसे अच्छे कार्यक्रम में अनुवाद करने जैसी सेवा में भाग लेना चाहती हूं।