पछतावा हमारे मसीही जीवन में अति आवश्यक कर्म है, जो सबसे जरूरी माना जाना चाहिए और किसी से भी पहले आना चाहिए। पश्चाताप का मतलब है, इस दुनिया की ओर मुड़ते पापमय मन को पूरी तरह से परमेश्वर के अनुग्रह की दुनिया की ओर मोड़ना। (योना नबी और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त)
चुंगी लेनेवाले के समान जिसने अपने आप को दीन बनाते हुए आंसुओं से प्रार्थना की, और दाऊद के समान जिसने परमेश्वर के सामने अपने पापों का अंगीकार किया, स्वर्ग एवं पृथ्वी पर किए गए अपने पापों का पूरे मन से अंगीकार करना ही संपूर्ण पश्चाताप है.
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